आज के आधुनिक युग में हम लगातार मानवीय सुख सुविधाओं में वृद्धि करने के लिए नई नई तकनीकियों का अविष्कार कर रहै है वही दूसरी तरफ हम लगातार प्राकृतिक संसांधनों की अनदेखी कर रहै है l हम शायद यह भूल रहै है की प्राकतिक संसाधन जैसे हवा, पानी, धरती, मृदा आदि सिर्फ इंसानो के लिए नहीं बल्कि धरती पर रहने वाले सभी जीवो के लिए है l पिछले कुछ सालो में हमने देखा है की पृथ्वी के वातावरण में बहुत बदलाव आ रहा है और उसका एक बड़ा कारण हम ही है l
यह इस बदलाव का ही परिणाम है की पिछले कुछ वर्षो में सूखा, आगजनी, भू-स्खलन, हिमस्खलन, अनियमित वर्षा, नई - नई बीमारिया, भूकंप, समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, आदि प्राकृतिक आपदाये बहुत ज्यादा बढ़ गई है और लगातार बढ़ती जा रही है l अमेरिकी एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 100 वर्षो में धरती के तापमान में लगभग 1 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है जिसका प्रमुख कारण मानवीय गतिविधिया है l यह बढ़ोतरी कितनी ज्यादा हे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हे की पृथ्वी के तापमान को 1 डिग्री कम होने में लगभग 6500 वर्ष लगते है, अर्थात पृथ्वी के वातावरण में जो बदलाव हज़ारो वर्षो में होने चाहिए वो सिर्फ कुछ वर्षो में हो रहै है और पृथ्वी पर रहने वाले जीवो एवं पेड़ पोधो के लिए इन्हे सहन कर पाना संभव नहीं है l
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार यदि पृथ्वी के वातावरण को संतुलित करने के समुचित वैश्विक प्रयास नहीं किये गए और इस तरह धरती का तापमान लगातार बढ़ता रहा तो 2070 तक पृथ्वी पर पाए जाने वाली वनस्पतियो और जीव-जन्तुओ की आधी प्रजातियां समाप्त हो सकती है l
इस जानकारी का आशय आपको डराना नहीं बल्कि यह समझाना है की हम आज जो कर रहै है उसका हमारे भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और हम इसे कैसे सही कर सकते है l वैसे तो वैश्विक तथा राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किये जा रहै है इन्ही में एक नया तथा सार्थक तरीका है - PES या “पारिस्थितिकीय तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान”.
दुनियाभर के पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2005 में मिलेनियम इकोसिस्टम असेसमेंट किया गया जिसमे मुख्यतः 24 तरह की पारिस्थितिकय तंत्र सेवाओं की पहचान की गयी l इसमें भी 3 प्रमुख व चर्चित रही - जलवायु परिवर्तन शमन, वाटरशेड प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण l
पारिस्थितिकीय तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES Mechanism):
पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (पीईएस), जिसे पर्यावरण से मिलने वाले लाभ के लिए भुगतान के रूप में भी जाना जाता है, किसानों या जलग्रहण क्षेत्र में रहने वाले लोगो को किसी प्रकार की पारिस्थितिक सेवा प्रदान करने के लिए अपनी भूमि के समुचित प्रबंधन के बदले में दिए जाने वाले प्रोत्साहन हैं। यह पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए की जाने वाली नवीन प्रणालियों में से एक है l
दूसरे शब्दों में कहै तो पीईएस से तात्पर्य विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं से है, जिसके अंतर्गत पर्यावरण सेवाओं के लाभार्थी, विभिन्न माध्यमों जैसे सब्सिडी, प्रोत्साहन-राशि या सीधे बाजार द्वारा जलग्रहण क्षेत्र में रह रहै उन लोगों को भुगतान करते हैं जिनकी भूमि पर वह टिकाऊ भूमि - प्रबंधन गतिविधिया जैसे जैविक खेती, जल संरक्षण, वाटरशेड संरक्षण, वन संरक्षण आदि कर रहै हो l
आइये PES को थोड़ा विस्तार से समझते है -
पर्यावरण सेवाओं के लिए भुगतान (PES) में मुख्यतः चार घटक होते है -
- विशिष्ट पारिस्थितिकीय सेवा
- पारिस्थितिकीय सेवा के उपयोगकर्ता/खरीददार
- पारिस्थितिकीय सेवा के संरक्षणकर्ता/ PES तंत्र के लाभार्थी
- वित्तीय लेनदेन हैतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुबंध
1. विशिष्ट पारिस्थितिकीय सेवा
साधारण भाषा में, किसी एक भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले सभी जीव - जंतु (जिसमे मनुष्य भी शामिल है) प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे पर निर्भर होते है जिसमे उनके आस-पास उपस्थित अजैविक तत्व जैसे हवा, पानी आदि भी शामिल है इन्ही के सम्मिलित रूप को पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है l
किसी भी जिव का समुचित विकास एक निश्चित तरह के या अनुकूल पारिस्थितिक तंत्र में ही हो सकता है, अर्थात उसे अपने पारिस्थितिक तंत्र से कई तरह के लाभ व सेवाएं प्राप्त होती है l पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की कोई मानक परिभाषा नहीं है फिर भी सरल शब्दो में इसे "जीवो, समुदायों तथा अर्थव्यवस्था को प्रकृति से मिलने वाले लाभ" कहा जा सकता है l
पारिस्थितिकी तंत्र का एक भाग होने की वजह से मानव को जैव और अजैव घटकों से बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं। इन लाभों को ही सामूहिक रूप से पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के रूप में जाना जाता है lपारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं मानव कल्याण के लिए प्रकृति का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान हैं।
मिलेनियम इकोसिस्टम असेसमेंट (2005) ने जैव विविधता के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को चार श्रेणियों में विभाजित किया है - प्रावधान सेवाएं, विनियमन सेवाएं, सहायक सेवाएं, और सांस्कृतिक सेवाएं l
प्रावधान सेवाएं: प्रावधनीय सेवाएं पारिस्थितिक तंत्र सेवाएं हैं जो पारिस्थितिक तंत्र से सामग्री या ऊर्जा आउटपुट का वर्णन करती हैं। इनमें भोजन, पानी और अन्य संसाधन शामिल हैं। प्रावधनीय सेवाओं के अंतर्गत वह संसाधन या सेवाएं आती है जो हम अपनी ऊर्जा, भोजन या अन्य जरूरतों के लिए सीधे प्रकृति से लेते है l जैसे - खाना, पानी, लकड़ी, प्राकृतिक औषधियां आदि l
विनियमन सेवाएं: इसमें ऐसी सेवाएँ शामिल हैं जो पारिस्थितिकी संतुलन को नियंत्रित करती हैं जैसे- वन, जो कि वायु की गुणवत्ता को शुद्ध और विनियमित करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं ग्रीनहाउस गैसों आदि को नियंत्रित करते हैं, किट जो पोधो में परागण करते है, आदि l
सहायक सेवाएं: प्रकृति मानव जाति को एक अरब से ज्यादा तरह की सेवाएं प्रदान करती है, इनमे हम प्रकृति से प्राप्त होने वाली बुनियादी सेवाओं की और उतना ध्यान नहीं देते है l यह ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो पृथ्वी पर जीवन को संभव बनाती हैं और बुनियादी जीवन रूपों को बनाए रखती हैं l
सहायक सेवाओं में प्राथमिक उत्पादन, पोषक चक्र, प्रकाश संश्लेषण, प्राकृतिक चक्र, मिट्टी का निर्माण और जैविक रूप से मध्यस्थता वाले आवास शामिल हैं। इन अंतर्निहित प्रक्रियाओं की निरंतरता के बिना, पारिस्थितिक तंत्र स्वयं को बनाए नहीं रख सकते हैं।
सांस्कृतिक सेवाएं: इनमें पर्यावरण से होने वाले गैर-भौतिक लाभ शामिल हैं, जैसे आध्यात्मिक संवर्धन, बौद्धिक विकास, मनोरंजन और सौंदर्य मूल्य इत्यादि।
इन पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में से किसी विशिष्ठ सेवा या कुछ सेवाओं के आधार पर "PES मॉडल विकसित किया जा सकता है l
2. पारिस्थितिकीय सेवा के उपयोगकर्ता/ खरीददार:
पारिस्थितिकीय सेवा के खरीददार वह होते है जो उस वातावरणीय सेवा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग कर रहै होते है l पर्यावरणीय सेवाओं के समुचित प्रबंधन तथा उनके संरक्षण के लिए यह आवश्यक है की उन सेवाओं के उपयोगकर्ता इसके लिए जरुरी कदम उठाये l किसी पर्यावरणीय सेवा के उपयोगकर्ता यदि सीधे तोर पर प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण में हिस्सेदार नहीं है तो वह PES तंत्र के माध्यम से ऐसा कर सकते है l
जैसे - किसी शहर में पिने का पानी किसी बड़े तालाब से लिया जाता है तो वहां के लोगो तथा संस्थाओ का यह दायित्व है की वह उस तालाब के पानी का संरक्षण करे तथा उसके जलग्रहण क्षेत्र का भी प्रबंधन करे जिससे उन्हें लम्बे समय तक उस प्राकृतिक संसाधन से पानी मिल सके l अब यदि वह सीधे तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में जाकर जल संरक्षण के उपाय नहीं कर सकते तो वह उस क्षेत्र के लोगो को कुछ प्रोत्साहन देकर उन्हें प्रेरित कर सकते है l यह प्रोत्साहन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप रूप से दिया जा सकता है l
3. पारिस्थितिकीय सेवा के संरक्षणकर्ता/ PES तंत्र के लाभार्थी:
पारिस्थितिकीय सेवा के संरक्षणकर्त्ता वह होते है जो किसी विशिष्ट पर्यावरणीय सेवा या प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण करने में अपना योगदान देते है l अधिकांशतः यह किसी क्षेत्र विशेष में रह रहै विभिन्न समुदाय होते है जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा करते है l
उदाहरण के लिए किसी तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में कृषि कार्य कर रहै किसान यदि अपने खेद में ज्यादा उर्वरक तथा रासायनिक दवाओं का उपयोग करेंगे तो इससे न सिर्फ मृदा का पूरा पारिस्थितिकीय तंत्र नष्ट होता है बल्कि वहां से बहने वाला पानी भी प्रदूषित होता है l यदि यह किसान अपने खेत में जैविक खाद और दवाओं का उपयोग करे तो इससे मृदा और पानी दोनों साफ रहेंगे और पूरा पर्यावरणीय तंत्र सुचारु रूप से कार्य करेगा l
जैविक खेती के माध्यम से किसान प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण करने में अपना योगदान दे सकते है जिससे उन्हें सीधे फायदा यह होगा की उन्हें अपने तथा अपने परिवार के लिए रसायन मुक्त भोजन तथा पानी उपलब्ध होगा तथा अपने खेत की मिटटी की उर्वरा शक्ति का ह्रास नहीं होगा l
अप्रत्यक्ष रूप से इसके पर्यावरण को कई फायदे होंगे जैसे - मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ेगी, मृदा में जलधारण क्षमता बढ़ने से भूमिगत जल में वृद्धि होगी, भूमिगत जल का प्रदुषण नहीं होगा, रसायनो के उपयोग नहीं होने से अन्य जीवो पर होने वाले दुष्प्रभाव नहीं होंगे, विषैले कृषि उत्पादों का सेवन नहीं करने से मनुष्यो में होने वाली कई प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलेगी, तथा जलधारण क्षमता बढ़ने से नदी नालो में वर्षभर पानी की उपलब्धता बनी रहैगी l
4. वित्तीय लेनदेन हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुबंध:
PES तंत्र अंतर्गत पारिस्थितिकीय सेवाओं के संरक्षण या किसी विशिष्ट गतिविधि को करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है यह प्रोत्साहन सीधे मुद्रा या किसी अन्य माध्यम से दिया जा सकता है l PES की विश्वसनीयता को बनाये रखने के लिए यह जरुरी है की यह प्रोत्साहन योग्य व्यक्ति या समुदाय को ही दिया जाता है l इसलिए PES मॉडल अंतर्गत कुछ सख्त नीतियाँ बनायीं जा सकती है जिनके आधार पर यह प्रोत्साहन दिया जा सके l इसमें एक स्वायत्त संस्था या नियामक संस्था की भूमिका भी महत्पूर्ण हो जाती है l
इस तरह कुछ निश्चित शर्तो या नियमो के आधार पर किसी विशिष्ट पर्यावरणीय सेवा के उपयोगकर्ताओं/संस्था तथा उसके संरक्षणकर्ता के मध्य एक औपचारिक या अनोपचारिक अनुबंध किया जा सकता है l
PES तंत्र के सफल क्रियान्वन के लिए यह अनुबंध बहुत महत्पूर्ण होता है l
जैसे - किसी शहर में पिने का पानी किसी तालाब से लिया जाता है, उस तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में खेती करने वाले किसान यदि जैविक खेती करे तो उस शहर के लोग उनसे ज्यादा भाव में जैविक उत्पाद खरीद सकते है अथवा जैविक खेती से यदि उनकी उत्पादकता कम होती है तो उसे उन उपयोकर्ताओं द्वारा कुछ प्रोत्साहन राशि दी जाये जिससे वह अपने खेत में उर्वरक व कीटनाशक का उपयोग नहीं करे और उन्हें तालाब से शुद्ध पानी मिले l
इसके अलावा यदि किसान अपनी खेती में ज्यादा पानी का उपयोग कर रहै हो जिससे तालाब का जलस्तर कम हो रहा हो और शहर को पिने के लिए पानी नहीं मिले, तो किसानो को कम पानी वाली किस्मो को लगाने के लिए या ड्रिप/स्प्रिंकलर जैसी तकनिकी को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, तथा इसमें लगने वाली लागत का कुछ हिस्सा जल-उपयोगकर्ताओं द्वारा वहां किया जा सकता है l इस समाधान से दोनों को समुचित पानी भी मिल सकता है तथा पारिस्थितिकीय तंत्र का संतुलन भी बनाये रखा जा सकता है l
न्यूयोर्क PES मॉडल:
दुनिया के कई देशो में PES योजना को सफलतापूर्वक चलाया गया है लेकिन सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका की न्यूयोर्क सिटी का है जहाँ से PES को दुनियाभर में पहचान मिली l
1980 के दशक में न्यूयोर्क सिटी के लिए अपनी 90 लाख की जनसँख्या को साफ पानी की पूर्ति करना बहुत मुश्किल होता जा रहा था जैसे आज कई विकाशील शहरो में हो रहा है l न्यूयोर्क जिन जलस्त्रोतों से पानी की आपूर्ति कर रहा था वहाँ पानी की मात्रा और गुणवत्ता लगातार ख़राब हो रही थी, जिसे साफ करने और उपयोग लायक बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जल शोधन संयंत्रों (ट्रीटमेंट प्लांट्स) लगाने की आवश्यकता थी जिसमे खर्च बहुत ज्यादा होता साथ ही वह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं था l
इसके समाधान के लिए न्यूयोर्क ने अपनी तरह का एक अनूठा प्रयोग किया, उन्होंने पानी को उपयोग करने की जगह पर शोधित न करके उसके उदगम या प्रवाह क्षेत्र में शोधित करने की योजना बनाई l उन्होंने उस क्षेत्र को चिन्हित किया जहाँ से पानी आकर उनके जलस्त्रोत में मिलता है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले किसानो, वन समुदायों, तथा अन्य लोगो को स्थायी भू-प्रबंधन गतिविधिया (जैसे - जैविक खेती, जल-संरक्षण, वन-सुरक्षा, आदि) करने के लिए प्रेरित किया जिसके लिए उन्हें प्रोत्शाहन भी दिया गया l
कुछ बर्षो में ही क्षेत्र के किसानो तथा अन्य समुदायों द्वारा अपनी खेती की पद्धति और आजीविका के साधनो में अनुकूल बदलाव आने लगा जिससे पानी बिलकुल साफ और अशुद्धियो से रहित होने लगा l आज न्यूयोर्क शहर को विश्व के उन शहरो में गिना जाता है जिनके पास पानी के सबसे शुद्ध तथा लम्बे समय तक उपयोग किये जा सकने वाले जल-स्त्रोत है l PES मॉडल के द्वारा न सिर्फ शहर को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हुई बल्कि Catskill जलग्रहण क्षेत्र में रहने वाले लोगो के जीवन में भी बढ़ा बदलाब हुआ l
अलग अलग शहरों की जलमांग, जलस्रतो की स्थति तथा अन्य कुछ बिन्दुओ को ध्यान में रखकर ऐसे ही PES मॉडल को वहाँ भी लागु किया जा सकता है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रबंधन तथा उपयोग किया जा सके l भारत में नर्मदा भू-दृश्य जीर्णोद्धार परियोजना द्वारा नर्मदा नदी के जल-ग्रहण क्षेत्र में PES मॉडल को लागु किया जा रहा है l यह देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है, जिसका क्रियान्वन मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में किया जा रहा है l
Authors:
लखन पाटीदार
वरिष्ठ परियोजना सहायक - कृषि
नर्मदा भू-दृश्य जीर्णोद्धार परियोजना
ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टिट्यूट (GGGI), भारत
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