फसलों के कीट एवं रोग प्रबंधन की परम्परागत विधियांं

फसलों के कीट एवं रोग प्रबंधन की परम्परागत विधियांं

Convent।onal methods of crop pest and disease management

फसलों में बीमारीयों तथा कीडों के प्रकोप से उत्‍पादन मे सार्थक कमी होती है। इनके प्रबंधन के लि‍ए रासायनि‍क दवाओं का बहुतायत से प्रयोग कि‍या जाता है परन्‍तू परम्‍परागत तरीके अपनाकर भी फसलों में कीट पतंगों का प्रभावी नि‍यंत्रण कि‍या जा सकता है। इससे रसायनों के अवशिष्ट कूप्ररभाव से बचा जा सकता है। 

  1.  एक किलो लहसुन कूचल कर 2.5 लीटर पानी में, मिट्टी के बर्तन में तथा 200-250 ग्राम तम्बाकू 2.5 लीटर पानी में मिट्टी के बर्तन में अलग अलग सडायें । सात दिनों के बाद दोनों को छान कर आपस में मिला दें तथा 100 ग्राम सर्फ़ और 95 लीटर पानी में मिलाकर गंधी कीट के खिलाफ प्रयोग करें । आवश्यकतानुसार इसी अनुपात में मिलकर छिड़काव करें ।
  2. 50 ग्राम लाल सुखा मिर्च पाउडर 13 लीटर पानी में रात को भिगो लें तथा सुबह छान कर धूप में माहू के नियंत्रण के लिए प्रयोग करें ।
  3. 20 ग्राम हींग 50 लीटर पानी में घोल कर लाल मकड़ी तथा सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए प्रयोग करें ।
  4. 20 ग्राम कपूर 50 लीटर पानी में घोल कर लाल मकड़ी के नियंत्रण के लिए प्रयोग करें ।
  5. मक्के के खुखड़ी को मिट्टी के बर्तन (छेदे हुए) में रखकर धक दें तथा इसे दीमक वाली जगह पर मिट्टी में गाड़ दें । एक हफ्ते में इसे निकाल कर खूखुड़ियाँ जला दें । नीम की खली 25 किलो प्रति एकड़ का प्रयोग करें ।
  6. एक किलो हरी मिर्च तथा 500 ग्राम लहसुन दोनों को अच्छी तरह पीस लें तथा पानी में घोल कर छान लें । इस घोल का 200 लीटर पानी में मिलकर मशीन से छिड़काव करे । गदहिला के लिए यह कारगर उपाय है ।
  7. 15 किलो नीम की हरी पत्तियों को 200 लीटर पानी में 4-6 दिन तक गलाएँ । जब पानी का रंग हरा – पीला हो जाये तो पत्ती निकल कर फेंक दें । पानी छान कर एक एकड़ में गदहिला के नियंत्रण के लिए छिडकाव करें ।
  8. गदहिला और इल्लियों के रोकथाम के लिए 2 किग्रा नीम की पत्ती को 10 लीटर पानी में आधा घंटा उबालें ।ठंडा होने पर छान ले तथा 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें ।
  9. 2 किलो तम्बाकू के डंठल को बारीक कूट कर 5 लीटर पानी में उबालें । जब पानी 2 लीटर रह जाएँ तब उसमे 500 ग्राम साबुन डाल कर उबालें ।साबुन घुल जाने पर घोल ठंडा कर छान लें । एस घोल को 200 लीटर पानी में मिलकर फसल पर प्रति एकड़ छिड़काव करने से इल्ली तथा माहू का नियंत्रण होगा।
  10. बेशरम (काबुली आक ) के पत्ते 50 ग्राम 2 लीटर पानी में डाल कर उबालें।  जब पानी 1 लीटर रहें तो इसमें ज्वार के दाने डाले। जब दाने फूल जाए तब निकल कर चूहों के बिल के पास रख दें । चूहे इसे खाते ही मर जायेगें
  11. हींग की एक पोटली बनाकर नाली में बाँध दें । हींग धीरे – धीरे घुल कर पानी के साथ खेतो में जायेगा जिससे दीमक मर जायेगें ।
  12. खेत के जिस भाग में उकठा रोग आता है उस जगह पर भूसा का मोटा सतह बिछा कर उसमें आग लगा दें आग बुझते ही तुरंत पानी डाल दें । एस जगह पर पुनः उकठा नहीं लगेगा ।
  13. खेत के जिस भाग में उकठा लगता है वहां आक की पत्तियां फैलाकर हैरो से जुताई कर दें । वहा उकठा नहीं लगेगा ।
  14. एक लीटर गौ मूत्र 5 लीटर पानी में मिलाकर थोडा-थोडा बैगन के जड़ों में डाले । उकठा नहीं लगेगा ।
  15. एक लीटर गौ मूत्र 5 लीटर पानी में मिलाकर धान में पत्तियों पर कूंची से छिड़काव करें जीवाणु जनित झुलसा का नियंत्रण हो जायेगा ।
  16. दीमक के उपचार हेतु मिट्टी पर खरपतवार बिछाकर उस पर पानी डाल दें, दीमक नष्ट हो जायेगें।
  17. गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करके सिचाई करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है तथा खरपतवार का नियंत्रण होता है ।
  18. बीज भंडारित करते समय यदि धान में थोडा सा हल्दी पाउडर मिला दे तो घुन नहीं लगेगा ।
  19. चना, मूंग तथा उड़द आदि के बीज को नमी वाली लाल मिट्टी में मिलाकर धुप में सुखाएं और भंडारित करें इससे फसल में कीटों के आक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है ।
  20. गेहूं के खेत में पत्तियां अगर पीली पडने लगे तो 250 ग्राम लहसुन, 250 ग्राम तम्बाकू की गांठ तथा 1 किलो नीम की हरी पत्तियों को एक साथ पीस कर मिश्रण को 1 लीटर गौ मूत्र में मिला लें , तत्पश्चात इसमे 200 लीटर पानी मिलाकर मिश्रण को और तरल कर ले , अब इस मिश्रण का छिड़काव खेत में करें , दो हफ्ते बाद से आप देखेंगे की खेत में पत्तियों का पीला पड़ना रुक जाएगा ।
  21. गेहूं में पीली पत्तियों का एक इलाज यह भी हैं की खेत के जिस भाग में पत्तियां पीली पड़ी है वहां खैरा की लकड़ी गाड़ दें इससे भी पत्तियां पीली नहीं पड़ेगी ।
  22. गेहूं के खेत में चूहे बहुत लगते है , यह किसानो की एक बड़ी समस्या है , इसके लिए यदि खेत में 4-5 मीटर की दूरी में मूली लगा दें तो मूली की गंध से चूहे नहीं आएंगे ।
  23. टमाटर की फसल को कुकुरा/मोज़ेक रोग से बचने के लियें 5 किलो राख और 100 मिली मिट्टी का तेल अच्छी तरह मिलाकर एक एकड़ खेत में छिडकें तो कुकुरा/मोज़ेक  रोग से फसल का बचाव होगा ।
  24. टमाटर के खेत को माहू के प्रकोप से बचने के लियें खेतों के चारों तरफ तथा बीच –बीच में गेंदे का पौधा लगाएं तो फसल माहू के प्रकोप से बची रहती है ।
  25. मक्के की फसल को बिमारियों तथा कीटों के प्रकोप से मुक्त रखना हो तो खेतों में सर्वप्रथम विपरीत दिशा में हलकी जुताई कराए तथा महुआ के फूल को पुरे खेत में फैला दें , पुनः जुताई एक बार फिर से कराएं तत्पश्चात बुवाई करें ।
  26. अरहर की फसल पर बकरी के दूध के छिड़काव से उकठा बीमारी में नियंत्रण किया जा सकता है ।
  27. चने को फली छेदक कीट से बचाने के लियें 5 किलो राख में 10 मिली मिट्टी का तेल अच्छी तरह से मिलाकर एक एकड़ खेत में छिडके तो फली छेदक कीट का प्रकोप अवश्य ही कम होगा ।
  28. माहू पर नियंत्रण पाने के लियें आधे किलो गुड़ को चार से पांच बाल्टी पानी में घोल लें तथा तैयार घोल का छिड़काव फसल पर करें, गुड़ से लेडी बर्ड बीटल नामक कीट ( मित्र कीट ) आकर्षित होते है,जो माहू को खाते हैं ।
  29. बैगन की फसल को फली छेदक कीट से बचाने के लिए पौधों की जड़ो में थोडा –थोडा गुड़ डाल दें तो फली छेदक कीट से छुटकारा मिलेगा क्योकि गुड़ के कारण चीटें खेत में आने लगेंगे जो फली छेदक कीट को खा जाते है ।
  30. धान को भूरा फुदका से बचाने के लियें नीम की पत्तियों को एक बाल्टी में भरकर उस पर 10 लीटर उबलता पानी डाल दें । एक दिन बाद इसको धूप में रखकर पत्तियों को निकाल दें , इस घोल को 1:10 के अनुपात में पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें , भूरा फुदका नियंत्रण के लियें यह विधि कारगर है ।
  31. फसलों को माहूँ के प्रकोप से बचाने के लियें 250-३०० ग्राम धतूरे की पत्तियों व् टहनियों को 1 लीटर पानी में उबालकर उसमें पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से 6-७ घंटो के अन्दर माहू का सफाया हो जाता हैं ।
  32. बैगन के पौधों में फलों को कीड़ों के प्रकोप से बचाने के लियें एक लीटर पानी में 8-10 कुवांरपट्ठा की पत्तियों को पीस कर मिलाएं तथा पौधों में छिडकाव करें, इससे बैगन में कीड़े नहीं लगेंगे ।
  33. चना मटर व अरहर में फली छेदक कीट लगने से बचाने के लियें इसके खेत में दो लाइन के अंतराल में एक लाइन धनिया बोयें ।
  34. फसलो को कीटों के प्रभाव से बचाने के लियें शरीफा और अरबी की पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबाल लेते है । इस सत को 200 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करते है ।
  35. अरहर की फसल को हरे कीटों से बचाने के लियें 10 मिलीग्राम कैरोसिन तेल को 10 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से इन कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है , इससे फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है ।
  36. धान व ज्वार के भण्डारण से पहले अनाज में बेहया / नफतिया की पत्तियों को मिलाकर फिर भण्डारण करते है, बेहया की तीखी /कडवी गंध अनाज को सालो तक कीटों से बचाए रखती हैं ।
  37. गेहूं को कीड़ों से बचाने के लिए जहाँ अनाज के भण्डारण करना है उस स्थान पर 2-3 फीट गहरा गड्ढा बनाये उसकी ताली को गेहूं के भूसे की हल्की परत से ढक दे फिर उसमे क्रमशः भूसे और अनाज की परत बारी-बारी से लगते हुए उसे भर दें , ऐसा करने से गेहूं में कीड़ें नहीं लगेंगे और अनाज ज्यादा दिन तक रखा जा सकता हैं ।
  38. बीज का भण्डारण करते समय यदि एक पैकट हींग को रूई में लपेटकर बीज के साथ रख दें तो बीज किसी भी तरह के कीड़ों से काफी समय तक सुरक्षित रहता है ।
  39. खीरे और सेम को चीटियों से बचाने के लियें बीज बोने से पूर्व बीज को मिट्टी के तेल से भिंगो देना चाहियें , तत्पश्चात बोने से खीरे और सेम की फसल सुरक्षित रहती है ।
  40. चने की पत्तियों का इस्तमाल अनाज के भण्डारण को लम्बे समय तक रखने के लिए किया जा सकता है , चने की पत्तियों को पीस कर अनाज के साथ मिलाकर रख देना चाहियें । ऐसा करने से अनाज में कीड़ें अथवा घुन नहीं लगते ।
  41. सब्जियों को कीड़ों के आतंक से बचाने हेतु 2 किलो नीम की पत्ती, आधा किलो नमक , 5 लीटर पानी को 11 दिन तक मिट्टी के पात्र में रखकर सड़ने दें । उसके बाद उसे छानकर छिड़काव करने से कीड़े नही लगते हैं ।
  42. अनाज के भण्डारण के समय डेहरी को अनाज से भरने के बाद एक मोमबत्ती जलाकर उस डेहरी में रखने के बाद अच्छी तरह बंद कर देना चाहियें , ऐसा करने से डेहरी के अन्दर उपस्थित आक्सीजन व नमी पूर्णत: समाप्त हो जाति है और अनाज ख़राब नही होता है ।
  43. खेसारी की डाल को फली भेदक से बचाने के लियें खेसारी की फली को बिना बीज निकाले उसमें लाल मिट्टी मिलाकर रखने से उस पर फली भेदक का असर नहीं होता हैं ।  

 


लेखक

डॉ. टी.ए. उस्मानी, डॉ. प्रदीप कुमर एवं राजीव कुमार

जैविक भवन, क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र

सेक्टर-ई. रिंग रोड, जानकीपुरम,लखनऊ(उ.प्र.)

इ-मेल: ।pmup12@n।c.।n

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