प्लास्टिक मल्च (पलवार) का कृषि में उपयोग

प्लास्टिक मल्च (पलवार) का कृषि में उपयोग

Use of plastic mulch in agriculture

कई वर्षो से विभिन्न नई विकसित तकनीको, कृषि क्रियाओं, एवं संसाधनों का उपयोग कर रहा है। देश के कई क्षेत्रों में विषम जलवायु, जल स्त्रोतो की कमी तथा विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे- पाला, ओला आदि के बावजूद खेती का महत्व बढ़ रहा है। किसान पिछले कई सालो से मृदा में नमी संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय जैसे- सुखी पत्ती, फसलों के अवशेष, सुखी राख आदि को प्रयोग में ला रहा है।

खरपतवार की वृध्दि को रोकने एवं मृदा तापमान को संयम बनाये रखने में यह विभिन्न तरह के पलवार (मल्च) मृदा में सूक्ष्म जलवायु का निर्माण करते हैं। इस प्रकार पलवार (मल्चींग) संयुक्त रूप से पौधों के आस-पास के सतह को ढकने की प्रक्रिया है जो पौधे व उसके जड़ को तापमान के उतार चढाव व खरपतवार से बचाने में प्रभावकारी होता है।

वर्तमान समय में कार्बनिक पलवार की बड़ी मात्रा में आसानी से उपलब्धता नहीं होने तथा ज्यादा लागत की वजह से, प्लास्टिक पलवार, का उपयोग एक अच्छा वि‍कल्प है। यह आसानी से उपलब्ध है एवं एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में आसान व बिछाने में भी आसान होती है। इन्ही सभी गुणों के कारण आज प्लास्टिक फिल्म पलवार का अधिकतर उपयोग हो रहा है।

प्लास्टिक पलवार के लाभ:

  • मृदा में नमी संरक्षण एवं तापमान नियंत्रण में सहायक
  • खरपतवार की वृध्दि के अवरोधक में सहायक
  • हवा व पानी से मिट्टी के कटाव कम करना
  • पौधों की वृध्दि के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है।
  • उत्पादकता में सुधार

प्लास्टिक पलवार:

प्लास्टिक फिल्म जब पलवार के रूप में काम में ली जाती है तो उसे प्लास्टिक पलवार कहते है। ये सस्ती, आसानी से उपलब्ध एवं सभी  मोटाई व रंगों में उपलब्ध होती है।

प्लास्टिक पलवार के प्रकार:

प्लास्टिक विभिन्न रंगो जैसे- काले, पारदर्शी, पीला/ काला, सफेद/काला, काला/लाल पलवार के रूप में उपलब्ध होती है। सामान्यत: काली या सफेद काले रंग की प्लास्टिक पलवार मुख्यत: उपयोग में ली जाती है।

Different type of plastic mulch

प्लास्टिक पलवार फिल्म का चयन:

इसका चयन खेती के जरूरत के अनुसार ही किया जाता है। जैसे खरपतवार नियन्त्रण, मृदा तापमान को कम व ज्यादा करना एवं रोग नियन्त्रण इत्यादि। सामान्यत: 90 से 120 सेमी चौड़ी प्लास्टिक पलवार फिल्म का चयन करना चाहिए ताकि कृषि कार्य आसानी से सम्पन्न हो सके।

पलवार की मोटाई:

यह सामान्यत: फसल के प्रकार एवं उसकी अवधि के अनुसार होता है। विभिन्न फसलों के लिए पलवार की मोटाई निम्न प्रकार है।

मोटाई (माइक्रोन)

फसल 

7 मुंगफली 
20-25 वार्षिक लघु अवधि की फसल
40-45 द्विवार्षिक मध्यम अवधि की फसल
50-100 बहुवार्षिक लम्बी अवधि की फसल


प्लास्टिक पलवार को बिछाना
:

पलवार को बीजाई एवं रोपाई से पूर्व ही लगाया जाता है। खेत में क्यारी बनाने के साथ ही पलवार को बिछा कर किनारे से दबा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को श्रमिको के द्वारा करवाने से समय व धन का व्यय होता है। अत: वर्तमान में ट्रेक्टर द्वारा पलवार बिछाने वाली मशीन भी उपलब्ध है।

laying plastic mulch in field

पलवार बिछाते समय निम्नलिखित बाते ध्यान रखनी चाहिए:

  • पलवार सब्जी की फसलों, फलदार एवं अन्य फसलों में प्रयोग में लाई जाती है।
  • पलवार फिल्म में छिद्र बड़े व्यास के पाइप हथोड़े अथवा पंच के माध्यम से बनाये जाते है।
  • फसल के लिए आवश्यक खाद एवं उर्वरकों को पलवार बिछाने से पहले भूमि में मिला देना उपयुक्त रहता है।
  • बीजो की बीजाई एवं पौधों की रोपाई पलवार के छिद्रो में सीधी करनी चाहिए।

सिंचाई व्यवस्था:

पलवार लगाई गई फसलों में ड्रिप (बूंद-बूंद) सिंचाई विधि उपयुक्त होती है। इस विधि में लेटरल को पलवार के नीचे रखा जाता है जिससे सिंचाई एवं उर्वरकीकरण में आसानी रहती है। तथा भूमि में नमी का संरक्षण रहता है। अंत:शस्य क्रियाओं की स्थिति में लेटरल एवं ड्रिपर को पलवार के ऊपर रखते हुए पतली पाई के माध्यम से या पलवार में छिद्र करके पानी का प्रवाह सुनिश्चित किया जाता है।

पलवार को हटाना एवं निस्तारण:

पलवार को फसल की कटाई के बाद खेत से हटा कर सही तरह से दुबारा उपयोग के लिए रख देना चाहिए। अगर यह प्रक्रिया नहीं की जाती है तो पलवार मिट्टी में अपघटित नहीं होती है जिससे खेत में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या हो जाती है।

विभिन्न फसलो के लिए उपयुक्त पलवार का उपज पर प्रभाव

क्र.स. फसल पलवार मोटाई (माइक्रोन) उपज में वृध्दि (प्रतिशत)
1. मुंगफली 07 60.70
2. गन्ना 50 50.55
3. अमरूद 100 25.30
4. किन्नु 100 45.30
5. आलू, बैंगन, शिमला मिर्च 25 30.40
6. टमाटर, फूलगोभी 25 40.45

 


Authors:

रूपेश कुमार मीना1, 2जयाश्री एवं 3गौरव

1शस्य विज्ञान विभाग, कृषि महाविद्यालय, बीकानेर – 334006 (राजस्थान)

2उधान विज्ञान विभाग,  जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर – 482004

3शस्य विज्ञान विभाग] काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी – 221005

1सवांदी लेखक  rupeshkumaragro@gmail.com

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