Scientific cultivation of Okra crop and okra seed production technique

भिंडी गर्मी व वर्षा के मौसम की प्रमुख फसल है। भिंडी के पौधो का गुड बनाने के उद्योग में उपयोग किया जाता है। भिंडी की फली से प्रोटीन, कैल्शियम तथा अन्य खनिज लवण मिलते हैं।

भिंडी के निर्यात द्वारा भी विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है। सम्पुर्ण छत्तीसगढ मे वर्षा एवं गर्मी मे भिण्डी की खेती की जा सकती है। 

भिंडी की प्रमुख किस्में

पूसा सावनी

यह प्रजाति बंसत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु पाई गयी है। पौधो की उँचाई 100-200 से.मी. होती है। फल गहरे हरे रंग लगभग 15 से.मी. होते है।

यह किस्म पिछले कई वर्षो तक पीले मोजेक विषाणु के प्रकोप से मुक्त रही है परन्तु अब यह रोग इस किस्म मे लगने लगा है। इसकी उपज 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

प्रभनी क्रांति

यह किस्म पीतशीरा(मोजेक) विषाणु बीमारी रोकने मे सक्षम पाई गयी है। इसके फल पूसा सावनी जैसे ही होता है। प्रथम तुडाई 55-60 पश्चात की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

अर्का अनामिका

यह विषाणु रोग से प्रतिरोधी किस्म है। फल मध्यम हरे पाँच किनारो वाली किस्म है। लगाने के 50 दिनो बाद फुल आते है। तथा इसकी उपज 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

वर्षा उपहार

पीतशीरा(मोजेक) विषाणु रोग प्रतिरोधी, 45 दिन बाद प्रथम तुडाई, 18-20 से.मी लम्बाई, पाँच धारियाँ औसत उपज 9 से 10 टन प्रति हेक्टेयर।

पूसा मखमली

हल्के हरे रंग कि किस्म है तथा पीतशीरा(मोजेक) विषाणु रोग के प्रति अतिसंवेदनशील होती है। पाँच धारिया विशेष गुण एवं फल 12-15 से.मी.  हल्के हरे पाँच किनारो वाली होती है। 8-10 8-10 टन प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार होती है।

अर्का अभय

पीतशीरा (मोजेक) विषाणु रोग प्रतिरोधी किस्म है। फल भेदक किट को सहन कर सकती है एवं पेडी फसल के लिए उपयुक्त है।

पूसा ए-4

यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील हैं। यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है। फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते है।

बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है। तथा पहली तुडाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति हेक्टेयर है।

पंजाब-7,

यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते है। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है। इसकी पैदावार 8-12 टन प्रति है. है।

अन्य वाइरस प्रतिरोधाी किस्में : पंजाब-8, आजाद क्रांति, हिसार उन्नत,

भि‍ण्‍डी उगाने के लि‍ए खेत की तैयारी :

वर्षा ऋतु के समय पहली वर्षा होने पर खेत को मिटटी पलटने वाले हल से दो बार अच्छी तरह से जुताई करे। इसके पश्चात दो बार डिस्क हैरो या देसी हल से पुन: जुताई कर पाटा चलाये।

250 क्विटल अच्छी सडी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से अंन्तिम जुताई से पहले फैला दे। ताकी मिटटी मे अच्छी तरह से मिल जाये।

सिंचाई की सुविधा होने पर इस फसल को वर्षा ऋतु से 20-25 दिन पहले ही बुआई कर देनी चाहिए। ताकि बाजार भाव अच्छा मिल सके।

भि‍ंडी फसल के लि‍ए जलवायु  तथा मिट्टी:

भिंडी गर्मी तथा खरीफ मौसम की मुख्य सब्जी फसल है। यह 40 सें.ग्रे. से ज्यादा तापमान सहन नहीं कर सकती है। बीज जमाव के लिए उपयुक्त तापमान 17-20 सें.ग्रे. है तथा पौधो की बढ़वार के लिए 35 सें.ग्रे. तक का तापमान उपयुक्त है।

दुमट व बलुई दुमट मिट्टी जिसका पी एच मान 6.0-6.8 हो और वह पोषक तत्व युक्त हो तथा सिंचाई की सुविधाा व जल निकास का अच्छा प्रबंधा होना चाहिए।

भि‍ण्‍डी की बुआई

बीज बुवाई हल की सहायता से या सीड ड्रिल के द्वारा गर्मियों में 45 सें.मी. कतार से कतार के बीच की दुरी तथा 20 सें.मी. पौध से पौध बीच की दुरी  इसी प्रकार से वर्षा के मौसम में 60ग20 सें.मी. की दूरी पर करें। बीज की गहराई लगभग 4.5 सें.मी. रखें।

बीज की मात्रा :

गर्मी के मौसम के लिए 20-22 कि.ग्रा. व खरीफ (वर्षा) के मौसम में 10-12 कि.ग्रा. /हैक्टर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है।

बुवाई का समय :

गर्मी के मौसम में 20 फरवरी से 15 मार्च तथा खरीफ (वर्षा के मौसम) में 25 जून से 10 जुलाई तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त है।

उर्वरक व खाद :

बुवाई से पहले गोबर व अच्छी तरह गली-सड़ी कम्पोस्ट लगभग 20 से 25 टन प्रति हैक्टर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। नत्रजन 40 कि.ग्रा. की आधाी मात्रा, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस व 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय प्रयोग करें तथा बची हुई आधाी नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने की अवस्था में डालें।

भि‍ण्‍डी फसल में सिंचाई

सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून म े 4-5 दिन क े अन्तर पर करे।ं बरसात मे यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है ।

निराई व गुडाई

नियमित निंदाई-गुडाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुडाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक नींदानाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन कीे 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।

भि‍ंडी की तुड़ाई व उपज :

भिंडी की फलियों को उनकी अपरिपक्व अवस्था में फूल खिलने से 3-4 दिन बाद 3 दिन के अंतराल पर लगातार तोड़ते रहें। भिंडी की फली की उपज गर्मी की फसल में 90-100 क्विंटल तथा वर्षा के मौसम में 150 से 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलती है।

तुड़ाई उपरांत प्रबंधन

  • भिंडी की फलियों की तुड़ाई उनकी नर्म अवस्था, उनके कड़े होने या बीज बनने से पहले की स्थिति में करके छाया में रखें। फलियों की तुड़ाई नियमित अंतराल पर करते रहें।
  • स्थानीय बाजार के लिए सुबह तुड़ाई करके बाजार में भेज सकते हैं लेकिन दूरस्थ बाजार के लिए शाम के समय तुड़ाई करके भिंडी की फलियों को जूट के बोरों या टोकरी में भरकर सुबह बाजार में भेजते हैं जिससे फलियों को कोई हानि न हो।
  • फलियों को 40 सें.ग्रे. तापमान पर 4-5 दिन तक भंडारित किया जा सकता है।

भि‍ंडी का बीज उत्पादन की वि‍धि‍

बीज उत्पादन के लिए खेत का चुनाव करते समय धयान रखें कि उस खेत में पिछले साल भिंडी की फसल न उगाई गई हो। आधाार बीज के लिए पृथक्करण दूरी 400 मी. तथा प्रमाणित बीज के लिए 200 मी. रखें जिससे बीज की शुध्दता बनी रहे।

अवांछनीय पौधाों को फूल आने की अवस्था में उनके पौधाों के गुणों के आधाार पर निकाल दें तथा दूसरी बार जब फलियां तैयार हो गई हों तब फलियों के गुणों के आधाार पर निकाल दें। पीत शीरा रोगी पौधाों को समय-समय पर निकालते रहें।

फलियां जब पक कर बादामी रंग की हो जाए तो उनसे बीज छिटकने से पहले ही काटकर बीज निकालकर अलग कर लें। बीज सूखे व शुष्क स्थान पर बीज नमी 9-10 प्रतिशत की अवस्था में भंडारित करें। बीज का जमाव 70 प्रतिशत होना चाहिए।

भि‍ंडी की बीज उपज : अच्छी फसल से 12-15 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर तक होती है।

भि‍ंडी के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण

मोजैक तथा पर्ण कुंचन (मोजैक एड लीफ कर्ल)

लक्षण : पत्तिायों पर छोटे-छोटे पीले रंग के चितकबरे धाब्बे बनते है। पत्तिायों का रंग पीला पड़ जाता है। हरा भाग छिछले गङ्ढों का रूप ले लेता है, पत्तिायों के किनारे नीचे झुक जाते हैं और कटे हुए से हो जाते हैं जो बाद में पत्ताी के पीले भाग सूख कर नष्ट हो जाते हैं।

नियंत्रण : कन्फीडोर 200 एस एल (2.0 मि.ली. प्रति 1.0 लीटर पानी की दर से) रोपाई के 20 दिन बाद तथा  आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर प्रयोग करें।

भि‍ंडी के कीट प्रकोप एवं प्रबंधान

सफेद मक्खी

पत्तियों का रस चूसने से पत्तिायां सिकुड़ जाती हैं। कन्फीडोर या डेसिस का 0.3 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

फली तथा तना छेदक

कीड़ा फलियों में छेद कर अंदर बीज को हानि पहुंचाता है तथा फली खाने योग्य नहीं होती है। पौधो की अंतिम शिरा में छेद कर पौधो का ऊपरी हिस्सा मुरझा जाता है। कन्फीडोर या डेसिस का 0.3 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

जैसिड

क्टि पत्तिायों का रस चूस लेता है जिससे पत्तिायां किनारों पर ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं तथा पत्तिायों का रंग पीला हो जाता है जो बाद में सूख जाती हैं। कन्फीडोर या डेसिस का 0.3 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।


Aauthors

विजय कुमार सुर्यवंशी

एम.एस.सी (कृषि) उघानिकी, ग्रा.कृ.वि.अ. वि.ख. बिल्हा, जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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