Cultivation of Isabgol (Plantago ovata) through scientific techniques
Plantago ovata Forsk. एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय फसल है।औषधीय फसलों के निर्यात में इसका प्रथम स्थान हैं। वर्तमान में हमारे देश से प्रतिवर्ष 120 करोड़ के मूल्य का ईसबगोल निर्यात हो रहा है। विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक देश ईरान, ईराक, अरब अमीरात, भारत, फिलीपीन्स इत्यादि हैं।
भारत में इसका उत्पादन प्रमुख रूप से गुजरात,राजस्थान,पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में करीब 50 हजार हेक्टयर में हो रहा हैं। म. प्र. में नीमच, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन एवं शाजापुर जिले प्रमुख हैं।
ईसबगोल का उपयोग
ईसबगोल का औषधीय उपयोग अधिक होने के कारण विश्व बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। ईसबगोल के बीज पर पाए जाने वाला छिलका ही इसका औषधीय उत्पाद है जिसे ईसबगोल की भूसी के नाम से जाना जाता है। भूसी और बीज का अनुपात 25:75 रहता है। इसकी भूसी में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए इसका उपयोग पेट की सफाई, कब्जीयत, दस्त आव पेचिस, अल्सर, बवासीर जैसी शारीरिक बीमारियों के उपचार में आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जाता है।
इसके अलावा आइसक्रीम रंग रोगन, प्रिंटिंग आदि उद्योगों में भी इसका किया जाता है। इसकी मांग एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ईसबगोल की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करना आवश्यक है।
ईसबगोल के लिए जलवायु एवं भूमि
ईसबगोल के लिए सर्द एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 20-25 सेल्सियस के मध्य का तापमान व मिट्टी का पी.एच. मान 7-8 सर्वोत्तम होता है। इसकी खेती के लिए दोमट, बलुई मिट्टी जिसमें जल निकास का उचित प्रबन्ध हो, उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार
छिटक कर बुवाई करने से 4-5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। लेकिन तुलासिता रोग के प्रकोप से फसल को बचाने हेतु मेटालेक्सिल 35 एस.डी. 5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें। ईसबगोल की बुवाई के लिए नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा उत्तम पाया गया।
उन्नत किस्में-
जवाहर ईसबगोल 4 - यह प्रजाति 1996 में औषधीय एवं सुगन्धित पौध की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत कैलाश नाथ काटजू उद्यानिकी महाविद्यालय ,मंदसौर (राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,ग्वालियर) द्वारा म.प्र. के लिए अनुमोदित एवं जारी की गई है। इसका उत्पादन 13-15 क्विंटल प्रति हेक्टयर लिया जा सकता है।
गुजरात ईसबगोल 2 - यह प्रजाति 1983 में अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, आणंद, गुजरात से विकसित की गई हैं। इसका उत्पादन 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टयर लिया जा सकता है।
हरियाणा ईसबगोल 5 - यह प्रजाति अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा 1989 में निकाली गई हैं। इसका उत्पादन 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टयर लिया जा सकता है।
अन्य किस्मों में गुजरात ईसबगोल 1, हरियाणा ईसबगोल-2, निहारिका, ट्राबे सलेक्शन 1 से 10 आदि का चयन कर बुवाई की जा सकती है।
आर.आई 89 – इस किस्म के पौधो की ऊँचाई 30-40 सेमी. होती है तथा 110-115 दिन में पक जाती है। इसकी उपज 12-16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
आर.आई 1- शुष्क तथा अद्र्धशुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित अधिक उपज देने वाली यह किस्म है। इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 29-47 सेमी. होती है तथा 110-120 दिन में पक जाती है। इसकी औसत उपज क्षमता 12 से 16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
ईसबगोल की बोआई का समय
ईसबगोल की अगेती बोआई करने पर फसल की ज्यादा वानस्पतिक वृद्धि हो जाती है परिणामस्वरुप फसल आड़ी पड़ जाती है तथा मदुरोमिल आसिता का प्रकोप बढ़ जाता हैं। वही पर देरी से बुवाई करने पर प्रकोप का वानस्पतिक विकास कम होता हैं और मानसून पूर्व की वर्षा से बीज झड़ने का अंदेशा बना रहता है।
इसलिए किसान भाई ईसबगोल की बोआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक करते हैं तो यह अच्छा समय होता है। दिसम्बर माह तक बोआई करने पर उपज में भारी कमी आ जाती है।
ईसबगोल की खेती में बीज की मात्रा
बड़े आकार का, रोग रहित बीज की 4 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से उपयोग लेने पर फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता हैं। बीज दर ज्यादा होने की दशा में मदुरोमिल आसिता का प्रकोप बढ़ जाता हैं व उत्पादन प्रभावित हो जाता है।
बीजोपचार
ईसबगोल के बीज को मैटालैक्जिल 35 एस. डी. की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के मान से कर बुवाई करें। किसान भाई मृदा उपचार हेतु जैविक फफूंदी नाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी की 2.5 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से अच्छी पकी हुई गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस में मिला कर नमी युक्त खेत में प्रयोग करें।
ईसबगोल की फसल खाद एवं उर्वरक
ईसबगोल की फसल अधिक पैदावार लेने हेतु 15-20 गाड़ी सड़ी हुई गोबर की खाद अगर उपलब्ध हो तो आखिरी जुताई के समय खेत में मिलायें। इस फसल को 30 किग्रा. नत्रजन और 20 किग्रा. फॉस्फोरस की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।
ईसबगोल में खरपतवार नियंत्रण एवं निराई गुड़ाई
ईसबगोल में दो निराइयों की आवश्यकता होती है, पहली निराई, बुवाई के करीब 20 दिन बाद एवं दूसरी 40-50 दिन बाद करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद लेकिन पौधे उगने से पहले या 15-20 दिन की फसल अवस्था पर आइसोप्रोट्यूरॉन 600 ग्राम तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
ईसबगोल में सिंचाई
ईसबगोल में चार सिंचाई को बुवाई के समय, बुवाई के 8 दिन, 35 दिन व 65 दिन बाद सिंचाई देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। ईसबगोल में क्यारी विधि की अपेक्षा फव्वारा विधि द्वारा छह सिंचाईयां (बुवाई के समय, बुवाई के 8, 20, 40, 55 व 70 दिनों बाद) तीन घण्टे फव्वारा चलाने से अधिक उपज प्राप्त होती है।
ईसबगोल मे बीमारी का संरक्षण
डाउनी मिल्ड्यू (मदुरोमिल आसिता)- मृदुल रोमिल आसिता के लक्षण पौधों में बाली (स्पाइक) निकलते समय दिखाई देते हैं। सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्ती के निचले भाग में सफेद चूर्ण जैसा कवक जाल दिखाई देता है। बाद में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार रुक जाती है जिसके परिणामस्वरूप डंठल की लम्बाई, बीज बनना एवं बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती है। रोग नियंत्रण हेतु स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोयें, बीजोपचार करें एवं कटाई के बाद फसल अवशेषों को जला देवें। प्रथम छिड़काव रोग का प्रकोप होने पर मैटालैक्जिल मैंकोजेब की 2-2.5 ग्राम मात्रा अथवा कापर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराए।
मोयला - माहू का प्रकोप सामान्यतः बुवाई के 60-70 दिन की अवस्था पर होता है।यह सूक्ष्म आकार का कीट पत्तियों, तना एवं बालियों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाता है। अधिक प्रकोप होने की स्थिति में पूरा पौधा मधु स्त्राव से चिपचिपा हो जाता हैं तथा फसल पर क क्रिया बाधित हो जाती है जिससे उत्पादन प्रभावित होता हैं। इसकी रोकथाम हेतु आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली/ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार छिड़काव को दोहराए ।
कटाई मंडाई- ईसबगोल में 25-125 तक कल्ले निकलते है तथा पौधों में 60 दिन बाद बालियाँ निकलना शुरू होती हैं और करीब 115-130 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है। कटी हुई फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखाकर झड़का लें या बैलों द्वारा मंडाई कर निकाल लें।
ईसबगोल की उपज
उन्नत तकनीक से खेती करने पर 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टयर उपज मिल जाती हैं ।
ईसबगोल उगाने के फायदे
भारत में इसबगोल बहुत ही पौष्टिक उत्पाद माना जाता है। इससे होने वाले कुछ फायदे तो ऐसे हैं जो आपको शायद ही पता हो। भारत के करीब-करीब हर घर में आपको यह उत्पाद अवश्य मिल जाएगा। हो सकता है आपको इसबगोल नाम जरा अजीब लगे। पर इतना जान लें कि इसके फायदे बहुत हैं।
अपने आप को तंदुरुस्त रखने के लिए आप हर दिन कई तरह से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आमतौर पर इसे कब्जियत में काफी कारगर माना जाता है। इसबगोल में कुदरती तौर पर एक चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है। इसे पानी में डुबाने के बाद यह फूल जाता है और एक जेल का निर्माण करता है।
यह जेल स्वादहीन और गंधहीन होता है। अपने लैक्सटिव गुण के कारण यह आंत को साफ करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। यह किसी भी अन्य पोषक तत्व को सोंखता नहीं है क्योंकि इस पर किसी भी डायजेस्टिव एंजाइम का कोई असर नहीं होता। इसके अलावा यह आंत में मौजूद बैक्टीरीआ और दूसरे नुकसानदेह टाॅक्सिन को भी सोंख लेता है। साथ ही यह आंत की परत पर चिकनाहट भी लाता है।
इसबगोल में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व कब्जियत के साथ-साथ डायरिया से भी राहत पहुंचाता है। अगर आप डायरिया से पीडि़त हैं तो इसे दही के साथ मिला करइसबगोल की प्रकृति हाइग्रोस्कोपिक होती है। कोलोन में जाने के बाद यह एएमए नामक नुकसानदायक टाॅक्सिन को सोंख लेता है। इसके जरिये आप कई तरह की स्वास्थ संबंधी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
इसबगोल में प्राकृतिक जेलाटिन पदार्थ पाया जाता है जो शरीर में ग्लूकोज के एब्जाॅर्ब्शन और इसके टूटने को धीमा करता है। यानी यह ग्लूकोज के सेवन को कम करने के साथ ही मधुमेह को नियंत्रित करता है।
हम पहले ही बता चुके हैं कि कैसे इसबगोल में मौजूद लैक्सटिव गुण नेचुरत बोअल मूवमेंट में मददगार होता है। इसमें उच्च मात्रा में घुलनशील व अघुलनशील फाइबर पाया जाता है। इससे यह बवासीर में राहत दिलाता है।
इसबगोल के साइड इफैक्ट: इसबगोल से कोई गंभीर एलर्जिक रिएक्शन शायद ही कभी होता है। साइड इफैक्ट के मामले में यह काफी सुरक्षित माना जाता है। हां इतना जरूर है कि इसका अत्याधिक सेवन कभी न करें। साथ ही हमेशा इसका सेवन पानी में भिगा कर ही करें।
वैसे तो इससे एलर्जिक रिएक्शन नहीं होता है। पर यदि ऐसा हो तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। अगर आपको कभी एपेंडिक्स या पेट में ब्लॉकेज की समस्या रही थी तो डॉक्टर से परामर्श के बिना इसका सेवन कभी न करें।
Authors
संतरा हरितवाल, विवेक शर्मा, मुकेश कुमार शेषमा, वर्षा गुप्ता
विद्यावाचस्पति छात्रों , पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, एस. के. ऐन. कृषि महाविद्यालय, जोबनेर
विद्यावाचस्पति छात्र, सस्यविज्ञान बपत्ला अंग्रौ, हैदराबाद विद्यावाचस्पति छात्र, सस्यविज्ञान राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर,
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