Symptoms and prevention of nutrient deficiency in rabi crops
प्रत्येक पोषक तत्व पौधों के अंदर कुछ विशेष कार्य करने होते हैं। एक पोषक तत्व दूसरे पोषक तत्व का कार्य नहीं कर सकता है। किसी एक पोषक तत्व की सांद्रता जब निश्चित क्रांतिक
स्तर से नीचे आ जाती है तो पौधे में उस पोषक तत्व की कमी हो जाती है।
इससे पौधे के जीवन की क्रिया में बाधा पड़ती है तथा उसके विभिन्न अंगों खासकर पत्तियों पर तत्व विशेष की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं। रबी फसलों मे प्रमुख पोषक तत्वों के कार्य, उनकी कमी के लक्षण तथा निवारण के तरीके इस प्रकार है।
नाइट्रोजन
मुख्य कार्य
नाइट्रोजन कार्बन एवं जल के बाद पौधों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। यह पौधों का आधारभूत पोषक तत्व है। तथा नाइट्रोजन पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक हैं। सभी प्रोटीन का आवश्यक अवयवए फसलों की उपज में वृद्धि एवं पौधों में गहरा रंग तरलता में वृद्धि करता है।
इससे शाक भाजी का अधिक उत्पादन संभव है। यह पौधों द्वारा कार्बोहाइड्रेट के उपयोग में योगदान देता है। यह पौधों में क्लोरोफिल, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, विटामिन, हार्मोन एवं जीव द्रव्य की संरचना में सक्रिय भाग लेता है।
नाइट्रोजन की कमी के लक्षण
गेहूं, जौ आदि पत्तियां भूरी पड़कर सूख जाती हैं और सूख कर गिर जाती हैं। पौधों की पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी हो जाती है जिससे पुरानी पत्तियां हल्के पीले हो जाती हैं एवं पत्तियां, तने छोटे रह जाते हैं। कल्लो की संख्या कम, उपज एवं फसल गुणवत्ता खासकर प्रोटीन में कमी हो जाती है। फूलगोभी छोटे आकार की रह जाती है। गेहूं, जौ पौधों का बोना दिखाई पड़ना एवं फसल शीघ्र पक जाती हैं।
निवारण यूरिया, कैलशियम अमोनियम नाइट्रेट, एन. पी., एन. पी.के. जटिल एवं अमोनियम सल्फेट उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें।
फास्फोरस
मुख्य कार्य
फास्फोरस के मुख्य कार्य फाईटीन, फास्फोलिपिड, न्यूक्लिक अम्ल, फास्फो. प्रोटीन का अवयव है। अत: फास्फोरस इन यौगिक का पौधों में निर्माण करता है। पौधों के जड़ों के विकास में सहायक है एवं फल, फूल, बीजों के उत्पादन में वृद्धि करता है तथा फसलों के शीघ्र पकने में सहायक, प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन क्रियाओं में उर्जा स्थानांतरण करता है।
पौधों द्वारा पोटेशियम के अवशोषण में सहायक होता है। यह चना, मटर, मसूर आदि फलीदार पौधों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहयोग करता है। पौधों में कीट ब रोग प्रकोप के प्रति प्रतिरोधक बढ़ाता है।
फास्फोरस की कमी के लक्षण
आलू की पुरानी पत्तियां भूरे रंग की और चमड़े जैसी होकर समय से पहले गिर जाते हैं। तथा पाशर्व जड़ों का विकास रुक जाता है। और कंद की उपज कम हो जाती है तथा पत्तियां पर बैगनी रंग का मलिन किरण दिखाई देता है। मक्का रवी की पत्तियां हरी शिराएँ बैगनी हो जाती हैं। आलू, शकरकंद, गन्ने में विलय नाइट्रोजन ब स्टार्च का पौधों में अधिक संचय हो जाता है। जिससे प्रोटीन की मात्रा कम व शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है। तथा गेहूं, जौ, चना की फसल देर से पकती है और दाने छोटे व कम बनते हैं।
निवारण डाई अमोनियम फास्फेटए, सिंगल सुपर फास्फेट, राक फास्फेट, एन. पी.,एन. पी.के. जटिल उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें।
पोटाश
मुख्य कार्य
पोटाश 60 से अधिक एंजाइम को क्रियाशील करता है। और इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से पौधों की बढ़वार की प्रमुखों क्रियाओं में शामिल रहता है। यह प्रकाश संश्लेषण को बढ़ाता है तथा कार्बनिक पदार्थों का निर्माण तथा उनका फसलों के भंडारण में संवहन करने में सहायता करता है।
यह चना, मटर, मसूर, मक्का प्रोटीन उत्पादन को बढ़ाता है। और इस प्रकार नाइट्रोजन की क्षमता में सुधार करता है। पोटेशियम पौधे को सुखा सहन तथा विभिन्न बीमारियों का कीड़ों के एवं पाले के विरुद्ध प्रति प्रतिरोधक बनाता है। तथा पौधों में लॉजिंग के विरुद्ध प्रतिरोधक बनाने में महत्वपूर्ण तथा सशक्त जड़ तंत्र बनाने के लिए आवश्यक है।
विभिन्न फसलों में वनस्पति तेल के उत्पादन में सहायक होता है जैसे सरसों, सोयाबीन। यह दल्हनों में नत्रजन स्थिरीकरण करने वाले स्वतंत्र जीबो द्वारा कुशल नत्रजन स्थिरीकरण हेतु आवश्यक है। यह पौधों में शर्करा के निर्माण तथा संवहन हेतु आवश्यक है। इसलिए गन्ना, चुकंदर वाली फसलों के लिए और अति महत्वपूर्ण हो जाता है।
पोटाश की कमी के लक्षण
गेहूं एवं जौ के पौधे बोने तथा सूखे मौसम में मुरझाए हुए दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियों की नोक हरितमाहिन हो जाती हैं और बाद में उत्तक मर जाते हैं। तथा जला हुआ भूरा रंग धीरे.धीरे पत्तियों के निचले हिस्से की ओर फैलता है। पोटेशियम की कमी से गेहूं तथा जौ का तना पतला तथा पौधे पाले सूखे व बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
चुकंदर के पौधे नमी के प्रतिसंवेदनशील होते हैं। तथा ऐसी स्थिति में चुकंदर को चीनी की पुनः प्राप्ति बहुत कम हो जाती है उच्च उत्पादन की छमता बनाएं रखने हेतु चुकंदर को पोटेशियम की सदैव अच्छी आपूर्ति होती रहनी चाहिए एवं पत्तियों का गाढ़ा रंग होता है।
सूखे को राहत करने की क्षमता में गिरावट, पत्तियों का पीला हिस्सा जला हुआ भूरा उत्तक छय एवं उत्तक मर जाते हैं तथा पत्तियां सूख जाती हैं। पोटेशियम की कमी से अंकुरित पौधों की जड़े ठीक से विकसित नहीं हो पाती हैं जो गलन द्वारा ग्रसित हो जाते हैं।
पौधों में बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। तथा फसल गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आती है खासतौर से सब्जियों में आलू ,मूली, शलजम एवं फल वाली फसलों में ।
निवारण प्रायः म्यूरेट आफ पोटाश, सल्फेट आफ पोटाश, एन. पी.के.जटिल को पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करें।
कैल्शियम
कैल्शियम पत्तियों के बीज पत्रिका तथा पत्रिका के कैल्शियम पेक्टेट का निर्माण करता है। एवं प्रोटीन उपापचय से संबंधित रहता है तथा न्यूक्लिक अम्ल के संश्लेषण में योगदान देता है। क्रोमोजोम इसकी संरचना सक्रियता से संबंधित एंजाइमों को उत्प्रेरक करता है। शर्करा के प्रवाह में मदद करता है। तथा पौधों को पानी की पूर्ति में सहायक है।
कैल्शियम की कमी के लक्षण
आलू में ट्यूबर का विकास रुक जाता है। तथा पौधों में प्रोटीन ब कार्बोहाइड्रेट एकत्रित होने लगते हैं। एवं कैल्शियम की कमी से मक्का के ऊपर की पत्तियां चिपक जाना, सेम का पौधा काला पड़ना, चुकंदर की पत्तियां मुड़कर धब्बेदार हो जाती हैं।
नई पत्तियों का आकार छोटा एवं विकृत होना, अविकसित पुष्पक्रम गिरना, गेहूं, जौ, राई की पत्तियों की नोक का मरना और गोल होकर अंदर की ओर मुड़ जाती है एवं सेब में कड़वे गड्ढे , टमाटर में ब्लासम एंड रोट तथा गाजर में गुहा स्पाट आदि रोग हो जाते है।
निवारण जिप्सम,चूना, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, एवं सिंगल सुपर फास्फेट का उचित मात्रा में प्रयोग करें।
मैग्नीशियम
मैग्नीशियम क्लोरोफिल का अवयवी होता है। पौधों में हरे रंग की कमी मैग्नीशियम के द्वारा होती है। ऐ अनेक एंजाइमो को सक्रिय करता है।जो प्रोटीन वसा ब कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में योगदान देते हैं। यह क्लोरोफिल में मैग्नीशियम की मात्रा 2.7 परसेंट होती है।
यह क्लोरोफिल प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऊर्जा ब कार्बोहाइड्रेट के निर्माण में योगदान देता है। मैग्नीशियम विभजोतिक ऊतक, बीजों एवं फलों में काफी मात्रा में पाया जाता है। यह पौधों में नाइट्रोजन मेटाबोलिज्म से संबंधित फस्फोलाइजेसन क्रियाएं मैग्नीशियम द्वारा प्रेरित होती हैं।
यह पौधों में शर्करा एवं स्टार्च में स्थानांतरण में सहायक होता है। यह गेहूं ,सरसों, राई, तोरिया में तेल सामग्री में उल्लेखनीय वृद्धि करता है। तथा चारा वाली फसलों जैसे अल्फाल्फा, बरसीम, जौ के लिए महत्वपूर्ण है।
मैग्नीशियम के कमी के लक्षण
मैग्नीशियम गतिशील होने के कारण कमी के लक्षण पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं। एवं मैग्नीशियम की कमी से दलहनी फसलों में पत्तियों के मुख्य नसों के बीच जगहों का पीला पड़ना, हरिमा हीनता उत्पन्न हो जाती है। पत्तियां ब शिराएं लाल हो जाती हैं पत्तियां अंदर की ओर मुड़ जाते हैं
अंत में पत्तियां गिर जाती हैं। एवं पेड़ों से फल गिरने लगते हैं। घास चारागाहों पर चरने वाले पशुओं में संबंधित मैग्नीशियम की कमी से संबंधित पोषण विकार हो जाती हैं।
निवारण मैग्नीशियम सल्फेट, डोलोमाइट (अम्लीय मिट्टी में प्रयोग) का पर्याप्त मात्रा में फसलों में प्रयोग करना चाहिए।
सल्फर
सल्फर के कारण सल्फर सिस्टीन, सिस्टाइन, मिथियोनीन, एमिनो अम्ल का अवयव हैं। अतः यह प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक है। यह पौधों की जड़ों द्वारा सल्फेट आयन पत्तियों द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड गैस के रूप में अवशोषित होने के बाद डाईसल्फाइड व सल्फरड्राइल रूप में अपचय हो जाता है।
क्लोरोफिल के निर्माण में योगदान देता है। यह चना, मटर, मसूर फलीदार पौधों द्वारा प्रोटीन तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होता है। यह तेल वाली फसलों में वसा में वृद्धि करता है। तथा सरसों प्रजाति के पौधों में विशेष गंध का निर्माण तथा प्याज व लहसुन से आने वाली तीखी गंध के फल स्वरुप आते हैं।
सल्फर की कमी के लक्षण
सल्फर की कमी के लक्षण नाइट्रोजन के समान होते हैं। तथा पहले पौधे के ऊपरी भाग पर दिखाई देने लगते हैं क्योंकि यह गतिशील नहीं होता है। जौ, गेहूं, सरसों फसलों की पत्तियां व तने मोटे कड़े हो जाते हैं। पौधों में अप्रोटीन नाइट्रोजन की वृद्धि तथा बीजों में वसा घट जाती है। तथा सरसों जाति की फसल में सल्फर की कमी के लिए सबसे अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं लैमिला प्रतिबंधित होता है पत्तियां कप के रूप में दिखाई देते हैं। चाय में चाय पीला रोग हो जाता है। नाइट्रोजन तत्वों का उपयोग घट जाता है।
निवारण गंधक युक्त उर्वरक जैसे अमोनियम सल्फेट, सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम फास्फेट सल्फेट, जिप्सम, पायराइट्स आदि को पर्याप्त मात्रा फसलों में प्रयोग करनी चाहिए।
जस्ता
जस्ता पौधों द्वारा इंडोल एसिटिक अम्ल निर्माण में सहायक होता है। यह कार्बनिक इनहाइड्रेट, अल्कोहल डाइ हाइड्रोजन एंजाइमों का यह प्रोटीन व कैरोटीन के संश्लेषण में योगदान देता है। यह पौधों द्वारा जल अवशोषण में सहायक है।
जस्ता कमी के लक्षण
गेहूं ब अन्य फसलों में पत्तियों पर गहरे बादामी रंग के धब्बे पैदा हो जाते हैं। मक्का की पत्तियों के आधे भाग सफेद हो जाते हैं तथा तने की लंबाई घट जाती है वृद्धि रुक जाती है पत्तियां मुड़ जाते हैं तथा नींबू में पत्तियां छोटी हो जाती हैं। तथा जस्ते की कमी से फास्फोरस प्रयता में वृद्धि होती है अत्यधिक कमी में होने पर नीचे की पत्तियां पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। और जिंक की कमी से नींबू में फेंसिंग रोग हो जाता है तथा आलू की पत्तियां फ़र्न जैसी दिखाई देते हैं।
निवारण जिंक सल्फेट, कार्बनिक खादों एवं जिंक युक्त परंपरागत उर्वरक जिंक का पर्याप्त मात्रा में फसल पर प्रयोग करना चाहिए।
बोरान
बोरान पौधों में शर्करा के स्थानांतरण में बहुत महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करता है। यह प्रोटीन, जल, कैल्शियम के उपापचय, कोशिका विभाजन में योगदान देता है। यह फसलों के लिए सूखा विरुद्ध प्रतिरोधक प्रदान करता है। तथा नियमित बोरिक एसिड स्प्रे से सूखा के हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद करता है। यह पराग में अंकुरण और पराग नली के विकास में भूमिका निभाता है। बोरान कार्बोहाइड्रेट उपापचय को नियंत्रित करता है। यह गार्ड सेल में पोटेशियम के परिवहन के साथ.साथ स्टोमेटा खोलने की सुविधा प्रदान करता है।
बोरान की कमी के लक्षण
पौधों की शीर्ष कालिकाएं, विभज्योतिक ऊतकों को पैरेंकाइमा ब बासकुलर ऊतकों सहित अन्य ऊतकों का क्षय हो जाता है। तथा फ्लोएम ब जाएलम ठीक प्रकार से विकसित नहीं होते हैं। कोशिका विभाजन अवरुद्ध हो जाता है। तथा पौधों के सिरे रंगहीन ब मुड़ जाते हैं।
पत्तियों में मोटापन, कड़ापन, झुर्रियां पड़ना, सूखना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। रिजका में पीली पुंगी, चुकंदर में आंतरिक गलन, फूलगोभी में भूरा खोखला तना, सिट्रस में कड़े फल, आलू में लीफ रोल, तंबाकू में शिखर व्याधि बीमारियां बोरान की कमी के मुख्य लक्षण हैं।
निवारण बोरेक्स, सोलूबर एवं सुहागा का प्रयोग खड़ी फसल पर छिड़काव करें ।
मोलिब्डेनम
यह सहजीवी ब असहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए आवश्यक होता है। और नाइट्रोजन उपापचय के काम आता है। यह नाइट्रेट एंजाइम अपचयन के लिए आवश्यक होता है यह इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य करता है। तथा चना, मटर, मसूर, आदि दलहनी फसलों में मोलिब्डेनम के प्रयोग से पैदावार बढ़ जाती है।
यह शर्करा और विटामिन सी के निर्माण में सहायक है तथा फास्फेट उपापचय में सक्रिय रुप से भाग लेता है।
मोलिब्डेनम की कमी के लक्षण
फूलगोभी में हिप टेल ब नींबू पत्तियां की में पीले धब्बे का रोग, चना, मटर, मसूर दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथियां कमजोर रह जाते हैं। पौधे में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है तथा पत्तियां पीली धब्बेदार ब फूलगोभी की पत्तियां प्याले जैसी दिखाई देते हैं।
निवारण अमोनियम मोलिब्डेनम का फसलों पर उचित मात्रा में प्रयोग करें।
क्लोरीन
क्लोरीन पौधों में प्रकाश अपघटन की क्रिया में भाग लेता है। कोशिकाओं के रसाकर्षण के दाब में वृद्धि तथा प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन के निष्कासन में सहायक होता है। यह प्रोटीन उपापचय से संबंधित है तथा एंथोसाइनिन का संगठक है।
क्लोरीन की कमी के लक्षण
बरसीम की पत्तियां कटने लगती हैं तथा टमाटर में छोटी पत्तियां का सूखना, पात गोभी में पत्ते का मरना, फूलगोभी में गंध हीनता उत्पन्न हो जाना क्लोरीन की कमी के मुख्य लक्षण है। क्लोरीन की अत्यधिक कमी होने पर फल नहीं बनते तथा पौधों का हरिमाहीन होना क्लोरीन के कमी के विशेष लक्षण है ।
निवारण पोटेशियम क्लोराइड का फसलों पर उचित मात्रा में प्रयोग करें ।
Authors:
सुधीर पाल1, महेन्द्र कुमार यादव2, दुर्गा प्रसाद3, अनुज शाक्य4, अंशुल सिंह1
1 शोध छात्र, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग, 2शोध छात्र, सब्जी विज्ञान विभाग, 3शोध छात्र, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, 4शोध छात्र, कीट विज्ञान विभाग
चंद्रशेखर आजाद कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश 208002
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