Nursery management of hybrid rice seed production

संकर धान बीज उत्पादन की नर्सरी के लिए चिकनी दोमट, 35 पी.एच. वाली मिट्टी उप्युक्त होती है। धान का शुध्द संकर बीज में मिलावट रोकने के लिए पिछले मौसम में उगाये गये धान का क्षेत्र या खेत नहीं होना चाहिए।

संकर धान की नर्सरी विधि

धान की नर्सरी तैयार करने की कई विधियां होती है। लेकिन संकर बीज उत्पादन के लिए नमी (वैट) या आर्द्र विधि का अपनाना उचित होता है अथवा वहां पानी की समुचित सुविधा होनी चाहिए। नमी क्यारी नर्सरी विधि पारम्परिक विधि के 10 प्रतिशत के मुकाबले एक हैं, क्षेत्रफल के लिए भूमि की कुल आवश्यकता 2.5-3.0 प्रतिशत ही होगी। नमी क्यारी विधि से मजबूत तथा स्वस्थ पौध मिलती है। नमी क्यारी विधि नर्सरी में खरपतवार भी कम उगते है।

बीज की मात्रा

एक हैक्टेयर संकर धान बीज के लिए 20 किग्रा0 मादा पैतृक तथा 5 किग्रा0 नर पैतृक 80 प्रतिशत अंकुरण वाला बीज उपयुक्त होता है।

बोने के समय

संकर धान बीज उत्पादन के लिए जून के प्रथम सप्ताह में नर्सरी की बुआई कर देनी चाहिए।

बीज का उपचार

बीजों को सबसे पहले नमक के पानी में (1:40) भिगो दिया जाता है जो हल्के बीज होते है वो तैरने लगते है। उन्हें अलग निकाल कर फेंक दिया जाता है। बाकि एक हैक्टेयर के लिए बीज को उपचार के लिए 10 ग्रा0 बाविस्टीन + 2 ग्रा0 स्ट्रेटतोसाइक्लीन या 2 ग्रा0 एग्रीमाइसीन के घोल में 12 घंटे भिगोकर रख देते है।

तत्पश्चात पानी को निकालकर बीज को गीले जूट के बैग में अंकुरित होने के लिए 20-24 घंटो के लिए छापा में ढ़ककर रख देते है।    

धान नर्सरी तैयार करने की नमी (वैट) विधि

सूखी जमीन को दो-तीन बार जुताई करके उसमें 10-12 कुन्तल गोबर की अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद मिलाकर 2-3 सेमी0 पानी की स्थिति में 3-4 बार जुताई 4-6 दिन के अंतराल पर करते है। खेत की अंतिम तैयारी से पूर्व मिट्टी सतह पर कीचड़ को स्थापित होने तथा मौजूदा पानी को 12-24 घंटे का समय देना चाहिए। ताकि बुआई से पूर्व जमीन समतल हो जाए।

नर्सरी क्यारियों को 4 से 5 सेमी0 ऊंची 1-15 मी0 चौड़ी तथा सुविधानुसार लम्बाई तथा 40-50 सेमी0 की नालियों के साथ तैयार करना होता है। ताकि पानी की आपूर्ति व निकासी के लिए सुविधाजनक हो। नर्सरी क्यारियों का समललन उचित हो जिससे नर्सरी में उपयुक्त जल ठहराव को रोकने एवं बीजों को समुचित अंकुरण को सुनिश्चित किया जा सकें।

संकर धान बीज उत्पादन

संकर धान बीज उत्पादन में पोषक तत्वों का नयी पौध के स्वास्थय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अत: 1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में 10-12 क्विंटल पड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 10 किग्रा0 यूरिया, 5 किमी0 सिंगल सुपर, 5 किग्रा0 पोटाश तथा 2 से 3 किग्रा0 जिंक सल्फेट को अन्तिम जुताई समय मिट्टी में एक समान मिला दिया जाना चाहिए। यदि पौध देखने में पीली दिखाई दे रही है तो 4-5 किग्रा0 यूरिया का छिड़काव बोने के 15 दिन बाद कर सकते है।

पुष्पन का तालमेल (सिकों नाइजेशन)

संकर धान बीज उत्पादन के लिए पुष्प का तालमेल अथवा नर पैतृक व मादा पैतृक में एक ही समय पर पुष्पन होना अति आवश्यक है। इस पुष्पन का तालमेल की क्रिया को सही रखने के लिए नर्सरी बुआई के समय ही दो विभिन्न पैतृक वंशकों की (पैरेन्टल लाइनों) वैज्ञानिकों की सलाह धान पी.आर.एच. 10 बीजोत्पादन में पूसा-6 ए करे नर्सरी बोने के पश्चात पी.आर.आर. 78 (नर पैतृक) का 50 प्रतिशत बीज लगाया जाता है तथा शेष 50 प्रतिशत बीज की सात दिन बाद नर्सरी में बुआई की जाती है।

नर्सरी बुआई व उसके पश्चात देखभाल

पूर्व अंकुरित बीजों को तैयार क्यारियों में समान रूप से छिड़काव कर देते है। अत: उस समय उसमें पानी की परत के साथ कीचड़ की स्थिति बनी रहनी चाहिए। क्यारियों में 2-3 दिनों पश्चात हल्की सिचांई करते रहना चाहिए तथा पौधों मे पत्तिायों के बढ़ने के साथ पानी का स्वर भी बढ़ाते रहना चाहिए तथा पौधों में पत्तिायों के बढ़ने के साथ पानी का स्व्र भी बढ़ाते रहना चाहिए। शुरू के 4-5 दिनों में पक्षियों से बचाने का विशेष देखभाल आवश्यक है।

खरपतवार नियंत्रण

नमी क्यारी विधि से तैयार नर्सरी में खरपतवार कम उगते हैं फिर भी बुआई के 6-7 दिनों बाद शाकनाशी बयूटाक्लोट 150 मिली0, 10 किग्रा0 सुखी रेत में अच्छी तरह मिलाकर 1000 वर्गमीटर नर्सरी क्षेत्र में नमी अवस्था में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।

पौध रोपाई करने से पहले कुछ उगे खरपतवार को हाथ से अवश्य निकाल दें। 25-30 दिन पुरानी या 6-7 पत्तिायों वाली पौध रोपाई के लिए उत्तम रहती है।

कीड़ो तथा रोगों की रोकथाम

संकर धान बीज उत्पादन नर्सरी में यदि कीड़ों का प्रकोप हो तो 2 मिली0 इन्डोसल्फान/1 मिली0 मोनो क्रोटाफान प्रा0 लीटर पानी में घोल कर समान रूप से छिड़काव करें। यदि नर्सरी में पौधों का रंग बादामी धब्बों के रूप में दिखाई दे रहा हो तो 0.25 प्रतिशत मैनको जेब डाइथेन एम0 45 का छिड़काव करना चाहिए।

किसानों द्वारा विकसित पादप किस्मों की पहचान एवं पंजीकरण

कृषि की दीर्द्य और प्राचीन परम्परा के अन्तर्गत किसानों ने विशिष्टि परीक्षणों तथा उत्पादो के मूल्य हेतु विभिन्न प्रकार के पौधों का चयन किया है। इस चयन प्रक्रिया के अर्न्तगत कृषकों ने नई किस्मों को विभिन्न गुणों के लिए चुना है, जैसे कि अच्छी सुगंध, गुणवत्ता, गर्मी एवं लवणता-सहनशीलता इत्यादि।

उन्होनें वन्य और उन्नत दोनों प्रकारों के जनन द्रव्यों से किस्मों को चुना है, उन्हें सुधारा है और उनका संरक्षण्ा किया है। इन किसानो द्वारा चयनित सामग्री ने कृषि के क्षेत्र में शानदार योगदान दिया है।

कृषक अधिकार पौधा किस्म एवं संरक्षण अधिनियम 2001 (PPV&FR, 2001) ने कृषकों को केवल एक उत्पादक के रूप में ही नहीं, बल्कि कृषि फसल-जीन पूल के संरक्षण के रूप में भी मान्यता दी है।

अधिनियम के अनुसार, एक किसान को सफल कृषक के रूप में (चाहे वो सीधे या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से हो) एवं वन्य या पारम्परिक किस्मों के संरक्षण के रूप में पहचाना गया है। उन्हें नए किस्म के विकास के लिए जनक (ब्रीडर) के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

पारम्परिक रूप से ज्ञात किसान किस्मों को विशेष क्षेत्र में उगाया जाता है, और अधिकतर खेती का उत्पादन घरेलू खपत के लिए प्रयोग किया जाता है। इन्हीं का आंशिक रूप से कुछ हिस्सा अगले सीजन की बुआई के लिए संरक्षित कर लिया जाता है। कृषक किस्म-विकास की प्रक्रिया को तीन भागों में बाटां गया है :-

भू-प्रजाति - समूहों का मिश्रण

लोक किस्म - विशमांगी समष्टि

कृषक किस्म - परम्परागत, अधिक समरूप और विशिष्ट

कृषक किस्म के पंजीकरण के लिए आवेदक को पौ0कि0कृ0अ0सं0 प्राधिकरण (PPV&FR Authority) में अपना आवेदन पूरी तरह भरा फार्म, तकनीकी प्रश्नावली तथा अन्य अनुवंधों के साथ प्रस्तुत करना होगा।

आवेदन पत्र की जाचं और वि0स0स्थि0 (डी0यू0एस0) परीक्षण के बाद कृषक किस्मों को प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत किया जाएगा और आवेदक को पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा। अधिनियम के अर्न्तगत किसानों द्वारा विकसित किस्मों को पंजीकृत कराने हेतु कृषकों को कोई शुल्क नहीं देना होगा।

नई किस्मों के विकास हेतु पादप अनुवांशिक संस्थानों के संरक्षण, उनमें सुधार और उन्हें उपलब्ध कराने में किसी भी समय किए गए योगदान के लिए कृषकों के अधिकार को मान्यता देने तथा उन्हें पुरस्कृत करने का भी प्रावधान है।

बीज सहित अपने फार्म पर उत्पाद को रखने, प्रयोग करने, बोने, पुन: बोने, विनिमय - करने, बाटंने या बिक्री करने का किसानों को वैसा ही अधिकार होगा, जैसा इस अधिनियम के लागू के पूर्व था। इसमें अपवाद यह है कि किसी कृषक को इस नियम के अर्न्तगत सुरक्षित किस्म के किसी ब्रांडेड बीज की बिक्री का अधिकार नहीं होगा। प्रजनक किसानों को निर्धारित स्थितियों में किसी किस्म के सम्भावित निष्पादन की जानकारी देंगे।

किसानों द्वारा किए गए सफल चयनों के बहुत विशिष्ट उदाहरण है, जैसे कि मूंगफली की किस्म मोरला, जो कि गुजरात के एक कृषक की अपने सूखे खेत में से केवल दो स्वस्थ पौधों का चयन कर, उसके बीज की गुणा करने से संभव हुई। यह किस्म अन्य किस्मों से अधिक तेल उत्पादक थी, और सूखे को सहने में बेहतर सक्षम थी।

अधिनियम के अनुसार जो कृषक जातियां, संरक्षण में अपना योगदान देती है, उन्हें भी पुरस्कृत किया जाता है। उदाहरण के रूप से शिमला (हिमाचल प्रदेश) के रोहरू गावं का कृषक समुदाय जिसने लाल धान की किस्म छोहाटू का संरक्षण किया जो कि अधिकतम लोह मात्र से सम्पन्न है।

यह किस्म पंजीकरण के लिए पी0पी0वी0 एवं एफ0आर0 कार्यालय में जमा की गई है। द्वितीय संयंत्र जीनोम उध्दारकर्ता समुदाय समारोह में केरल और झारखण्ड के उन्नत कृषकों को भी पुरस्कृत किया गया है।

अत: यह स्पष्ट है कि कृषक समुदाय ने नई किस्मों के विकास में अपना योगदान दिया है और साथ ही किस्मों के सुधार में बौध्दिक योगदान दिया है एवं भविष्य में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण होगा।   


Authors:

डा. मोनिका ए. जोशी एवं योगिन्द्र सिंह

बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संभाग,

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.