Seed Production Technology of Okra (Bhindi) crop

फलदार सब्जियों में भिण्डी का एक प्रमुख स्थान है। भिण्डी में प्रचुर मात्रा में विटामिन्स, प्रोटीन, फास्फोरस व अन्य खनिज लवण उपलब्ध रहते है। इसके बीज में 13-22 प्रतिशत तक खाने योग्य तेल तथा 20-22 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है। भिण्डी गर्म मौसम की फसल है तथा इसके पौधे पाले को सहन करने में असमर्थ होते है।

30-320 सै. तापमान भि‍ंडी के बीज अंकुरण के लिए उत्तम होता है। बीज के पकने के समय अपेक्षाकत सुखे व गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। भिण्डी का उत्तम गुणवत्ता वाला बीज बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

Seed crop of Okra (Bhindi)भि‍ण्‍डी की उन्नत किस्में:

पूसा ए-4, पूसा सावनी, अर्का अनामिका, अर्का अभय, हिसार नवीन, हिसार उन्नत, वर्षा उपहार, पंजाब-7, पंजाब पद्मिनी, पंजाब-8, काशी प्रगति, काशी सातधारी, प्रभाणी क्रांति, फुले उत्कृष

भि‍ण्‍डी की संकर किस्में: काशी भैरव, काशी महिमा, लाम संकर सलैक्शन-1

भि‍ण्‍डी की खेती के लि‍ए खेत का चयन:

भिण्डी के लिए 6 से 6.8  पी.एच. मान की दोमट, चिकनी दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। खेत की मिट्टी में जीवांश पदार्थ प्रचुर मात्रा में होना चाहिए।

बीज उत्पादन के लिए उन्ही खेतों का चयन किया जाता हे जिनमें पिछले एक साल में भिण्डी की फसल ना उगाई गई हो। ऐसा करने से पिछली फसल के एच्छिक पौधों के कारण बीज फसल में संदुषण की संभावना घट जाती है।

भि‍ंडी बीज फसल में पृथक्करण दूरी:

भिण्डी प्राय: परासेचित फसल है जिसमें 5-19 प्रतिशत तक पर-परागण हो सकता है। आनुवंशिक रुप से शुध्द बीज उत्पादन के लिए भिण्डी के बीज खेत को, भिण्डी की अन्य प्रजातियों के खेतों से अथवा इसी प्रजाति के ऐसे खेतों से जिनकी प्रजाति संबधी शुध्दता प्रमाणीकरण स्तर की ना हो एवं जंगली भिण्डी के पौधों से एक न्युनतम पृथक्करण दूरी पर रखते है।

आधार बीज के लिए यह दूरी 500 मीटर तथा प्रमाणित बीज उत्पादन हेतु यह दूरी 250 मीटर होनी चाहिए।

भि‍ंडी बीज फसल बुआई का समय:

उत्तर भारत के मैदानी भागों में भिण्डी की बीजाई फरवरी- मार्च तथा जून-जुलाई में की जाती है। दक्षिण भारत में भिण्डी की फसल सारा साल उगाई जा सकती है।

अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन हेतु बुआई का समय इस प्रकार निर्धारित करते है कि पूष्पन तथा बीज पकने के समय मौसम अपेक्षाकत गर्म व सुखा रहे तथा फलों की तोड़ाई व बीज का निकालना सुखे मौसम में हो।

बसंत-ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए 18-20 कि.ग्रा. तथा वर्षाकालीन फसल के लिए 10-12 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है। डिब्लर विधि या हाथ से बीजाई करने पर बीज की दर में बचत होती है।

बसंत-ग्रीष्म ऋतु की फसल में बीज की अंकुरण क्षमता बढ़ाने हेतु बीजाई से पहले बीज को 8-10 धंटे पानी में भिगोकर लगाना उपयोगी होता है। जो बीज पानी के उपर तैरते रह जाएं उन्हे बीजाई के लिए प्रयोग ना करें।

अच्छी पैदावार हेतु लाईन से लाईन की दुरी 50-60 सै. मी. तथा पौधे से पौधे की दुरी 25-30 सै. मी. रखते है। मेड़ों पर 1 या 2 कतारों में बुआई लाभप्रद है।

खाद एंव उर्वरक प्रबंधन:

बीज फसल में उचित मात्रा में खाद एंव उर्वरक डालने के लिए मृदा जांच उपयोगी है। अत: मृदा जांच के आधार पर ही उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। साधरणत्या भिण्डी की बीज फसल में 100 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाशियम प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है।  

बीजाई हेतु खेत तैयार करते समय 20-25 टन गोबर की सड़ी खाद, 160 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाईटेट या 80 किलोग्राम युरिया, 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 120 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 10-12 किलोग्राम पी. एस. बी. कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिटटी में मिलाते हेै।

इसके अतिरिक्त 65 कि.ग्राम युरिया बीजाई के 30-35 दिन बाद तथा 65 कि.ग्राम युरिया  बीजाई के 60-65 दिन बाद छिड़काव द्वारा डालते है।

सिंचाई प्रबंधन:

हल्की सिंचाई व उचित जल निकास अच्छी फसल के लिए आवश्यक है। बीजाई से पहले एक सिंचाई करके खेत तैयार करना चाहिए। डोल/मेढ़ों पर बीज बोने के बाद सिंचाई करते है। बीज खेत में समय समय पर सिंचाई करने की आवश्यकता होती है विशेषकर पुष्पन तथा बीज विकास के समय खेत में उचित नमी बनाए रखना आवश्यक होता है।

भि‍ंडी में खरपतवार प्रबंधन:

भिण्डी की अच्छी बीज फसल लेने के लिए बुआई के प्रारंभिक 25-30 दिन तक प्रभावी खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करते है। अगर किसी कारण से निराई-गुड़ाई संभव ना हो तो खरपतवार नियंत्रण हेतु बुआई के तुरंत बाद पैन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. 1-1.5 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व को प्रति हैक्टेयर की दर छिड़काव द्वारा डालते है।

अवांछनीय पोेैद्यों को निकालना:

अवाछंनीय पौद्यें निकालने वाले व्यक्ति को किस्म के लक्षणों का भली भांति ज्ञान होना चाहिए जिससे की वह अवाछंनीय पौद्याें को पौद्ये की बढ़वार, पत्ताें व फूलो के रंग-रूप, फूलाें के खिलने का समय आदि के आद्यार पर पहचान सके।

भिण्डी में तीन अवस्थाओं पर अवांछनीय पोेैद्यों को निकालने का कार्य करना चाहिए। वानस्पतिक अवस्था के दौरान शाकिय वृध्दि लक्षणों में भिन्नता यूक्त पौधों तथा पीत शिरा मौजेक विषाणु रोग से ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नप्ट कर देना चाहिए।

पुष्पन की अवस्था में अवांछनीय पोेैद्यों को उनकी उंचाई, शाखाओं की संख्या, पत्तियों का कटाव, रंग, आकार व उन पर रंजको के धब्बे, गांठों के बीच की दुरी के आधार पर निकाला जाता है।

पुष्पन के बाद तथा कटाई से पूर्व की अवस्था पर पौधों को फलों के आकार, रुप व रंग आदि के आधार पर तथा विषाणु रोग से ग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट करना चाहिए।

पीत शिरा विषाण्ाु रोग के लक्षण यदि 4-5 फलों के बाद आएं तो ऐसे पौधों से प्रमाणित कोटि का बीज ले लें। आधार कोटि के बीज के लिए लगभग 60 प्रतिशत फलन होने तक पीतशिरा विषाणु रोग ग्रसित पौधे निकालते रहें।

भि‍ंडी फलों की तुड़ाई व बीज निकालना:

बीजाई के लगभग 40-45 दिन बाद पौधों में फूल आने शुरु हो जाते है। 30-40 दिन का समय फूल से फल बनने, पकने व सुखने में लग जाता है। भिण्डी में सभी फल एक साथ नहीं पकते अत: उन्ही फलों की कटाई करनी चाहिए जो पक कर पुरी तरह सुख जाएं तथा जिनके किनारों पर दरार दिखाई देने लगे।

फलों को चिटकने से पहले 2-3 बार में तोड़ा जाता है। कटाई के बाद फलों को तिरपाल या पक्के फर्श पर फैलाकर सुखाना चाहिए। अच्छी तरह सुखाए गए फलों को डंडों से पीट कर या टैक्टर द्वारा गहाई करके बीजों को निकालते है। बीजों से फल के अवशेषों, तिनकों, डंठलों आदि को अलग कर लेते है।

यांत्रिक प्रसंस्करण सुविधा ना होने की स्थिती में सफाई के लिए बीज को 2-3 मिनट तक पानी में डुबोना चाहिए तथा नीचे बैठे हुए भारी बीजों को निथार कर सुखाना चाहिए।

भि‍ण्‍डी के बीजों का भण्डारण: 

सुखाने के बाद बीज को फफुंदीनाशक दवा से उपचारित करना चाहिए। साफ बीज को अगर टीन के डिब्बों, अल्युमिनियम फायल या मोटे प्लास्टीक के लिफाफे में भरना हो तो बीज को 6 प्रतिशत नमी तक सुखाना चाहिए। सुरक्षित भंडारण हेतु बीज को 18-200 सै. तापक्रम तथा 30-40 प्रतिशत आपेक्षित आद्रर्ता पर रखना चाहिए।

भि‍ंडी बीज उपज एवं मानक:

अच्छी बीज फसल से प्रति हैक्टेयर 12-15 किव्ंटल बीज प्राप्त किया जा सकता है।

सारणी-1: भिण्डी के आधार एवं प्रमाणित बीज हेतु मानक स्तर 

मानक स्तर   बीज मानक
आधार बीज प्रमाणित बीज
शुद्भ बीज (न्यूनतम ) 99 प्रतिशत 98 प्रतिशत
निष्क्रिय पदार्थ (अधिकतम ) 2 प्रतिशत 2 प्रतिशत
अन्य फसलों के बीज (अधिकतम ) 5 प्रति किलो 10 प्रति किलो
खरपतवार के बीज (अधिकतम ) 5 प्रति किलो 10 प्रति किलो
अंकुरण क्षमता (न्यूनतम ) 65 प्रतिशत 65 प्रतिशत
नमी (अधिकतम ) सामान्य पैकिंग 8 प्रतिशत 8 प्रतिशत
नमी अवरोधी पैकिंग 6 प्रतिशत 6 प्रतिशत


भि‍डी केे संकर बीज का उत्पादन
:

भिण्डी में संकर बीज उत्पादन हेतु तीन अवयव है। सत्य आनुवंशिकी वाले पितरों (पैरेन्ट्स) का चुनाव, नियंत्रित परासेचन तथा बीज निकालना। पितरों के चयन पर संकर की सफलता निर्भर होती है। बीज इकट्ठा किये जाने वाले पितर पर सम्पुष्ट कली से शाम को नर भाग (पुंकेशर) निकाल कर लिफाफे से ढक देते है और अगली सुबह (6-10 बजे के बीच) नर पितर के ढके हुए पुष्प से पराग लेकर मादा पितर पर लगा लिफाफा खोल कर उसके पराग केशर पर लगाकर लिफाफे से ढक देते है।

कालांतर में इस परागित पुष्प से बनने वाला फल व उससे मिलने वाला बीज संकर बीज है। अभी तक यह कार्य हाथ से ही किया जाता है जिससे समय तथा धन का व्यय अधिक होता है। पीतशिरा रोग के लिए अवरोधी गुणों का समावेश संकर प्रजातियों में कर के इसका लाभ लिया जा रहा है।

भि‍डी केे प्रमुख कीट एवं रोग:

तना एवं फल छेदक कीट : 

वयस्क सूंडी कोमल तने तथा फल में सूराख बनाकर अंदर घुस जाती है। तना मुरझा जाता है एवं पौधे का शीर्ष भाग सुख जाता है। जबकि ग्रसित फल सही आकार नहीं ले पाता है और टेढ़ा हो जाता है। प्रभावित फल जो पौधों पर रह जाते हैं सब्जी के लायक नहीं रहते।

बरसात वाली फसल इस कीट से ज्यादा प्रभावित होती है। साइपरमेथ्रीरीन 10 ई0सी0 का 0.5 मि0ली0 प्रति ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से इस कीट का नियंत्रण सम्भव है।

हरा फुदका/ जैसिड :

हरा फुदका भिण्डी के अलावा कई अन्य फसलों को हानि पहुँचाता है, परन्तु भिण्डी और कपास की फसलों को इस कीट से अधिक नुकसान होता है।

यह पत्ती की निचली सतह पर बड़ी सँख्या में पाया जाता है। शिषु तथा प्रौढ़ दोनों पत्ती की निचली सतह से रस चूसते हैं और साथ ही एक प्रकार का जहरीला पदार्थ अपने लार के साथ पत्ती के अन्दर छोडते है जिसके फलस्वरुप पत्ती किनारे से पीली होकर सिकुड़ती है तथा प्यालानुमा आकर बनाती है तथा धीरे-धीरे पत्ती मुरझाकर सूख जाती है।

वातावरण में अधिक नमी एंव अधिक तापक्रम से इनकी संख्या में भारी वृध्दि होती है। भिण्डी की पैदावार बहुत घट जाती है। गाउचो 70 डबल्यू एस. का 2.5-3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित बीज बोने से इस कीट का प्रकोप 40-45 दिनों तक नहीं होता है।

35 दिन पुरानी फसल पर ईमामेक्टिन बेन्जोएट 6 ग्रा. प्रति 10 लीटर पानी या बाइफेन्थ्रिन 0.5-1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर 1-2 छिड़काव करने से 30 दिन तक इस कीट का प्रकोप नहीं होता।

भिण्डी की लाल माइट :

गर्मी वाली भिण्डी में यह बहुत हानिकारक होती है। शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह पर रस चूसते हैं और वहीं सिल्कनुमा जाल से ढँकी रहती हैं । इनके रस चूसने से पत्तियो की ऊपरी सतह पर पीली चित्तियाँ उभर आती हैं और धीरे-धीरे पत्तियाँ लाल होकर सुख जाती हैं।

इसके नियंत्रण हेतु डायकोफाल 18.5 ई.सी. का 2.5 मि.ली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। समय-समय पर पानी की फुहार करने से जाल नहीं बन पाती हैं एवं पत्तिायों पर जमी धूल हट जाती है इससे इनकी संख्या कम हो जाती है।

काला धब्बा :

पत्तों पर इस रोग का प्रभाव बरसात की फसल में सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से शुरू होता है एवं कम तापक्रम व अधिक आर्द्रता के साथ बढ़ता जाता है। इसके नियंत्रण हेतु ट्राइएडिमीफोन या बिट्रेटीनाल 0.5 ग्राम अथवा थायोफनेट-मिथाइल या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम लीटर पानी में घोलकर 8 से 10 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करें।

पीत शिरा मोजैक :

यह रोग विषाणु द्वारा फैलता है जिसके कारण पौधों की बढ़ोतरी रूक जाती है। पत्तियां की शिराएं पीली पड़ जाती है। पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले रगं के चितकबरे धब्बे बन जाते है। जब तने और फलों का रंग पीला पड जाए तो समझें कि रोग का प्रकोप ज्यादा है।

यह रोग सफेद मक्खी द्वारा एक पौध से दूसरे पौध तक पहुँचता है और धीरे-धीरे पूरी फसल में यह रोग फैल जाता है। इसके नियंत्रण हेतु बीज को इमिडाक्लोप्रिड 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके लगाना चाहिए। अन्तर प्रवाही कीटनाशी दवा मेटासिस्टाक्स या कोन्फीडोर 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल कर 15 दिन के अन्तराल पर 3 बार छिड़काव करें। इस रोग के लिए बहुत सारी अवरोधी किस्में उपलब्ध है जिनके प्रयोग से यह रोग आसानी से रोका जा सकता है।


 Authors:

धिरेन्द्र चौधरी, एस. सिरोही, वी.के. पंडिता एवं एस.सी. राणा

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय स्टेशन, करनाल-132001

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles

Now online

We have 136 guests and no members online