Soil and Groundwater Management to Improve Agriculture

भारत की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि पर ही निर्भर है। कृषि की सकल घरेलू उत्पादन में भागीदारी लगभग 22 प्रतिशत है। किसानों और मजदूरों को आजीविका प्रदान करने के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है। कृषि उत्पादकता कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें कृषि इनपुट्स, जैसे जमीन, पानी, बीज एवं उर्वरकों की उपलब्धता और गुणवत्ता, कृषि ऋण एवं फसल बीमा की सुविधा, कृषि उत्पाद के लिए लाभकारी मूल्यों का आश्वासन, और स्टोरेज एवं मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर इत्यादि शामिल हैं।

पिछले कुछ दशकों में खाद्य उत्पादन का स्तर बढ़ा है लेकिन इसके साथ कई समस्याएं भी खड़ी हुई हैं जैसे मिट्टी में पोषक तत्वों का असंतुलन, जलस्तर एवं पानी की क्वालिटी का गिरना और मिट्टी के स्वास्थ्य का बिगड़ना। भूमि की उर्वरा शक्ति लगातार कम होती जा रही है और लोग जागरूक नहीं हुए उत्पादन बढऩे की बजाय घटना शुरू होगा। जमीनी पानी अधिक दोहन से नमकीन होने लगा है। 

ऐसे में किसान और कृषि विभाग ने जागरूकता के कदम नहीं उठाए तो दिक्कत बढ़ सकती है। इसीलिए वास्तविक समय आधार पर मृदा की अवनति और भूमि उर्वरता की दर निर्धारित करने का यन्त्र विकसित करना अति आवश्यक है| साथ ही साथ हमे एकिकृत मिटटी प्रबंधन की तरफ ध्यान देना चाहिए|

 

पिछले कुछ समय से कृषि में सुधार एवं उत्पादकता बढ़ाने के संबंध में डिजिटल प्रौद्योगिकी, महत्त्वपूर्ण मशीनों के संदर्भ में जानकारी, आवश्यक ज्ञान, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस से संबद्ध मुद्दों, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न आयामों के संदर्भ में कार्य किया जा रहा है।  वस्तुतः इन सभी प्रयासों का मूल उद्देश्य भारतीय कृषि को आधुनिक तकनीकी से जोड़ते हुए किसानों के साथ-साथ कृषि कार्यों  में  संलग्न सभी समुदायों को लाभान्वित करना  है।

मनुष्य के गलत गतिविधियों के वजह से मृदा नष्ट और दूषित हो रही है जिसका असर केवल धरती पर ही नहीं बल्कि सभी तरह के जिव-जंतु, पेड़-पौधे और मानव जाती पर दिखाई पड़ रहा है. इसलिए मृदा का संरक्षण करना बहुत ही जरुरी है. बढ़ती जनसख्या के कारण आज भूमि का बड़ी मात्रा मैं झरण हो रहा है|

भूक्षरण या मृदा-अपरदन का अर्थ है मृदा कणों का बाह्‌य कारको जैसे वायु, जल या गुरूत्वीय-खिंचाव द्वारा पृथक होकर बह जाना।  मृदा की ऊपरी सतह ही फसल उत्पादन के लिए महत्पूर्ण होती है किन्तु भूमि के झरण से ये उपजाऊ मिटटी कमजोर हो जाती है और फिर कट कर अलग हो जाती है और फिर बह कर पानी के साथ चली जाती |

मिटटी के कटाव से फसल उत्पादन मैं बहुत अनुकूल असर होता है| वास्तविक समय आधार पर मृदा की अवनति और भूमि उर्वरता की दर निर्धारित करने का यन्त्र विकसित करने से मृदा के झरण के दर को कम किया जा सकता है |

इसी प्रकार आज किसानों द्वारा अधिक मात्रा मैं उर्वरको के इस्तेमाल से मृदा की स्वास्थय  को हानि पंहुचा  है | उर्वरको के अधिक इस्तेमाल से पोधे मैं नुट्रिएंट्स  असंतुलित मात्रा मैं हो जाते है | अधिक मात्रा मैं डाले गए उर्वरक बह कर नदी और तालाबों को प्रदुसित करते है और पीने के पानी को भी  दुसित कर देते है |

एकीकृत मृदा प्रबंधन से मिटटी के स्वास्त्य और पानी की गुडवार्ता को भी बढ़ाया जा सकता है | इसके तहत केवल इनऑर्गेनिक स्त्रौत की जगह आर्गेनिक स्त्रौत को भी शामिल किया जाता है जैसे- हरी खाद, केचवो की खाद, बियफेर्टिलिसेर्स आदि|

वास्तविक समय आधार पर मृदा की अवनति और भूमि उर्वरता की दर निर्धारित करने के लिए सेंसर:

मृदा  जीवन के लिए पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं प्रदान करता हैI मिट्टी पानी के निस्पंदन और पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व के श्रोत के रूप में कार्य करता हैI यह अरबों जीवों के लिए निवास प्रदान करता है, जैव विविधता में योगदान देता है और बीमारियों से लड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाली अधिकांश एंटीबायोटिक दवाओं की आपूर्ति करता है।

मिट्टी हमारे देश के एग्रोइकोसिस्टम का आधार है जो हमें फ़ीड, फाइबर, भोजन और ईंधन प्रदान करती है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में मिट्टी की अवनति एक प्रमुख खतरा है। मृदा अवक्रमण पोषक स्थिति, मिट्टी कार्बनिक पदार्थ, संरचनात्मक विशेषताओं, और इलेक्ट्रोलाइट्स और विषाक्त रसायनों की सांद्रता में प्रतिकूल परिवर्तनों के माध्यम से मिट्टी की उत्पादकता में गिरावट को दर्शाता है।

मृदा अवक्रमण एक प्रक्रिया है, जो वस्तुओ या सेवाओं का उत्पादन करने के लिए मिट्टी की वर्तमान और / या भविष्य की क्षमता को कम करती है।

वास्तविक समय के आधार पर मिट्टी में अवनति और मिट्टी की उर्वरता की दर की भविष्यवाणी करने के लिए उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।

जलवायु परिवर्तन के साथ, मिट्टी की अवनति को मानवता का सामना करने वाली सबसे बड़े दिक्कत वाली समस्याओं में से एक के रूप में पहचाना जाना चाहिए। सेंसर को विकसित करने और पेश करने की आवश्यकता है, जो दोनों मुद्दों और समाधान को एक साथ और वास्तविक समय के आधार पर संबोधित करता है।

मिट्टी अवनति की समस्या से समाज में विनाश पैदा होता हैI हमें कुछ सेंसर विकसित करना चाहिए जो मिट्टी की स्थिति में बदलाव का पता लगा सके और वास्तविक समय के आधार पर किसानों को अपनी मिट्टी की स्थिति के बारे में बता सके ।

इसलिए, किसान पूरी तरह से मिट्टी की अवनति होने से पहले किसान आवश्यक उपाय कर सकता है। सेंसर के द्वारा जैसे ही कोई समस्या उत्पन्न हो, मिट्टी की गिरावट को कम करने का पता लगाएगा तथा मिट्टी की उर्वरता क्षमता में कमी का प्रारंभिक पता लगाने से समस्याओं के बड़े आकार के होने से पहले किसान द्वारा त्वरित प्रतिक्रिया होगी।

नैनोटेक्नोलॉजी: जलवायु स्मार्ट मिट्टी के लिए उपकरण

मृदा सभी स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों तथा खाद्य और फाइबर उत्पादन के कार्य का अभिन्न अंग हैं। जलवायु स्मार्ट मिट्टी वैसी मिट्टी है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, कार्बन को अनुक्रमित करने और अच्छी कृषि प्रबंधन प्रथाओं का उपयोग करने की क्षमता है, जो मिट्टी-नाइट्रोजन चक्र को मजबूत करते हैं, मिट्टी की उर्वरता क्षमता, फसल उत्पादकता, मिट्टी जैव विविधता में सुधार और क्षरण, प्रवाह और जल प्रदूषण को कम करें ।

ये प्रथाएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के खिलाफ फसल और चरागाह प्रणालियों को भी बफर करती हैं। उदाहरण के लिए, धान के खेती में जल निकासी प्रणालियों में परिवर्तन के द्वारा CH4 (मीथेन) उत्सर्जन को कम करना।

नैनो टेक्नोलॉजी उर्वरक की मात्रा को कम करने में, अधिक उत्पादकता बढ़ाने में, अधिक कार्बन, अधिक अनुक्रमण, कम नाइट्रोजन नुकसान एवं कम ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में मदद करेगा।

मिट्टी के मौसम के अनुसार स्मार्ट बनाने के लिए नैनो तकनीक के उपयोग के संबंध में कोई कार्य नहीं किया गया है।

उपान्तरित नैनोस्केल कण के आणविक या परमाणु नैनो-आकार वाले उर्वरकों को पौधे के छिद्रों को पोषक तत्वों को प्रभावी रूप से वितरित करने में सक्षम बनाता है। मिट्टी में कम उर्वरक निस्तारित होगा और / या जिससे ग्रीनहाउस गैस कम बनेगा। मृदा प्रबंधन पहलुओं में, नैनो पोषक तत्वों को जारी करके नैनो क्लेस और जियोलाइट्स की मदद से उर्वरक ली क्षमता बढ़ने का प्रयास किया जा रहा है और मिट्टी की उर्वरता की बहाली के साथ साथ उर्वरक की दक्षता में वृद्धि के प्रयास किए जाते हैं।

नैनो संरचित फॉर्मूलेशन लक्षित वितरण या धीमी / नियंत्रित निस्तारण तंत्र और सशर्त निस्तारण जैसे तंत्र के माध्यम से, पर्यावरणीय ट्रिगर्स और जैविक मांगों के जवाब में उनके सक्रिय तत्वों को अधिक सटीक रूप से जारी कर सकता है। नैनो उर्वरकों का उपयोग पोषक तत्वों में वृद्धि दक्षता का उपयोग करेगा, मिट्टी विषाक्तता को कम करेगा, खुराक से जुड़े संभावित नकारात्मक प्रभाव को कम करता है और उपयोग की आवृत्ति को कम करता है।

मिट्टी पर ह्यूमस सॉर्प्शन, दोनों कोलाइडियल मिट्टी और कोलाइडियल कार्बनिक पदार्थ (यानी, आर्द्रता ) स्थिरता प्राप्त करने के लिए परिसरों का निर्माण करेगा। यह प्राकृतिक घटनाओं में से एक है जो पृथ्वी प्रणाली की रक्षा करता है। ह्यूमस  मिट्टी पर नैनोस्केल के रूप में होता है। मृदा बाध्य आर्द्रता अपरिवर्तित पारिस्थितिक तंत्र को फिर से जीवंत कर सकते हैं। यह मिट्टी के गुणों और प्रक्रियाओं में बाधा नहीं डालेगा क्योंकि सिस्टम आयन एक्सचेंज, सोखना-विलुप्त होने, एकत्रीकरण - फैलाव, घुलनशीलता-विघटन इत्यादि के नियमों का पालन करता है।

प्रणाली को पोषक आयनों पौधे के लिए उपलब्ध रूपों में मुक्त करने में सक्षम होना चाहिए। क्ले-प्लांट पोषक तत्व नैनोफैक्टरी यह एक एकड़ भूमि में लाखों राइजोज़-फेरेस बनाते हैं ताकि फसल के लाखों पौधों के विकास को आने वाले समय में कृषि में स्थानांतरित किया जा सके। इसलिए, टिकाऊ कृषि को प्राप्त करने और मृदा को मौसम के अनुसार स्मार्ट बनाने के लिए नैनो टेक्नोलॉजी में उच्च क्षमता है।

एकीकृत मिट्टी का प्रबंधन

मिट्टी का प्रदूषण एक उभरता हुआ मुद्दा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मिट्टी में स्तर में गिरावट और प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक मिट्टी की तैयारी, खेती और फसल उत्पादन के अनुचित तरीकों का अभ्यास है। इसमें मिट्टी के तेजी से भौतिक, रासायनिक और जैविक गिरावट और कृषि उत्पादकता में कमी और पर्यावरण में गिरावट शामिल है।

मृदा प्रबंधन प्रथाएं या तो उसके स्तर में गिरावट या प्रदूषण के लिए उपलब्ध हैं। मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कोई संयुक्त अभ्यास उपलब्ध नहीं है जिससे इसे कम करने के लिए कम प्रवण होता है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में होने वाली गंभीर और त्वरित मिट्टी में गिरावट की प्रक्रियाओं का मुकाबला करने पर केंद्रित मिट्टी के खेतों और संबंधित मिट्टी प्रबंधन और संरक्षण प्रथाओं के विषय में लागू अनुसंधान के विकास को मिट्टी संरक्षण में प्रशिक्षित पेशेवर और तकनीकी कर्मचारियों दोनों की कमी से गंभीर रूप से सीमित कर दिया गया है। यह दीर्घकालिक टिकाऊ ग्रामीण और कृषि विकास के लिए प्रभावी नीतियों और रणनीतियों की कमी से भी सीमित है।

मृदा को इस तरह से प्रबंधित किया जाना चाहिए कि समस्या पहचान तथा  प्रबंधन  साथ वास्तविक समय के आधार पर किया जाना चाहिए। मृदा को स्वास्थ्य, मिट्टी की उर्वरता,  प्रदूषण, मिट्टी की अवनति इत्यादि जैसे सभी पहलुओं को एक साथ ले जाया जाना चाहिए। जीआईएस, जीपीएस, रिमोट सेंसिंग और सेंसर जैसे सभी प्रथाओं का उपयोग मिट्टी के प्रबंधन में सभी कृषि विज्ञान, इंजीनियरिंग प्रथाओं के साथ किया जाना चाहिए।

इसलिए, उस मिट्टी को अल्प अवधि में सुधार किया जा सकता है और मिट्टी की उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है जिसके फलस्वरूप अंत में फसल उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। चयनित उपायों में पूरक मिट्टी प्रबंधन और संरक्षण तकनीकों के साथ चयनित टिलेज विधियों का उपयोग शामिल है।

साथ में, न केवल अच्छी बीज की तैयारी की दिशा में, बल्कि कुछ सीमाओं को हटाने और उन्मूलन करने की दिशा में भी योगदान दे सकता है जो मिट्टी की उत्पादकता जैसे कि कॉम्पैक्शन, मिट्टी के कैपिंग,  खराब जल निकासी और प्रतिकूल मिट्टी नमी की स्थिति और अत्यधिक मिट्टी के तापमान को प्रभावित करते हैं।

पेशेवर और तकनीकी कर्मचारियों दोनों को मिट्टी संरक्षण तकनीकों में प्रशिक्षित करना होगा। सरकार को मिट्टी के दीर्घकालिक टिकाऊ विकास के लिए कुछ प्रभावी नीतियां और रणनीतियों को बनाना है।

निष्कर्ष

मृदा हम मानव जीवन के लिए इश्वर द्वारा दिया हुआ वरदान है इसका संरक्षण करना वर्तमान समय की आवश्यकता है|  इसका संरक्षण एवं सही उपयोग किया जाना भारत के भविष्य के विकाश के लिए बहुत जरुरी है  | जब तक मृदा संरक्षण का महत्व का बोध हम सभी के मन में नहीं होगा तब तक सैद्धांतिक स्तर पर स्थिति में सुधार संभव नहीं होगा इसलिए हम सब को मिलकर  मृदा का संरक्षण  करना होगा |

मृदा एंव जल संरक्षण के उपयुक्त एंव प्रभावी उपायों जैसे जैविक तथा अभियांत्रिकी का संयुक्त प्रयोग अत्यधिक लाभदायक होता है| अतः इन दोनों का एक साथ प्रयोग करने की पर जोर सिफारिश की जाती है|

संदर्भ

https://hi.wikibooks.org/wiki/

http://www.fao.org/fao-stories/article/en/c/1126974/ 


Authors

प्रीतिसिंह1, संतोषकुमार1

1वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,  हज़ारीबाग़, झारखण्ड

Email:  This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.