बैंगन के 6 प्रमुख रोग तथा उनका प्रबंधन

बैंगन के 6 प्रमुख रोग तथा उनका प्रबंधन

Six major disease of brinjal and their management

बैंगन भारत में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है। उच्च तुंगता वाले क्षेत्रों के अलावा यह संपूर्ण भारत में उगाई जाती है। इसकी खेती वर्षभर की जा सकती है। यह एक बहुवर्षीय फसल के रूप में उगाई जा सकती है। परंतु इसे एक वर्षीय फसल के रूप में उगाया जाता है।

बैंगन की किस्मों मे आकार आकृति के आधार पर व्यापक विविधता पाई जाती है। यह अंडाकार से लेकर लंबे क्लब आकार के हो सकते हैं तथा रंगों में यह सफेद पीले या बैंगनी या कालिमा लिए हुए हरे रंग के हो सकते हैं।

बैंगन के पौधे पर विभिन्न जीवन प्रावस्थाओं में विभिन्न प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है। जो किसके उत्पादन में एक प्रमुख सीमा कारक है। इस लेख मे हम बैंगन में होने वाले प्रमुख रोगों तथा उनके प्रबंधन के बारे में चर्चा करेंगे:-

1 जीवाण्विय उखटा :-

यह रोग स्यूडोमोनास सोलेनीसेरम  नामक जीवाणु से होता है इस रोग में पौधों की पत्तियों का मुरझाना, पीलापन तथा अल्पविकसित जाना तथा बाद की अवस्था में संपूर्ण संपूर्ण पौधा मुरझा जाना एक प्रारूपिक लक्षण है। पोधों के मुरझाने से पहले निचली पत्तियां गिर जाती है।

पौधे का संवहन तंत्र भूरा हो जाता है। रोग ग्रसित भाग से “जीवाणु ऊज” निकलते हैं इस रोग में पौधा दोपहर के समय उखटा के लक्षण प्रकट करता है तथा रात में पुःन सही हो जाता है। परंतु शीघ्र ही पौधा मर जाता है।

Bacterial wilt in brinjal 

प्रबंधन:-

  • रोग प्रतिरोधी किस्म की बुवाई करें
  • सरसो कुल की सब्जी जैसे कि फूलगोभी के साथ फसल चक्र अपनाएं
  • रोग ग्रसित पादप व पादप भागों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना
  • बोर्डेक्स मिश्रण 2% फफूंदनाशी का छिड़काव करें

  2र्कोस्पोरा पत्ती धब्बा :-

यह रोग सर्कोस्पोरासोलेनी नामक फफूंद से होता है।इस रोग में पतियों पर कोणीय से लेकर अनियमित हरिमाहीनधब्बे बनते हैं। जो कि बाद में स्लेटी भूरे रंग के हो जाते हैं। धब्बों के बीच में बीजाणु जनन होता है। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां असमय ही गिर जाती है। जिससे फल उत्पादन कम होता है।

Cercospora leaf spot in Brinjal

 प्रबंधन:-

  • रोधी किस्मों की बुवाई करें।
  • 1% बोर्डेक्स मिश्रण या फिर 2 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड या फिर 2.5 ग्राम जेनब प्रति लीटर जल की दर से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

3ल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग:-

यह रोग अल्टरनेरिया मेलोंगनी तथाअल्टरनेरिया सोलेनी से होता है। इस रोग में पत्ती पर अनियमित सकेंद्रीय वलययुक्त धब्बे बनते हैं। गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियां गिर जाती है। अल्टरनेरिया मेलोंगनी फलों को भी प्रभावित करता है। इससे फलों पर धसें हुए धब्बे बनते हैं। प्रभावित फल पीले पड़ जाते हैं। और समय ही गिर जाते हैं।

प्रबंधन:-

  • रोग ग्रसित पादप भागों को उखाड़ कर नष्ट कर देवें
  • मेंकोजेब 25% का पर्णिल छिड़काव करें।

4आर्द्रगलन:-

यह रोग पीथीयम,राइजोक्टोनिया, फायटोफ्थोरा,स्कलेरोशियम रोल्फसाइ नामक फफूंद से होता है। इस रोग में रोगकारक नवोद्भिद के कोलर वाले भाग पर आक्रमण होता है। ग्रसित नवोद्भिद  टूटकर लटक जाते हैं यह रोग मृदा में उपस्थित फफूंद द्वारा होता है।

प्रबंधन

  • इस रोग के उपचार के लिए बीजों को एग्रोसेन या फिर सेरेन्सन 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें

5. मोजेक :-

यह रोग तंबाकू मोजेक विषाणु द्वारा होता है। पतियों पर चितकबरापन व अल्प विकसित जाना इसरोग का प्रमुख लक्षण है। प्रभावित पत्तियां विकृत छोटी और मोटी हो जाती है। तथा पौधा बहुत ही कम फल उत्पादित करता है। गंभीर परिस्थितियों में पत्तियों पर छाले बनते हैं।

पत्तियां छोटी अनियमित आकृति की हो जाती है इस रोग का प्रमुख लक्षण पत्तियों का अनियमित मोटापन मोटलिंग होना है। प्रारंभिक अवस्था में पौधे अल्पविकसित रह जाते हैं। या मांहू इसरोग का प्रमुख वाहक है।

 Mosaic in Brinjal

प्रबंधन:-

  • सभी प्रकार के खरपतवारों को उखाड़ देवें तथा जला देवें।
  • खीरा शिमला मिर्च तंबाकू टमाटर की बुवाई बैगन के खेत के पास नहीं करें
  • तंबाकू का सेवन करने वाले बैंगन की नर्सरी में कार्य नहीं करें
  • डाइमेथोएट दो मिलीलीटर प्रति लीटर तथा मेटासिसटाक्स 2 मिलीलीटर प्रति लीटर जल के साथ छिड़काव करें

6ग्रीवा गलन:-

यह रोग स्कलेरोशियम रोल्फसाइ से होता है इस रोग में तने का निचला भाग मृदा में उपस्थित फफूंदस्कलेरोशिया द्वारा संक्रमित होता है उत्तकक्षय के कारण पौधे के मृदा के नजदीक वाला ग्रीवा भाग गलने लगता है। तथा पौधा गिर जाता है। अंततः पौधे की मृत्यु हो जाती है।

 (Collar rot)

प्रबंधन:-

  • 4 ग्राम ट्रायकोडर्मा विरिडी प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
  • संक्रमित पौधों को इकट्ठा करके जला देवें।

Authors:

विजयश्री गहलोत*,केशव कुमार**, हर्षित बंसल**,

कृषि महाविद्यालय, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय

* स्नातकोत्तर छात्रा ,पादप रोग विज्ञान

** स्नातकोत्तर छात्र कृषि अर्थशास्त्र

Email: vijayshree1789@ gmail.com

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