कृषि मौसम पूर्वानुमान एवं फसल प्रबन्धन

कृषि मौसम पूर्वानुमान एवं फसल प्रबन्धन

Agricultural Weather Forecasting and Crop Management

किसी भी क्षेत्र का कृषि उत्पादन उस क्षेत्र विशेष में पाये जाने वाले बहुत से जैविक, अजैविक, भौतिक, सामाजिक व आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। मुख्यत: जैविक व अजैविक कारकों में मुख्य रूप से मौसमी तत्व, मिट्टी का स्वास्थय, जल संसाधन, फसलों के प्रकार व विभिन्न प्रजातियाँ, फसलों में होने वाली बीमारियाँ, कीट इत्यादि का प्रकोप आते है।

सामाजिक व आर्थिक कारकों में कृषि प्रबन्धन को प्रभावित करने वाले कारक जैसे: कृषि लागत, संसाधनों का उपयोग, श्रमिकों की उपलब्धता, उर्वरक, रसायन, सिंचाई के जल की उपलब्धता, सरकारी नीतियाँ इत्यादि आते है।

इन सभी उत्पादन के लिए जिम्मेदार कारकों में मौसमी कारक सबसे ऊपर आते है। मौसमी कारक फसल उत्पादन को दो तिहाई तक प्रभावित कर सकता है, अत: सतत उत्पादन लेने के लिए मौसमी कारकों की जानकारी अति आवश्यक है।

इन कारकों की जानकारी यदि किसानों को पहले से ही मिल जाये तो किसान अपनी फसल में इन कारकों से होने वाले दुष्प्रभाव को कम कर सकता है।

मौसम पूर्वानुमान

मौसम के वर्तमान ओर पिछले मौसम की स्थिति का मूल्यांकन करके भविष्य में संभावित मौसम के बारे में पहले ही बता देने को ही मौसम पूर्वानुमान कहते है। यह वातावरण के अध्ययन में एक बहुत उपयोगी परिमाण है। यह भविष्य में किसानों, योजनाकारों, नीति निर्माताओं तथा कृषि वैज्ञानिकों के लिए प्रतिकूल मौसम में फसल रणनीतियों के लिए अग्रिम योजना बनाने में बहुत सहयोगी है।

भारत में ज़्यादातर भूमि कृषि में उपयोग की जाती है वह वर्षा पर निर्भर करती है। कृषि का उत्पादन किसी ऋतु में हुए वर्षा तथा दो ऋतुओं के बीच की वर्षा की विविधता पर निर्भर करता है। इसलिए हमें एक निर्बाध पूर्वानुमान प्रणाली की आवश्यकता है जो कृषि जरूरतों के अनुसार छोटी से लंबी अवधि तक का पूर्वानुमान दे सके।

वायु में मात्रा एवं गति संबंधी होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन के ऊपर ही मौसम का पूर्वानुमान आधारित रहता है। मौसम का पूर्वानुमान करने वालों के लिए यह जानने की आवश्यकता होती है की वायु की निश्चित मात्र में कितना ओर किस ढंग का परिवर्तन एक निश्चित अवधि में होगा। उन्हे यह भी जानने की आवश्यकता होती है की वायु की अन्य मात्रा या अन्य पिंड (air mass) कब पहुँचेंगे तथा उनका सूर्यताप, तापमान, दबाव और आर्द्रता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

मौसम संबंधी पूर्वानुमान के लिए सबसे आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं-

आँकड़ो का सही लेखन:

विभिन्न मौसम- वेधशालाओं से नित्य प्रपट आँकड़ो पर ही मौसम संबंधी पूर्वानुमान की आधारशिला रखी जाती है, इस कारण आँकड़ो का सही लेखन बहुत आवश्यक है।

संक्षिप्त सारणी का निर्माण एवं उनका सावधानी से अध्ययन:

विभिन्न वेधशालाओं से प्राप्त मौसम संबंधी आँकड़ो के आधार पर सारणियाँ और रेखाचित्र तैयार किए जाते है। आजकल वेधशालाओं से प्राप्त आँकड़ो के संकलन का कार्य तथा उनके आधार पर संक्षिप्त सारणी बनाने का काम एलेक्ट्रोनिक कम्प्यूटरों से लिया जाता है। संक्षिप्त सारणी के आधार पर समदाब रेखाओं और समताप रेखाओं वाले चित्र बनाए जाते हैं और इन रेखाचित्रों का सावधानी से अध्ययन किया जाता है।

नये सारणियों एवं रेखाचित्रों के जैसे ही पुरानी सारणियों एवं रेखाचित्रों के साथ तुलना:

प्रत्येक मौसम विज्ञान विभाग बहुत सावधानी के साथ पुराने सभी चित्रों और सारणियों को संकलित करके रखता है और नई सारणियों और नये रेखाचित्रों की तुलना उनसे की जाती है। पुरानी सारणियों एवं रेखाचित्रों से तुलना करने पर यह ज्ञात हो जाता है कि अतीत में जब ठीक उसी ढंग के आँकड़े प्राप्त हुए थे, तब उनका वायुमंडलीय परिवर्तनों पर क्या प्रभाव पड़ा था। इस ढंग कि तुलना के बाद मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान किया जाता है।

भावी चौबीस घंटों के मौसम कि स्थिति का सही अनुमान लगाना।

इस ढंग के निर्णय में अनुभव का बड़ा महत्व होता है, क्योंकि बहुत अनुभवी व्यक्ति ही भविष्य के विषय में सही अनुमान कर सकता है। साधारणत: नमी के विषय में पूर्वानुमान करना सबसे कठिन कार्य है, क्योंकि तापमान मे थोड़ी भी गिरावट वाष्प का संघनन कर सकती है, तापमान में वृद्धि के कारण वर्षा का आगमन रुक सकता है और हिमांक के निकट तापमान वाले वायुपिंड के तापमान में थोड़ी भी गिरावट जल की वर्षा को बर्फ की वर्षा में परिवर्तित कर सकती है, अत: नमी सम्बंध में सही पूर्वानुमान कोई बहुत अनुभवी मौसमशास्त्री ही कर सकता है।

पूर्वानुमान-सम्बन्धी वक्तव्य-

इनमें निम्नलिखित वक्तव्यों का समावेश किया जाता है-

1. पृथ्वी की सतह के निकट की वायु की अनुमानित दिशा बल और उस काल में संभावित परिवर्तनों के सम्बन्ध में वक्तव्य;

2.  बादलों के सम्बन्ध में आकाश की स्थिति (यदि वर्षा होने वाली हो तो उसका प्रकार) एवं संभावित तापमान में होने वाले परिवर्तनों के सम्बन्ध में वक्तव्य तथा

3. पूर्वानुमान काल में संभावित उल्का, कुहासा आदि के सम्बन्ध में वक्तव्य।

मौसम पूर्वानुमान कुछ घण्‍टों से लेकर महीना, ऋतु (पुरे फसल मौसम तक) का होता है। मौसम पूर्वानुमान का वर्गीकरण इसकी वैधता तथा अवधि के आधार किया जाता है। किसी भी फसल की सिंचाई, बुवाई, खेतों में उर्वरक डालना, फसल की कटाई आदि की योजना बनाने में मौसम का सही पूर्वानुमान अति आवशयक है। भारत मौसम विभाग विभिन्न प्रकार के पूर्वानुमान देता है। जिसका सामान्य विवरण तालिका-1 में व गुणात्मक विवरण तालिका-2 में इस प्रकार है:

तालिका 1: विभिन्न प्रकार के मौसम पूर्वानुमान, अवधि, प्रक्रिया तथा कृषि में महत्व  

मौसम पूर्वानुमान के प्रकार

अवधि

प्रक्रिया

कृषि में महत्व

तुरंत मौसम पूर्वानुमान

6 घंटों तक

मौसम केंद्रों के नेटवर्क, मौसम सम्बंधी रडार से नक्शे, मौसम संबंधी उपग्रहों से प्राप्त सन्देश, स्थानीय और क्षेत्रीय टिप्पणियों, और इसी तरह के आंकड़ों द्वारा

सब्जियों व बागवानी में, पशुओं को खुले स्थान से सुरक्षित स्थान पर ले जाने में, खेलकुद, पर्यटन, यात्राओं व सभाओं के दौरान

अल्‍पावधि मौसम पूर्वानुमान

कुछ घण्‍टों से लेकर 3 दिनों तक

उपग्रह से प्राप्‍त जानकारी, सिनोपिटिक चित्रों तथा कम्‍प्‍यूटर द्वारा मौसम माडलों का उपयोग करके

कृषि कार्य, रसायनों का छिड़काव और सिंचाई तक का प्रबंधन, पाले से सुरक्षा, सर्दी-गर्मी से पशुओं की सुरक्षा व उत्पादन की दर में महत्व, कृषि मज़दूर की कार्य क्षमता पर प्रभाव

मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान

3-10 दिनों तक

भौतिक तथा तरल गति विज्ञान के प्रमुख नियमों का उपयोग किया जाता है। मौसम तत्‍वो की भविष्‍यवाणी जिसमें मौसम तत्‍वों के अंकिय भविष्‍यवाणी पर बल दिया जाता है। इसमें वर्षा की मात्रा एवं समय, तापमान में बदलाव, हवा की गति एवं दिशा आदि मुख्य कारक होते है।

मृदा की नमी के आधार पर बिजाई व अंकुरण पर प्रभाव, शीतलहर व लू का प्रभाव कम करने में, वर्षा के पूर्वानुमान के आधार पर सिंचाई प्रबंधन, कीट-रोग प्रबंधन, फसल कटाई का प्रबंधन, पाले से सुरक्षा, कृषि कार्य व उपकरण प्रबंधन, पशुओं की खाद्य सामग्री प्रबंधन

दीर्घअवधि मौसम पूर्वानुमान

10 दिनों से अधिक से लेकर एक ऋतु तक; जैसे: प्रत्येक वर्ष अप्रैल तथा जून में मानसून की भविष्‍यवाणी ।

इस पूर्वानुमान में सांख्‍यिकीय विधि का प्रयोग किया जाता है। दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान मे मौसम तत्‍वो मुख्‍यतः वर्षा व तापमान का सामान्‍य से संभावित विचलन ही बताया जाता है भारत मे इस विधि से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा भारत मे ग्रीष्‍मकालीन मानसून तथा शीतकालीन मानसून की भविष्‍यवाणी की जाती है।

फसल व क़िस्म के चुनाव, सिंचाई के लिए सीमित जल संसाधनों के प्रबंधन, रसायनों का छिड़काव, कीट-रोग प्रबंधन, फसल क्षेत्रफल व पैदावार के पूर्वानुमान का आंकलन

 तालिका 2: कृषि के लिए विभिन्न मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता, उपयोगिता व मुख्य सीमाएं

मौसम पूर्वानुमान के प्रकार

सटीकता

उपयोगिता

मुख्य सीमाएँ

वास्तविकता में

विभव (अधिकतम क्षमता)

तुरंत मौसम पूर्वानुमान

बहुत अधिक

बहुत कम

मध्यम

प्रसारण प्रणाली की अविश्वसनीयता, कृषि प्रौद्योगिकी का अपर्याप्त लचीलापन, किसानों को पता नहीं है कि उपलब्ध पूर्वानुमान का सबसे अधिक उपयोग कैसे किया जाए

अल्‍पावधि मौसम पूर्वानुमान

अधिक

मध्यम

अधिक

किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार मौसम पूर्वानुमान के अनुकूलन की आवश्यकता है, किसानों को पता नहीं है कि उपलब्ध पूर्वानुमान का सबसे अधिक उपयोग कैसे किया जाए

मध्‍यम अवधि मौसम पूर्वानुमान

अधिक या मध्यम (सिर्फ 5 दिनों तक)

अधिक

बहुत अधिक

किसानों की आवश्यकताओं के अनुसार मौसम पूर्वानुमान के अनुकूलन की आवश्यकता है, किसानों को पता नहीं है कि उपलब्ध पूर्वानुमान का सबसे अधिक उपयोग कैसे किया जाए

दीर्घअवधि मौसम पूर्वानुमान

बहुत कम

मौसम प्रणालियों के आगमन में देरी की चेतावनी में उच्च (अन्यथा बहुत कम)

निम्न

विश्वसनीयता (इस मौसम पूर्वानुमान की विश्वसनीयता मध्य अक्षांशों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो के लिए अधिक है। इसका कारण यह है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पूर्वानुमानित संकेत की एक मध्यम मात्रा होती है, जबकि मध्य अक्षांशों में मौसम के पूर्वानुमान के घटक की तुलना में यादृच्छिक मौसम में उतार-चढ़ाव आमतौर पर ज्यादा  होते हैं।

मौसम पूर्वानुमान की विश्वसनीयता निम्न बिंदुओं पर निर्भर करता है:

  1. वेदर ग्रुप (weather group) के महत्व पर प्रेक्षक की जागरूकता
  2. वेधशालाओं का नेटवर्क- सतह और ऊपरी वायु स्टेशन
  3. दूरसंचार नेटवर्क आकाशवाणी, डीडी और समाचार मीडिया की प्रसार भूमिका
  4. मौसम पूर्वानुमान के प्रकार
  5. अंतरिक्ष उपकरण की दक्षता
  6. मौसम विज्ञान डेटाबेस और पिछले डेटा
  7. मौसम विशेषज्ञ का कौशल और अनुभव
  8. वर्तमान में प्रौद्योगिकी- मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में प्राप्त ज्ञान
  9. मौसम का विश्लेषण और तेजी से कंप्यूटर परिणाम पर
  10. मौसम के पूर्वानुमान केंद्र के संग्रह से डेटा का संचार
  11. डेटा संग्रह की आवृत्ति
  12. टिप्पणियों का समय पर और सही होना

भारत में कृषि मौसम वैज्ञानिक सेवाएँ

कृषि मौसम विज्ञान प्रभाग

इसकी स्थापना भारत मौसम विज्ञान विभाग पुणे, में जलवायु संस्थानों के अतिरिक्त मृदा और जल संसाधनों के सक्षम उपयोग तथा प्रचंड मौसम यथा, चक्रवात, ओलावृष्टि, सूखा, बाढ़, लू, अतिवृष्टि, अनावृष्टि और शीतलहर आदि के प्रतिकूल प्रभाव से सुरक्षा और अनुकूल मौसम का लाभ उठाने और कृषि उत्पादन में वृद्धि के उद्देश्य से 1932 में की गई थी।

तब से यह प्रभाव इस क्षेत्र में बहु संकायी गतिविधियों के संचालन संवर्धन और विकास में अपने सहयोग और भागीदारी द्वारा महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। मौसम यह प्रभाव कृषि मौसम विज्ञान में अनुसंधान कार्यक्रमों का केंद्र भी है तथा इसके केंद्र देश के विभिन्न भागों में भी स्थित है।

इसके अतिरिक्त राज्यों की राजधानियों में स्थित आई.एम.डी. के पूर्वानुमान कार्यालय द्वारा किसानों हेतु मौसम पूर्वानुमान और कृषि मौसम परामर्श सेवाएं प्रदान की जा प्रदान की जाती है। इस विभाग ने वर्ष 1945 से किसानों हेतु मौसम सेवाएँ प्रारंभ किया था। यह  सेवा किसान मौसम बुलेटिन के रूप में ऑल इंडिया रेडियो से प्रसारित किया जाता था।

वर्ष 1976 से भारतीय मौसम विभाग ने संबंधित राज्य सरकारों के कृषि विभाग के सहयोग से अपने कृषि मौसम विज्ञान केंद्र से कृषि मौसम वैज्ञानिक परामर्श सेवा शुरू  किया, जो कि पिछले वर्षों तक नियमित रूप से जारी था किंतु प्रणाली कमियों के कारण कृषक समुदाय की  माँग पूरी नहीं हो पा रही थी।

इसलिए इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग ने वर्ष 2007 से एकीकृत मौसम सेवा अवधारणा को अपनाया और विभिन्न संगठनों और संस्थानों की सहायता से एकीकृत मौसम सेवा शुरू किया है। सम्प्रति, यह बुलेटिन चार स्तरों पर जारी किए जा रहे हैं।

राष्ट्रीय कृषि मौसम सलाहकार बुलेटिन:

यह बुलेटिन राष्ट्रीय स्तर पर कृषि नियोजन और प्रबंधन हेतु तैयार किया जाता है और राष्ट्रीय कृषि मौसम परामर्शी सेवा केंद्र, कृषि मौसम विज्ञान प्रभाग, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी किया जाता है। इस बुलेटिन का उपयोग फसल मौसम निगरानी समूह और कृषि मंत्रालय द्वारा किया जाता है। यह बुलेटिन सभी केंद्रों और राज्यों के संबंधित  मंत्रालयों संगठनों और गैर सरकारी संगठनों को उनके उपयोग हेतु भेजी जाती है।

राज्य कृषि  मौसम सलाहकार  बुलेटिन:

यह बुलेटिन राज्य स्तर पर कृषि नियोजन और प्रबंधन हेतु तैयार किया जाता है। इसका निर्माण विभिन्न राज्यों की राजधानियों में स्थित 22 कृषि मौसम वैज्ञानिक परामर्श सेवा इकाईयों द्वारा किया जाता है। इस बुलेटिन का उपयोग राज्य स्तरीय फसल मौसम  निगरानी समूह और कृषि मंत्रालय द्वारा किया जाता है। यह बुलेटिन का उपयोग उर्वरक उद्योग, कीटनाशक उद्योग, सिंचाई विभाग, बीज निगम और वे संगठन यथा, परिवहन विभाग के लोग करते हैं जो कृषि में निविष्टियाँ  उपलब्ध कराते हैं।

जिला कृषि मौसम सलाहकार बुलेटिन:

यह बुलेटिन जिले के किसानों हेतु तैयार किया जाता है। यह बुलेटिन राज्य कृषि विश्वविद्यालयों  में  कार्यरत 130 ( एग्रोमेट फील्ड यूनिट- AMFU) द्वारा जारी किया जाता है। इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक के सभी संवेदनशील फसलों हेतु परामर्श शामिल होते हैं। इसमें बागवानी और पशुपालन संबंधी परामर्श भी शामिल होते हैं। यह मौसम आधारित परामर्श  विविध संचार संसाधनों द्वारा प्रसारित किए जाते हैं। मोबाइल और इंटरनेट का भी उपयोग किया जाने लगा है। इन  बुलेटिन की विशेषताएं  निम्नलिखित  है:

  • विगत दिनों के मौसम की जानकारी
  • अगले 5 दिनों के मौसम का पूर्वानुमान
  • कृषि हेतु मौसम आधारित मौसम परामर्श

एकीकृत कृषि  मौसम परामर्श सेवाएं: 

भारत में यह सेवा भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,  केंद्र और राज्य स्तरीय  कृषि मंत्रालय, राज्य कृषि विश्वविद्यालय और अन्य संगठनों के सहयोग से देश में अप्रैल 2007 से प्रारंभ की गई है  इस सेवा में 5  सोपान है:

स्तर-1: शीर्ष नीति नियोजन इकाई

स्तर-2: राष्ट्रीय कृषि मौसम परामर्श मुख्यालय

स्तर-3: राज्य स्तरीय कृषि मौसम परामर्श केंद्र 28 ( निर्देशन/ मॉनिटर)

स्तर-4:  मौसम विज्ञान कृषि परामर्श केंद्र (कृषि  जलवायु…. क्षेत्र स्तरीय- 130)

स्तर-5: जिला स्तरीय कृषि मौसम परामर्श का प्रचार प्रसार एवं प्रशिक्षण- 612

स्तर-6: वर्ष 2018 में ब्लॉक स्तरीय कृषि मौसम परामर्श शुरूआत (ब्लॉक स्तर पर प्रायोगिक एएएस- 24 राज्यों में 200 ब्लॉक) और भविष्य में ~6500 ब्लॉकों तक विस्तार की योजना।

जिला कृषि मौसम इकाईयाँ (District AgroMet Units):

ब्लॉक स्तर पर उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जिला एग्रोमेट यूनिट (DAMU) स्थापित हो रहे है। यह SAUs, ICARs और कृषि विज्ञान केंद्रों के मौजूदा केंद्रों को मजबूत करेगा। ब्लॉक/तालुका स्तर पर उच्च रिज़ॉल्यूशन वाले मौसम पूर्वानुमान की तैयारी की आवश्यकता है।

यह पूर्वानुमान जारी करना शुरू करने का प्रस्ताव है, विशेष रूप से उप-जिला स्तर पर अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्रों में कृषि मौसम सेवा के लिए । सलाह फैलाने और 50 प्रतिशत कृषक समुदाय को कवर करने के प्रयास बढ़ाये जा रहे हैं। ब्लॉक स्तर पर उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जिला एग्रोमेट यूनिट (DAMU) स्थापित जा रहे हैं ।

विस्तार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ किसानों के लिए जलवायु जागरूकता कार्यक्रमों का प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण है, और इसकी योजना बनाई जानी चाहिए। मौसम आधारित सलाह का समग्र उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और खेती की लागत को कम करने में सबसे अच्छा मदद कैसे कर सकता है। ये अभ्यास सभी क्षेत्र इकाइयों और DAMU स्टेशनों पर किए जा रहे है।

कृषि मौसम पूर्वानुमान आधारित फसल प्रबन्धन

मौसमीय तत्वों जैसे तापमान, वर्षा, हवा, प्रकाश, वाष्पीकरण, पाला, औला तथा तूफान की जानकारी के आधार पर किसान कृषि कार्यकलाप कर सकते है। बुवाई करने अथवा रोकने का कार्य, सिंचाई करने अथवा रोकने का कार्य, उर्वरक डालने अथवा रोकने का कार्य, कटाई का कार्य शुरू करना या नहीं, खाद्यान्न का परिवहन तथा भंडारण का कार्य कर सकते है।

मौसम पूर्वानुमान के उपयोग से फसल उत्पादन में कमी को निम्न क्रियाओ से कम किया जा सकता है:

परिहार (छोड़ देना) द्वारा:

इस विधि में जो मौसमीय घटना जिस कृषि कार्य पर असर डालती है उसको छोड़ दिया जाता है। उदाहरण के लिए अगर तेज़ वर्षा की संभावना है तो कीटनाशक का छिड़काव व सिंचाई का कार्य रोक सकते है।

सुरक्षा प्रदान करके:

इसमें किसान अपनी फसलों को नुकसान होने से पहले ही बचा सकते है। उदाहरण के लिए यदि पाले की संभावना से किसानों को पहले ही आवगत करा दिया जाय तो वे अपनी फसल बचा सकते है। या फिर फसल कटाई के दौरान तेज़ बारिश की संभावना हो तो एक दो दिन पहले कटाई कर के सुरक्षित स्थानों पर रख सकते है।

शमन द्वारा:

इसमें कुछ मौसमीय घटनाओं को जैसे मूसलाधार वर्षा, औले आदि से होने वाले नुकसान को कम के सकते है।

तालिका 3: मौसम पूर्वानुमान के आधार पर किए गए कृषि कार्य

पूर्वानुमान

कृषि के कार्यकलाप

मानसून में देरी

सीधे बुवाई में देरी की जा सकती है। अन्यथा फसल के सूखने की संभावना बढ़ सकती है, तथा पौधे के बढ़ाव में कमी आ सकती है। कम अवधि में तैयार होने वाली फसल की किस्में लगाई जा सकती है।

अपर्याप्त मानसून

ज्यादा बीज की व्यवस्था करना, आकस्मिक योजना बनाना, फसल में बदलाव करना, कम पानी की जरूरत वाली फसलों का चयन करना, सिंचाई कार्यक्रम में बदलाव आदि कर सकते है। इसके अलावा रोपाई के समय में देरी की जा सकती है, छोटे पौधों की व्यवस्था की जा सकती है, देर से रोपाई होने वाली पौधों की क़िस्मों को लगाया जा सकता है। उर्वरक प्रबंधन, अगेती रबी फसल के लिए योजना, कीटनाशक तथा सामान्य स्प्रे कार्यक्रम की व्यवस्था की जा सकती है।

तेज़ हवाएँ तथा तूफान

फसल कटाई में देरी, हवा मिलों को प्रोत्साहित करना, सिंचाई न करना, खेतों में जलनिकास करना, फसल को गिरने से बचाने के लिए पानी न देना, इसके बिजली/ऊर्जा की बचत होगी, जिसे हम किसी और कार्य में लगा सकते है।

अधिक वर्षा

खेतों से निकासी, फसलों को गिरने से बचाने के लिए सिंचाई को रोकना, जिससे ऊर्जा की बचत होगी।

बवंडर/ तूफान

कटाई के बाद की सामग्री (उत्पाद) को इकट्ठा करना जिससे हवा से इसकी सुरक्षा हो सके, कटाई में देरी कर सकते है।

कम तापमान (जमने वाली ठंड)

रबी फसलों में सिंचाई, ग्रीन हाउस तथा फलों के बाग में गर्मी देना, कोहरा हटाने की व्यवस्था करना।

परिपक्वता के दौरान भारी वर्षा

यदि सम्भव हो तो 1-2 दिन पहले कटाई करके उत्पाद को सुरक्षित स्थान पर ले जाना, कटाई में देरी, वर्षा के बाद कटे हुए उत्पादकों को सुखाना, सब्जियों की बुवाई करना।

मौसम की चरम घटनाएं व प्रतिकार:

शीतलहर:

भारत उप महाद्वीप में उत्तर से शुष्क व अत्यधिक कम तापमान की ठंडी हवाओं को शीत लहरों के नाम से जाना जाता है। देश के उत्तरी भाग विशेषकर पहाड़ी तथा आसपास के मैदानी क्षेत्र ठंडी लहरों से प्रभावित होते है। शीत लहरें वातावरण के तापमान को नीचे लाती है तथा फसल की बढ़वार को प्रभावित करती है।

पौधो में ठंड की वजह से वाष्पन में कमी होने के कारण पौधे में ऊर्जा की कमी हो जाती है, जिससे घुलनशील तत्वों के मिट्टी से पौधे तक परिवहन करने में बांधा आती है। यदि शीत लहर लंबे समय तक रहती है तो फूल/फल बनने तथा अनाज भरने की अवधि में देरी आ जाती है जिससे पैदावार में कमी आती है।

जिन जगहों पर शीत लहरों का प्रभाव अधिक होता है वहाँ ऊर्जा को संरक्षित करना लाभकारी है। इसको संरक्षित करने के लिए सौर विकिरण के कोण को पौधों की तुलना में एक निश्चित दिशा में लिया जाता है। इसके लिए पौधों को एक निश्चित दिशा में लगाया जाता है। फसलों को धूप वाली दिशा नियंत्रित करने से भी गर्मी में बढ़ोतरी होती है।

सौर विकिरणों को पौधे के ऊपरी भाग से प्रतिबंधित न होकर पौधों की पंक्तियों के बीच की जगह को प्लास्टिक से ढ़क दिया जाता है। तापमान से संवेदनशील फसल को रात में प्लास्टिक कवर से ढककर भी सुरक्षित रखा जा सकता है। जुताई करने व अन्य घास-फूस से फसलों को ढ़कने से भी फसलों को ठंड से बचाया जा सकता है।

पाला:

जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, तब पत्तियों के रिक्त स्थानों में उपलब्ध जलीय घोल ठोस बर्फ में बदल जाता है। क्योंकि ठोस बर्फ का तरल पानी से अधिक घनफल होता है। इससे कोशिकाओं की दीवारें नष्ट हो जाती है, इससे कार्बन डाइऑक्साइड, आक्सीजन और वाष्प की विनिमय प्रक्रिया में बाधा पड़ती है।

पौधों को विनाशकारी पाले से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से बचाया जा सकता है । प्रत्यक्ष तरीके इस प्रकार है:

प्लास्टिक या अन्य प्रकार के पलवारों द्वारा: इसमें बाहर निकालने वाली दीर्घ तरंग विकिरणों के कम होने से मृदा के तापमान में वृद्धि होती है। जिसमे फसल को बचाया जा सकता है।

पटल द्वारा: किसी भी पदार्थ से बने पटल को लगाने से जमीन से निकलने वाली दीर्घ तरंग विकिरणों में कमी होती है जिससे तापमान में वृद्धि होती है । इसलिए इसे पाले से बचाव के लिए एस्टेमान किया जाता है।

हीटर द्वारा: हीटर द्वारा मिट्टी तथा पौधों को गर्मी देने से पाले में कमी आ जाती है।

गर्म लहरें एवं अति उच्च तापमान: शीतलहरों की तरह गर्म लहरें भी फसलों के लिए हानिकर है। ये लहरें मार्च से जून के बीच चलती है। खेत के किनारों पर पेड़ों की कतारों को लगाकर भी गर्म लहरों से रक्षा की जा सकती है। तापमान बहुत बढ़ने पर भी सिंचाई द्वारा फसलों की रक्षा की जा सकती है।

कृषि मौसम परामर्श की मुख्य सीमाएँ:

  1. मानसून के आगमन की सूचना के आधार पर खरीफ फसल की बुवाई और रोपाई
  2. अवशेष मृदा जल के आधार पर रबी फसलों की बुवाई
  3. हवा की गति और दिशा के आधार पर उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग
  4. वर्षा की तीव्रता के आधार पर उर्वरकों के प्रयोग में विलंब
  5. मौसम पूर्वानुमान के आधार पर नुकसानदेह कीटों एवं पौध रोगों के प्रकोपों का पूर्वानुमान
  6. फसलों की अच्छी समृद्धि और विकास के लिए नियमित अंतराल पर खरपतवार नियंत्रण
  7. फसल की क्रांतिक अवस्था पर सिंचाई
  8. मौसम आधारित फसल की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई की मात्रा एवं अवधि का निश्चयन
  9. फसलों के उचित समय पर कटाई हेतु परामर्श

कृषि मौसम परामर्श का प्रसारण:

कृषि मौसम परामर्श सेवाओं के प्रसारण हेतु निम्नलिखित संचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है-

  1. आकाशवाणी और विभिन्न रेडियो चैनल्स
  2. दूरदर्शन और विभिन्न निजी दूरदर्शन
  3. समाचार पत्र और पत्रिकाएं
  4. इंटरनेट: फेसबुक, ट्विटर इत्यादि
  5. मोबाइल ऐप: मेघदूत, ई-मौसमएचएयूकृषिसेवा ऐप इत्यादि
  6. कृषि विज्ञान केंद्र
  7. कृषि परामर्शबुलेटिनों का त्वरित वितरण और
  8. कृषको और व्यवस्थापकों के साथविचार विमर्श द्वारा कृषि परामर्श को उपयोगी बनाना

कृषि परामर्श सेवाओं का प्रचार-प्रसार देश की विभिन्न स्थानीय भाषाओं के साथ ही साथ हिंदी और अंग्रेजी में किया जाता है।


Authors:

दिवेश चौधरी* और राज सिंह1

कृषि विज्ञान केंद्र, महेन्द्रगढ़* व कृषि मौसम विज्ञान विभाग1

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार-125004

*ई-मेल: diveshchoudhary@gmail.com

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