उत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ
विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थो के उत्पादन में 34¬ प्रतिशत योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2018-19 के दौरान 102.19 (चतुर्थ आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है।
यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है। कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर), मध्य क्षेत्रों (7.25 मिलियन हैक्टर), उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों (0.97 मिलियन हैक्टर) और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों (1.31 मिलियन हैक्टर) हैं।
इस प्रकार गेहूँ के अन्तर्गत कुल 30.71 मिलियन हैक्टर क्षेत्रों आता है जिसके अन्तर्गत उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों समेत पश्चिमी हिमालयन क्षेत्रों का जम्मू एवं कश्मीर (जम्मू एवं कटुवा जिले को छोड़कर), हिमाचल प्रदेश (तराई क्षेत्रों को छोड़कर) क्षेत्रों आते हैं।
उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाली गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियों एवं उनके विशिष्ठ गुण, बुवाई का समय, बीज दर एवं उर्वरक की मात्रा, खरपतवार प्रबन्धन, फसल सुरक्षा प्रौद्योगिकियाँ एवं कटाई, मढ़ाई एव भंडराण के लिये प्रौद्योगिकियो का वर्णन इस लेख में किया गया है।
सारणी 1: उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुषंषित गेहूँ की प्रजातियाँ
उत्पादन स्थिति |
प्रजाति |
उपज क्षमता (कुं./हैं.) |
औसत उपज (कु/हैं.) |
विशेष गुण |
अगेती बुआई - वर्षा आधारित - उपजाऊ मृदाओं के लिये
|
एच एस 542 |
49.3 |
32.9 |
अधिक नाइट्रोजन, पीला एव भूरा रतुआ प्रतिरोधी एवं अच्छी चपाती के लिये |
एच पी डब्ल्यू 251 |
49.5 |
34.4 |
रतुआ प्रतिरोधी एवं करनाल बंट के लिए मधयम प्रेतिरोधी, लोहा, कॉपर एवं मैंग्नीज तत्व की अधिकता |
|
वी एल 829 |
59.8 |
29.0 |
द्धि-उद्दे्शीय (चारा एवं दाने के लिये), भूरा रतुआ प्रतिरोधी, वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिये अधिक उर्वरको के उपयोग, अधिक प्रोटीन एव अच्छे हेक्टोलीटर भार के लिये |
|
समय पर बुआई - वर्षा आधारित क्षेत्रों - कम उपजाऊ मृदाओं के लिये
|
एच एस 562 |
58.8 |
36.0 |
पीला रतुआ प्रतिरोधी, चपाती एवं ब्रेड के लिये अच्छी |
एच पी डब्ल्यू 349 |
42.1 |
25.9 |
उर्वरक मात्रा को बढ़ाने पर प्रतिक्रिया, पीला एवं भूरा रतुआ प्रेतिरोधी, अच्छी पोषण गुणवत्रा |
|
एच एस 507 |
54.3 |
26.6 |
भूरा और पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी, अच्छी रोटी, चपाती, ब्रेड और बिस्कुट के लिये उपयुक्त |
|
वी एल 907 |
52.5 |
27.9 |
पोषक गुणवत्ता विशेषकर सुक्ष्म पोषक तत्वों में अच्छी जैसे (लोहा, जिंक, कॉपर और मैग्नीज) के लिए, भूरा और पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी |
|
वी एल 804 |
54.7 |
41.3 |
भूरा रतुआ, खुली कंगियारी के प्रति प्रतिरोधी, उर्वरक मात्रा के साथ अलग-अलग नमी की अवस्थाओं में उर्वरक की मात्रा के लिये, चपाती और ब्रेड बनाने के लिए उपयुक्त |
|
समय पर बुआई - सिंचित - उच्च उपजाऊ मृदाओं के लिये
|
एच एस 562 |
62.2 |
52.7 |
पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी, चपाती और ब्रेड बनाने में अच्छी |
एच पी डब्ल्यू 349 |
61.4 |
47.0 |
उर्वरकता की अलग-अलग मात्रा के लिये प्रतिक्रिया देने वाली, पीला एवं भूरा रतुआ प्रेतिरोधी, अच्छी पोषण गुणवत्रा |
|
एच एस 507 |
54.3 |
26.6 |
भूरा और पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी |
|
वी एल 907 |
56.9 |
44.3 |
सूक्ष्म पोषक तत्वों में अच्छी जैसे लोहा, जिंक, कॉपर और मैग्नीशियम, भूरा और पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी |
|
वी एल 804 |
54.7 |
41.3 |
खुली कंगियारी, भूरा और पीला रतुआ के लिये प्रतिरोधी, उर्वरक के साथ नमी में अच्छी, चपाती और ब्रेड बनाने में अच्छी |
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देर से बुआई-कम सिंचाई-मध्यम उपजाऊ मृदाओं के लिये |
वी एल 892 |
59.0 |
37.6 |
भूरा रतुआ प्रेतिरोधी, उच्च जिंक, कॉपर और मैग्नीशियम और पोषण सुरक्षा में अच्छी |
सारणी 2: बुआई का समय, बीज दर और उर्वरको का उपयोग
कृषि दशाएं |
बुवाई का समय |
बीज दर (किग्रा./है.) |
उर्वरक (किग्रा./है.) |
सिंचित एवं समय पर बुआई |
नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा |
100 |
120:60:40 किग्रा./हैं.। 1/2 व 1/3 नाइट्रोजन एवं पूरा फास्फोरस एवं पोटाशियम बुआई के समय और शेष नाइट्रोजन पहली एवं दूसरी सिंचाई के साथ समान मात्रा में |
सिंचित एवं देरी से बुआई |
दिसम्बर का प्रथम पखवाड़ा |
125 |
90:60:40 किग्रा./हैं.। 1/2 व 1/3 नाइट्रोजन एव पूरा फास्फोरस एव पौटाशियम बुवाई के समय और शेष नाइट्रोजन पहली सिंचाई के साथ |
गेहूँ में खरपतवार प्रबन्धन
प्रथम सिंचाई के बाद कुदाल या फावड़ा या अन्य औजार से निराई करना फायदेमंद होता है। खरपतवारों का अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक खरपतवार नियंत्रण को अपनाना चाहिए। नए एवं अनुशंषित खरपतवारनाशी का ही प्रयोग अनुशंषित मात्रा एवं समय पर करना चाहिए ताकि खरपतवारों में उसके प्रति प्रतिरोधिता उत्पन उत्पन्न न हो।
खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार मुक्त बीज, शीघ्र बुवाई और लाइनों के बीच की दूरी को कम रखे। विभिन्न खरपतवारों और उसके नियंत्रण हेतू रासायनिक नियंत्रण के उपाय नीचे दिये गये है। पैंडीमैथलीन 1000 ग्राम सक्रिय तत्व को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 3 दिन बाद इस्तेमाल करें।
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को खत्म करने के लिये मैटसल्फ्यूरान 4 ग्राम/है. की दर से व 2, 4-डी 500 ग्राम/है. व कारफेंनट्रांजोन 20 ग्राम/है. की दर से 250-300 लीटर पानी मे घोलकर बुआई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे करें।
संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये क्लोडीनाफाँप 60 ग्राम/हैं. या फिनोक्साप्रोप 100 ग्राम/हैं. या सल्फोसल्फ्यूरान 25 ग्राम/है. सक्रिय तत्व 250-300 लीटर पानी मे घोलकर 30-35 दिनों मे बुवाई के 3 दिन के बाद स्प्रे करें।
चौड़ी व संकरी पत्ती वाले खरपतवारां के लिये 2, 4-डी 500 ग्रा/है. और आईसोप्रोट्यूरान 750 ग्राम/हैं. की दर से 250-300 लीटर पानी घोलकर बुआई के 30-35 दिन के पहले स्प्रे करे या सल्फोसल्फ्यूरान 23 ग्राम और मैटसल्फ्यूरान 2 ग्राम मिश्रण करके 250-300 लीटर पानी में बुवाई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे करें। पैंडीमैथालीन 1000-1500 ग्राम को 500 लीटर पानी मे घोलकर बुवाई के करें। सल्फोसल्फ्यूरान के साथ 2, 4-डी या मैटसल्फ्यूरान को घोलकर बुवाई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे कर सकते हैं।
सावधानियाँ
- क्लोडीनाफॉप और फिनोक्साप्राँप के साथ 2, 4-डी और मैटसल्फ्यूरान को ना मिलाएं। इन खरपतवारनाशीयों के उपयोग के बीच एक सप्ताह का अन्तर जरुर रखें।
- खरपतवारनाशी के एक समान स्प्रे के लिए हमेशा बूम स्प्रे और फ्लैट फैन नोजल का उपयोग करें।
- यदि ज्यादा खरपतवार हो तो जीरो टिलेज बुवाई से 1-2 दिन पहले ग्लाईफोसेट 0.5ः का घोल बनाकर स्प्रे करें।
- हिरनखुरी, मालवा और मकोय के निंयंत्रण के लिये कारफेंन्ट्रांजोन 20 ग्राम/हैं. की दर से ईस्तमाल करें। खरपतवारनाशी हमेशा विश्वसनीय श्रोत्र से ही खरीदे ।
- स्प्रे करते वक्त मास्क लगाकर मुहँ अवश्य ढ़क लेना चाहिए, हाथों में ग्लव्स (दस्ताने) पहनने चाहिए। कार्य खत्म होने के पश्चात् साबुन से हाथ अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। अगर शरीर के किसी भाग में घाव हो तो उसे बेंडेंज या कपडे से बाध लेना चाहिए।
रोग एवं कीट नियंत्रण
खुली कंगियारी
किसानो के बीच बीज सामग्री के वितरण और बीज ले जाने के उपयोग के मदेनजर फसल सुरक्षा तकनीकी पर नियंत्रण के उपाय किये जाने चाहिए। इस बीज उपचार मे कार्बोक्सिन 75 डब्ल्यू पी / 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से एवं कार्बेडाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या कम मात्रा मे कार्बोक्सिन 75 डब्ल्यू पी 1.25 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या टैबुकोनाजोल 2 डी. एस. 1.25 प्रति किलोग्राम बीज दर से और बायो एजेंट कवक ट्रांईकोडर्मा विरिडी को 4 ग्राम/किग्रा. बीज की दर से मिश्रित कर प्रयोग करे।
रतुआ
बीमारी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए पुरानी और रतुआ के लिए अति संवेदनशील प्रजातियों को नहीं बोना चाहिये (सारणी 1)। अपने क्षेत्र में सिर्फ वे ही प्रजातियाँ बोएं जो रतुआ (पीला और भूरा) के लिये प्रतिरोधी किस्में है। फसल पर पीला रतुआ का प्रकोप होने पर प्रोपिकोनाजोल 25 ई. सी. को 0.1ः की दर से 200 मिली/लीटर दवा को 200 लीटर पानी मे घोलकर 1 एकड़ क्षेत्रों मे प्रयोग करें। यदि संक्रमण एक स्पे से नियत्रित नहीं होता है तो 15 दिन बाद फिर स्प्रे करें।
करनाल बंट
करनाल बंट के प्रबन्धन के लिये, प्रोपिकोनाजोल 25 ई. सी. को 0.1ः की दर से (सिर्फ बीज फसल मे) बाली के निकलते समय स्पे करें। दो स्प्रे ट्रांईकोडर्मा विरिडी का जेडोक अवस्था मे 31-39 और 41-49 वृदि अवस्था चरण में (जैविक नियत्रिण) रोगों के लिये एक गैर रासायनिक प्रबधन हैं
ट्रांईकोडर्मा विरिडी का एक स्प्रे कल्ले निकलने वाली अवस्थाओ मे करे इसके बाद प्रोपिकोनाजोल 25 ई. सी. को 0.1ः की दर से एक स्प्रे से पूर्ण नियंत्रण होता है।
चूर्णिल आसिता
चूर्णिल आसिता नियंत्रण के लिये एक स्प्रे ट्राईडीमेफोन 25 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. ई. सी. को 0.1ः की दर से बाली निकालने के समय या बीमारी देखते ही उपयोग करें।
दीमक
दीमकों के अधिकता वाले क्षेत्रों में बीज उपचार के लिये क्लोरोपाइरोफाँस 20 प्रतिशत ई.सी. को 4 मि. ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके इसका उचित प्रबंधन कर सकते हैं। फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस. को 6 मि. ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर का उपचार भी बहुत प्रभावी हैं।
खड़ी फसल मे बोने के 15 दिन बाद खेत में कीटनाशक दवा का छिड़काव करें इसके लिये 3 लीटर क्लोरोपाइरीफाँस 20 ई. सी. को 20 किलोग्राम मिट्टी मे मिलाकर एक हैक्टर खेत में इसका छिड़काव करें।
एफिड
गेहूँ की फसल में पिछले कुछ वर्षों से एफिड का प्रकोप बढ़ा है। जब खेत में संक्रमण शुरू हो गया तब 100 मिलीलीटर एमिङाक्लोप्रिड 17.8 एस एल को 100 लीटर पानी मे घोलकर खेत के किनारों पर 3-5 मीटर की पट्टी मे छिड़काव करें। ऐसा करने से खेत में मौजूद सिरपिड मक्खी, काक्सीनिलिड बीटल, क्रायोसोपा आदि से शुरुआती चरण में इन लाभकारी कीटों से नियत्रित किया जा सकता है।
गेंहूं की कटाई, मढाई और भंडारण
दाने में 20 प्रतिशत नमी होने पर गेहूँ की कटाई के लिये उपयुक्त समय होता हैं। सामान्यतः गेहूँ की कटाई होने पर बंडलो को बनाकर 3-4 दिनो तक धूप मे सुखाकर फिर थ्रेशर मशीन द्वारा मढाई करे। भंडारण से पहले अनाज को तेज धुप मे तारपिन की प्लास्टिक चादर पर फैलाकर सुखाया जाना चाहिए ताकि भंडारण के लिये नमी 12 प्रतिशत कम हो जाए।
भंडारण के लिये एल्युमिनियम के बिन, पूसा बिन, भूमिगत कक्ष आदि का प्रयोग करें। किसान अपने गेहूँ के सुरक्षित भंडारण के लिये परम्परागत विधि भी अपनाते हैं। भंडारण के दौरान कीड़ो से होने वाले नुकसान से बचने के लिये ए डी बी एम्पुल 5 ग्राम/टन धुआ कमरे मे 24 घंटे के लिये दे।
किसान भाई एल्युमिनियम फास्फाइड को 3 ग्राम प्रति टन के हिसाब से इस्तेमाल करके भी सुरक्षित भंडारण कर सकते हैं।
Authors
चरण सिंह, अनुज कुमार, अरुण गुप्ता, प्रेमलाल कश्यप, विकास गुप्ता, गोपलरेड्डी के, आर पी मीना, पूनम जसरोटिया एवं सुधीर कुमार
आई.सी.ए.आर-आई.आई.डब्ल्यू.बी.आर. करनाल
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