Improved technology for cultivation of Mungbean

मूंग भारत में उगायी जाने वाली, कम समय मे पकने वाली, महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इन फसल में वातावर्णीय नाइट्रोजन को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाने की अदभुत क्षमता होती हैं। जिससे पौधों को कम उर्वरक की आवश्यकता पड़ती है, और उत्पादन लागत कम हो जाती है।

इनकी खेती लगभग सभी राज्यों मे की जाती है। परन्तु महाराष्ट, आन्ध्र प्रदेश,  उत्तर प्रदेश , राजस्थान, मध्य प्रदेश तमिलनाडु तथा उड़ीसा, मूंग तथा उड़द उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं।

cultivation of Mungbeanमूंग की खेती के लि‍ए भूमि की तैयारी

मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहिये। पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए तथा फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से एवं एक जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिए।

मूंग की  बीज की बुवाई

मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए।  देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती है। स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाला तथा उपचरित बीज बुवाई के काम लेने चाहिए। वुबाई कतरों में करनी चाहिए। कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है।

मूंग फसल में खाद एवं उर्वरक

दलहन फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है। नाइट्रोजन एवं फास्पोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा  बुवाई के समय देनी चाहिए। मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम एक बार  5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिए। खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिटटी की जाँच कर लेनी चहिये।

मूंग में खरपतवार नियंत्रण

फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात तक पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए फसल जब 25 30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिये या  इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मी. ली . मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

मूंग फसल के रोग तथा किट नियंत्रण

दीमक : दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती है। बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए  बोनेके समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए। 

कातरा: कातरा का प्रकोप बिशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है। इस किट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है। इसके  नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये। कतरे की लटों पर क्यूनालफोस 1.5  प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये।

मोयला,सफ़ेद मक्खी एवं हरा तेला: ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैंI इनकी रोकथाम के किये मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए.सी या  मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार दोबारा चिकाव किया जा सकता है।

पती बीटल: इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूंनफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए ।

फली छेदक: फली छेदक को नियंत्रित  करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव /भुरकाव  किया जा सकता है।

रस चूसक कीड़े : मूंग की पतियों ,तनो एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैं। इन कीड़ों की रोकथाम हेतु एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मी.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15  दिन  के अंतराल पर करें ।

चीती जीवाणु रोग : इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे  के रूप में दिखाई देते है । इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्रामया स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए ।

पीत शिरा मोजेक: इस रोग के लक्षण फसल की पतियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते हैI फैले हुए पीले धब्बो के रूप  में रोग दिखाई देता हैI यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता है। इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल दिमेटान 0.25 प्रतिशत व मैलाथियोन 0.1प्रतिशत मात्रा को मिलकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी  होता है।  

तना झुलसा रोग: इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।

पीलिया रोग : इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये।

सरकोस्पोरा  पती धब्बा : इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं । पौधों की पत्तियां,जड़ें व अन्य भाग भी सुखने लगते हैं। इस के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की1ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चहिये बीज को 3 ग्राम केप्टान या २ ग्राम कार्बेंडोजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाइये ।


किंकल विषाणु रोग:  इस रोग के कारण पोधे की पत्तियां सिकुड़ कर इकट्ठी हो जाती है तथा पौधो पर फलियां बहुत ही कम बनती हैं। इसकी रोकथाम हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. आधा लीटर अथवा मिथाइल डीमेंटन 25 ई.सी.750 मि.ली.प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए । ज़रूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चहिये ।

जीवाणु पती धब्बा, फफुंदी पती धब्बा  और विषाणु रोग : इन रोगो की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम १ ग्राम , सरेप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान  25 ई .सी.की एक मिली.मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये ।

मूंग की खेती

फसल चक्र

अच्छी पैदावार प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने हेतु उचित फसल चक्र आवश्यक है । वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग -बाजरा तथा सिंचित क्षेत्रों में मूंग-गेहू/जीरा/सरसो फसल चक्र अपनाना चहिये ।

बीज उत्पादन

मूंग के बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत चुनने चहिये जिनमें पिछले मौसम में मूंग अन्हिं उगाया गया हो। मूंग के लिए निकटवर्ती खेतो से संदुषण को रोकने के लिए फसल के चारो तरफ 10 मीटर की दुरी तक मूंग का दूसराखेत नहीं होना चहिये ।

भूमि की अच्छी तैयारी,उचित खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग ,खरपत वार, कीड़े एवं विमारियों के नियंत्रण के साथ साथ समय समय पर अवांछनीय पौधों को निकालते रहना चहिय तथा फसल पकने पर लाटे को अलग सुखाकर दाना निकाल कर ग्रेडिंग कर लेना चहिये। बीज को साफ करके उपचारित कर सूखे स्थान में रख देना चाहिये। इस प्रकार पैदा किये गये बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है ।

कटाई एवं गहाई

मूंग की फलियों जब काली परने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए  अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है। फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है ।

मूंग की कि‍स्‍में 

Pusa 1371

पुसा 1371 को नॉर्थ हिल जोन के राज्यों की बारिश की स्थिति के लिए अधिसूचित किया गया है: (त्रिपुरा, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में एक राज्य शामिल है) ने एमएनवीवी, रूट सड़ांध, वेब फॉल और एंथ्राकनोज में कई प्रतिरोध दिखाए हैं। पुसा 1371 की औसत प्रोटीन सामग्री 24.06% है जो चेक के बराबर है। पुसा 1371 में बुवाई के 46 दिन बाद 50% फूल दिखाई देता है, यह 87 दिनों में परिपक्व होता है और 100 बीज वजन 3.26 ग्राम होता है।

Pusa Vishal

(पूसा विशाल)

औसत उपज 12-14 क्विं / हेक्टेयर है, यह एक समय की परिपक्वता के साथ लघु अवधि की विविधता है। सर्दियों में परिपक्व अवधि 65-70 दिन और संक्षिप्त सत्र में 60-65 दिन होती है। बीज बोल्ड और हरे रंग की हरे रंग के साथ 100 बीज वजन 4.5-5.8 ग्राम हैं। यह मूंग पीले मोज़ेक वायरस के लिए सहिष्णु है। पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चावल-गेहूँ-मुंगबीन और मक्का-आलू / सरसों-मूँगिन फसल सिस्टम के लिए उपयुक्त.

Pusa 9531

परिपक्वता अवधि 60-65 दिनों के साथ लघु अवधि की विविधता की विविधता। वसंत / समर सीजन में खेती के लिए उपयुक्त। 4 से 4.4 ग्राम के साथ बोल्ड होते हैं 100 बीज wt, बीज रंग चमकदार हरी औसत बीज उपज 12-13 क्विंटल / हे। पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चावल-गेहूं-मूँग्वन और मक्का-आलू / सरसों-मूँगिन फसल सिस्टम के लिए उपयुक्त है।

पूसा रत्‍ना (पूसा-9972)

Pusa Ratna

यह दिल्‍ली राज्‍य के क्षेत्रों में खरीफ ऋतु में बुआई के लिए उपयुक्‍त प्रजाति हैं। इसकी फलिया एक साथ पकने वाली 65 से 70 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं। दाने बडे आकार के हरे चमकदार होते हैं। यह पीले विषाणू रोग की सहिष्‍णु है। दानों की औसत उपज 12 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर तथा उत्‍पादन क्षमता 16 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है।

के 851

(K-851)

यह सभी क्षेत्रों के लि‍ए उपयुक्‍त है। उत्‍पादन क्षमता 8-9 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 75 दि‍न का समय लगता है।

आशा

(Asha)

हरि‍याणा के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म, उत्‍पादन क्षमता 10-14 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर तथा फसल पकने मे 70-80 दि‍न का समय लेती है।

एम एल 613

(M.L.-613)

यह पंजाब के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म है। उत्‍पादन क्षमता 13-23 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 84 दि‍न का समय लगता है।

हम-2

(HUM-2)

यह उत्‍तरी क्षेत्र, पूर्व-पश्‍चि‍मी मैदानी क्षेत्रों के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म है। उत्‍पादन क्षमता 11-12 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 65 दि‍न का समय लगता है।

हम-8

(HUM-8)

यह पूर्व-पश्‍चि‍मी मैदानी क्षेत्रों के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म है। उत्‍पादन क्षमता 11-12 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 66 दि‍न का समय लगता है।

पी डी एम 139

(PDM-139)

यह उत्‍तर प्रदेश के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म है। उत्‍पादन क्षमता 11-12 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 60 से 65 दि‍न का समय लगता है।

एस एम एल 668

(SML-668)

यह पंजाब के लि‍ए उपयुक्‍त कि‍स्‍म है। उत्‍पादन क्षमता 10-11 क्विंटल प्रति हैक्‍टेअर है तथा फसल पकने मे 60 दि‍न का समय लगता है।

 


Authors 

मुरलीधर अश्की,  एच के दीक्षित,  ज्ञान मिश्रा , प्राची यादव,  धर्मेंद्र सिंह,  ज्योति कुमारी,  लक्ष्मण प्रसाद, श्रीनिवास और दिलीप कुमार

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानए नई दिल्ली .110012

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