जैव संवर्धित किस्में एवं उनकी प्रमुख विशेषतायें
पोषक आहार मानव शरीर की सम्पूर्ण वृद्धि व विकास के लिए आवश्यक है| पोषक आहार नही मिलने से विभिन्न सूक्ष्म तत्वों की कमी शरीर को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है जिसको सामान्य शब्दों में कुपोषण कहा जाता है| सम्पूर्ण विश्व में लगभग 2 बिलियन जनसंख्या अपुष्ट आहार से प्रभावित है जबकि 795 मिलियन जनसंख्या कुपोषण की शिकार है|
भारत में 194.6 मिलियन जनसंख्या कुपोषित है जिनमे से 44% महिलायें अनीमिया से ग्रसित है, 5 वर्ष से कम उम्र के 38.4% बच्चे छोटे कद व 35.7% बच्चे कम वजन के है| जैव संवर्धित किस्मों का विकास कर कुपोषण की स्थिति से बचा जा सकता है| यह सबसे सस्ता और सरल उपाय है|
पारम्परिक प्रजनन (जैव प्रौद्योगिकी के साथ या इसके बिना, फसल मानचित्रण और मार्कर समर्थित प्रजनन) या मेटाबोलिक प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से खाद्य फसल की सूक्ष्म पोषक तत्वों का संवर्धन जैव संवर्धन कहलाता है|
भारतीय कृषि अंनुसंधान परिषद ने जैव संवर्धित विधि से धान्य, दलहन, तिलहन, सब्जी और फल वाली फसलो में उच्च पैदावार व उच्च पोषक गुणवत्ता वाली विभिन्न जैव संवर्धित किस्मों का विकास किया है| इन किस्मों के बारे में संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:
धान की जैव संवर्धित किस्में
1. सी आर धान 310:
यह किस्म राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक (2016) द्वारा विकसित की गयी है| इसमें प्रोटीन की मात्रा 10.30% होती है | यह 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से औसत उपज देती है| यह उड़ीसा, मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के लिए अनुमोदित किस्म है|
2. डी आर आर धान 45:
इस किस्म को भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (2016) ने विकसित किया है| इसके दानो में जिंक की मात्रा 6 पी पी एम पाई जाती है| यह किस्म 125-130 दिन में पककर 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार देती है| यह कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना व आंध्रप्रदेश राज्यों में बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है|
गेंहूँ की जैव संवर्धित किस्में
1. डब्ल्यू बी 02:
इस किस्म को भारतीय गेंहूँ और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा 2017 में विकसित किया गया| इसमें उच्च जिंक (42 पी पी एम) व आयरन (40 पी पी एम) की मात्रा पाई जाती है | यह किस्म सिंचित अवस्था में समय से बुवाई के लिए उपयुक्त है जो 142 दिन में पककर 51.6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की औसत उपज देती है|
यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभागो को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झाँसी संभाग को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिला, हिमाचल प्रदेश के पाओंटा घाटी तथा ऊना जिला और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है|
2. एच पी बी डब्ल्यू 01:
अखिल भारतीय गेंहूँ और जौ समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियान के द्वारा (2017) इस किस्म को विकसित किया गया| इसमें अधिक जिंक (40 पीपीएम) व आयरन (40.6 पीपीएम) की मात्रा पाई जाती है| यह सिंचित अवस्था में समय से बुवाई के लिए उपयुक्त है और यह 141 दिन में पकने वाली किस्म है|
यह एक हैक्टेयर में 51.7 क्विंटल तक औसत पैदावार देती है| यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभागो को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झाँसी संभाग को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिला, हिमाचल प्रदेश के पाओंटा घाटी तथा ऊना जिला और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्म है|
3. पूसा तेजस (एच आई 8759):
अखिल भारतीय गेंहूँ और जौ समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियान के द्वारा इस किस्म को विकसित किया गया| इसमें अधिक प्रोटीन (12%), जिंक (42.8 पीपीएम) व आयरन (42.1 पीपीएम) की मात्रा पाई जाती है|
यह सिंचित अवस्था में समय से बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है| यह एक हैक्टेयर में 50 क्विंटल तक औसत उपज देती है| यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान व उत्तरप्रदेश के लिए अनुमोदित किस्म है|
4. पूसा उजाला (एच आई 1605):
यह किस्म आई सी ए आर- आई ए आर आई, रीजनल स्टेशन, इंदौर, मध्य प्रदेश द्वारा विकसित की गयी है| इसमें 13% प्रोटीन, 43 पीपीएम आयरन व 35 पीपीएम जिंक पाया जाता है| यह 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देती है तथा महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु राज्यों के लिए अनुमोदित है|
5. एम ए सी एस 4028:
इसमें 14.7% प्रोटीन, 1 पीपीएम आयरन व 40.3 पीपीएम जिंक पाया जाता है| यह 19.3 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देती है तथा महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु राज्यों के लिए अनुमोदित है|
मक्का की जैव संवर्धित किस्में
1 पूसा विवेक क्यू पी एम-9 उन्नत:
इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2017 में विकसित किया| यह भारत की उच्च प्रोविटामिन-ए युक्त संकर मक्का की पहली किस्म है| इसमें उच्च प्रोविटामिन-ए (8.15 पीपीएम), लाइसिन (2.67%) एवं ट्रिप्टोफैन (0.74%) पाया जाता है|
यह किस्म उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में 93 दिन में पककर 55.9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज तथा दक्षिण प्रायद्वीप क्षेत्र में 83 दिन में पककर 59.2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देती है|
यह खरीफ मौसम में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, उत्तर पूर्वी राज्यों, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना व आंध्रप्रदेश राज्यों बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है|
2. पूसा एच एम 4 उन्नत:
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2017 में इस किस्म को विकसित किया| इसमें अधिक ट्रिप्टोफैन (0.91%) व लाइसिन (3.62%) पाया जाता है|
यह 87 दिन में पककर 64.2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देने वाली किस्म है| यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड (मैदानी क्षेत्र) व उत्तर प्रदेश (पश्चिमी क्षेत्र) में खरीफ में बुवाई हेतु उपयुक्त किस्म है|
3. पूसा एच एम 8 उन्नत:
इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2017 में विकसित किया| इसमें अधिक ट्रिप्टोफैन (1.06%) व लाइसिन (4.18%) की मात्रा पाई जाती है| फसल के पकने का काल 95 दिन है और इससे औसत उपज 62.6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से प्राप्त होती है| यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना व आंध्रप्रदेश राज्यों खरीफ मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है|
4. पूसा एच एम 9 उन्नत:
इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2017 में विकसित किया| इस किस्म में ट्रिप्टोफैन (0.68%) व लाइसिन (2.97%) की मात्रा पाई जाती है |
यह 89 दिन में पककर 52 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से पैदावार देती है| यह खरीफ मौसम में बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश(पूर्वी क्षेत्र) और पश्चिमी बंगाल में बुवाई हेतु अनुमोदित किस्म है|
बाजरा की जैव संवर्धित किस्में
1. एच एच बी 299:
इस किस्म को अखिल भारतीय समन्वित बाजरा अनुसंधान परियोजना के तहत चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिस्सार द्वारा इकरीसैट, हैदराबाद के सहयोग से वर्ष 2017 विकसित किया गया है| यह आयरन (73 पीपीएम) और जिंक (41 पीपीएम) से भरपूर संकर किस्म है|
यह 81 दिन में पककर तैयार होने वाली किस्म है तथा इससे 32.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार होती है| यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों के लिए खरीफ मौसम में खेती के लिए उपयुक्त किस्म है|
2. ए एच बी 1200:
यह किस्म अखिल भारतीय समन्वित बाजरा अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत बसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभनी द्वारा इकरीसैट, हैदराबाद के सहयोग से वर्ष 2017 विकसित की है| इसमें आयरन (73 पीपीएम) की प्रचुर मात्रा पाई जाती है|
यह 78 दिन में पककर 32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार देती है| यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों के लिए खरीफ मौसम में बुवाई के लिए अनुमोदित किस्म है|
मसूर की जैव संवर्धित किस्में
1. पूसा अगेती मसूर:
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने वर्ष 2017 में इस किस्म को विकसित किया है| इस किस्म में आयरन (65 पीपीएम) की उच्च मात्रा पाई जाती है| इसका बीज नारंगी रंग व मध्यम आकार का होता है और यह वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है|
यह 100 दिन में पककर 13 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार देती है| यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व छतीसगढ राज्यों के लिए उपयुक्त किस्म है|
2. आई पी एल 220:
यह भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर द्वारा वर्ष 2018 में विकसित की गयी है| इस किस्म में उच्च मात्रा में आयरन (73 पीपीएम) व जिंक (51 पीपीएम) पाया जाता है| यह बारानी क्षेत्रों में रबी मौसम में बुवाई हेतु उपयुक्त किस्म है|
यह 121 दिन में पककर 13.8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से पैदावार देती है| यह उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल व आसाम के लिए उपयुक्त किस्म है|
सरसों की जैव संवर्धित किस्में
1. पूसा सरसों 30:
यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा (2013) विकसित किस्म है जिसमे इरुसिक अम्ल (टोक्सिक) की 2% से कम मात्रा पाई जाती है जो प्रचलित किस्मों में 40% से भी अधिक पाया जाता है| इसमें 37.7% तेल की मात्रा पाई जाती है और यह सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है|
यह 137 दिन में तैयार होकर 18.2 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से औसत पैदावार देती है| यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड व राजस्थान राज्यों में बुवाई हेतु उपयुक्त किस्म है|
2. पूसा डबल जीरो 31:
यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा (2016) देश की पहली केनौला गुणवत्तायुक्त भारतीय सरसों की विकसित की गयी किस्म है| इसके तेल में इरुसिक अम्ल (टोक्सिक) की 2% से कम और तेल रहित खली में ग्लुकोसिनोलेट 30 पीपीएम से कम पाया जाता है|
यह सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है| इसकी फसल 142 दिन में पाक जाती है तथा औसतन 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर उपज देती है| यह राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू व कश्मीर के मैदानी क्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश के लिए अनुमोदित किस्म है|
फूलगोभी की जैव संवर्धित किस्में
1. पूसा बीटा केसरी 1:
देश की पहली जैव संवर्धित फूलगोभी की किस्म जो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2015 में विकसित की गयी है| इसमें 8 से 10 पीपीएम बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो प्रचलित किस्मों में न के बराबर होता है| इससे 40-50 टन प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त होती है और यह दिल्ली में बुवाई के लिए अनुमोदित किस्म है|
शकरकंद की जैव संवर्धित किस्में
1. भू सोना:
केन्द्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरम द्वारा वर्ष 2017 में विकसित की गयी किस्म है| इसमें उच्च बीटा कैरोटीन 14 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम पाया जाता है| इसमें सुखा पदार्थ, स्टार्च व कुल शर्करा की मात्रा क्रमशः 27-29%, 20% व 2-2.4% पाई जाती है| इससे 19.8 टन प्रति हैक्टेयर कंद की पैदावार होती है और यह उड़ीसा के लिए अनुमोदित किस्म है|
2. भू कृष्णा:
यह किस्म केन्द्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरम द्वारा वर्ष 2017 में विकसित की गयी| इसमें 90 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम एन्थोसायनिन पाया जाता है | इसमें सुखा पदार्थ, स्टार्च व कुल शर्करा की मात्रा क्रमशः 24-25.5%, 5% व 1.9-2.2% पाई जाती है| यह लवणता के प्रति सहिष्णु किस्म है और 18 टन प्रति हैक्टेयर कंद की पैदावार देती है| यह उड़ीसा में बुवाई हेतु उपयुक्त किस्म है|
अनार की जैव संवर्धित किस्में
1. सोलापुर लाल:
इस किस्म को राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र, पुणे ने वर्ष 2017 में विकसित किया| इसके दानो में उच्च आयरन (5.6-6.1 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम), जिंक (0.64-0.69 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम) व विटामिन-सी (19.4 – 19.8 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम) पाए जाते है इससे 23-27 टन प्रति हैक्टेयर की दर से फल की पैदावार होती है| यह देश के अर्धशुष्कीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है|
Authors:
राजवन्ती सारण
पादप प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर-302018 (राजस्थान) Email: