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नीम: व्यापक लाभ वाला एक बहुउद्देशीय वृक्ष Neem (Azadirachta indica) is a versatile and fast-growing evergreen tree native to the Indian subcontinent. Known for its resilience and adaptability, Neem has been utilized for thousands of years in traditional medicine, agriculture, and daily life due to its remarkable properties. This tree is often referred to as the "Village Pharmacy" in India because of its myriad uses. In recent years, Neem has gained global attention for its environmental, agricultural, and medicinal benefits. This article explores the utility of Neem as fodder, its soil-improving capacity, and its role as an insecticide. Utility of Neem as Fodder 1. Nutritional Value of Neem Leaves Neem leaves are a valuable...

आधुनिक पशु आहार में अजोला का योगदान  राजस्थान की अर्थव्यस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा पशुपालन कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन किसानो को विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर प्रदान करता है  जिससे किसानो की आय में वर्द्धि होती है एवं उनकी अर्थवयवस्था में भी  सुधार होता है। अजोला पशुओ के लिये जैविक चारे का काम करता है जिससे उनके दूध में बढ़ोतरी होती है और दूध की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती है अजोला एक जलीय फर्न है, जो पानी में तेजी से  बढ़ती है एवं पानी की सतह पर तैरती रहती है धान की फसल में अजोला को भी नील हरित शैवाल की तरह हरी...

चारे की पौष्टिकता बढाने हेतु महत्वपूर्ण घरेलु चारा उपचार विधियां पशुओं से अधिकतम दुग्ध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। इन चारों को पशुपालक या तो स्वयं उगाता हैं या फिर कहीं और से खरीद कर लाता है। गायो को केवल सुखा चारा विशेषतौर से गेहू का सुखा चारा खिलाकर स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है। सूखे चारे में पोष्टिक तत्वों का अभाव रहता है । स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर से सम्बद्ध कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण के डॉ रामनिवास ढाका,विषय विशेषज्ञ (पशुपालन) ने बताया की ऐसा चारा खिलाने से पशुओ में उर्जा व अन्य पोषक तत्वों की कमी आने लगती है...

चारा फसल के रूप मे शहतूत की खेती पशु आहार के पूरक के रूप में हरी पत्तियों की भूमिका का महत्व निर्विवाद है। विकासशील देशों में, अनाज फसलों के भूसे और घास को पशुओं को खिलाया जाता है, लेकिन इनके कम पोषक मान के कारण पशुओं अपनी उत्पादक क्षमता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं। इस कारण अधिकांश स्थानों पर पशुओं को चारे के साथ रातिब (दाना)भी खिलाया जाता है, परन्तु पशु आहार, रातिब से भी संतुलित नहीं हों पाता है। अत:इन परिस्तिथियों में शहतूत की पत्तियों को पशु आहार में मिलकर आहार की दक्षता में सुधार किया जा सकता है। बढ़ती मानव आबादी की भोजन आपूर्ति को पूरा करने के लिए...

Seed production technology of  Anjangrass grass (Cenchrusciliaris L.) अंजन घास, से. सिलिएरिस पोयेसी परिवार कि अत्यधिक पौष्टिक घास है, जिसे गर्म, शुष्क क्षेत्रों में चारागाह के लिए उत्कृष्ट माना जाता है। सूखे की अवधि के दौरान, यह घास कटिबन्धीय क्षेत्रों में स्वादिष्ट चारेे के उत्पादन एवं अनियमित चराई के लिए मूल्यवान है। अंजन घास की कुछ प्रजातियों की ऊपज बारीश के समय में भी इसे एक अच्छे चारे के रूप में प्रस्तुत करती है । यह माना जा रहा है की अंजन की हरी घास या साइलेज  मवेशियों में दूध की मात्रा तो बढाती ही है साथ ही दूध की गुणवत्ता एवं चमक भी बढाती है । से. सिलिएरिस के लेक्टोगॉग होने के...

Major diseases of Sorghum and Millet and their management ज्वार भारत की एक महत्वपूर्ण खाद्य और चारा फसल है। जवार में अन्न-कंड, अरगट (गदाकरस), एन्थे्रकनोज (काला धब्बा रोग) इत्यादी अधिक हानिकारक है। इसलिए इन रोगों का नियंत्रण आवष्यक है। (1) अन्न कंड (ग्रेइन स्मट) रोगजनक: स्फासेलोथेका सोर्गी (लिंक) यह रोग सभी कंड रोगों में सबसे अधिक हानिकारक है, जिससे पूरे भारत में अनाज की उपज को अत्याधिक नुकसान होता है। यह रोग ज्यादातर बरसाती और सिंचित ज्वार मे पाया जाता है। रोग के लक्षण: यह रोग केवल दाने बनने के समय में आता है। रोग ग्रस्त बालियों में कुछ दाने सामान्य दाने से बडे होते है। जब रोग की तीव्रता बढ जाती है उस वक्त...

साइलेज: वर्ष भर हरे चारे का विकल्प  हरे चारे की कुट्टी करके वायु रहित (एनारोबिक) परिस्थितियों में 45 से 50 दिन तक रखने पर किण्वन प्रक्रिया द्वारा हरे चारे को संरक्षित करना ही “साइलेज” बनाना कहलाता है । आम भाषा में इसे “चारे का अचार” भी कहा जाता है क्योंकि इससे हरे चारे को साल भर संरक्षित करके रखा जा सकता है । साइलेज की पौष्टिकता भी चारे की तरह बरकरार रहती हैं क्योंकि किण्वन प्रक्रिया से चारे में उपस्थित चीनी या स्टार्च लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है, जो चारे को कई वर्षो तक ख़राब होने से बचाए रखता है। दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरे चारे की आवश्यकता होती है परन्तु...

Saline soil: Alternative natural resources for fodder production लवणीय मृदा समस्‍याग्रस्‍त मृदाएं में से एक है जिसको उचित प्रयास एवं प्रबंधन के साथ वनस्‍पति आवरण के तहत लाया जा सकता है । प्राकृतिक कारणों की वजह एवं उचित प्रबंधन न मिलने से विकृत हो जाती है । इन मृदाओं में कुछ गुणों के अधिकता एवं कमी के होने के कारण इसे खेती के लिए उपयुक्‍त नहीं माना जाता है । हमारे देश का भौगोलिक क्षेत्रफल 329 मिलियन हेक्‍टेयर है जिसमें 173.65 मिलियन हेक्‍टेयर मृदा समस्‍याग्रस्‍त है । इसमें से 25 मिलियन हेक्‍टेयर खाद्य फसल की खेती के लिए उपयुक्‍त नहीं है जिसमें 5;5 मिलियन हेक्‍टेयर लवणीय मृदा भी शामिल है । अतिरिक्‍त...