लवणग्रस्त जलक्रांत काली मृदाओं के सुधार हेतु उपसतहीय जलनिकास टेक्नोलॉजी

लवणग्रस्त जलक्रांत काली मृदाओं के सुधार हेतु उपसतहीय जलनिकास टेक्नोलॉजी

Subsurface Drainage Technology for Reclamation of Waterlogged Saline Vertisols

पहले देश मे सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध न होने के कारण देश में फसल की उत्पादकता उसकी संभावित उपज से बहुत कम थी । उत्‍पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से देश के अलग अलग हिस्सों में नहरों का विस्तृत जाल बिछाकर सिंचाई का प्रबंध किया गया।

हालाँकि यह पानी क्षेत्र मे प्रचलित फसल की जरूरत पूरी करने के लिए दिया गया था लेकिन ज्यादा पैमाने पे पानी की उपलब्धता को देखकर किसानों ने ज्यादा पानी लगने वाली फसलें जैसे गन्ना, केला इत्यादि को लगाना चालू किया। शुरू के कुछ वर्षों में किसानो को इससे बहुत लाभ  हुआ।

सिंचाई की इस व्‍यवस्‍था के साथ जरूरी जलनिकास की सुविधा न होने के कारण जलभराव एवं लवणीयकरण की समस्या भी उत्पन्न होने लगी जिससे फसल उत्पादकता मे फि‍र से प्रतिदिन कम हो रही है। इस फसल उत्पादकता को बढाकर पूर्वतः करने के लिए और भविष्य में इसे बरकरार रखने के लिए सिंचाई के साथ जलनिकास करना बहुत ही जरूरी है।

काली मृदा में पानी के प्रवेश का दर बहोत कम होने से और मृतिका का प्रमाण अधिक होने से जलभराव एवं मृदा लवणीयकरण की समस्या बहोत तेजीसे उत्पन्न होती है इसीलिए इसमें जलनिकास और भी ज्यादा जरूरी है। इन् सभी समस्यांओ से निपटने के लिए उपसतहिय  जलनिकास एक कारगर टेक्नोलॉजी है जो की जलभराव और लवणीयता से ग्रसित मृदाओ में सुधार करता है।  

उपसतहीय  जलनिकास  टेक्नोलॉजी

उपसतहीय जलनिकास  टेक्नोलॉजी में छिद्रयुक्त लहरदार पाइप को जमीन के अंदर विशिष्ठ गहराई एवं अंतराल पर बिछाकर उपसतही जल एवं लवण को जमीन से निकला जाता है। पाइप को बिछाते वक्त उसके  व्यास, गहराई  और  दूरी  को  मृदा  के  विभिन्न  पैरामीटर की जांच कर रखा जाता है। इन सभी समानांतर नालियों को एक संग्रहक नाली द्वारा जोड़ कर कूप (सम्प) में पंहुचा दिया जाता है। इस कूप से पानी को गुरुत्वाकर्षण से अथवा पंप द्वारा निकाल कर सतही नाली में डाल दिया जाता है। इस प्रकार जलस्तर को इच्छित स्तर पर स्थिर रखने के साथ-साथ घुलनशील लवण खेत से बाहर निकाले जा सकते है।

उपसतहीय जलनिकास प्रणाली लगाने के मापदंड

निचे दिए स्थितीयों में उपसतहीय जलनिकास टेक्नोलॉजी को लगाया जा सकता है

  • जहां मृदा की विद्युत् चालकता 4 डेसीसिमंस प्रति मीटर से अधिक है।
  • भूगर्भ जल जमीनकी सतह से 10 फीट की गहराई के भीतर है।
  • प्रणाली से निकला हुआ पानी बहार निकलने के लिए क्षेत्र के बगल में गहरी (5 फीट से ज्यादा) सतह नाली होनी चाहिए।

उपसतहीय जलनिकास प्रणाली की स्थापना

उपसतहीय जलनिकास प्रणाली को काली मृदा मुख्य तौर पर पूरी तरह यांत्रिक पद्धति से या यांत्रिक और मानवशक्ति के संयुक्त उपयोग से स्थापित किया जा सकता है। इन पद्धतियों को नीचे विस्तारित रूप से दिया गया है

1. यांत्रिक और मानवशक्ति के संयुक्त उपयोग से स्थापना

इसमें जेसीबी की मदत से अपेक्षित गहराई की ट्रेंच खोदी जाती है और इसको उचित ढलान भी दि जाती हैं। बाद में इस ट्रेंच में हाथों से पाइप बिछाया जाता है।

जेसीबी से ट्रेंच की खुदाईट्रेंच में हाथों से पाइप बिछाते हुए

चित्र 1: जेसीबी से ट्रेंच की खुदाई  चित्र 2 ट्रेंच में हाथों से पाइप बिछाते हुए 

प्रणाली की स्थापना के फायदे

  1. जेसीबी मशीनअच्छी तरह से ज्ञात हैं और सामान्य रूप से आसानी से उपलब्ध हैं
  2. जेसीबी मशीन का उपयोग ट्रेंचिंग के बाद अन्य काम के लिए किया जा सकता है

प्रणाली की स्थापना में आने वाली अड़चनें

  1. उचित स्थापना केवल स्थिर मिट्टी में और खाई में पानी न होने के अवधि केदौरान हीसंभव है
  2. कोई स्वचालित गहराई / ग्रेड नियंत्रण संभव नहीं है और ऑपरेटरों का कौशल आवश्यक है
  3. कार्य करने की गति धीमी होती है
  4. खाई गिराने से मजदूरों को खतरा होने के कारण गहराई सीमित रहती है

2. उपसतहीय जलनिकास प्रणाली की यांत्रिकस्थापना

यांत्रिक स्थापना के अलग अलग मशीन का उपयोग किया जाता है। इसके लिए आवश्यक मशीनरीइस प्रकार है

  • ट्रेंचर मशीनें – ट्रेंच खुदाई और पाइप बिछाने के लिए
  • हाइड्रोलिक एक्सकैवेटर – कनेक्शन बनाने के लिए गड्ढाखोदना
  • जेसीबी – कंक्रीट के सम्प ले जाने के लिए
  • ट्रैक्टर – पीवीसी पाइप की गठरी ले जाने के लिए
  • बुलडोजर – ट्रेंच में वापस मिट्टी भरने के लिए

जब बड़े क्षेत्र में उपसतहीय जलनिकास प्रणाली को बिछाना हो तो यांत्रिक स्थापनासे जल्द और अच्छे तरीके से स्थापना कीजा सकतीहै।महारष्ट्र राज्य  की काली मृदाओं में इस्तेमाल किये जाने वाले ट्रेंचेर को चित्र 3में दिखाया गया है।

ट्रेन्चर मशीन

चित्र 3 महाराष्ट्र राज्य की काली मृदाओं में इस्तमाल किया जाने वाला ट्रेन्चर मशीन

स्थापना के फायदे

  • उच्च गति से स्थापना
  • पूरी तरह से गहराई और ग्रेड नियंत्रण संभव है
  • वर्तमान में उपलब्ध सभी फ़िल्टर सामग्री को लगाया जा सकते हैं
  • विभिन्न तरीके की मिट्टी के लिए और अलग-अलग ट्रेंच की गहराई और चौड़ाई के लिए सभी तरह के ट्रेंचेर मशीन उपलब्ध है
  • ट्रेंचर्स को आसानी से लेजर तकनीक के आधार पर गहराई / ग्रेड नियंत्रण उपकरणों के साथ युग्मित किया जा सकता है
  • पुनर्भरित ट्रेंच में आम तौर पर प्रवाह को कम प्रतिरोध होता है और इससे मिट्टी की जल निकासी में सुधार हो सकता है

स्थापना में आने वाली अड़चनें

  • व्यावहारिक रूप सेदेखे तो ट्रेन्चर मशीन का उपयोग केवलड्रेनेज पाइप की स्थापना तक ही सीमित है
  • ट्रेन्चर मशीन पर खुदाई करने के लिए लगाई हुई चेन की लगातारछीजहोती हैं और उसके मरम्मत के लिए विशेष रूप से कठोर स्टील से बने भागों का ही इस्तमाल करना होता है
  • मशीन को चलाने वाले चालक को एवं मशीन के रखरखाव के हेतु विशिष्ट प्रशिक्षण की जरूरत है

काली मृदाओं के लिएउपसतहीय जलनिकास प्रणाली का डिजाइन

  1. पाइप की गहराई – 9 से 1.2 मीटर
  2. पाइप की दूरी – 20 से 50 मीटर
  3. पार्श्वपाइप का व्यास – 65 से 80 मिमी
  4. काली मृदाओ में पाइप की ऊपर लगाए जाने वाले छन्निका आवरण को लगाने की जरुरत तभी होती है जब मृदा का सोडियम अधिशोषण अनुपात मान 8 से उपर होता है।

उपसतहीय जलनिकासी प्रणाली के लिए आवश्यक सामग्री

पार्श्व और कलेक्टर पाइप

काली मिट्ठी में आम तौर पर 80 मिलीमीटर के छिद्रित लहरदार नली का पार्श्वपाइप के लिए इस्तमाल किया जाता है। वही संग्राहक नली के लिए डबल वाल लहरदार पीवीसी पाइप का इस्तमाल किया जाता है और इसका आकार जरूरत के अनुसार 90 मिलीमीटर से लेकर 315 मिलीमीटर तक रखा जाता है।

फिल्टर सामग्री

जिस जगह पर नली के ऊपर छान्निका लगाने की जरूरत है वहा पर पार्श्व पाइप पर एक विशिष्ट प्रकार का कृत्रिम कपडा जो की पॉलिएस्टर या पोलीप्रोपलीन से बना होता है उसे लपेटा जाता है। हालांकि यह छान्निका खेत में पाइप बिछाते समय उसके ऊपर लपेटी जा सकती है लेकिन पाइप के साथ फैक्ट्री में ही लगने वाले छान्निका इस्तमाल करना अच्छा रहता है।

सम्प,निकास संरचना एवं पंप सेट

बड़े उपसतहिय जलनिकास परियोजनाओं में नियमित अंतराल पर प्रणाली की जाँच के लिए एवं ऐसी जगह जहा पर पार्श्व पाइप का आकार बढ़ाना पड़ता है वहा पर आरसीसी पाइप का सम्प (मॅनहोल) लगाया जाता है। इस पाइप का व्यास 900 मिलीमीटर रहता है तथा गहराई जरूरत अनुसार रखी जाती है।

 इसके आलावा जिस जगह पर गुरुत्वाआकर्षण बल के द्वारा प्रणाली से पानी बहार निकला जाता है वहा निकास के जगह पर पाइप एवं जमीन का हिस्सा ढहने से बचने के लिए सीमेंट की संरचना बनाई  जाती है।  जहा पर पानी निकलने के खुली नाली की व्यवस्था न हो वहा पर पंप के सहारे पानी को उठाया जाता है।

प्रणाली की लागत

पार्श्व पाइप के अंतराल तथा निकास की पद्धति के अनुसार काली मृदाओं में उपसतहीय जलनिकास प्रणाली की लागत रु 80,000 से 1,70,000 प्रति हेक्टेयर तक आ सकती है। जब इस प्रणाली की बहोत बड़े क्षेत्र में लगाया जाता है तो उसमे प्रणाली के लेआउट का लागत पर बहोत असर होता हैं। ऐसे समय पर अलग अलग तरीके से लेआउट बनाकर सबसे कम लागत आने वाला लेआउट चुनना चाहिए। 


लेखक

सागर दत्तात्रय विभुते

केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान,

क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, भरुच, गुजरात – 392012

ईमेल -vibhutesagar5@gmail.com

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