गेहूँ का सुरक्षित भंडारण

गेहूँ का सुरक्षित भंडारण

Safe storage of wheat

भारत में उगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलों में गेहूँ एक महत्वपूर्ण फसल है। उत्पादन तकनीकों में प्रगति के कारण गेहूँ उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2020-21 के दौरान देश में अब तक का गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादन लगभग 109.52 मिलियन टन रहा। आमतौर पर फसल कटाई के बाद भारत में गेहूँ अनाज व बीजों को किसानों, व्यापारियों एवं औद्योगिक स्तर पर संग्रहित किया जाता है।

देश के सभी भागों में अनाज के रख-रखाव एवं संग्रह के लिए उपयुक्त तकनीक एवं भंडारण संरचनाएं विकसित की गई हैं। कटाई के बाद अनाज को उपयोग करने के लिए पारम्परिक एवं आधुनिक भंडारण पद्धतियों को अनाज संग्रह के प्रयोग में लाया जाता है।

भारत में 60-70 प्रतिशत गेहूँ का भंडारण पारम्परिक संरचनाओं जैसे कोठी, कुठला, बुखारी, पूसा बिन, पंतनगर बिन, लुधियाना बिन, हापुड़ बिन, धूसी, खानिकी, लकड़ी से बनी संदूक, बोरियाँ एवं भूमिगत भंडारगृह आदि में किया जाता है, जबकि शेष 30-40 प्रतिशत गेहूँ का भंडारण भारतीय खाद्य निगम, केंद्रीय भंडारण निगम या राज्य भंडारण निगम के स्वामित्व वाले गोदामों में किया जाता है, जिसमें साइलो एवं एफ सी आई द्वारा विकसित कवर एंड प्लिंथ (सीएपी) एक स्वदेशी पद्धति भी शामिल है।

 

पारम्परिक भंडारण संरचना

आधुनिक भंडारण संरचना

 चित्र 1: अनाज भंडारण की संरचनाएं

गेहूँ अनाज व बीजों में संक्रमण के कारक

फसल कटाई के बाद लगभग 10 प्रतिशत अनाज खराब हो जाता है, जिसमें से लगभग 6 प्रतिशत हिस्सा उचित भंडारण सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण खराब होता है। देश में अनुचित भंडारण के परिणामस्वरूप गेहूँ अनाज में अधिक हानि कीटों, कृन्तकों एवं सूक्ष्म जीवों द्वारा होती है। लेकिन, नमी की अधिक मात्रा, उच्च तापमान तथा फफूंदी भी गेहूँ अनाज व बीज को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। भंडारण कीटों की लगभग 50 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से करीब आधा दर्जन प्रजातियाँ ही आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। लेकिन, इन सभी कीटों के प्रभावी प्रबंधन के उपाय एक जैसे ही हैं। भंडारण के समय गेहूँ अनाज व बीजों को क्षति पंहुचाने वाले कीटों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित हैं।

तालिका 1: भंडारण के समय गेहूँ अनाज व बीजों को क्षति पंहुचाने वाले प्रमुख कीट

 

सूंड वाली सुरसरी (साटोफिलस ओराइजी) का लार्वा एवं व्यस्क दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती हैं। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, मक्का, जौ एवं ज्वार आदि अनाज प्रभावित होते हैं।

 

छोटा छिद्रक या घुन (राइजोपरथा डोमिनिका) का लार्वा (ग्रब्स) एवं व्यस्क दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती हैं। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, मक्का, ज्वार, जौ, बाजरा एवं दाल आदि अनाज व दालें प्रभावित होती हैं।

 

आटे का कीट (ट्राईबोलियम कास्टेनियम) की लार्वा एवं व्यस्क दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती है। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, जौ एवं तिलहन आदि अनाज प्रभावित होते हैं।

 

खपरा बीटल या पई (ट्रोगोडरमा ग्रेनेरियम) की केवल लार्वा अवस्था ही हानिकारक होती है। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, मक्का, जौ, जई एवं ज्वार आदि अनाज प्रभावित होते हैं।

 

अनाज का पतंगा (साइटाट्रोगा सीरियलेला) का केवल लार्वा अवस्था ही हानिकारक हैं। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, मक्का, जौ एवं ज्वार आदि अनाज प्रभावित होते हैं।

 

चावल का पतंगा (कोरसायरा सिफेलोनिका) की केवल लार्वा अवस्था ही हानिकारक होती है। इस कीट के प्रकोप से गेहूँ, धान, जौ, ज्वार एवं तिलहन आदि अनाज प्रभावित होते हैं।

संग्रहित गेहूँ अनाज व बीजों का एकीकृत कीट प्रबंधन

गेहूँ कटाई के तुरन्त बाद से कीट प्रबंधन के समुचित उपायों को प्राथमिकता देने की अत्यन्त आवश्यकता होती है। क्योंकि, अनाज भंडारण के कुछ कीट फसल कटाई से पहले ही खेत में अपना प्रकोप प्रारम्भ कर देते हैं। यह कीट संक्रमित अनाज के साथ आसानी से भंडारगृहों में स्थानान्तरित होकर हानि पंहुचाते हैं। कटाई, गहाई एवं ढुलाई में प्रयोग होने वाले साधनों, यंत्रों एवं पात्रों को भी कीट रहित रखना बहुत आवश्यक है। भंडारगृह एवं संरचनाओं को कीट मुक्त रखने के लिए समुचित उपाय करना नितान्त आवश्यक है। समुचित कीट प्रबन्धन को निवारक एवं उपचारात्मक उपायों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं।

कीट मुक्त गेहूँ भंडारण के निवारक उपाय

  • भंडारण से पहले उत्पादित गेहूँ को अच्छी तरह से साफ एवं वर्गीकृत किया जाना चाहिए। ऐसा करने से माध्यमिक कीटों से होने वाली क्षति को रोका जा सकता है।
  • घुटन जैसी समस्या से बचने के लिए गेहूँ भंडारण संरचनाओं का निर्माण खेत या घर के सबसे बडे़ हिस्से में करना चाहिए।
  • भंडारण संरचनाएं संग्रहित बीजों का भार उठाने में सक्षम हों तथा संरचनाओं की बनावट बाहरी आर्द्र एवं गर्म हवाओं के प्रति विनिमयरोधी होनी चाहिए।
  • भंडारण से पहले संरचनाओं को साफ-सुथरा एवं कीटाणु रहित कर लेना चाहिए। भंडारण के कमरे या गोदामों की दरारों एवं सुराखों को चिकनी मिट्टी या सीमेंट से भरकर बंद कर देना चाहिए।
  • लम्बी अवधि के भंडारण के लिए बनाई गईं भंडारण संरचनाएं टिकाऊ एवं स्थाई होनी चाहिए।
  • भंडारण पूर्व गेहूँ को धूप में अच्छी तरह से सुखाना चाहिए ताकि नमी का स्तर 12 प्रतिशत से कम हो जाए। अधिकांश कीट कम नमी वाले अनाजों में नुकसान नही कर पाते हैं।
  • गेहूँ भंडारण की सभी संरचनाओं को फर्श की नमी, बारिश, चूहों, पक्षियों, मोल्ड, कृन्तकों, चींटियों एवं कीड़ों आदि से सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
  • नए अनाज के साथ पुराने अनाज का भंडारण कदापि न करें।
  • भंडारण संरचना एक चयनित स्थिति के लिए किफायती एवं उपयुक्त होनी चाहिए।
  • बारिश के मौसम में अनाज को संरचनाओं से बाहर न निकालें।
  • भंडारण संरचनाओं का निर्माण करते समय संक्रमण का निरीक्षण, लोडिंग, अनलोडिंग, सफाई एवं मरम्मत जैसे जरूरी कार्यों करने के लिए आवश्यक सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए।

कीट मुक्त गेहूँ भंडारण के उपचारात्मक उपाय

  • भंडारण में 15 डिग्री सेल्सियस से कम तथा 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान कीटों के प्रजनन एवं विकास को रोकता है, जबकि लम्बे समय तक 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक तथा 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान कीड़ों को मार सकता है।
  • भंडारण पूर्व मैलाथियान 50 ईसी (10 मिलीलीटर प्रति लीटर) या डीडीपीवी 76 डब्ल्यूएससी (7 मिलीलीटर प्रति लीटर) का घोलकर बनाकर कमरे या गोदाम में (3 लीटर घोल का छिड़काव प्रति 100 वर्गमीटर की दर से) अच्छी तरह से छिड़काव करना चाहिए।
  • जहाँ तक सम्भव हो नई बोरियों का ही प्रयोग करें। यदि पुरानी बोरियों का इस्तेमाल करना है तो उन्हें गर्म पानी (50 डिग्री सेल्सियस तापमान) में 15 मिनट तक भिगोने के बाद सुखा लें या मैलाथियान 50 ईसी (10 मिलीलीटर प्रति लीटर) का घोलकर बनाकर पुरानी बोरियों के ऊपर 3 लीटर घोल प्रति 100 वर्गमीटर की दर से अच्छी तरह से छिड़काव करना चाहिए।
  • अनाज भंडारण को कीट मुक्त रखने के लिए एल्युमिनियम फॉस्फाइड 56% की 2-3 गोलियाँ (प्रत्येक 3 ग्राम) प्रति टन या 150 ग्राम प्रति 100 घनमीटर अनाज के हिसाब से 7-15 दिन के लिए प्रधूमित करें।
  • भंडारण में पुनः प्रधूमन की आवश्यकता का निर्णय संक्रमण की तीव्रता के आधार पर किया जा सकता है।
  • भंडारण पूर्व कीटों की स्थिति का पता कर लेना चाहिए। यदि अनाज में कीटों का संक्रमण है तो अनाज को भंडारगृह में रखने से पूर्व एल्युमिनियम फॉस्फाइड 56% द्वारा प्रधूमित करें।
  • भंडारगृह में यदि चूहों की समस्या हो तो जिंक फॉस्फाईड की गोलियाँ अथवा रैट किल को इनके बिलों के पास रखकर प्रभावी प्रबन्धन किया जा सकता है।
  • हमारे देश में कम अवधि के सुरक्षित भंडारण के लिए रासायनिक कीटनाशकों के अतिरिक्त अनेक पारम्परिक प्रथाएँ प्रयोग में लाई जाती हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित होने के कारण वातावरण के अनुकूल एवं किफायती होती हैं। स्थानीय रुप से उपलब्ध पौधे एवं उनके उत्पादों को सुरक्षित भंडारण के लिए सदियों से उपयोग में लाया जाता रहा है। आधुनिक तकनीक की तुलना में पारम्परिक तौर तरीके अधिक सस्ते एवं आसान होते हैं। घरेलू स्तर पर अनाज भंण्डारण के लिए नीम की सूखी पत्तियाँ, नीम का पाउडर, माचिस की तीलियाँ एवं नीम का तेल आदि का उपयोग किया जाता है।

प्रधूमन के समय सावधानियाँ

  • अनाज भंडारण के प्रधूमन में प्रयोग होने वाला एल्युमिनियम फॉस्फाइड 56% एक विषैला रसायन है, इसलिए इसका उपयोग बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो प्रधूमन का कार्य सरकार द्वारा प्रशिक्षित एवं अधिकृत व्यक्तियों द्वारा ही कराना चाहिए।
  • प्रधूमन के लिए स्थान का चयन रिहायशी ईलाकों, जानवरों एवं शयन कक्ष से हमेशा दूर करें।
  • प्रधूमन से पहले भंडारगृह की सभी खिड़कियों एवं रोशनदानों को बन्द एवं अच्छी तरह से सील कर दें। अनुशंसित मास्क एवं दस्तानें पहनकर एल्युमिनियम फॉस्फाइड 56% की गोलियों को सांस रोककर जल्दी-जल्दी डालकर बाहर निकलने के बाद दरवाजों को तुरन्त बंद कर दें।
  • प्रधूमन में प्रयोग होने वाले कीटनाशकों को नंगे हाथों से नही छूना चाहिए।
  • प्रधूमन के बाद हाथ व मूँह को साबुन के साथ अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।

कीट मुक्त भंडारण के लाभ

कीट मुक्त भंडारण का तात्पर्य सुरक्षित अनाज भंडारण से है। किसान व सरकारें (केन्द्र एवं राज्य सरकारें) घरेलू खपत, बीजाई एवं आपात स्थिति से निपटने के लिए गेहँ अनाज व बीजों का भंडारण करती हैं। गेहूँ के सुरक्षित भंडारण से अनेक लाभ होते हैं। जो निम्नलिखित हैंः

  • कीट मुक्त भंडारण से आर्थिक हानि नहीं होती है।
  • अनाज व बीजों की गुणवत्ता यथावत बनी रहती है।
  • बाजार में अनाज की अच्छी कीमत मिलने से किसानों की आय में वृद्धि होती है।
  • बीजों की अंकुरण क्षमता एवं प्रतिशत प्रभावित नही होते है।
  • दीर्घ कालीन भंडारित अनाज का उपयोग किसी प्राकृतिक आपदा के समय किया जा सकता है।
  • सुरक्षित गेहूँ भंडारण से उच्च गुणवत्ता युक्त अनाज प्राप्त होता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। संक्रमित अनाज के उपभोग से होने वाली बीमारियाँ जैसे त्वचा से संबन्धित एलर्जी, अपच एवं अतिसार आदि से बचा जा सकता है।
  • कीट मुक्त गेहूँ भंडारण से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ किया जा सकता है।
  • गेहूँ खरीद एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुरक्षित अनाज भंडारण का महत्वपूर्ण योगदान है।
  • सुरक्षित अनाज भंडारण से समय, श्रम एवं धन की बचत होती है। जिससे मध्यस्थता की लागत को कम किया जा सकता है।
  • गेहूँ का कीट मुक्त भंडारण कुपोषण निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

निष्कर्ष

भारतीय कृषि में अनाज भंडारण एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। फसल कटाई के बाद गेहूँ अनाज को वर्ष भर खाद्य एवं औद्योगिक उपयोग में लाया जाता है। इसलिए अनाज को लम्बी अवधि एवं कम अवधि के लिए संरक्षित किया जाता है।

अनाज भंडारण के लिए पारम्परिक एवं आधुनिक भंडारण संरचनाओं का उपयोग किया जाता है। पारम्परिक भंडारण संरचनाएं बहुत लम्बे समय तक अनाज भंडारण के लिए उपयुक्त नहीं हैं। आधुनिक भंडारगृह के रूप में उन्नत भंडारण संरचनाएं एवं वैज्ञानिक भंडारण महत्वपूर्ण है। यह लम्बी अवधि के लिए अनाज भंडारण के सुरक्षित एवं किफायती साधन हैं।

भंडारण की आधुनिक संरचनाओं के साथ पारम्परिक संरचनाओं को मजबूत करना तथा किसानों को सस्ती भंडारण सुविधाएं उपलब्ध कराना समय की मांग है ताकि भंडारण के दौरान होने वाले भारी नुकसान को रोका जा सके। 


 Authors:

मंगल सिंह, अनुज कुमार, सत्यवीर सिंह, अनिल कुमार खिप्पल, पूनम जसरोटिया एवं ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह

भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान,करनाल,हरियाणा

Email: msiiwbr@gmail.com

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