इशबगोल के औषधीय गुण तथा उसका उत्पादन 

इशबगोल एक प्रकार का औषधीय पौधा होता है,यह अधिकतर मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाया जाता है| यह भारत में मालवा एवं सिंध, अरब की खाड़ी और पर्शिया में पाया जाता है| इशबगोल को आयुर्वेद में अश्व्गोल या अश्वकर्ण  के रूप में जाना जता है, जिसका शाब्दिक अर्थ “घोड़े की तरह कान है|

इशबगोल का वैज्ञानिक नाम प्लैन्तेगो ओवाटा  (Plantago ovata) तथा कुल प्लैंतिजिनेसी है| इशबगोल एक प्रकार की झाड़ी होती है जिसके पत्तें धान के पत्तों जैसे और डालियाँ पतली होती है|

इसबगोल के बीज छोटे-छोटे नुकीले और बादामी रंग के होते हैं| प्रतेक बीज के ऊपर एक पतला सफ़ेद रंग का आवरण होता है जिसे औषधीय प्रयोग के लिए अलग कर लिया जाता है| इसी को इशबगोल की भूसी  कहा जाता है|

इशबगोल कि खेती 

औषधि पौधों में से  इशबगोल बहुत महताव्पूर्ण एवं लाभकारी पौधा है।  इशबगोल के लगभग आधे बाज़ार पर भारत का ही कब्ज़ा है इसके बीज का कई तरह की आयुर्वेदिक और एल्लोपैथिक दवाओ में इस्तेमाल होता है।

इशबगोल की फसल लगभग 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है । भारत में लगभग 3 तरह की इशबगोल पैदा की जाती है जिसमे हरियाणा -2 किस्म की इशबगोल की फसल 90 से 100 दिनों में ही पक कर तैयार हो जाती है , इसके बाद इस फसल को काटकर इसके बीजो को अलग –अलग कर लिया जाता है ,

फसल की अच्छी पैदावार के लिए ठंडा व् शुष्क वातवरण जरुरी होता है और फसल पकने के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता पड़ती है। फसल पकने के समय वर्षा होने पर बीज झड सकता है और उसका छिलका फूल सकता है। जि‍ससे इसके बीज की गुणवत्ता व् पैदावार दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।

इशबगोल की खेती के लिए हलकी दोमट व् बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। चिकनी हलकी काली व् ज्यादा काली मिट्टी जिसमे पानी का निकास अच्छा हो वो भी उपयुक्त होती है। मि‍ट्टी का pH  6-7 होना चाहिए।

इसबगोल उगाने के लि‍ए खेत की जुताई दो बार करते है। इसकी खेती के लिए खेत को समतल बना ले जिसमे पानी जमा न हो सके। बीज को जमने के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहि‍ए है ।

अच्छी पैदावार के लिए बीज जमने के 20-30 दिन बाद सिचाई करे  तथा बाद में 2 बार सिचाई लगभग 1 महीने की अवधी पर करे। इसबगोल की फसल में 3 से  4 की सिचाई पर्याप्त रहती है।

इसबगोल रबी मौसम की फसल है। इसकी खेती के लिए ओक्टुबर से नवंबर माह उपयुक्त समय माना  जाता है।  इसके खेत में  प्रति‍ हैक्‍टेयर लगभग 25 टन सड़ी गोबर की खाद,  20 किग्रा नत्रजन, 25 किग्रा फस्फोरोस ,25 किग्रा पोटाश देना आवश्यक है।  नत्रजन खाद 2 या 3 भागो में डालना चाहिए। प्रथम खेत के तैयारी के समय तथा दूसरा पहली सिचाई के बाद।

इशबगोल की खेती के लिए 10 से 12 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। इशबगोल की फसल से लगभग 15 से 20 कुन्तल/है. बीज प्राप्त होते है।  मंडी में इसके दाम को पता किया जाये तो लगभग 12000 रुपये प्रति कुंतल का भाव चल रहा है इस तरह देखा जाये तो इसके बीज ही २ से ४ लाख रुपये तक के होते है।

इशबगोल की भूसी  को इसका सबसे महंगा हिस्सा माना जाता है । इसलि‍ए अगर इशबगोल के बीजो को प्रोसेस कराया जाय तो और ज्यादा फायदा होता है।

प्रोस्सेस होने के बाद इशबगोल के बीजो में से लगभग 30 से 40 % भूसी निकलती है। इसके अलावा इशबगोल की खेती में से भूसी निकलने के बाद खली , गोली आदि उत्पाद भी बेच सकते है । इस तरह इशबगोल की खेती में बहुत सारे फायेदे है| इशबगोल की खेती से एक हेक्टेयर जमीन में  15 सेे 20  हज़ार रुपये लागत से 3 महीने में ही लाखो की कमाई हो सकती है। 

इसबगोल के औषधीय गुण 

(1) इशबगोल रक्त चाप को कम करने में उपयोगी है 

इशबगोल उच्च  कोलेस्ट्रोल स्टर को कम करके रक्तचाप को कम करने में मदद करती है . उच्च कोलेस्ट्रोल उच्च रक्तचाप के साथ जुड़ा हुआ है . कैल्शियम के साथ उच्च कोलस्ट्रोल रक्तवाहिकाओ को सख्त और संकुचित करता है . यह ह्रदय पर अतरिक्त तनाव में होता है , ताकि धमनियो के माध्यम से रक्त को कठिन पम्प किया जा सके , जिससे रक्तचाप में ब्रिधि हो सकती है

(२)- मधुमेह में लाभकारी 

इशबगोल रेसा युक्त सामग्री में बहुत सम्रिध है . उच्च रेसा आहार मधुमेह वाले लोगो में रक्त्सर्कारा के स्टार को कम कर सकती है . उच्च रेसा आहार में हमेशा कम ग्लाईसेमिक सूचकांक होता है , जो प्लाज्मा ग्लूकोस के स्टार में सुधार करने के लिए होता है . इशबगोल ऐसे कार्बोहाइड्रेट की एक अच्छी गुणवक्ता प्रदान करता है . जिसे मधुमेह से पीड़ित लोग अपने नियमित आहार में अनाज के आटे में मिलाकर उपयोग किया जाता है

(३)- एसिडिटी के लिए उपयोगी 

आयुर्वेद के अनुसार , इशबगोल अम्लता और सीने की जलन के लिए एक अच्छा उपाय है . इशबगोल जब आहारनाल और पेट के माध्यम से पारित होती है तो यह झिल्लीदार दीवारों के लिए लुब्रीकेंट्स का काम करती है यह एसिड को अवशोषित करके पेट से आंतो तक अधिक एसिड को बाहर निकलती है इसप्रकार यह एसिडिटी और जलन के लक्षणों को कम करने में मदद करती है .

(४)- दस्त में उपयोगी

इशबगोल पानी की सामग्री को पाचन तंत्र से अवशोषित करता है , और बल्क वाटर का उत्पादन करता जिससे मल कड़ा हो जाता है . दुसरे शब्दों में यह आंतो को भी साफ करता है जो की संक्रमण के कारन सुक्ष्म जिओ को हटाने में मदद करता है . यह गंभीर दस्त और पेचिस में सहायक चिकिस्ता के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है

(५)- कब्ज के उपचार में उपयोगी

कब्ज के उपचार में चिकित्सक पहले  इशबगोल की भूसी का उपयोग करने की सलाह देते है. इशबगोल में रेसा बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है और यह आंतो से पानी को अवशोषित करती है और अधिक बल्क उत्पादन करता है जो आंतो के संकुचन के कार्यो को उत्तेजित करता है जिसके कारन दस्त का मार्ग आसान हो जाता है और इस प्रकार यह कब्ज को हटा देता है

(६)- सूखी खांसी में लाभकारी

इशबगोल को चीनी के साथ लेने से सुखी खांसी के लिए अच्छा प्राकृतिक उपचार है . इशबगोल की भूसी को गले में खरास और शुष्क खांसी को कम करने के लिए अधिक उपयोगी है .

(७)- त्वचा के सूखेपन में उपयोग

त्वचा की सूखेपन के लिए इशबगोल के पाउडर को मसाज के लिए प्रयोग किया जाता है यह मसाज सूखापन कम करती है जिससे त्वचा की चमक बढ़ जाती है    

 


Authors:

किशन सिंह, अमन श्रीवास्तव, श्वेतांक सिंह, रजनीश सिंह, हरि बक्श, बिजेंद्र कुमार सिंह और राज पाण्डेय

तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर २२२ ००२  (उ०प्र०)

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