मूंगफली का चारा: सतत पशु पोषण के लिए एक आशाजनक संसाधन

मूंगफली का चारा: सतत पशु पोषण के लिए एक आशाजनक संसाधन

Peanut Fodder: A Promising Resource for Sustainable Animal Nutrition

मूंगफली (Arachis hypogaea) प्रोटीन से भरपूर सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है और विश्व स्तर पर सोयाबीन, कपास बीज, रेपसीड और सूरजमुखी के बाद पांचवें स्थान पर आती है।

यह अपने उच्च तेल और प्रोटीन सामग्री के कारण एक उच्च-ऊर्जा फसल है, जो कच्चे रूप में प्रति दाना 5.6 कैलोरी और भुने हुए रूप में प्रति दाना 5.8 कैलोरी प्रदान करती है।

मूंगफली आवश्यक अमीनो एसिड, खनिज और विटामिन का भी एक अच्छा स्रोत है। यह लगभग 32.7 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में वार्षिक फसल के रूप में उगाई जाती है, जिससे 31.43 मिलियन टन का उत्पादन होता है, और इसकी औसत उत्पादकता 1,648 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

इसकी गुणवत्ता और उपयोग विकसित और विकासशील देशों में भिन्न-भिन्न होते हैं। मूंगफली को इसके पोषण लाभों, खाद्य एवं चारे के उपयोग, आय सृजन और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए महत्व दिया जाता है।

मूंगफली का चारा (हॉल्म्स)

मूंगफली का चारा, जिसे मूंगफली हॉल्म्स भी कहा जाता है एक सूखा पदार्थ है जिसे मूंंगफली भूसा कहते है । भारत के कृषि परिदृश्य में और विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मूंगफली मे,  फल पौधे के निचले हिस्से में आता है और पौधे का शेष भाग से मूंंगफली भूसा तैयार किया जाता है। और इसके पौधे को उखाड़कर उसमें से मजबूत मूंगफली निकाल ली जाती है और उसके बचे हुए भाग से भूसा तैयार कर लिया जाता है। इसमें मूंगफली भी बची रहती है और पौघे का पूरा हिस्सा जैसे पत्ती, तना और छोटी जड़ें भी इसमें होती हैं ।

भारत विश्व के प्रमुख मूंगफली उत्पादक देशों में से एक है। गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

ये राज्य अनुकूल जलवायु परिस्थितियों, उन्नत सिंचाई तकनीकों और नवीन कृषि पद्धतियों का लाभ उठाते हैं। मूंगफली की खेती न केवल तेल उत्पादन में सहायक है, बल्कि पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में चारा भी प्रदान करती है, जिससे कृषि अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा में योगदान मिलता है।

राजस्थान भारत में दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक राज्य है, भले ही यह एक सूखा-प्रवण क्षेत्र हो। राज्य की रेतीली मिट्टी मूंगफली की खेती के लिए अनुकूल है। वर्षों से, राजस्थान सरकार ने पानी की कमी की समस्या से निपटने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी उन्नत विधियाँ लागू की हैं।

इन प्रयासों के कारण, राज्य में मूंगफली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, और 2020 में लगभग 1.62 मिलियन टन मूंगफली का उत्पादन हुआ। राजस्थान में मूंगफली के चारे का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से राज्य के विशाल पशुधन को देखते हुए।

यह चारा मवेशियों, भेड़ों और बकरियों के लिए पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। इसके उपयोग से सूखे के दौरान चारे की कमी का प्रभाव कम किया जा सकता है, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार होता है।

राजस्थान में पशुधन और चारे की स्थिति

2024 तक, राजस्थान का पशुधन क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में। राज्य भारत के प्रमुख पशुधन-धारक राज्यों में से एक है, जो बकरी और ऊँट आबादी में पहले स्थान पर और भैंसों की संख्या में दूसरे स्थान पर है। 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, राजस्थान में कुल पशुधन की संख्या लगभग 56.8 मिलियन है।

राजस्थान का पशुधन राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। पशुपालन राज्य की जीडीपी का लगभग 8-10% प्रदान करता है और 80% से अधिक ग्रामीण परिवार इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। राजस्थान दूध, ऊन और मांस के उत्पादन में अग्रणी है, दूध उत्पादन में दूसरा और ऊन उत्पादन में पहला स्थान रखता है।

हालांकि, राजस्थान की शुष्क जलवायु के कारण चारे की उपलब्धता एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। राज्य में चारे की कमी पशुधन की उत्पादकता को प्रभावित करती है। इस समस्या के समाधान के लिए, सरकार द्वारा चारागाह भूमि के विकास और चारे की गुणवत्ता एवं उपलब्धता में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।

इसके अलावा, राजस्थान में पशुधन अवसंरचना जैसे कि पशु चिकित्सा सेवाओं और बाजार सुविधाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

मूंगफली के चारे का पोषण मूल्य

मूंगफली का चारा अपने समृद्ध पोषण प्रोफ़ाइल के कारण पशुओं के लिए एक महत्वपूर्ण आहार है। इसका विस्तृत पोषण मूल्य नीचे दिया गया है:

पोषक तत्व प्रतिशत (%)
क्रूड प्रोटीन 12.5
क्रूड फाइबर 25.6
ईथर एक्सट्रेक्ट (वसा) 2.0
नाइट्रोजन-रहित अर्क 45.8
राख (एश) 8.2
कैल्शियम 1.5
फास्फोरस 0.4

मूंगफली का चारा प्रोटीन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है, जो इसे जुगाली करने वाले पशुओं के लिए आदर्श आहार बनाता है। इसका उच्च नाइट्रोजन-रहित अर्क स्तर इसे ऊर्जा का एक अच्छा स्रोत बनाता है।

इसकी राख सामग्री, जिसमें कैल्शियम और फास्फोरस जैसे खनिज शामिल होते हैं, पशुओं के अस्थि विकास और चयापचय क्रियाओं के लिए आवश्यक है।

मूंगफली के चारे के लाभ

  1. स्वादिष्टता (Palatability): पशु इसे आसानी से पसंद करते हैं और खुशी से खाते हैं।
  2. पाचन क्षमता (Digestibility): उच्च फाइबर सामग्री बेहतर पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ावा देती है।
  3. ऊर्जा स्रोत (Energy Source): उच्च नाइट्रोजन-रहित अर्क सामग्री पशुओं को ऊर्जा प्रदान करती है।
  4. लागत प्रभावी (Cost-Effective): मूंगफली उत्पादक क्षेत्रों में यह एक किफायती चारा विकल्प है।

पशुधन पर मूंगफली के चारे के प्रभाव

मूंगफली के चारे का उपयोग करना विशेष रूप से मूंगफली उत्पादक क्षेत्रों के किसानों के लिए लाभदायक है। अनुसंधानों में यह पाया गया है कि इसका उपयोग करने से चारा लागत कम होती है और पशुधन की उत्पादकता बनी रहती है। दूध उत्पादन में सुधार देखा गया है, और यह चारा उच्च पोषण सामग्री के कारण पारंपरिक गेहूं के भूसे का 40% तक प्रतिस्थापन कर सकता है, जिससे गायों के उत्पादन प्रदर्शन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

विकासशील पशुओं के आहार में इसे 50% तक शामिल किया जा सकता है, जिससे उनकी वृद्धि दर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। संकर बैलों के संकेंद्रित आहार में इसे 75% तक सम्मिलित करने से पोषक तत्वों की पाचन क्षमता और नाइट्रोजन संतुलन में सुधार होता है। शोध से पता चला है कि सूखे मौसम में बकरियों को 300 ग्राम/दिन/प्रति पशु मूंगफली चारा खिलाने से उनका पोषण स्तर सुधरता है।

निष्कर्ष

मूंगफली के चारे को पशुओं के आहार में शामिल करना एक प्रभावी और सतत उपाय है, जो पोषण मूल्य, पाचन क्षमता और आर्थिक लाभ प्रदान करता है। हालांकि, इसके उचित भंडारण और सुखाने की आवश्यकता होती है ताकि इसकी पोषण गुणवत्ता बनी रहे।


लेखक:
सरोबना सरकार  1, ओ.एच. चतुर्वेदी  1, आर.एल. मीणा  1, बी. लाल  2
(केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर 1)
(भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, बीकानेर 2)
संपर्क: sarkarsrobana@gmail.com

Dr. Srobana Sarkar