Quality seed production technology in soybean (Glycine max)
सोयाबीन एक मुख्य तिलहनी फसल है| किसी भी फसल का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने व अधिक आर्थिक लाभ लेने के लिए अच्छी गुणवता का बीज होना अतिआवश्यक है| अभी भी सभी किसानो को सोयाबीन के अच्छी गुणवता वाले बीज उपलब्ध नही हो पा रहे है और किसान अभी भी बीजो की कमी की समस्या से जूझ रहा है जिसका सीधा प्रभाव फसल उत्पादन पर पड़ रहा है|
इस समस्या के निवारण हेतु किसानो को सोयाबीन बीज उत्पादन की विभिन्न तकनीको के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है जिससे वे स्वयं अच्छी गुणवता का बीज उत्पादित कर उसको आगे की बुवाई के लिए काम में ले सके|
सोयाबीन की गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन तकनीक के साथ-साथ किसान भाइयो को कुछ अन्य पहलुओं के बारे में भी जानकारी होना बहुत जरुरी है जो निम्न प्रकार है-
बीज क्या है?
बीज एक जीवित रचना है जिसमे भ्रूणीय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है जो अनुकूल वातावरण परिस्थितियों में नए पौधे में विकसित हो जाता है| जबकि अच्छी गुणवता वाला बीज वो होता है जिसका क्षेत्र अंकुरण कम से कम 70% हो और अंकुरित बीज स्वस्थ पौधे के रूप में उग सके|
गुणवत्तापूर्ण बीज की मुख्य विशेषतायें:
भौतिक शुद्धता:
बीज में संबंधित किस्म, अन्य किस्म, अन्य फसल, खरपतवार के बीज व कंकड़/मिट्टी की मात्रा एक निर्धारित सीमा से अधिक नही होनी चाहिए|
आनुवंशिक शुद्धता:
सोयाबीन की हर क़िस्म के अलग गुण है| अत: किसी भी किस्म का पूर्ण लाभ लेने हेतु उसका आनुवंशिक रूप से शुद्ध होना जरूरी है यानि बीज ढेर में सिर्फ एक ही किस्म का बीज होना चाहिए तथा किसी अन्य किस्म का बीज नही होना चाहिए|
अंकुरण:
अंकुरण क्षमता बीज का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है| अंकुरण क्षमता से ही बीज ढेर का बुवाई मान निर्धारित होता है| उच्च अंकुरण क्षमता वाले बीज खेतो में अच्छी पौध संख्या को सुनिश्चित करते है जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है| सोयाबीन बीज की अंकुरण क्षमता कम से कम 70% होनी चाहिए|
बीज ओज:
बीज ओज किसी पौधे के अंकुरण के बाद स्वस्थ पौधे में विकसित होने की क्षमता को दर्शाता है| अधिक बीज ओज पौधे को विपरीत परिस्थितियों से जूझने की ताकत प्रदान करता है|
बीज स्वास्थ्य:
रोगकारी सूक्ष्मजीवो व कीड़ो से संक्रमित बीजो की बुवाई करने से बहुत कम उपज प्राप्त होती है और संक्रमित बीजो का उपचार करने से खर्चा काफी बढ़ जाता है| रोगमुक्त बीज पाने के लिए रोगमुक्त बीज उत्पादन बहुत जरुरी है| रोगमुक्त बीज पाने के लिए बीजोपचार से लेकर खड़ी फसल में रोग व कीट नियंत्रण के सारे उपाए करने चाहिए|
बीज नमी:
बीज के ओज और जीवन क्षमता को बनाये रखने के लिए इसमें उचित मात्रा में नमी होना बहुत आवश्यक है| इसके लिए बीज को अच्छी तरह से धुप में सुखाना चाहिए|
सोयाबीन के गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन की तकनीके:
बीज स्रोत:
किसान बीज उत्पादन करने के लिए मान्य स्रोत से बीज प्राप्त कर बुवाई करे| वर्तमान में देश में सोयाबीन की अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अनुशंसित विभिन्न किस्मे विकसित की जा चुकी है|
इनमे से कुछ किस्मे जैसे पी. के. 472, एन. आर. सी. 37, जे. एस. 335, एम. ए. सी. एस. 450, जे. एस. 93-05, प्रताप सोया-1, प्रताप सोया-2, प्रताप सोया 45, प्रताप राज 24, एम. ए. यू. एस. 81, जे. एस. 97-52, जे. एस. 95-60, जे. एस. 20-29, अहिल्या 3, अहिल्या 4 एवं इंदिरा सोया 9 आदि राजस्थान में खेती के लिए उपयुक्त है|
खेत का चयन और तैयारी:
बीज उत्पादन के लिए उसी खेत का चयन करे जिसमे पिछले मौसम में सोयाबीन की फसल नही उगाई गयी हो| खेत अन्य किस्म, अन्य फसल व खरपतवार के स्वैच्छिक उगे हुए पौधों से मुक्त होना चाहिए| खेत की तैयारी के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई व 2-3 बार हैरो चलाकर मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए|
मृदा व बुवाई के लिए मौसम:
सामान्यत: सोयाबीन खरीफ की फसल है| बारिश होने के बाद मध्य जून से मध्य जुलाई तक इसकी बुवाई की जा सकती है| इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली हल्की, भुरभुरी व जैविक पदार्थो से युक्त मृदा उपयुक्त रहती है|
खेत की पृथक्करण दूरी:
अनुवांशिक संदूषण रोकने के लिए सोयाबीन की किन्ही दो किस्मों के खेतो के मध्य एक निश्चित दूरी बनाये रखना जरूरी है| सोयाबीन के अन्य किस्म के खेत से यह दूरी 3 मीटर रखनी चाहिए|
बीज की मात्रा:
बीज दर दानो के आकार पर निर्भर करती है| छोटे दाने वाली किस्म की बीज दर 65-70 किलोग्राम प्रति हैक्टर तथा मोटे दाने वाली किस्मों की 80-82 किलोग्राम प्रति हैक्टर रखें|
बीजोपचार:
बीज उपचार से बीज के द्वारा फ़ैलने वाले रोगों को रोका जा सकता है| बीज उपचार सबसे पहले फन्फुदनाशी से, उसके बाद कीटनाशी से और अंत में विभिन्न जैव कल्चर (राइजोबियम, पी.एस.बी. या ट्राईकोडर्मा कल्चर) से करना चाहिए| सोयाबीन में बीज बोने से पहले 3 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करे|
जैव नियंत्रक ट्राईकोडर्मा विरिडी को 5-10 ग्राम/किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार हेतु काम में लेवे| राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर (5 ग्राम/किलोग्राम बीज) से बीजोपचार करने से नाइट्रोजन व फास्फोरस की पूर्ति की जा सकती है|
उर्वरक:
सोयाबीन में समुचित उत्पादन हेतु पोषक तत्वों की अनुशंसित मात्रा 20:40:40:30 किलोग्राम/हैक्टर (नाइट्रोजन:फोस्फोरस:पोटाश:गंधक) है| उर्वरको का प्रयोग केवल बुवाई के समय ही करे| अत: खड़ी फसल में उर्वरको का प्रयोग अवांछनीय होगा|
सिंचाई:
बीज अंकुरण के समय अगर बारिश नही होती है तो बीजो के सही अंकुरण के लिए एक पानी देना आवश्यक है| सोयाबीन की फसल के लिए सिंचाई की क्रांतिक अवस्था फूल आना और फलियों में दानें भरना है| अत: इन अवस्थाओं में सिंचाई करना बेहद आवश्यक है अन्यथा फली के भरने और बीज की गुणवता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है|
पौध संरक्षण:
स्वस्थ बीज उत्पादन के लिए पौधों को रोगमुक्त रखना बहुत आवश्यक है| पौध संरक्षण खरपतवार प्रबंधन, रोग नियंत्रण व कीट नियंत्रण के द्वारा किया जाता है| जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
खरपतवार प्रबंधन:
सोयाबीन के बीज उत्पादन वाले खेत को बुवाई के लगभग 6 सप्ताह बाद तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए| यह कार्य 21 और 42 दिन पर निराई-गुड़ाई करके या अनुशंसित मात्रा में रसायनों का उपयोग करके कर सकते है|
रसायनों से खरपतवार नियंत्रण हेतु फ्लूक्लोरेलिन 1 किलोग्राम /हैक्टर बुवाई के एक दिन पहले 500-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करे या पेन्डीमिथेलिन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व / हैक्टर या स्फफेन्ट्राजोन 720 ग्राम / हैक्टर अंकुरण से पूर्व प्रयोग करे या टरगा सुपर 1 लीटर / हैक्टर बुवाई के 15-20 दिन बाद प्रयोग करे|
रोग नियंत्रण:
फसल को रोगों जैसे चारकोल रोट, अंगमारी, जीवाणु धब्बा, विषाणु मोजेक, पत्ती धब्बा एवं अफलन आदि से बचाने के लिए रोग के लक्षण दिखते ही विशेषज्ञ से सलाह लेकर उपयुक्त रोगनाशी का छिडकाव करे|
कीट नियंत्रण:
फसल पर कीटों के प्रकोप को रोकने हेतु सही समय पर उचित कीटनाशी का प्रयोग करे|
अवांछनीय पौधों को निकलना:
अवांछनीय पौधों को पुष्पन अवस्था में पुष्प के रंग, फली के रंग, पत्ती के आकार,फली पर रोयें की स्थिति आदि गुणों की भिन्नता को आधार मानकर खेत से निकाले| अंतिम रोगिंग परिपक्वता आने पर फली की विशेषताओ के आधार पर करे| रोगग्रस्त पौधों को भी खेत से निकाल देवें|
कटाई व गहाई:
बीज फसल की कटाई व गहाई सही समय पर करना आवश्यक है अन्यथा अधिक परिपक्व होने पर फलिया चटकने लगती है तथा खेत में बीजो की गुणवता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है| जब पौधों की पत्तियां गिर जाये और फली भूरी या काली हो जाये तब बीजो में नमी की मात्रा 15-17 प्रतिशत रहती, इसी समय फसल की कटाई करे|
कटाई उपरांत फसल को पक्के फर्श पर धूप में सुखाये ताकि नमी 13-15 प्रतिशत तक आ जाये| फसल की गहाई थ्रेशर से करे और यह ध्यान रखे की इसमें किसी अन्य प्रकार के बीजो का मिश्रण न हो|
बीजो को सुखाना:
गहाई के बाद बीजो को 10 प्रतिशत या इससे कम नमी (सुरक्षित तापमान = 43.3 डिग्री सेल्सियस) तक पतली तारपीन पर सुखाये| बीज में 10-20 प्रतिशत नमी रहने पर इनकी श्वसन क्रिया बढ़ जाती है और कई प्रकार के फंफूद जैसे एस्पर्जिलस, राइजोपस व पेनीसिलियम का संक्रमण होने लगता है जिससे बीज का ह्रास होने लगता है|
बीज की बोरा बंदी व भण्डारण:
भण्डारण के समय बीज की प्रारम्भिक अवस्था, बीज में नमी की मात्रा, भंडारण स्थल का तापमान और आर्द्रता को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है| बीजो की प्रारंभिक अवस्था सही रखने के लिए बीजो को अच्छे से साफ़ और ग्रेड करके टूटे हुए दानो व कचरे को निकल दे| बीज में नमी और तापक्रम से भंडारण के दौरान इसमें कई रसायनिक बदलाव आते है जैसे वसा, अम्ल, रंग, विटामिन आदि|
भंडारण स्थल का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त रहता है इससे अधिक तापमान बढ़ने पर बीजो में अधिक नुकसान होता है| भंडारण से पहले ये सुनिश्चित कर ले की भण्डारण स्थल में किसी भी तरह से नमी नही होनी चाहिए|
भंडारण के ढांचे नमी रोधी होने चाहिए व इन्हें ठंडी जगह पर रखना चाहिए| सोयाबीन के भंडारण के ढांचे के लिए जूट के बोरे, धातुओं से बनी भण्डारण कोठियां व एचडीपीई बैग का प्रयोग किया जाता है|
बीज परीक्षण:
बीज की अनुवांशिक शुद्धता, भौतिक शुद्धता, अंकुरण क्षमता व नमी प्रतिशत आदि का परीक्षण प्रयोगशालाओ में किया जाता है| बीज परीक्षण के बाद ही बीज शुद्धता का प्रमाणीकरण निश्चित होता है|
सोयाबीन के बीज उत्पादन के लिए निम्नतम मानक:
विवरण |
आधार बीज |
प्रमाणित बीज |
1. प्रक्षेत्र मानक |
||
पृथक्करण दुरी |
3 मीटर |
3 मीटर |
अवांछनीय पौधे (अधिकतम) |
0.10% |
0.20% |
2. बीज मानक |
||
शुद्ध बीज (न्यूनतम) |
98% |
98% |
अक्रिय पदार्थ (अधिकतम) |
2% |
2% |
अन्य फसल के बीज (अधिकतम) |
0 |
10/ किग्रा. |
खरपतवार बीज (अधिकतम) |
5/किग्रा. |
10/किग्रा. |
अन्य किस्म के बीज (अधिकतम) |
5/किग्रा. |
10/किग्रा. |
अंकुरण (न्यूनतम) |
70% |
70% |
नमी (अधिकतम) |
12% |
12% |
नमी (न्यूनतम) |
7% |
7% |
Authors:
राजवन्ती सारण एवं मधु चौधरी
पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर- 302018 (राजस्थान)
Email:
Mob. No.: 9928696404