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Guava: Enriched Source of Antioxidants अमरुद सबसे लोकप्रिय उष्णकटिबंधीय फल हैं, जिन्हें दुनिया भर में उगाया जाता है। अमरुद को ‘’उष्णकटिबंधीय का सेब’’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका उत्कृष्ट पाचन और पोषक तत्व, उच्च स्वाद और मध्यम मूल्य पर प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है, अधिक सहिष्णु होने के कारण इसकी सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु में की जा सकती है। जाड़े की ऋतु मे यह इतना अधिक तथा सस्ता प्राप्त होता है कि लोग इसे निर्धन जनता का एक प्रमुख फल कहते हैं। अमरूद मीठा और स्वादिष्ट फल होने के साथ-साथ कई औषधीय गुणों से भरा हुआ है। फल विटामिन-सी, पेक्टिन और कैल्शियम, फास्फोरस और लोहे जैसे खनिजों...

अमरूद की लोकप्रिय किस्में 1. इलाहाबाद सफेदा - फल का आकार मध्यम, गोलाकार एंव औसत वजन लगभग 180 ग्राम होता है। फल की सतह चिकनी, छिल्का पीला, गूदा मुलायम, रंग सफेद, सुविकसित और स्वाद मीठा होता है। इस किस्म की भंडारण क्षमता अच्छी होती है। 2. लखनऊ-49 (सरदार अमरूद) - फल मध्यम से बडे, गोल, अंडाकार, खुरदुरी सतह वाले एवं पीले रंग के होते हैं। गूदा मूलायम, सफेद तथा स्वाद खटास लिये हुये मीठा होता है। इसकी भंडारण क्षमता अन्य प्रजातियों की तुलना में अच्छी होती है तथा इसमें उकठा रोग का प्रकोप अपेक्षाकृत कम होता है। 3. चित्तीदार - फलों की सतह पर लाल रंग के धब्बे पाये जाते हैं। फल मध्यम, अंडाकार, चिकने एवं...

अमरूद की अति सघन बागवानी अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल है। इसका उत्पत्ति स्थान पेरू (दक्षिण अमेरिका) है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से देश में उगाये जाने वाले फलों में अमरूद का चौथा स्थान है। यह “विटामिन सी” का मुख्य स्त्रोत है। अमरूद पोषक तत्वों का एक बहुत अच्छा और सस्ता स्रोत है। इसका उपयोग ताजा खाने के अतिरिक्त इससे जैम, जेली, नेक्टर, चीज और टॉफी इत्यादि बनाया जाता है। अपनी बहुउपयोगिता एवं अपने उत्तम पौष्टिक गुणों के कारण अमरूद आज सेब से भी अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है।  अमरूद में पाये जाने वाले मुख्य पोषक तत्व - मुख्य तत्व मात्रा प्रति 100 ग्राम फल पानी प्रोटीन वसा खनिज पदार्थ विटामिन-सी कार्बोहाइडे्टस कैल्सियम फास्फोरस रेशा 76.1 प्रतिशत   1.5  प्रतिशत   0.2  प्रतिशत   7.8 ...

Cultivation of guava    अमरूद भारत का एक लोकप्रिय फल है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से देश में उगाये जाने वाले फलों में अमरूद का चैथा स्थान है। इसकी बहुउपयोगिता एवं पौष्टिकता को ध्यान मे रखते हुये लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है। इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए तथा बी भी पाये जाते हैं। इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद की जेली तथा बर्फी (चीज) बनायी जाती है। इसे डिब्बों में बंद करके सुरक्षित भी रखा जा सकता है। अमरूद के लिए जलवायु अमरूद के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त...

Diseases, pests and their control during springtime of Guava crop. अमरूद अपनी व्यापक उपलब्धता, भीनी सुगन्ध एवं उच्च पोषक गुणों के कारण यह ‘‘गरीबों का सेब’’ कहलाया जाता है। नियमित रूप से इसका सेवन करने से सामान्य मौसमी बीमारियों से बचा जा सकता है अमरूद के फलों में विटामिन ‘सी’ (200-300 मिली. ग्राम प्रति 100 ग्राम फल) की प्रचुर मात्रा होती है। जो की सफ़ेद रक्त कणों को तेजी से संक्रमण से लड़ने में मदद करता है| इस तरह हमारी प्रतिरोधक  क्षमता में कई गुना  वृद्धि हो जाती है| इसमें फाइबर का भी प्रचुर भंडार है| यह कोलेस्ट्रोल से मदद करता है साथ ही दिल  के रोगों से बचाव करता है| विटामिन ए कीटाणु...

Controlling blossom (Bahar) for high quality fruiting in guava अमरूद का फल वृक्षो की बागवानी मे एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी बहुउपयोगिता एवं पौष्टिकता को ध्यान मे रखते हुये लोेग इसे गरीबो का सेब कहते है। इसमे विटामिन सी प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। इससे जैम, जैली, नेक्टर आदि परिरक्षित पदार्थ तैयार किये जाते है। उत्तरी व पूर्वी भारत मे वर्ष मे दो बार फलन एवं पश्चिमी व दक्षिणी भारत मे वर्ष मे तीन बार फलन आता है, जिसमे मृग बहार, अम्बे बहार एवं हस्त बहार आते है। भारत मे मृग बहार जो है वह अम्बे बहार एवं हस्त बहार से ज्यादा पसंद किये जाते है क्योंकि अन्य दोनो बहार की...

Flowering and blooming time of guava in India अमरूद के पेड़ प्राकृतिक परिस्थितियों के अंतर्गत उत्तरी भारत में साल में दो बार लेकिन पश्चिमी और दक्षिणी भारत में साल भर में तीन बार अर्थात साल भर फूलों और फलों का उत्पादन करते हैं परिणामस्वरूप यह विराम अवधि (rest period) में चला जाता है और अंततः साल के अलग-अलग समय पर छोटे फसल देने लगते हैं, फूल और फल देने की यह पद्धति व्यावसायिक खेती के लिए वांछनीय नहीं है । अच्छी तरह से परिभाषित अवधि हैं: फूलों के प्रकार फूल देने का समय कटाई का समय फलों की गुणवत्ता अम्बे बहार फरवरी-मार्च (वसंत ऋतु) जुलाई-सितम्बर  (वर्षा ऋतु) फीका, पानी जैसा, स्वाद और रखने की गुणवत्ता खराब मृग बहार जून-जुलाई (मानसून ऋतु) नवम्बर-जनवरी (शरद ऋतु) उत्कृष्ट* हस्त बहार** अक्टूबर फरवरी-अप्रैल बढ़िया,...

अमरूद में फसल नि‍यमि‍ति‍करण के लिए एक सरल तकनीक: ब्रांच बैंडि‍ग या शाखा मोडना Guava (Psidium guajava L.) is a commercially important fruit crop belonging to the family Myrtaceae. It is widely grown all over the tropical and subtropical parts of India viz., Maharashtra, Bihar, Uttar Pradesh, Odisha, West Bengal, Chhattisgarh, Gujarat, Madhya Pradesh, Andhra Pradesh, Punjab, Tamil Nadu, and Karnataka. Over the past decade (2001 -2010) there has been a 1.3 fold increase in area (0.16 to 0.21 million hectares) and 1.4 fold increase in production (1.72 to 2.46 million tonnes) of guava. However, its productivity has not yet increased significantly. Among several reasons for low productivity, non-adoption of crop regulation...

Integrated Disease and Pest Management for  Prevention of Wilt in Guava अमरुद उष्ण- उपोष्णकटिबंधीय देशो की एक महत्वपूर्ण फल फसल है| अमरूद अक्सर कटिबंधों के सेब के रूप में जाना जाता है| यह उष्णकटिबंधीय अमेरिका का मूल निवासी है और भारत में देशीयकृत हुआ है| यह व्यावसायिक रूप से भारत , चीन , इंडोनेशिया , दक्षिण अफ्रीका , फ्लोरिडा , हवाई,  मिस्र , यमन , ब्राजील , मेक्सिको , कोलंबिया , वेस्टइंडीज , क्यूबा , वेनेजुएला , न्यूजीलैंड , फिलीपींस , वियतनाम और थाईलैंड में मुख्य फसल है और इसकी वजह साल भर  उपलब्धता, उच्च  पोषण सतर, औषधीय मूल्य , और वहन करने योग्य कीमत , परिवहन , हैंडलिंग  आदि है| यह भारत...

अमरूद की वाणिज्यिक खेती के लिए वंशवृद्धी के तरीके। Guava (Psidium guajava L.), an important fruit crop is grown throughout the tropical and sub-tropical parts of India due to its a hardy nature and wider adaptability. There has been a paradigm shift in its production system from subsistence to commercial cultivation.  Over the last decade (2001 -2010), the area and production have increased 1.3 times (1.55 to 2.05 lakh hectares) and 1.4 times (17.16 to 24.62 lakh tonnes), respectively. In spite of substantial increase in area and production, there is an ample scope for area expansion; due to its precocious and prolific bearing habit, which in turn ensures high returns to the...