Cultivation of Kusumi Natural Resin (Kusumi Lac)

कुसुम वृक्षों पर  लाख कीट का पालनलाख (Lac) एक प्राकृतिक राल है जो मादा लाख कीट द्वारा मुख्य रुप से प्रजनन के पश्‍चात स्त्राव के फलस्वरुप बनता है। लाख कीट की दो प्रजातियां होती हैं जिन्हें कुसमी और रंगीनी कहते हैं।

प्रत्येक प्रजाति से वर्ष में दो फसलें ली जाती हैं लेकिन पष्चिम बंगाल के कुछ समुद्री क्षेत्र के आस-पास बिलायती सिरिस पर एक वर्ष में तीन फसलें भी ली जाती हैं।

लाख की खेती ग्रामीणों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत है। हमारे देष में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहोॅं लाख का उत्पादन नियमित रुप से होता आ रहा है तथा दूसरे क्षेत्र भी हैं जहाॅं संसाधन तो उपलब्ध हैं लेकिन अज्ञानता के कारण संसाधनों का उपयोग नहीं हो रहा है।

लाख उत्पादक क्षेत्रों में भी आधुनिक तकनीकी ज्ञान न होने के कारण उत्पादन उतना नहीं हो रहा है जितना हो सकता है।

लाख की खेती के लिए मुख्य पोषक वृक्षों/ पौधों में कुसुम, पलास, बेर एवं सेमियालता का नाम प्रचलित है।

इसके अलावा भी कई अन्य वृक्षों/ पौधों जैसे एकेसिया ऐरेबिका, ग्रेविया, अल्बीजिया ल्युसिडा, अल्बीजिया प्रोसेरा, सोरिया रोबस्टा, सोरिया तालुरा, कजानस कजन पर लाख का उत्पादन किया जाता है परन्‍तू इन वृक्षों या पौधों पर लाख का उत्पादन वाणिज्यिकी रुप से बहुत महत्वपूर्ण नहीं है।

लाख पोषक वृक्षों में कुसुम (श्‍लेइचेरा ओलिओसा) वृक्ष का स्थान सर्वोत्तम है एवं इससे लाख की उत्पादकता भी अच्छी होती है। कुसुम के वृक्षों पर रंगीनी प्रजाति के लाख कीट का पालन नहीं किया जाता है, अतः रंगीनी एवं कुसमी लाख कीट में भेद करने के लिये यह एक अच्छा वृक्ष है।

इस वृक्ष पर ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन दोनों मौसम के लाख कीट को पाला जा सकता है। रंगीनी लाख कीट की तुलना में कुसमी लाख कीट नजदीक-नजदीक बैठते हैं एवं इनकी लाख उत्पादन क्षमता रंगीनी के मुकाबले अधिक होती है।

कुसमी लाख से अगहनी (शीतकालीन) और जेठवी (ग्रीष्मकालीन) फसल क्रमशः जून-जुलाई से जनवरी-फरवरी तथा जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक की होती है। सामान्य परिस्थिति में कुसुम वृक्ष पर कुसमी कीट की उत्पादन क्षमता छः माह की फसल में 7-8 गुनी होती है जिसका तात्पर्य है कि एक कि. ग्रा. बीहन लाख लगाने से 7-8 कि.ग्रा. बीहन का उत्पादन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

कुसुम वृक्ष आकार में काफी विशाल होते हैं। सामान्यतः एक औसत आकार के वृक्ष पर 5 से 8 कि.ग्रा. बीहन लाख की आवश्यकता होती है जिससे छः माह पश्चात 35-60 कि.ग्रा. बीहन लाख प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि लाख की खेती एक अच्छा एवं फायदेमंद व्यवसाय है। 

लाख कीट पालन की प्रक्रियाएं:

वृक्षों की काट-छांट, कीट संचारण, फुुंकी हटाना, फसल देखभाल, फसल कटाई, लाख छिलाई, लाख विपणन

वृक्षों की काट-छांटः

लाख कीट पालन हेतू वृक्षों की काट-छांटकीट संचारण के समय नर्म, रसदार टहनियों का होना आवष्यक है जिससे षिषु कीट आसानी से रस चूस सकंे, इसके लिए यह सुनिष्चित करना होगा कि कीट संचारण के 18 माह पूर्व कुसुम वृक्ष की काट-छांट कर दी गई है।

कुसुम वृक्ष की काट-छांट का उचित समय जनवरी-फरवरी या जून-जुलाई है और इसी समय लाख कीट भी परिपक्व होती है। वृक्षों की काट-छांट करते समय यह ध्यान रखना है कि काट-छांट उपर से करते हुए तब नीचे की तरफ आया जाय एवं हमेषा तेज धार वाली दावली या कुल्हाड़ी का प्रयोग किया जाय ताकि काटते समय डालियां फटने न पाय।

यहाॅं इस बात का ध्यान रखा जा सकता है कि पहली बार काट-छांट करने के 12 माह पष्चात् भी कीट संचारण कर सकते हैं।

कीट संचारणः

लाख उत्‍पादन के लि‍ए कीट संचारणवृक्षों की नर्म टहनियों पर शिशु कीट फैलाने की प्रक्रिया ही कीट संचारण कहलाती है। इसके लिये बीहन लाख, टहनियों के लगभग 6’’ के टुकड़े काट लेते हैं, काटते समय बीहन लाख टहनियों के ऐसे भाग जिस पर पपड़ी नहीं है, हटा देते हैं।

बीहन की कटाई रोलकट सिकेटियर से करते हैं। लगभग 100 ग्राम बीहन का बण्डल क¨ दोनों ओर प्लास्टिक सुतली से बाॅंध लेते हैं, बढ़ी हुयी सुतली से मोटी डाली पर इस प्रकार बाॅंधते हैं कि इससे निकले हुये शिशु कीट आगे उपलब्ध नर्म टहनियों पर पूर्ण रूप से बैठ जायें।

सामान्यतः 20 ग्राम बीहनलाख प्रति मी. नर्म टहनी या कटे सिरे की दर से आवश्कयता होती है।

एक औसत आकार का कुसुम वृक्ष पर 5-8 कि. ग्रा. बीहन की आवश्यकता होती है यदि वृक्ष काफी बड़ा हो तो लगभग 20-25 कि.ग्रा. बीहन भी लगाना पड़ सकता है। यह भी ध्यान देना चाहिए कि ग्रीष्मकालीन फसल ठंडी जगह लगाये जाएं जहाॅ मिटटीी में नमी हो या वन अधिक घने हों।

बीहन लाख को वृक्ष के भीतरी भाग में तथा दक्षिण दिशा की ओर बाॅधे जाएं जिससे धूप की गर्मी का प्रभाव कम या न पडे़। जून-जुलाई में बीहन को वृक्ष के बाहरी भाग में बाॅधना चाहिए। बीहन को ऐसी मोटी डाली पर बाॅधें जिसके आगे की तरफ 5-6 मी. नर्म टहनी उपलब्ध हो ।

कीट निर्गमन होने पर शीघ्र ही बीहनलाख को वृक्ष पर बाॅध देना चाहिए। बीहन लाख को कीटनाशक के घोल में उपचार करके फिर पेड़ों पर बाॅधने की भी सलाह दी जाती है ।

यदि 60 मेश नाइलान जाली के थैले (27ग्10 से.मी.) उपलब्ध हो तब बीज लाख इसमें भरकर डालियों पर बाॅंधना चाहिये। इससे एक तो छोटे बीहन टुकड़ों का भी उपयोग हो जाता हैं तथा शत्रु कीटों की रोकथाम का उपाय भी हो जाता है।

फुंकी हटानाः

बीहन लाख से सम्पूर्ण लाख शिशु कीट निर्गमन के पश्चात बची लाख डंडी ही फुंकी लाख कहलाती है जैसे ही इसमें से कीट निर्गमन समाप्त हो इसे वृक्षों से उतारकर छील देना चाहिये एवं बिक्री कर देना चाहिये ।

वजन के आधार पर बीहनलाख का लगभग 70-75 प्रतिशत डंडी समेत या 50-55 प्रतिशत छिली लाख प्राप्त हो जाती है। डंडी सहित फुंकी लाख का संग्रहण नहीं करना चाहिये क्योंकि इसमें शत्रुकीट अच्छी तरह से पनपते हैं जबकि छिलाई पश्चात ऐसा नहीं होता।

बीहनलाख की खाली टहनियों को कीट निर्गमन के पश्चात् तुरन्त वृक्षों से खोलकर एकत्रित कर हटाने के कई लाभ हैं (क) बीहन लाख की टहनियाॅ सूखने के पश्चात् जमीन पर गिरने से बचाया जा सकता है (ख) शत्रु कीटों को बीहन लाख से नयी फसल पर जाने से रोका जा सकता है।

फसल देखभालः

लाख फसल की देखभाल फसल की देखभाल सामान्यतः मौसम एवं शत्रु कीटों के दुष्प्रभाव से बचाने के लिये किया जाता है जिसके लिये वयस्क नर कीट निकलने के समय का ज्ञान का विशेष महत्व है क्योंकि दवा के छिड़काव का समय वयस्क नर कीट निकलने के समय पर ही निर्भर करता है।

वयस्क नर कीट निकलते ही प्रजनन की प्रक्रिया आरम्भ कर देते हैं। यह समय कुसमी की दोनों फसलों में भिन्न होता है।

लाख की ग्रीष्मकालीन फसल (जेठवी)

जेठवी फसल जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक की होती है एवं नर के वयस्क कीट इस फसल में वृक्षों पर बीहन चढ़ाने के 65-70 दिन पर निकलना प्रारम्भ करते हैं जो लगभग 15 दिनों तक निकलते हैं और इस समय कोई दवा का छिड़काव नहीं किया जाता है।

जेठवी फसल की मुख्य समस्यायों में क्राईसोपा नामक कीट का लाख फसल पर आक्रमण देखा जाता है साथ ही साथ अधिक तापमान के कारण लाख कीट का मरना भी एक समस्या है। यूब्लेमा और स्यूडोहाइपाटोपा का भी लाख फसल पर आक्रमण होता है।

दवा का छिड़कावः

  • प्रारम्भिक अवस्था में वृक्षों पर बीहन लाख चढ़ाने के 28-30 दिन पर इथोफेनप्राक्स 02 प्रतिशत अथवा फिप्रोनील (5ः ई.सी.) का 0.007 प्रतिषत अथवा इन्डोक्साकार्ब (15.8ः ई.सी.) 0.007 प्रतिषत एवं कारबेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल का लाख टहनियों पर छिड़काव करना चाहिए।
  • क्राइसोपा का आक्रमण होने पर दूसरा छिड़काव भी उपरोक्त कीटनाषी दवा का 60-62 दिन पर (बीहन पेड़ों पर चढ़ाने से) कर सकते हैं।
  • अधिक तापमान से बचाने हेतु शाम को कभी-कभी वृक्षों पर पानी का छिड़काव भी करना चाहिए।
  • इथोफेनप्राक्स 02 प्रतिशत घोल = 2 मि.ली. इथोफेनप्राक्स दवा प्रति लीटर पानी फिप्रोनिल 1.5 मि.ली. प्रति लीटर या इन्डोक्साकार्ब 0.7 मि.ली. प्रति लीटर एवं कारबेण्डाजिम हेतु इसी के 15 ली. घोल में लगभग 15 ग्राम पावडर।

ध्यान रखने योग्य बिन्दुः

  • वृक्षों पर बीहन बाॅंधते समय भीतर-भीतर बाॅंधे जिससे गर्मी के दिनों में धूप सीधा लाख कीट पर न पड़े।
  • जेठवी फसल हेतु कीट संचारण ऐसे वृक्षों पर करें जहाॅं पेड़ नजदीक-नजदीक हों। साल वृक्ष वन के नजदीक हो या जहाॅं का तापमान कम रहता हो।
  • जेठवी फसल उत्पादन हेतु घने पेड़ों को प्राथमिकता देना चाहिये।
  • अधिक तापमान से फसल बचाने के लिये पानी का प्रबन्ध अवश्य कर लेना चाहिये।

लाख की शीतकालीन फसल (अगहनी)

यह फसल सामान्यतः जून-जुलाई से जनवरी-फरवरी तक की होती है एवं वयस्क नर कीट बीहन लाख चढ़ाने के लगभग 45 दिन पर निकलना प्रारम्भ होता है जो लगभग 15 दिन तक निकलते हैं किसी भी दवा का छिड़काव इस अन्तराल में नहीं किया जाता है।

अगहनी फसल की मुख्य समस्यायों में बीहन चढ़ाने के 25-35 दिन पर क्राइसोपा, सफेद इल्ली एवं काली इल्ली का प्रकोप होना है। लगातार बारिस एवं हवा में अधिक नमी के कारण लाख फसल पर फफंूद का आक्रमण हो सकता है। कीट संचारण के समय बारिस होने से लाख शिशु कीटों का पानी के साथ बहना हो सकता है।

दवा का छिड़कावः

  • क्राइसोपा का आक्रमण ह¨ने पर बीहन चढ़ाने के 25-30 दिन पर इथोफेनप्राकस 02 प्रतिशत एवं फफंूदनाशक कारबेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
  • उपरोक्त मिश्रित दवा का दूसरा छिड़काव 38-40 दिन पर ( क्राइसोपा के अंडे या इल्ली दिखने पर ) किया जा सकता है।
  • 62-65 दिन पर तीसरा छिड़काव क्राइसोपा के अंडे या इल्लियाॅं होने पर इथोफेनप्राक्स अथवा इन्डोक्साकार्ब (7 मि.ली. प्रति लीटर) एवं साथ में कारबेन्डाजिम फफूंदनाशक पाउडर भी मिलाकर देना चाहिये।

ध्यान रखने योग्य बिन्दुः

  • वृक्षों पर बीहन बाॅंधते समय बाहर-बाहर की डालियों पर बाॅंधे।
  • ऐसे पेड़़ों पर कीट संचारण करें जो खुली जगह हो। पेड़ दूर-दूर हो एवं कम घने हों।
  • बीहन को पेड़ों पर 60 मेश की नाइलान जाली की जगह अनुसंषित कीटनाषी से उपचार करके पेड़ों पर बांधें।
  • सम्भावित बारिस के समय दवा का छिड़काव न करें यदि दवा छिड़काव के 1 दिन के भीतर वर्षा हो जाये तो एक बार पुनः दवा छिड़काव करना चाहिये।
  • फफंूदनाशक के छिड़काव का प्रभाव लगभग 15 दिन तक रहता है अतः दुबारा इसका छिड़काव 16-20 दिन पर आवश्यक है लेकिन यदि बीच में वर्षा हो जाये तो बन्द होने पर पुनः सिर्फ फफंूदनाशक का छिड़काव कर देना चाहिये।
  • एन्डोसल्फान से क्राइसोपा की रोकथाम नहीं हो सकता लेकिन इथोफेनप्राक्स का प्रभाव सफेद एवं काली इल्ली पर भी होता है अतः इनका प्रयोग इसी के अनुसार करना चाहिये।

फसल कटाई

बीहन लाख की कटाई सिकेटियर से करनाबीहन लाख के परिपक्व होने पर कटाई सिकेटियर से करना चाहिए। सिर्फ पतली टहनियों को ही काटना चाहिए अन्यथा पेड़़ छोटा हो जायेगा और उत्पादन भी कम होगा ।

यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमेशा तेज धार करके ही फसल की कटाई की जाय। यह भी ध्यान रहे कि लगभग 5 प्रतिशत षिषु कीट के निर्गमन के पष्चात् ही फसल कटाई की जाय।

लाख छिलाई

सामान्यतः कुसमी लाख को टहनी समेत बेची जाती है लेकिन यदि पपड़ी दूर-दूर है या लाख दाने-दाने में है तो इसे छीलकर ही बेचना पडे़गा, छिलाई चाकू एवं हाथ से चलने वाली मशीन से की जा सकती है।

छिलाई करने के पश्चात् लाख को संग्रह करने से उसमें शत्रु कीट नहीं पनपते हैं। एक सफल लाख उत्पादक के लिये आवश्यक है कि सभी लाख खेती की प्रक्रियायें समय से पूरी कर ली जाये।

लाख विपणन

लाख का विपणन दो प्रकार से होता लाख का विपणन दो प्रकार से होता है क. फूंकी लाख डंडी समेत ख. छिली लाख। इसी प्रकार कभी-कभी कुसमी लाख को अरी के रूप में अक्टूबर से दिसम्बर माह के बीच में भी काट लिया जाता है और इसे लकड़ी सहित बिना छीले छोटे टुकड़े 5-6 से. मी. काटकर विक्रय करते हैं जिसे गटकरा कहते हैं।

इसमें काफी पानी होता है। कुसमी बीहन से प्राप्त फंूकी भी बिना छीले बिक जाती है। एक कि.ग्रा. बीहन लाख से लगभग 600-700 ग्राम फूंकी लाख या 500 ग्राम (50 प्रतिशत) छिली लाख प्राप्त हो जाती है।

छिली लाख के बड़े टुकड़े विक्रय करने पर अधिक दाम मिलता है चूरा होने पर लाख के दाम में कमी आती है। लाख को संग्रह करने के लिए यह आवष्यक है कि लाख को इतना सुखायें कि नमी 4 प्रतिशत से भी कम हो जाये।

कुसुम के पेडों को खण्ड प्रणाली

फसल कटाई के पश्चात कुसुम का वृक्ष सामान्यतः 18 माह पश्चात पुनः लाख कीट संचारण हेतु तैयार होता है अतः फसल चक्र के क्रम को बनाये रखने के लिये पेड़ों को खण्ड में बाॅंट कर लाख उत्पादन करना ही उचित है।

इस तरह पोषक वृक्षों को खण्डों या टोलियों में बांट कर खेती करना ही लाख खण्ड प्रणाली कहलाता है। इस प्रणाली से खेती करने से कई निम्नलिखित लाभ नीचे वर्णित है-

  • वृक्षों को विश्राम मिलने से उनकी पोषक क्षमता बनी रहती है
  • अधिक संख्या में लम्बी टहनियां मिलने से वृक्ष का आकार बढ़ता है
  • लगातार अच्छी फसल मिलने से आमदनी का स्रोत बना रहता है
  • उत्पादन अधिक और नियमित होता है
  • दुष्मन कीटों से क्षति कम होती है
  • बीहनलाख की कमी नहीं होती है

 

कुसुम वृक्षों का खण्ड:

कुसुम के कुल वृक्षों को पाॅंच हिस्सों में बाॅंट लें। जिस खण्ड के वृक्षों पर लाख लगानी हो उनकी कटाई छंटाई 18 महीने यानि डेढ़ साल पहले जनवरी-फरवरी या जून-जुलाई में कर दें। प्रथम खण्ड में बीहनलाख लगाने के छः महीने बाद तैयार फसल की आंशिक कटाई कैंची (सिकेटियर) की सहायता से कर लें तथा कुछ लाख आत्म-संचारण के लिये उन्हीं पेड़ों पर छोड़ दें।

काटी हुई बीहनलाख को दूसरे खण्ड पर लाख कीट संचारण के लिये इस्तेमाल करें। इसके छः महीने बाद पहले खण्ड की फसल को पूरा काट लें। पूर्ण कटाई के समय पेड़ों की काट-छांट भी कर दें। दूसरे खण्ड की आंशिक कटाई करके तीसरे खण्ड पर संचारण करें।

इस प्रकार बारी-बारी से पाॅंचों खण्डों पर दोहरायें। पाॅंचवे खण्ड से प्राप्त बीहनलाख को वापस पहले खण्ड पर लगायें। इस तरीके से फसल चक्र को खण्ड प्रणाली के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। कुसुम वृक्ष पर लाख खेती की खण्ड प्रणाली को समझने के लिए नीचे उल्लेखित सारणी-1 का अवलोकन किया जा सकता है।

कुसुम वृक्ष पर लाख खेती की खण्ड प्रणाली


Authors:

डाॅ. आलोक कुमार, डाॅ. ए.के.जायसवाल, डाॅ. आर. के. योगी एवं डाॅ. ए. के. सिंह

भा.कृ.अनु.प.-भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान, राॅंची

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