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How to properly nurture newborn calf? पशुपालन व्यवसाय की सफलता के लिये उचित संख्या में उत्तम गुणों वाले बच्चों का विकास आवश्यक है। यही बछड़े बड़े होकर पुराने, बूढ़े तथा अनुत्पादक पशुओं का स्थान लेते है। इस तरह यह सतत प्रक्रिया चलती रहती है एवं उत्पादकता और लाभ दोनों ही बढ़ते हैं। यदि बछड़े पर्याप्त संख्या में ना हों तो अगली पीढ़ी के लिये उच्च उत्पादकता के पशु चयन करने में सफलता नहीं मिल पाएगी । यदि पालन पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाए तो बछड़ों की मृत्युदर अधिक हो जाती है साथ ही जो बच्चे बच जाते हैं उनकी वृधिदर कम हो जाती है तथा उत्पादकता घट जाती है। बछड़ों की मृत्युदर...

Scientific management of milch cattle and milk harness भारत में डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा हैl अब इसका विस्तार सीमान्त किसानों के जीविकोपार्जन से आगे निकलकर व्यावसायिक रूप में हो रहा है l वर्तमान समय में भारत को दुग्ध उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ देश होने का गौरव प्राप्त है l विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में १८% हिस्सा हमारा देश उत्पादित कर रहा हैl गाय एवं भैंस हमारे देश के मुख्य डेयरी पशुओं में आते हैंl दुग्ध उत्पादक किसानों द्वारा दोनों तरह के पशु पाले जाते हैं l किसानों के लिए अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल के चयन के साथ ही उनका उचित प्रबंधन भी अत्यंत आवश्यक होता है l...

Role of goat farming in doubling farmer’s income बकरी पालन ग्रामीण भारत में किसानों के लिए गरीबी कम करने की तकनीकों में से एक है। 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य के साथ, संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) की एक विशेष एजेंसी, इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) के सहयोग से भारत सरकार किसानों को गरीबी से बाहर निकालकर भारत में बकरी पालन का विकास कर रही है। बकरियां पालना एक आमदनी पैदा करने वाली गतिविधि है, जिसमें विशेषकर दूरदराज के, आदिवासी और पारिस्थितिक रूप से कमजोर क्षेत्रों के लिए आय बढ़ाने और पोषण में सुधार करने की काफी संभावना है। ऐसी खेती में न्यूनतम निवेश और इनपुट लागत की...

Management strategies during disaster in livestock perspective आपदा प्रबंधन प्रणालियों के महत्व संदर्भ मेंविकासशील देश जागरूक हो रहे हैं, और सभी स्तरों पर तैयारी, प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य लाभ तंत्र को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि भारत सहित कई विकासशील देश हमेशा आपदाओं से निपटने के लिए तैयार नहीं रहते हैं। विकसित तरह से आपदा प्रबंधन योजनाओं की कमी के परिणामस्वरूप मानव जीवन, पशु जीवन और संपत्ति का गंभीर नुकसान हुआ है, जो आवश्यक तंत्रों के स्थान पर बचाया जा सकता है। विशेष रूप से पशुऔं कि स्थिति में सुधार के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। भारत में पशुधन...

दुधारू पशुओं के लिए आहार प्रबंधन  डेयरी व्यवसाय के लिए उत्तम नस्ल के साथ-साथ आहार प्रबंध अति आवश्यक है। उचित आहार प्रबंध से न केवल पशु अधिक दूध देते हैं बल्कि उसकी शारीरिक बढ़वार, प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। लाभप्रद डेयरी व्यवसाय हेेतुु पशु को बचपन से लेकर वृद्धि की विभिन्न अवस्थओ, प्रजनन काल एवं उत्पादन काल के दौरान समुचित पोषण उपलब्ध होना चाहिए। बछड़े-बछड़ियों की उनकी आरंभिक अवस्था में वृद्धि एवं मृत्यूू, गर्भकाल में माँ केे आहार प्रबंधन से प्रभावित होता है । बछड़ियों को जन्म के 2 घंटे के अंदर माँ का खीस पिलाना आवश्यक है। खीस की मात्रा निर्धारण बछड़ियों के शारीरिक भार पर...

Nurturing and management of livestock पशुपालन ग्रामीण जीवन का महत्‍वपूर्ण अंग है। समृद्ध डेयरी व्‍यवसाय के कारण देश,  दुग्‍ध उत्‍पादन मे अग्रणी बना हुआ है। पशुओं के पालन पोषण एवं प्रबंधन  के लिए तीन बातों पर ध्यान देना अत्‍यंत आवश्‍यक है। सही जनन, सही खानपान और रोगों से बचाव 1. सही जनन: सही जनन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। अच्‍छी नस्ल का चुनाव : पशुपालन के लिए नस्लों का चुनाव करते समय वहाँ की जलवायु और सामाजिक एवं आर्थिक परिवेश पर ध्यान देना आवश्यक है। बिहार की जलवायु के अनुसार यहा जो पशुपालक संकर नस्ल की पशु पालना चाहते है वह जरसी क्रॉस पाल सकते है। वैसे इलाके जहां हरा चारा प्रचुर मात्रा मे...

Camel milk contribution to milk production and its beneficial properties ऊंट रेगिस्तान का एक महत्वपूर्ण पशुधन है और उसके दूध में मानव के लि‍ए लाभकारी पोषक तत्त्व पाए जाते है। साल 2012  के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में ऊंट की जनसँख्या 4 लाख पाई गई थी जो कि औसतन 22.63 प्रतिशत गिरावट दर्शाता है। अच्‍छी नस्‍ल के ऊंट की दुग्ध उत्पादन क्षमता 7  - 8 लीटर दूध प्रति दिन होती है। लेकिन जैसलमेरी या बिकानेरी नस्लों की औसतन उत्पादन  प्रति दिन केवल 5 - 6 लीटर है जो कि काफी कम है। ऊंट के पास किसी अन्य पशुधन की तुलना में रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों में लम्बे समय की अवधि तक अधिक से...

Goat rearing: a profitable business बकरी पालन प्राचीन समय से ही किसानों के लिए एक प्रचलित ब्यबसाय है। बकरी को मांस के साथ साथ दूध उत्पादन के लिए भी पाला जाता है। बकरियों के बहुआयामी उपयोग के कारण ही इसका महत्व गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन के लिए बढ़ जाता है। बकरी को गरीब आदमी की गाय की संज्ञा भी दी जाती है।  बकरीपालन के लाभकारी ब्यबसाय होने के निम्नलिखित कारण है बकरी को किसी भी जलवायु मे पाला जा सकता है। बकरी पालने मे कम खर्च की आवश्यकता होती है। बकरी पालने मे कम श्रम की आवश्यकता होती है। बूढ़े एवं बच्चे जो और कोई श्रम नहीं कर सकते उनका भी उपयोग बकरी पालन...

Care of newborn dairy calf  नवजात  बछड़ो  की देखभाल या नवजात  बछड़ो का वैज्ञानिक प्रबंधन करके डेरी यवसाय में  फायदा हो कमाया जा सकता हैं । गाय ब्याने के बाद उसके बच्चे को दो तरीके से पाला जा सकता है एक पशु के साथ रखकर और दुसरा बच्चे को दूसरे बच्‍चों के साथ रखकर (वीनिंग). वीनिंग ज्यादा फययेदेमन्द होता है उसको आवश्यकता अनुसार खानपान दिया सकता है और बच्चा मरने पर भी माँ दूध देती रहती है। बच्चा पैदा होने के बाद टाट भूसा रगड़कर अच्छे से साफ़ करना चाहिए। और उसके पिछले पैरो  को पकड़कर उल्टा लटका दे ताकि नाक से स्लेश्मा बाहर निकल जाए अौर वो ठीक से  सांस लेने...

दूधारू पशुओं में बाँझपन की समस्या के कारण एवं उनका निवारण  पिछले कई दशकों से यह पाया गया है कि जैसे-जैसे दूधारू पशुओं के दुग्ध उद्पादन में वृद्धि हुई है वैसे-वैसे प्रजनन क्षमता में गिरावट हुई है । दूधारू पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता प्रत्यक्ष रूप से उनकी प्रजनन क्षमता पर निर्भर करती है । दूधारू पशुओं में बाँझपन की स्थिति पशुपालकों के लिए बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का कारण  है । पशुओं में अस्थायी रूप से प्रजनन क्षमता के घटने की स्थिति को बाँझपन कहते है । बाँझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल  (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम...