अश्वगंधा उगायें और अधिक लाभ पाऐं
भारत में अश्वगंधा अथवा असगंध जिसका वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है। अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है।
सभी ग्रथों में अश्वगंधा के महत्ता के वर्णन को दर्शाया गया है। इसकी ताजा पत्तियों तथा जड़ों में घोंड़े की मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा पड़ा। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा की माँग इसके अधिक गुणकारी होने के कारण बढ़ती जा रही है।
अश्वगंधा एक औषधि है। इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। यह पौधा ठंडे प्रदेशो को छोड़कर अन्य सभी भागों में पाया जाता है।
संस्कृत नाम: अष्वगंधा (Ashwagandha), हिन्दी नाम : असगंध (Asgandh), अंग्रेजी : विन्टरचेरी (Winter Cherry), इंडियन गिनसेंग (Indian ginseng)
अश्वगंधा उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु
यह पछेती खरीफ फसल है। यह उष्णकटिबंधी और समशीतोष्ण जलवायु की फसल है। अशवगंधा को शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। बारिश के महीने के अंतिम दिनों में इसे बोया जाता है।
फसल के विकास के लिए शुष्क मौसम अच्छा रहताहै। जिन स्थान में वर्षा 660-750 मिमी की होती है वे स्थान फसल के विकास के लिए उपयुक्त होते है। वार्षिक वर्षा 600 से 750 मिलीलीटर में अश्वगंधा की वृद्वि अच्छी से होती है
अश्वगंधा की खेती के लिए भूमि
अच्छे जल निकास वाली बलुई, दोमट मिट्टी या हल्की लाल मृदा, जिसका पीएच मान 7.5 से 8 हो, प्रयुक्त मानी जाती है। कम उपजाऊ भूमि में भी अश्वगंधा की खेती से संतोषजनक उपज ली जा सकती है।
खेत की तैयारी-
डिस्क हैरो या देशी हल से दो या तीन बार अच्छी तरह जुताई करके सुहागा लगाकर खेत को समतल बना लें। खेत में खरपतवार ढेले नहीं होने चाहिए।
अश्वगंधा बोने की विधि-
सीधे बीज से अश्वगंधा की बिजाई अधिकतर छिड़काव द्वारा की जाती है। बीजों को बोने से पहले नीम के पत्तों के काढ़े से उपचारित करें।
बीज को डायथेन एम-45 से उपचारित करते हैं। एक किलोग्राम बीज को शोधित करने के लिए 3 ग्राम डायथेन एम. का प्रयोग किया जाता है। जिससे फफूंदी आदि से हानि न होने पाये। अश्वगंधा अच्छी फसल के लिये कतार से कतार का फासला 20 से 25 से.मी. तथा पौधे से पौधे का 4-6 से.मी. होना चाहिये।
बीज 2-3 से.मी. से अधिक गहरा नहीं होना चाहिये। इससे एक एकड़ में लगभग 3-4 लाख पौधे लग सकते हैं। बुवाई के लगभग 15 दिनों बाद अंकुरण निकलने शुरू हो जाते हैं।
अश्वगंधा को नर्सरी में पौधे तैयार करके भी खेत में लगाया जा सकते हैं तथा 6-7 सप्ताह बाद पौधों को नर्सरी से खेत में लगा दिया जाता है। जिससे लाइन से लाइन का फासला 20-25 से.मी. तथा पौधे से पौधे का फासला 4-6 से.मी. रखना चाहिये। एक एकड़ नर्सरी के लिये 200 वर्गमीटर क्षेत्रफल काफी होता है।
नर्सरी में क्यारियां 1.5 मीटर चौड़ी तथा लंबाई सुविधानुसार रखकर बनाएं। नर्सरी जमीन से 15-20 से.मी. उठी हुई हो तथा अच्छे जमाव के लिये नर्सरी में नमी बनाएं रखें
अश्वगंधा बीज की मात्रा-
नर्सरी के लिए प्रति हेक्टेअर 5 किलोग्राम व छिड़काव के लिए प्रति हेक्टेअर 10 से 15 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। बोआई के लिए जुलाई से सितंबर तक का समय उपयुक्त माना जाता है।
अश्वगंधा बोने का समय
अश्वगंधा की बुवाई के समय खेत में अच्छी नमी होनी चाहिये। जब एक-दो बार वर्षा हो जाती है तथा खेत की जमीन अच्छी तरह से संतृप्त हो जाये तभी बुवाई करनी चाहिए। अगस्त का महीना अश्वगंधा की बुवाई के लिये उत्तम है। सिंचित अवस्था में उसकी बिजाई सितम्बर के महीने में भी कर सकते हैं।
अश्वगंधा की किस्म
डब्लू.एस-20 (जवाहर), डब्लू एस आर, जवाहर अश्वगंधा-20, जवाहर अश्वगंधा-134 किस्में मुख्य हैं। सीमेप ने भी पोषिता किस्म विकसित की है।
खाद व सिंचाई
अच्छी फसल लेने के लिये खेत की तैयारी के समय 8-10 टन गोबर की अच्छी गली-सड़ी खाद मिला दें।
अश्वगंधा की फसल को पानी में अधिक आवश्यकता नहीं होती व वर्षा समय पर न हो तो अच्छी फसल लेने के लिये 2-3 सिंचाई करें।
निराई – गुड़ाई
अश्वगंधा की अच्छी फसल के लिये समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण करें ताकि जड़ों को अच्छी बढ़त हो सके। इसके लिये बिजाई के 25-30 दिन बाद खुरपे से तथा 45-50 दिन बाद कसौले से गुड़ाई करें। इससे लगभग 60 पौधे प्रतिवर्ग मीटर यानी 6 लाख पौधे प्रति हेक्टेअर अनुरक्षित हो जाते हैं। अगर दो या अधिक पौधे एक साथ हो तो छंटाई भी कर दे।
उर्वरक का प्रयोग
बोआई से एक माह पूर्व प्रति हेक्टेअर पांच ट्रॉली गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में मिलाएं। बोआई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिड़काव करें।
अश्वगंधा फसल सुरक्षा
अश्वगंधा पर रोग व कीटों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। कभी-कभी माहू कीट तथा पूर्णझुलसा रोग से फसल प्रभावित होती है। ऐसी परिस्थिति में मोनोक्रोटोफास का डाययेन एम- 45, तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बोआई के 30 दिन के अंदर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव करें।
अश्वगंधा का उत्पादन
फसल बोआई के 150 से 170 दिन में तैयार हो जाती है। अश्वगंधा की फसल से प्रति हेक्टेअर 3 से 4 कुंतल जड़ व 50 किग्रा बीज प्राप्त होता है। इस फसल में लागत से तीन गुना अधिक लाभ होता है।
पत्तियों का सूखना फलों का लाल होना फसल की परिपक्वता का प्रमाण है। परिपक्व पौधे को उखाड़कर जड़ों को गुच्छे से दो सेमी ऊपर से काट लें फिर इन्हें सुखाएं।
फल को तोड़कर बीज को निकाल लें।
Authors
मनीष कुमार मीना, शोजी लाल मीना, कमलेश कुमार मीना, भूरि सिंह
स्नातकोनर शोधार्थी
उद्यान विज्ञान विभाग
उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय , झालरापाटन, झालावाड़ -326023