Advanced technology of certified seed production of paddy

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धान के प्रमाणित बीज उत्पादन की उत्रत तकनीक

धान एक महत्वपूर्ण फसल होने के साथ-साथ भोजन का प्रमुख श्रोत्र है जिससे मनुष्य अपने शरीर के लिए कार्बोहाड्रेट की अधिकांशतः भाग की पूर्ति करता है। इसकी खेती भारतवर्ष के अधिकांशतः प्रदेषों में की जाती है।

धान की अच्छी उपज लेने के लिए आनुवंशिक रूप से गुणवकतापर्ण बीज का होना बहुत जरूरी होता है। शुद्व आनुवांशिक बीज उत्पादन के लिए बुआई से लेकर भंडारण तक बहुत सारी बातों का ध्यान रखना चाहिए तभी व्यवसायी स्तर पर बीज उत्पादन कर सकते हैं। थोङी सी भूल होने पर बीज की आनुवंशिक गुण खराब हो सकते हैं इसके बहुत से कारण हैं जैसेः

विकाशात्मक भिन्नताः

इन सभी विषमताओं से बचने के लिए धान के फसलों का बीज उत्पादन उसी प्रदेशों एवं जगहों पर करना चाहिए जहाँ के लिए वह किस्में विकसित की गई हों। ऐसा नहीं करने पर जलवायु परिवर्तन कें चलते उन किस्में में थोङी सी भिन्नता आ सकती है।

यांत्रिक मिश्रणः

यह आनुवंशिक मिश्रण का प्रमुख श्रोन्न है। यदि किसान बुआई। कटाई और गहाई के समय यंन्नो की सफाई अच्छी तरह से नहीं करते हैं तो इससे भी बीज की गुणवता खराब हो सकती है। इसीलिए किसानों तथा अन्य जो धान के प्रमाणित बीज का उत्पादन करते हैं उन्हें यंन्नों तथा मङाई वाले जगहों को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए ताकि कोई भी दूसरे किस्में का बीज मिश्रित न हो जाय।

परपरागणः

धान के फसलों में परपरागण होने से बीज की शुध्यता खराब हो जाती है।

बीज उत्पादन के दरम्यान बीज की आनुवंशिक शुद्वता के प्रमुख उपायः

  1. बीज उत्पादन के लिए सिर्फ प्रमाणित एवं अनुमोदित बीज का उपयोग करना चाहिए।
  2. बीज उत्पादन करने से पहले खेतों का निरीक्षन एवं अनुमोदन प्रदेश के बीज निरीक्षक एवं उससे सम्बंधित अधिकारी से अवश्य करा लेना चाहिए।
  3. खेतों पर लगे फसलों की प्रमुख अवस्थायों जैसेः फसल की बढवार। बाली निकलने से पहले अथवा एक या दो बाली खेत में लगने के बाद। और फसल पकने से पहले। खेतों का निरीक्षण करने से बीज की आनुवंशिक शुद्वता कायम रखा जा सकता है।
  4. जो पौध मुख्य किस्में के पौधे से अलग दिखाई दे उसे उखाङ कर फेंक देना चाहिए।

उतम बीज के प्रमुख गुण एवं बचावः

  1. उतम बीजों की आनुवंशिक शुद्वता अधिकतम तथा अन्य प्रजातियों के बीजों की उपस्थिति लगभग शून्य होना चाहिए।
  2. भौतिक शुद्वता उच्च स्तर का होना चाहिए जैसेः मृदाकण। खरपतवार। कंकङ पत्थर तथा खरपतवार के बीजों से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए।
  3. बीज स्वस्थ्य होने के साथ अधिक अंकुरण क्षमता होना चहिए।
  4. रोग व कीट ग्रस्त बीज अधिक उपज नहीं दे पाते हैं और बीज जनित रोग फैलाते हैं इससे बचने के लिए उपयुक्त रसायन से उपचारित कर उतम बीज का ही प्रयोग करना चाहिए।
  5. बीज आकार। आकृति च रंग में समानता हो
  6. अधिक नमी के कारण बीज पर कवक रोगों का प्रकोप हो सकता है इससे अंकुरण क्षमता नष्ट हो सकती है अतः बीजों को 10-12 प्रतिशत नमी पर ही उचित भंडारण करना चाहिए।
  7. पूर्णरूप से परिपक्व फसल की कटाई करना चाहिए इससे बीजों में अधिक अंकुरण होता है।

धान बीज उत्पादन की प्रमुख शस्य क्रियाएः

भूमि का चयनः

समतल। चिकनी दुम्मट मिट्टी बीज उत्पादन के लिए उपउक्त होता है तथा वैसे भूमि का चयन करना चाहिए जहाँ पर पीछले वर्ष धान की खेती नहीं की गई हो।

पृथकीकरणः

धान एक स्वपरागित फसल है लेकिन इसमें भी कुछ परपरागण की संभावना 0 – 6.8 प्रतिशत तक हो सकते हैं इसे रोकने के लिए एक किस्म से दूसरे किस्म से कम से कम 3.00 मीटर की दूरी रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर बीजों की आनुवंशिक गुण खराब हो सकते हैं।

धान की पौधशाला

बोआई का समयः पौधशाला में पिछाती प्रभेद की बुआई 25 मई से 10 जून तथा अगेती किस्में की बुआई 10-25 जून तक कर लेना चाहिए।

बीज का श्रोत: आधार तथा प्रमाणिक बीज का क्रय किसी प्रतिष्ठत संस्थान से ही करना चाहिए।

बीज की मान्नाः मोटे प्रभेदों के लिए 30-35 किलोग्राम तथा महीन प्रभेदों के लिए 25-30 किलोग्राम बीज की मान्ना एक हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए जरुरत पङता है।

धान की रोपाईः

धान के बीचङे 15-20 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं जिसे जल्द से जल्द मुख्य खेतों में रोपाई कर देना चाहिए जिसका उपज पर अनुकूल प्रभाव है।

धान की रोपाई से पहले खेतों में पानी लगाकर 2-3 जुताई करने के बाद नेन्नजन की 100-120 किलोग्राम की  आधी मान्ना तथा फॉस्फोरस 60 किलोग्राम तथा पोटाश 40 किलोग्राम की पूरी मान्ना का व्यवहार करना चाहिए तथा बचे नेन्नजन की शेष मान्ना  को दो बार इस्तेमाल करना चाहिए पहले मान्ना को जब कल्ले निकलना शुरु हो जाय तब तथा दूसरी मान्ना बाली निकलने के समय प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार  करना चाहिए।

रोपाई का तरीका तथा लगाने की दूरीः

2-3 पौधों को एक साथ 2-3 सेंमी. की गहराई पर रोपाई करनी चाहिए तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंमी. एवं पौधों से पौधों की दूरी 15 सेंमी. रखना चाहिए।

जल प्रबंधनः

रोपाई के समय 2.5 सेंमी पानी खेतों में रखना चाहिए इसी तरह खेतों में पानी का प्रबंधन पौधों में दाना भरने के समय तक करना चाहिए।

धान मे खरपतवार का नियंन्नणः

खरपतवार नियंन्नण के लिए 2-3 बार कृषि यंन्नों से करना चाहिए। इसके नियंन्नण के लिए बहुत से खरपतवार नाशी रसायन का भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसेः

  1. 2-4 डी. की एक किलोग्राम सक्रीय अवयव को 150-250 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 20-25 दिनों बाद व्यवहार करना चाहिए।
  2. बुटाक्लोर की 1.5 किलोग्राम सक्रीय अवयव को 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 7-10 दिनों बाद छिङकाव करना चाहिए।

धान के फसल में लगने वाले प्रमुख कीट.पतंग एवं नियंत्रण

तना छेदकः

यह कीट तनों में घुसकर मुख्य तना को क्षति पहुँचाती हैं  जिससे बढ़वार की स्थिति में तना सुख जाते हैं जिससे बालियां में दाना नहीं बन पाते हैं। इस किट की रोकथाम के लिए फोरेट दानेदार 10 प्रतिशत सक्रीय अवयव की 10  किलोग्राम मान्ना या इनडेन दानेदार 6 प्रतिशत सक्रीय अवयव की 30 किलोग्राम मान्ना प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 20 दिनो बाद जब खेतो में पानी लगा रहे तो छिङकाव करना चाहिए।

गन्धी बगः

यह कीट बालियों की दुग्धावस्था में दानों में बन रहे दूध को चूसकर क्षति पहूँचाते हैं जिससे बालियो में बन रहे दाने पूर्णरुप से बिकसितन नही हो पाते हैं। इस किट की रोकथाम के लिए 150 मिलिलीटर इमिडाक्लोरपिड 17.5 प्रतिशत एससी सक्रीय अवयव प्रति हेक्टेयर की दर से का छिड़काव करें

धान के फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं नियंत्रण

ब्लास्ट रोगः

इस रोग में पौधों की पत्तियों तथा तना पर आँख की आकृति के धब्बे दिखाई देते हैं जो बीच में काले रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। इस रोग के रोकथाम के लिए 150 ग्राम बेनलेट की मान्ना को 250 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से  छिङकाव करना चाहिए।

बैक्टेरियल लीफ ब्लाईटः

इस रोग के नियंत्रण के लिए 75 ग्राम एग्रमाईसीन 100 तथा 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 500 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 3 से 4 बार छिङकाव करना चाहिए।  

खैरा रोगः

इस रोग के नियंत्रण के लिए जिंक सल्फेट 5 किलोग्राम तथा 2.5 किलोग्राम बुझा हुआ चुना को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिङकाव करना चाहिए।

रोगिनगः 

इस क्रिया में धान के खेत से बीमारी। कीङा लगे हुए पौधों को निकाल देना चाहिए साथ ही साथ जो पौधे  की बाली मुख्य फसल से पहले निकल गये हों उसे भी उखाङ कर फेंक देना चाहिए। धान के बीज उत्पादन में रोगिनग कम से कम तीन बार करना चाहिए। पहला बाली निकलने से पहले दूसरा बाली निकलने के समय तथा तीसरा बाली पकने के समय करना चाहिए।

धान फसल की कटाई, मढाई एवं भंडारणः

जब बाली पूरी तरह से पक्कर तैयार हो जाय। दानों में नमी की मान्ना 17-23 प्रतिशत रहे तभी फसल की कटाई कर लेना चाहिए। आनुवंशिक शुद्वता को ध्यान में रखते हुए मढाई करने वाले स्थान को पूरी तरह से साफ सफाई कर लेना चाहिए। भंडारण करने से पहले धान को पूरी तरह से सुखा लेना चाहिए जब नमी की मान्ना 10-12 प्रतिशत रहे तभी भंडारण करना चाहिए।


Authors:

अनुज कुमार चौधरी

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय। पूर्णियाँ- 854302

E-mail: anujraubau@gmail.com

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