Cauliflower and cabbage Production techniques

Cauliflower and cabbage Production techniques

फूलगोभी और पत्तागोभी की उत्पादन तकनीक

सर्दी के मौसम में गोभी वर्गीय सब्जियों में विशेषकर फूलगोभी और पत्तागोभी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनमे विटामिन ए, सी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और अन्य खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है। इनमे कुछ औषधीय गुण भी पाये जाते है जो कैंसर रोधी होते है। सब्जी के अलावा इनका उपयोग सूप और आचार बनाने में भी किया जाता है।

गोभी वर्गीय सब्जियों के लि‍ए जलवायु:

गोभी वर्गीय सब्जियों के लिए ठंडी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक गर्मी और शुष्क स्थिति में इन सब्जियों की गुणवत्ता खराब हो जाती है। ये अधिक ठंड को सहन कर सकती है।

भूमि की तैयारी:

गोभी की अच्छी पैदावार के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। गोभी की खेती के लिए भूमि का पी एच 5.5 से 6.8 तक अच्छा माना गया है। अम्लीय भूमि में गोभी की खेती अच्छी नहीं होती है। खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले एक गहरी जुताई कर हैरो से मिटटी को भुरभरा बना लेना चाहिए और फिर पट्टा चलाकर भूमि को समतल बना ले।

उन्नत किस्मों का चुनाव:

गोभी की खेती में उन्नत किस्मों का काफी महत्व है। अगेती, मध्यम और पछेती खेती के लिए अलग अलग किस्मों का लगाना चाहिए क्योंकि मौसम के अनुसार न लगाने पर उत्पादन और गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ता है।  

फूलगोभी की उन्नत किस्में

फूलगोभी की अगेती किस्में:

इनकी बुवाई मई से जून के अंत तक की जाती है। अर्ली कुंवारी, पूसा कातकी, पूसा दीपाली और पूसा अर्ली सिंथेटिक आदि मुख्य किस्में है।

मध्यम अवधि वाली फूलगोभी की किस्में:

इनकी बुवाई जुलाई से अगस्त के अंत तक की जाती है। पूसा हाइब्रिड-2, पूसा शरद, इम्प्रूव्ड जापानीज, पंत सुभरा, पूसा सिंथेटिक, पूसा हिमज्योति, पूसा सुक्ति, हिसार-1 आदि मुख्य किस्में है।

फूलगोभी की पछेती किस्में:

इनकी बुवाई अक्टूबर से नवम्बर के अंत तक की जाती है। पूसा स्नोबॉल-1, पूसा स्नोबॉल-2, पूसा स्नोबॉल के-1, पूसा स्नोबॉल-16, ऊटी-1 आदि मुख्य किस्में है।

पत्तागोभी की उन्नत किस्में:

पत्तागोभी की अगेती किस्में:

इनकी बुवाई सितम्बर माह में की जाती है। गोल्डन एकर, प्राइड ऑफ़ इंडिया, पूसा सम्बन्ध, पूसा अगेती, कपिन्हागें मार्किट, श्री गणेश गोल, अर्ली ड्रमहेड आदि मुख्य किस्में है।

पत्तागोभी की मध्यम अवधि वाली किस्में:

इनकी बुवाई जुलाई से अगस्त के अंत तक की जाती है। पूसा मुक्ता, सितम्बर आदि प्रमुख किस्में है।

पत्तागोभी की पछेती किस्में:

इनकी बुवाई अक्टूबर माह में की जाती है। ड्रमहेड सेवॉय, पूसा ड्रम हेड, लेट लार्ज ड्रमहेड, सेक्शन-8, हाइब्रिड-10 (संकर) आदि प्रमुख किस्में है। 

गोभी में बीज की मात्रा:-

फूलगोभी की अगेती किस्मों के लिए 200-300 ग्राम प्रति एकड़ तथा मध्यम पछेती किस्मों के लिए 150-200 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज पर्याप्त होता है। पत्तागोभी की अगेती किस्मों के लिए 200-250 ग्राम प्रति एकड़ तथा मध्यम पछेती किस्मों के लिए 150-200 ग्राम प्रति एकड़ बीज की मात्रा पर्याप्त होता है।

गोभी की नर्सरी तैयार करना:

गोभी की फसलों की बुवाई उठी हुई क्यारियों में की जाती है। बुवाई से पहले बीजो को थाइरम और कैप्टान 2 से 3 प्रति किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। बीजो की बुवाई 10 सेंटी मीटर की कतार से कतार की दुरी रखते हुए 10-15 सेंटीमीटर की गहराई पर बुआई करनी चाहिए। बुवाई के 4 से 6 सप्ताह बाद पौध रोपण योग्य हो जाती है। रोपने से पूर्व पौध को एजोटोबैक्टर कल्चर के घोल में 15 मिनट डुबोकर रोपाई करनी चाहिए।

गोभी वर्गीय सब्‍जी की रोपाई की विधि:

अगेती किस्मों में पौधों की रोपाई 45 सें.मी. पंक्तियों के बीच और पौधे से पौधे की बीच की दुरी 30 सें.मी., मध्यम किस्मों में 60 सें.मी. पंक्तियों और 60 सें.मी. पौधे से पौधे की बीच की दुरी तथा पछेती किस्मों में 45 सें.मी. पंक्तियों और 45 सें.मी. पौधे से पौधे की बीच की दुरी पर की जाती है।

खाद एंव उर्वरक:

पौधा रोपण से पहले खेत की तैयारी के समय लगभग 20 से 25 टन गोबर की खाद भूमि में  मिला दे। इसके अतिरिक्त 50 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस और 20 किलो पोटाश प्रति एकड़ डाल दे। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा पौधा रोपण के समय भूमि में मिला दे। बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा छः सप्ताह बाद खड़ी फसल में दो बार छिड़क दे। 

गोभी फसल की सिंचाई:

पौध रोपण के तुरंत बाद हल्का पानी देना चाहिए। अगेती किस्मो में पानी 5-6 दिन के अंतराल और पछेती किस्मो में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फूल बनते और बढ़ते समय सिंचाई आवश्य करनी चाहिए। तैलीय पानी के  साथ जिप्सम का प्रयोग इन फसलों के लिए लाभकारी रहता है।

निराई-गुड़ाई:

खेत में खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए निराई गुड़ाई अति आवश्यक है। गोभी वर्गीय फसलों में साधारणत: 2-3 निराई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। इन फसलों में गहरी और सुबह के समय निराई गुड़ाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनकी जड़े उथली हुई होती है।

खरपतवार नियंत्रण:

गोभी वर्गीय फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशक दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है जैसे 0.5-0.6 किलो फ्लूक्लोरालीन, 1.25 एलाक्लोर और 0.4 किलो पैंडीमेथलीन प्रति एकड़ में डाल दे।

गोभी ब्लाँचिंग:

गोभी की शीघ्र बढ़ने वाली किस्मों में फूल को धुप और पीला पड़ने से बचाने के लिए पतियों को समेटकर फूल के ऊपर बांध दिया जाता है जिसे ब्लाँचिंग कहते है। पतियों को सर्दी के मौसम में 5-6 दिन और गर्मी में 2-3 दिन तक बंधी रख सकते है।

कटाई और उपज:

फूलगोभी की कटाई तेजधार वाले चाकू से उस समय करनी चाहिए जब फूल ठोस और उचित आकर का हो जाये। कटाई के समय ध्यान रखे की कुछ पतियाँ फूल के साथ लगी रहे। फूलगोभी की अगेती किस्मों से 60-80 किवंटल  और माध्यम व पछेती किस्मों से 80-120 किवंटल प्रति एकड़ उपज मिलती है।

ठोस और पूर्ण विकसित पत्तागोभी तुड़ाई के योग्य मानी जाती है। अगेती किस्मों की उपज 80-120 किवंटल और मध्यम व पछेती में 120-160 किवंटल होती है।

गोभी में पौध सरंक्षण:

गोभी के कीट

एफिड:

इनकी रोकथाम के लिए कार्बोरील 5 प्रतिशत के 20 किलो चूर्ण का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे और मेलाथियान 50 ई.सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।

डायमंड बैक मोथ:

ये कीट पतियों को खाता है। इसकी रोकथाम के लिए केलडोन का छिड़काव करे ।

कटवर्म:

ये कीट छोटे पौधों को जड़ो के पास से काट देते है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरोप्यरीफोस का छिड़काव करे ।

गोभी वर्गीय फसलों के रोग:

अर्ध पतन:

यह नर्सरी में लगने वाली मुख्य बीमारी है। बीमार पौधे भूमि की सतह से गल कर गिर जाते हैं।

अर्ध गलन प्रबंधन के लिए बीज को कैप्टन या थिराम से (2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज) और नर्सरी को फॉर्मेल्डिहाइड (20 से 30 मिली प्रति लीटर पानी) से उपचारित करना चाहिए।

काला सड़न:

इस रोग के कारण सबसे पहले पत्तियों के किनारों पर वी आकार के भूरे धब्बे आते है जो बाद में पूरी पत्ती पर फ़ैल जाते है और पत्तिया पीली पड़ने के कारण मुझाकर गिर जाती है।

रोकथाम के लिए बीजों को बोने से पहले 50 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले गर्म पानी में 30 मिनट तक डुबाकर रखे फिर उपचारित बीज को छाया में सुख दे। फसल में बीमारी आने से पहले स्ट्रेप्टोसीक्लीन 3 ग्राम और बविस्टीन 2 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फसल को बचाया जा सकता है।

लालिमा रोग:

यह रोग बोरोन तत्व की कमी के कारण होता है। फूल के बीचो-बीच और डंठल व पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं और डंठल खोखले से हो जाते हैं।

इसके नियंत्रण के लिए 0.3 से 0.5 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का छिड़काव करे।


Authors:

पूजा रानी, वी. पी. एस. पंघाल, शिवानी और वीरसैन

सब्जी विज्ञान विभाग चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

Email: poojadhandey@gmail.com

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