सब्जी फसलों में आनुवांशिक विविधता का दोहन हेतु भ्रूण बचाव तकनीक 

आधुनिक युग में बढ़ते यातायात के साधन एवं औद्योगिकरण के फलस्वरुप वातावरण प्रदूषण काफी बढ़ा है। कृषि मे विशेषकर सब्जी फसलों में रासायनिक कीटनाशकों, उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा व मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है। इस स्थिति में आवश्यक है कि ऐसी तकनीकी व किस्मों को विकसित किया  जाये जिसे किसान अपनाकर कम लागत में स्वस्थ्य उत्पादन के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य में भी वृद्धि कर सकें।

सब्जी फसलें आनुवंशिक विविधता की दृष्टि से काफी सम्पन्न है। जाति उद्भव के दौरान एक सब्जी फसल उसी परिवार या वंश की सब्जी फसल से भिन्नता के साथ-साथ कुछ समानता भी दर्शाती है। प्रायः जंगली संबंधित जातियों में जैविक (रोग प्रतिरोधकता, कीट प्रतिरोधकता, सूत्रकृमि प्रतिरोधकता इत्यादि) व अजैविक (उच्च व निम्न ताप, सूखा, प्रतिकूल परिस्थितियाॅं) प्रतिबलों को सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है।

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में सब्जी उत्पादन को बढ़ाने व कीट व्याधियों व रोगों से नुकसान कम करने हेतु आनुवंशिक विविधता का दोहन अत्यधिक आवश्यक है। इन जंगली/ संम्बधित प्रतिरोधी जीनों को नवीनतम ग्राही प्रजातियों में समावेशीकरण के दौरान लैंगिक विसंगता या भ्रूण अधः पतन के कारण असफलता का सामना करना पड़ता है। अतः सब्जी फसलों में जंगली आनुवंशिक विविधता का दोहन हेतु भ्रूण बचाव तकनीक पिछले दशको से अत्यधिक कारगर सिद्ध हुआ है।

सब्जी फसलों की जंगली/ सम्बंधित जातियां

क्र.सं जाति उपयोगी लक्षण
1. सोलेनम पैन्नेली सूखा प्रतिरोधी
2. एबलमोसकस मनीहोट पीली शिरा मौजेक फल/तना छेदक प्रतिरोधकता
3. पाइसम फल्वम चूरणि‍ल आसित प्रतिरोधी जीन प्रतिरोधकता
4. ब्रैसिका प्राजातियाॅं काला सड़न रोग प्रतिरोधकता
5. कुकमिस सेताइवस वेराइटी हार्डविक्की डाउनी मिल्डयू प्रतिरोधकता
6. सोलेनम डेमीसम पछेती अंगमारी प्रतिरोधकता
7. सोलेनम पेरुवियनम वाइरस प्रतिरोधकता
8. सोलेनम चाइलेन्स लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधकता
9. मोमोरिडिका वाल्समिना फल मक्खी, वाइरस, कवक प्रतिरोधकता
10. पाइसम इलाटियस फयूजैरियम म्लानि प्रतिरोधकता

उपरोक्त कुछ उदाहरणें  के अलावा ”विश्व सब्जी केन्द्र“ में लगभग 400 सब्जी प्रजातियों के 56000 संग्रह संरक्षित है। उपलब्ध जननद्रव्य का आंकलन व वांछित लक्षणों की खोज निरंतर करने की आवश्यकता है ताकि इस आनुवंशिक विविधता का भरपूर उपयोग सब्जी प्रजनन में किया जा सकें।

अंतरजातीय संकरण में समस्याएः

अंतरजातीय संकरण के दौरान फल का विकास न होना, बिना बीज के फल बनना अथवा सिकुड़े या अक्षम बीज बनना प्रक्रियाएं प्रदर्शित होती है।

निषेचन पूर्व समस्याएं:

  • फलन व्यवहार में भिन्नता
  • परागकण अंकुरण में असफलता
  • धीमी, कम अथवा विरुपत परागनलिका की वृद्धि
  • असामान्य निषेचन

 निषेचन वाद समस्याएं:

  • भ्रूण पतन
  • भ्रूण का विकास धीमा, हासित
  • भ्रूणपोष का विकास कम अथवा नगण्य
  • भ्रूण- भ्रूणपोष असंगता बीजाण्ड पतन

चित्र१: गोभी - सरसों अंतरजातीय संकरण के दौरान भ्रूण

 

इस तरह की निषेचन के बाद समस्याए मुख्यतयाः आनुवंशिक कारकों तथा वातावरणीय कारकों के द्वारा भी प्रभावित होती है। अतः इन बाधाओं को दूर कर, दो परस्पर भिन्न जातियों में अंतरजातीय संकरण भ्रूण बचाव तकीनक से संभव है।

भ्रूण बचाव तकनीकः

ऐसी सभी विधियां या तकनीकिया जो कमजोर/अक्षम भ्रूण को पोषित कर उसे एक सक्षम पादप तक बनाने में मदद करती है, भ्रूण बचाव तकनीक कहलाती है। भ्रूण बचाव तकनीक को कई दशकों से प्रयोग कर अंतरजातीय संकरण द्वारा वांछित लक्षणों को किस्मों/प्रजातियों में स्थानांतरण किया गया है। भ्रूण बचाव तकनीक की सफलता मुख्यतयाः निम्न कारकों पर निर्भर होती है।

  • बिना क्षति के भ्रूण निकालना
  • उपयुक्त पोषक माध्यम
  • निरंतर भ्रूण वृद्धि
  • पौध निर्माण

दूरस्थ संकरण के दौरान मुख्यतयाः संकर भ्रूण का पतन शीघ्र होना शुरु हो जाता है। अतः विभिन्न सब्जी फसलों में भ्रूण बचाव हेतु परागण क्रिया के बाद “भ्रूण बचाव अवस्था” का निर्धारण हेतु अनुसंधान करने की महती आवश्यकता है। साथ ही विभिन्न पोषक तत्वों की उचित मात्रा जो कमजोर भ्रूण का पोषित कर नवोद्भिद बना सकें,का मानकीकरण करने की जरुरत है।

सब्जी जातियों के बीज विकास गुणधर्म, बीजाण्ड का आकार, भ्रूण निकालने मे आसानी/ कठिनता के आधार पर निम्नलिखित विधियॉं भ्रूण बचाव हेतु प्रयोग मे लाई जा सकती है।

1. अंडाशय सवंर्धन:

ऐसी सब्जी प्रजातिया जिनमें भ्रूण निकालना कठिन हैं क्योकि इनके बीजाण्ड बहुत छोटे होते है। अतः अंडाशय का उचित भ्रूण बचाव माध्यम पर नियंत्रित वातावरण में संवर्धन कर संकर नवोदभिद् प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण: ब्रैसिका, इनमें विकसित हुए अंडाशय से पुनः बीजाण्ड निकालकर संर्वधित करते हैं।

2. बीजाण्ड सवंर्धन:

बीजाण्ड, अंडाशय से निकालकर, उचित भ्रूण बचाव माध्यम पर नियंत्रित वातावरण में संर्वधन कर संकर नवोद्भिद प्राप्त कर सकते है। उदाहरणः भिण्डी, फूलगोभी, बंदगोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च इत्यादि।

3. भ्रूण सवंर्धन:

सामान्तयाः लेग्यूम सब्जी फसलों में बीजाण्ड आकार में बड़ा होता है। इनमें भ्रूण निकालना सुविधाजनक रहता है। अतः संकर भ्रूण को उचित पोषक माध्यम पर नियंत्रित वातावरण में संवर्धन कर संकर नवोद्भिद प्राप्त कर सकते है। उदाहरण: मटर, सेम, कुकुरविटस इत्यादि।

अनुसंधान में उपलब्धियाः

  1. ब्रैसिका ओलेरेसिया में ब्रैसिका नेपस से डाउनी मिल्डयू प्रतिरोधकता का स्थानांतरण (चियांग एवं क्रेट, 1983)
  2. काला सड़न रोग प्रतिरोधक का ब्रैसिका जन्सियां से ब्रैसिका ओलेरेसिया में स्थानांतरण (टोग्क एवं ग्रिफथ, 2004)
  3. चूणिर्ल आसित, सीमवी और डब्लयूएमवी प्रतिरोधकता का कुकुरविटा एक्यूडोरेनसिस से सी. पेपो में स्थानांतरण
  4. टमाटर में सोलेनम पेरुवियनम से वाइरस, कवक व निमेटोड प्रतिरोधी स्थानांतरण
  5. पोटेटो लीफ रोल वाइरस प्रतिरोधकता का सोलेनम यूटवरोसस से सोलेनम ट्यूबरोसस में स्थानांतरण (चावेज व अन्य सहयोगी, 1988)

उपरोक्त उपलब्धियों के साथ-साथ इसके अलावा अन्य सब्जी फसलों में भी कई वांछित लक्षणों का समावेशीकरण हुआ है। परन्तु जलवायु परिवर्तन के इस दौर में नित प्रतिदिन अत्यधिक जनसंख्या का दबाव सब्जी वैज्ञानिकों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य करने को झकझोरता है।

नये-नये जैविक व अजैविक प्रतिबलों, का सामना करने हेतु व गुणवत्ता युक्त सब्जी प्रदर्शन हेतु हमें निरंतर नये आनुवंशिक स्त्रोंतो व जीनों को दोहन करने की जरुरत है। आज के इस दौर में जैवप्रौद्योगिकी की अभिनव तकनीकों को सब्जी फसल सुधार में प्रयोग कर हम न केवल, गुणवत्ता पूर्ण सब्जी उत्पादन कर सकते है, बल्कि मृदा, मानव व वातावरण स्वास्थ्य को सुधार सकते है।


Authors:

बृज बिहारी शर्मा

शाकीय विज्ञान संभाग, भा.कृ.अ.सं., नई दिल्ली

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