Chironji – A tree of immense potential
चिरौंजी आमतौर पर शुष्क पर्णपाती जंगलों में पाए जाने वाला वृक्ष है। इसकी औसतम ऊँचाई १०-१५ मीटर तक पाई जाती है| भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न चिरौंजी के वृक्ष उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भारत के उष्णकटिबंधीय पर्णपाती जंगलों में आमतौर पर मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में पाया जाता है|
यह पेड भारत के माध्यम से, अन्य देशो जैसे बर्मा और नेपाल तक पहुच चूका है (हेमवती और प्रभांकर, १९८८)| चिरौंजी को इसके उच्च मूल्य वाले कर्नेल (चिरौंजी के दाने) के लिए जाना जाता है| सूखे मेवों या सूखे फलों में बादाम की तरह ही चिरौंजी का स्थान है।
चिरौंजी के गुण व उपयोग:
यह बहुउद्देशीय वृक्ष स्थानीय समुदाय को भोजन, ईंधन, चारा, लकड़ी और दवा प्रदान करता है। इसके कर्नेल से निकले तेल गर्दन के ग्रंथियों में हुए सूजन को ठीक करने में उपयोगी है। चिरौजी कर्नेल पेस्ट त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा कंडीशनर है| फल के अलावा, इसकी छाल का उपयोग प्राकृतिक वार्निश के लिए भी किया जाता है। पेड़ के तने से प्राप्त गोंद वस्त्र उद्योग में उपयोग किया जाता है तथा यह दस्त, अंदरूनी और संधिशोथ दर्द के उपचार में भी उपयोगी है|
इसकी पत्तियों का उपयोग त्वचा रोगों के उपचार में किया जाता है। फल का उपयोग खांसी और अस्थमा के इलाज में किया जाता है। पत्तियां से बने पाउडर घावों को ठीक करने के लिए एक सामान्य इलाज है। इसकी जड़ें तीव्र, कसैले, शीतलन, निर्णायक, कब्ज और दस्त के उपचार में उपयोगी हैं।
यह ढलान पहाड़ीयो पर बढ़ने के लिए एक अच्छी प्रजाति है।इसके फल में १.२० ग्राम फल का वजन, २२% कुल ठोस की मात्रा, १३% कुल शर्करा की मात्रा,५० मिलीग्राम प्रति १०० ग्राम में विटामिन-सी, ०.१२ ग्राम कर्नेल का वजन एवम ३०% कर्नेल प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है| (सिंह एवम अन्य, २०१०)
चिरौंजी की पौध लगाने की विधि
बीज (चिरौंजी कर्नेल) लगाने से पहले उसे उपचारित किया जाना चाहिए, जो एक कठिन शेल के अंदर बंद रहता है। बेहतर अंकुरण पाने के लिए, फलों के अंदर के बीज (कर्नेल) को सावधानी पूर्वक निकलना चाहिए। ताजी बीज बेहतर अंकुरण देता है (श्रीवास्तव १९९६)।
धूप पड़ने से बीज की व्यवहार्यता शीघ्रता से कम हो जाती है और अंकुरण कम होता है। साधारण पानी में २४-४८ घंटे भींगे बीज की अंकुरण क्षमता अधिक होती है (सुक्ला और सोलंकी २०००)| चिरौंजी के बीज कटाई के ३ महीने बाद अपना व्यवहार्यता खो देते हैं।
चिरौंजी के पौधे को ८-१० मीटर की दूरी पर लगाया जाना चाहिए। पौधे को १०x१० मीटर की दूरी पर और ८x८ मीटर की दूरी पर रहने वाले वनस्पतियों के फैलाव में लगाए जा सकते हैं (प्रकाश, १९९८)।
उर्वरक प्रबंधन:
पौधे लगाने से पहले गड्ढे में २० किलोग्राम गोबर खाद, ३०० ग्राम स्पुर और २०० ग्राम पोटाश डालना चाहिए। फूल आने से पहले २०-३० किलो गोबर खाद और १०० - ५०० ग्राम यूरिया पौधे के बड़ने के लिए बहुत ही लाभकारी है।
फूल आने के बाद ३० किलो गोबर खाद, ४०० ग्राम नाइट्रोज, ४०० ग्राम स्पुर और के ६०० ग्राम पोटाश डालना चाहिए (तिवारी एवम अन्य, २०००)।
पौधे लगाने का समय:
पौधे खरीफ के मौसम में लगाये जाना चाहिए, हालांकि, बेहतर वृद्धि के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक है।
फल कटाई का समय:
चिरौंजी के फल ४ से ५ महीनों में परिपक्व हो जाते हैं। इसकी फूल आने का समय फ़रवरी के पहले सप्ताह से लेकर तीसरे सप्ताह तक तथा इसकी कटाई अप्रैल-मई के महीनों में की जाती हैं| फलों के पकने के समय में इसका रंग हरे से बैंगनी रंग में बदलते हैं।
फलो के पकने का समय समीपवर्ती अंत से शुरू होता है जैसे ही एक या दो ढोलें रंग बदलती हैं, फसल कटाई के लिए तैयार माना जाता है| मुख्यतह इसकी कटाई मनुष्य के द्वारा किया जाता है| फलो से लदे साखांओ को एक सिकल की सहायता से काटा जाता है, जो एक लंबे बांस की लकड़ी से जुड़ा होता है। चिरौंजी गुठली के एक किलो वजन में लगभग ४०००-५००० गुठली होते हैं।
गुठली से चिरौंजी दाने (कर्नेल) निकालने की विधि
कटाई से प्राप्त चिरौंजी के बीज को एक रात के लिए साधारण पानी में भिंगाया जाता है तथा हथेली व जुट कि बोरी की सहायता से अच्छे से धोकर २-३ दिनों के लिए धुप में सुखाया जाता है (कुमार एवम अन्य, २०१२)| सूखे हुए गुठली से चिरौंजी दाने (कर्नेल) निकालने के लिए पारम्परिक एवम उन्नत विधि का प्रयोग किया जाता है|
चिरौंजी का वृक्ष | चिरौंजी के फल |
Refferences:
- Hemavathy, J. and Prabhankar, J.V. (१९८८). Lipid composition of chironji kernel. J. Food compos. and Anal., १: ३६६-३७०.
- Kumar, J., Vengaiah, P.C., Srivastav, P.P. and Bhowmick, P.K. (२०१२). Chironji nut (Buchanania lanzan) processing present practices and scope. Int. J. Tradit. Knowl., २०२-२०४.
- Prakash Ram (१९९८). Plantation and nursery technique of fruit trees. Int. Book Distribution, Dehradun, २४५.
- Singh, S., Singh, A.K. and Lata, K. (२०१०). Exploitation of underxploited crops in precision horticulture. In:Souvenir, NSPFH, Dec. २८-२९, २०१० held at CHF, Jhalawar, २९.
- Srivastava, S.S. (१९९६). Chironjee, in: dryland fruit culture (in hindi), Central Book House, Raipur, Chhattisgarh, २७१.
- Shukla, S.K. and Solanki, K.R. (२०००). Studies on seed germination, plant survival and growth of chironjee (Buchanania lanzan spreng.). J. Trop. Forestry, १६: ४४-४९.
- Tewari, R.K., Bajpai, C.K. and Chauhan, S.P.S. (२०००). Tane ki motai va vritan ke phalao ke adhar par chironji mein paudh ropan ki doori ka nirdharan (Hindi). Agrofor. Newsletter, १२(१): १०.
Authors:
प्रवीण कुमार निषाद1 एवम आर के नायक2
१.वरिष्ठ अनुसन्धान अध्येता (कृषि प्रसंस्करण एवम खाद्य अभियांत्रिकी),
२. सहायक प्रध्यापक (कृषि मशीनरी एवम शक्ति अभियांत्रिकी )
स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकीय व तकनीकी एवम शोध प्रक्षेत्र, इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़, ४९२०१२
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