गेहूँ का दाना, सेहत का खजाना

गेहूँ का दाना, सेहत का खजाना

Wheat grain, treasure for health

विभिन्न प्रकार की जलवायु, मृदा एवं उत्पादन दशाओं में उगाई जाने वाली गेहूँ एक विश्वव्यापी महत्वपूर्ण फसल है। विश्वस्तर पर मनुष्यों के लिए पारम्परिक, प्राकृतिक, फाइबर से भरपूर एवं उर्जादायक भोजन की बढ़ती मांग की आपूर्ति के लिए गेहूँ को खाद्य पदार्थ के रुप में उपयोग किया जाता है।

भारत में उत्पादित कुल खाद्यान्न में 36.7प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ खाद्य टोकरी की खपत में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा गेहूँ को बड़े पैमाने पर खरीदा जाता है, जिसे भारत की अधिकांश आबादी को खाने के लिए वितरित किया जाता है।

अनाजों से मिलने वाली ऊर्जा में गेहूँ सबसे सस्ते स्रोतों में से एक है, इसकी खपत से प्रोटीन (20 प्रतिशत) और कैलोरी (19 प्रतिशत) उपयोग का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है। वर्ष 2020-21के दौरान गेहूँ का उत्पादन लगभग 109.2 मिलियन टन होने का अनुमान है।

wheat grain production in India

चित्र: भारत में गेहूँ का उत्पादन

विश्वस्तर पर उत्पादित और खपत किए जाने वाले अनाजों में गेहूँ एक प्रमुख अनाज है। यह किसी भी अन्य वाणिज्यिक फसल की तुलना में अधिक भूमि क्षेत्र पर उगाया जाता है, जिसे विश्व के 89 देशों के 2.5 बिलियन लोगों द्वारा खाने के उपयोग में लाया जाता है। यह मानव उपयोग के लिए कैलोरी के स्रोत के रूप में चावल के बाद दूसरा सबसे सस्ता एवं अति महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है।

विश्व स्तर पर गेहूँ की खपत पिछले दशक में लगभग 759 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष हो गई है। उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम और मध्य एशिया में गेहूँ एक प्रमुख फसल है, इन क्षेत्रों में खपत होने वाली कुल कैलोरी का आधा हिस्सा गेहूँ से ही प्राप्त होता है।

विकासशील देशों में बढ़ते शहरीकरण, जनसंख्या में वृद्धि, अधिक आय, विकासशील देशों में शाकाहारी भोजन की तरफ बढ़ता लोगों का रूझान तथा खान पान की आदतों में बडे़ पैमाने पर बदलाव, कामकाजी महिलाएं एवं प्रसंस्कृत खाद्य अथवा “रेडी टू ईट पैक्ड फूड” के रूप में उपलब्धता आदि कारणों से वैश्विक स्तर पर गेहूँ की खपत में तेजी से वृद्धि हो रही है।

एक अनुमान के अनुसार आज की तुलना में वर्ष 2050 तक उपभोक्ताओं को लगभग 60 प्रतिशत अधिक गेहूँ की आवश्यकता होगी। इस बड़ी चुनौती से उच्च उत्पादन, बेहतर गुणवत्ता व रोग-प्रतिरोधी नवीन किस्मों का विकास, श्रम के बेहतर उपयोग, सिंचाई, उर्वरक एवं खरपतवारों के उचित प्रबंधन द्वारा निपटा जा सकता है। 

भारत में अनेक विषमताओं के बावजूद खानपान की आदतों के अनुरुप तीन प्रकार के गेहूँ (चपाती, कठिया एवं खपली) की खेती की जाती है।

1. चपाती गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टीवम)

दुनिया में उगाई जाने वाली गेहूँ की प्रमुख प्रजातियों में चपाती गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टीवम) एक प्रमुख प्रजाति है इसे देश के लगभग सभी भागों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। यह भारत में गेहूँ के कुल उत्पादन में लगभग 95 प्रतिशत का योगदान देकर प्रथम स्थान पर है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मार्गदर्शन में कृषि अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों के माध्यम से भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूँ एवं जौ अनुसंधान परियोजना के अंर्तगत, गेहूँ की जैव संवर्धित किस्में विकसित करने की शुरुआत की गई है, जो पारम्परिक किस्मों की तुलना में अधिक पौष्टिक हैं।

जैव संवर्धित किस्में न केवल पर्याप्त कैलोरी प्रदान करती हैं, बल्कि पर्याप्त वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करती हैं। यह एक कुपोषण निवारण के लिए टिकाऊ एवं लागत प्रभावी तकनीक है।

इस योजना के तहत भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा कई किस्मों का विकास किया गया है, जिन्हें मनुष्यों एवं पशुधन के उत्तम स्वास्थ्य के लिए आहार श्रृंखला में शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार कुपोषण को स्थायी रूप से दूर किया जा सकता है और विजन 2022 ‘‘कुपोषण मुक्त भारत‘‘, राष्ट्रीय पोषण रणनीति को भी बढ़ावा मिलेगा।

2. कठिया गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)

कठिया गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम) का उत्पादन करने वाले देशों में भारत एक प्रमुख देश है। भारत में उगाई जाने वाली गेहूँ की तीन प्रजातियों में उत्पादन की दृष्टि से कठिया गेहूँ का द्वितीय स्थान है। गेहूँ के कुल उत्पादन में कठिया गेहूँ लगभग चार प्रतिशत का योगदान देता है।

कठिया गेहूँ की खेती बहुत पुराने समय में उत्तर में पंजाब, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में गुजरात तथा पूर्व में बंगाल तक की जाती थी। लेकिन कालांतर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पीले रतुआ के बढ़ते प्रभाव, चपाती गेहूँ की तुलना में कम उपज एवं भारतीय बाजार में घटती कीमत के कारण उत्तर भारत के अधिकतर भागों में कठिया गेहूँ की खेती लगभग समाप्त हो गई थी। इस दौरान कठिया गेहूँ की खेती के लिए लम्बी बढ़ने वाली बंसी, होरा, कठिया, जलालिया, खंडवा, गंगाजली एवं मालवी नामक प्रजातियों को उपयोग में लाया जाता था।

विगत तीन दशकों के दौरान भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूँ एवं जौ अनुसंधान परियोजना के अंर्तगत विकसित कठिया गेहूँ की अधिक उत्पादन, उच्च गुणवत्ता एवं रतुआ प्रतिरोधी बौनी किस्मों की सिंचित परिस्थितियों में खेती के द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। इस प्रकार कठिया गेहूँ की खेती ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में फिर लोकप्रियता हासिल की है।

इस समय उगाई जाने वाली किस्मों के दानों का आकार चपाती गेहूँ की तुलना में बड़ा एवं रंग प्रमुखतया सुनहरा होता है। कठिया गेहूँ को निर्यात की वस्तु बनाने में उच्च गुणवत्ता, अच्छी कीमत, करनाल बंट रोग-रोधिता, वैश्विक मांग एवं न्यूनतम संगरोध मुद्दे आदि की अहम भूमिका है।

3. खपली गेहूँ (ट्रिटीकम डाइकोकम)

भारत में उगाई जाने वाली गेहूँ की तीन प्रजातियों में उत्पादन की दृष्टि से खपली गेहूँ (ट्रिटीकम डाइकोकम) का तीसरा स्थान है जिसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडू के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है।

खपली गेहूँ को साम्बा, जावे, पोपटिया एवं सडाका आदि नामों से भी जाना जाता है। भारत में गेहूँ के कुल उत्पादन में खपली गेहूँ का योगदान लगभग एक प्रतिशत है। उच्च पोषक तत्वों से परिपूर्ण, मधुमेह और हृदय रोगों के इलाज के लिए गुणकारी गुण, रक्त शर्करा एवं लिपिड के स्तर को कम करने में सक्षम तथा उच्च तापमान सहिष्णुता की क्षमता इसे और औषधीय बनाती हैं।

लेकिन उच्च पोषक मूल्य, कम स्टार्च, बेहतर पाचन शक्ति, एंटीऑक्सीडेंट, पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा और उच्च डीएफ (आहार रेशा) जैसे अनेकों स्वास्थ्य लाभों के कारण पिछले कुछ वर्षों से खपली गेहूँ के प्रति रुचि बढ़ी है। खपली गेहूँ से तैयार खाद्य पदार्थों को हाइपोग्लाइसेमिक माना जा सकता है।

गेहूँ से निर्मित खाद्य पदार्थ

 गेहूँ से बनने वाले विभिन्न पारम्परिक खाद्य पदार्थ इस प्रकार है 

गेहूँ के प्रकार

गेहूँ से बनने वाले विभिन्न खाद्य पदार्थ

चपाती गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टीवम)

चपाती/ रोटी/ फुलका, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, पूरी, कचैरी, कुलचा, भटूरा, समोसा, मठ्ठी, नमक पारा, पापड़, पायसम, पाव, ब्रेड, दलिया, सूजी, सत्तू, पिन्नी, जलेबी, बालूसाई, घेवर, क्रेकर्स, बिस्कुट, म्यूसली, पेनकेक्स, पास्ता, नूडल्स, पाई, पेस्ट्री, पिज्जा, पोलेंटा, केक, बन्स, कुकीज, मफ्फिन, रोल, डोनट्स, ग्रेवी, बीयर, वोदका एवं बोजा (एक किण्वित पेय) इत्यादि प्रमुख हैं।

कठिया गेहूँ (ट्रिटिकम ड्यूरम)

चपाती, लड्डू, नूडल्स, पराठा, पास्ता, डेबरा, भाकरी, हलवा, उपमा, इडली, उत्पम, डोसा, दलिया (नमकीन/ मीठा), रस, रवा पुट्टू खिचड़ी, पोंगल, बाटी एवं बफला इत्यादि

खपली गेहूँ (ट्रिटीकम डाइकोकम)

कुलाडी के लड्डू, गोदी हग्गी, पायसम, स्वीट पैन केक, मदल इत्यादि

Wheat grain products
चित्र: गेहूँ से निर्मित उत्पाद

गेहूँ से निर्मित गैर-खाद्य पदार्थ

गेहूँ का उपयोग गैर खाद्य पदार्थों जैसे गेहूँ के दानों से प्राप्त जर्म तेल को प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में मिलाने तथा स्वास्थ्य-सम्बन्धी उत्पादों जैसे शैम्पू, कन्डीशनर, लोशन एवं मॉइस्चराइजर आदि बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसका उपयोग सुगंधित इत्र, सौंदर्य प्रसाधन, सुगंधित तेलों और सुगंधित मोमबत्तियों के निर्माण के लिए भी किया जाता है।

अपने इन सुगंधित गुणों के कारण बाजार में इस तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है तथा सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली बहुत सारी कम्पनियों के लिए यह एक प्रमुख कच्चा माल है। इसकी महत्ता का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रांसपेरेन्सी बाजार अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में वैश्विक बाजार में इसका व्यापार लगभग 530 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था।

गेहूँ से प्राप्त स्टार्च का उपयोग मिठाईयों में वसा की जगह करने से मिठाईयों में वसा की मात्रा कम होने के साथ-साथ उत्पाद तुलनात्मक दृष्टि से मलाईदार एवं स्वादिष्ट भी बनते हैं।

तालिका: गेहूँ के विभिन्न उत्पादों के लिए दानों की गुणवत्ता मानदण्ड

गेहूँ के प्रकार

उत्पाद

दाने की प्रकृति

प्रोटीन (%)

ग्लूटन की मजबूती

स्टार्च

चपाती गेहूँ

 

चपाती

सख्त

10-13

मध्यम एवं फैलने वाली

बिस्कुट, केक

नरम/ अधिक नरम

8-10

कमजोर एवं फैलने वाली

पैन ब्रेड

सख्त

>13

मजबूत एवं फैलने वाली

आंशिक वैक्सी

हर्थ ब्रेड

सख्त

11-14

मजबूत एवं फैलने वाली

आंशिक वैक्सी

सफेद नूडल

नरम

10-12

मध्यम

आंशिक वैक्सी

कठिया गेहूँ

पीला नूडल

मध्यम

10-13

मध्यम

आंशिक वैक्सी

पास्ता

सख्त

>13

मजबूत

आंशिक वैक्सी

गेहूँ के कुछ प्रमुख उत्पाद

गेहूँ का उपयोग कुछ अन्य प्रमुख उत्पादों के रूप में भी किया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं।

1. गेहूँ की पिन्नी

गेहूँ के आटे, शुद्ध देशी घी एवं मेवा से बनी पिन्नी भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों जैसे-पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की एक बेहद लोकप्रिय एवं पारम्परिक गेहूँ-दूध आधारित मिठाई है। जिसे समस्त भारतवर्ष में बहुत पसन्द किया जाता है।

इसका रंग गहरा भूरा तथा बनावट दानेदार होती है। इसे तैयार करने में दूध के ठोस पदार्थों के साथ-साथ गेहूँ का आटा, नट्स एवं ड्राई फ्रूट्स इत्यादि का इस्तेमाल होने के कारण इसमें कार्बोहाइड्रेट्स (59.5 ग्राम), प्रोटीन (5.28 ग्राम), वसा (27.21 ग्राम), रेशा (3.66 ग्राम), ऊर्जा (535.5 किलो कैलोरी) प्रति 100 ग्राम हैं इसलिए पोषक तत्व का एक समृद्ध स्रोत है।

अपने उच्च पोषक मूल्यों के कारण पारम्परिक रूप से पिन्नी को गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं एवं युवाओं के लिए एक आदर्श भोजन माना जाता है।

Wheat grain sweet, aate ki pinni

चित्र: गेहूँ के आटे एवं शुद्ध देशी घी से निर्मित पिन्नी

2. कुसकुस 

सूजी एवं पानी के मिश्रण से बना कुसकुस उत्तर अफ्रीकी देश मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया एवं मिस्र में प्रधान भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसे बनाने के लिए सूजी को पानी में 1:3के अनुपात में भिगोकर दोनों हाथों की मदद से तब तक मसला जाता है। जब तक छोटे-छोटे दानों का आकार न बन जाय।

इन दानों के आकार में समानता को पके कुसकुस की गुणवत्ता के लिए अच्छा माना जाता है। इन दानों को थोड़ा पकाने के बाद धूप में सुखाकर संग्रहित कर लिया जाता है। कुसकुस में पोषक तत्वों की उपलब्धता बनाए रखने के लिए वाष्पीकरण विधि द्वारा ही पकाया जाता है।

यह एक सलाद बेस भी हो सकता है तथा इसे सूप में जोड़ा जा सकता है। यह मिठाई के लिए मीठा, मसालेदार और सूखे फलों के साथ मिश्रित भी हो सकता है।

kuskus of wheatचित्र: गेहूँ से निर्मित कुसकुस

3. अंकुरित गेहूँ का खाद्य उपयोग

पिछले एक दशक से मानव आहार में अंकुरित अनाजों के उपयोग में वृद्धि देखी गई है। खाद्य उद्योगों द्वारा अंकुरित अनाज या अंकुरित अनाज के आटे से बने उत्पादों को तेजी से लॉन्च किया है!

ऐसे उत्पाद पके हुए खाद्य पदार्थों जैसे पास्ता, नाश्ते के अनाज,   स्नैक्स एवं पेय आदि पदार्थों से भिन्न होते हैं। इस प्रकार के उत्पादों के प्रति उपभोक्ताओं का बढ़ता सकारात्मक रवैया प्राकृतिक बेहतर स्वाद, अधिक पौष्टिक तथा स्वास्थ्य से सम्बन्धित उम्मीदों से जुड़ा हुआ है।

न्यूट्रीशन वैल्यू.ओआरजी, यूएसडीए के अनुसार अंकुरित गेहूँ में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन (विटामिन सी एवं बी 6, थाइमिन, राइबोफ्लाविन, नियासिन, फोलेट एवं पेन्टोथेनिक अम्ल) एवं सूक्ष्म पोषक तत्व (कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटाशियम, सोडियम, जिंक, ताम्बा, मैंग्नीज एवं सेलेनियम) प्रचुर मात्रा में होते हैं, इसलिए अंकुरित गेहूँ का सेवन करने से अनेकों स्वास्थ्य लाभों की अनुभूति होती है।

अंकुरित गेहूँ का नियमित सेवन करने से पाचन क्रिया सुदृढ़ बनती है तथा रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) में सुधार होता है। इसमें विटामिन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा होने के कारण त्वचा एवं बालों की चमक लम्बे समय तक बनी रहती है और किडनी, ग्रंथियों एवं तंत्रिका तंत्र की मजबूती के साथ-साथ रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद मिलती है।

wheat grain sproutsचित्र : गेहूँ के अंकुरित दाने

4. गेहूँ के ज्वारे या गेहूँ घास का जूस

गेहूँ ग्रास का जूस पोषण सम्बन्धी विकारों को पूरा करके मानव कोशिका, रक्त, ऊतकों एवं अंगों को बंद करने वाले अवशेषों को हटाकर अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। गेहूँ ग्रास एक आम गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टीवम) को संदर्भित करता है, जो मानव उपभोग के लिए ताजा जूस या पाउडर के रुप में आसानी से परिवर्तित हो जाता है।

गेहूँ ग्रास के ताजा जूस में क्लोरोफिल, सक्रिय एंजाइम, विटामिन एवं अन्य पोषक तत्वों की उच्च सांद्रता होती है, इसलिए गेहूँ ग्रास को मानव शरीर के लिए पोषक तत्वों एवं विटामिन का पावर हाउस माना जाता है।

गेहूँ ग्रास के जूस को सामान्यतः 60-120मिलीलीटर प्रतिदिन या एक दिन छोड़कर खाली पेट सेवन करना चाहिए, इसके बाद आधा घंटे तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। किसी बीमारी से पीड़ित होने पर 30-60मिलीलीटर जूस का सेवन दिन में तीन-चार बार किया जा सकता है।

कुछ लोगों को शुरू में जूस पीने से जी मिचलाता है। ऐसी स्थिति में कम मात्रा से शुरूआत करें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाएं। गेहूँ ग्रास के जूस में सब्जियों एवं फलों के जूस जैसे सेब, अन्नानास आदि के जूस को मिलाया जा सकता है।

कभी भी खट्टे फलों के रस जैसे नीबू, संतरा आदि को नहीं मिलाना चाहिए, क्योंकि खट्टापन गेहूँ ग्रास के जूस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देता है। इसमें नमकचीनी व कोई अन्य मसाला भी न मिलाएं। गेहूँ ग्रास जूस की100-120 मिलीलीटर मात्रा का सेवन बहुत उपयुक्त माना जाता है।

गेहूँ ग्रास के जूस का सेवन करने से शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। साथ ही गेहूँ ग्रास के जूस में मौजूद क्लोरोफिल रक्त में अधिक ऑक्सीजन देने में मदद करता है, जिसके कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है।

गेहूँ ग्रास जूस का उपयोग हीमोग्लोबिन का उत्पादन बढ़ाने, रक्त शर्करा विकारों में सुधार लाने, दांत क्षय को रोकने, तेजी से घाव भरने एवं बैक्टीरिया संक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है। कुछ लोग भूरे बालों को रोकने, उच्च रक्तचाप को कम करने, पाचन क्रिया में सुधार लाने एवं कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को अवरुद्ध करने के लिए इसका उपयोग करते हैं।

गेहूँ ग्रास का जूस विटामिन ए, बी, सी, ई और के, कैल्शियम, पोटाशियम, लोहा, मैग्नीशियम, सोडियम, सल्फर एवं 17 प्रकार के एमिनो एसिड्स का समृद्ध स्रोत होने के कारण मानव शरीर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यह यकृत (लीवर) एवं रक्त को शुद्ध करता है, और दाँत दर्द, दाँतों का सड़ना, पाइरिया एवं गले की बिमारियों में आराम देता है।

इस जूस का सेवन शरीर से हानिकारक पदार्थों (टॉक्सिन्स), भारी धातुओं एवं शरीर में जमा विषैली औषधियों के अवशेषों का विसर्जन करता है।

wheat grass

चित्र 6: गेहूँ ग्रास/ घास एवं जूस

5. गेहूँ का औषधीय उपयोग

गेहूँ में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। गेहूँ में विद्यमान स्टार्च व प्रोटीन मनुष्यों को गर्मी और ऊर्जा प्रदान करते हैं। आंतरिक चोकर कोट, फॉस्फेट और अन्य खनिज लवण बाहरी चोकर, बड़ी आँत की सफाई करने में मददगार है, जो मल के आसान निष्कासन में रेचक का कार्य करता है।

गेहूँ की प्रोटीन मांसपेशियों के ऊतकों के निर्माण और मरम्मत में मदद करती है। गेहूँ का जर्म जिसे शोधन प्रक्रिया में हटा दिया जाता है जो विटामिन ई से भरपूर होता है, जिसकी कमी से हृदय रोग हो सकता है।

Wheat oilचित्र:गेहूँ जर्म तेल/ऑयल

गेहूँ के जर्म से गेहूँ जर्म तेल (व्हीट जर्म ऑयल) तैयार किया जाता है। पिछले एक दशक से त्वचा और बालों के लिए प्राकृतिक उत्पादों की मांग तथा इनके उपयोग में लगातार वृद्धि देखी गई है। उपलब्ध कार्बनिक कॉस्मेटिक उत्पादों की व्यापक श्रेणी में, महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने वाला नवीनतम उत्पाद व्हीट जर्म ऑयल है।

हम सभी को विदित है कि गेहूँ एक स्वस्थ घटक है जो कई प्रकार के लाभ प्रदान करता है। व्हीट जर्म ऑयलमें विटामिन ई और बी की अधिक सांद्रता होने के कारण यह त्वचा व बालों के लिए एक बेहतरीन मॉइस्चराइजर के तौर पर काम करता है।

इसके प्रयोग से त्वचा व बालों का रूखापन भी कम होता है। व्हीट जर्म ऑयलका नियमित सेवन आपको एक स्वस्थ, लम्बा और रोग मुक्त जीवन देता है। यह कई बीमारियों को रोकता है। मानसिक तनाव को कम करके ऊर्जावान बनाता है। विटिलिगो, सोरायसिस, एक्जिमा, सन बर्न तथा अन्य त्वचा की जलन में व्हीट जर्म तेल का उपयोग औषधीय लाभ प्रदान करता है।


Authors:

मंगल सिंह, अनुज कुमार, अनिल कुमार खिप्पल एवं सत्यवीर सिंह

भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल

Email: msiiwbr@gmail.com

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