मध्यप्रदेश के लिए आलू की अधिक उपज देने वाली नई किस्में

मध्य प्रदेश भारत में आलू का पांचवा प्रमुख उत्पादक राज्य है। इस राज्य ने विगत 7-8 वर्षों के दौरान आलू उत्पादन में लम्बी छंलाग लगाई है। इस अवधि के दौरान मध्यप्रदेश में आलू के क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। आलू के अन्तर्गत कुल कृषिगत क्षेत्रफल में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई है।

यह क्षेत्रफल वर्ष 2010-11 में 62 हजार है0 था जो कि वर्ष 2018-19 में बढकर 145 हजार है0 हो गया। इसी अवधि में उत्पादन में भी चार गुना से अधिक की वृद्धि हुई है जो कि 743 हजार मिलियन टन से बढकर 3315 हजार टन एवं उत्पादकता लगभग दोगुनी वर्ष 2010-11 में 12.0 मिलियन टन/है0 से बढकर वर्ष 2018-19 में 23 मिलियन टन/है0 हो गई है।

मध्य प्रदेश में आलू की महत्ता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अधिकांशतः आलू आधारित उद्योग कच्चे माल की आपूर्ति अथवा अपनी प्रसंस्करण इकाईयां इस राज्य में विशेषकर म0प्र0 के मालवा क्षेत्र में स्थापित करना चाहते हैं।

मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र आलू उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्र इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर हैं एवं अन्य गौण क्षेत्र छिंदवाडा, सीधी, सतना, रीवा, सरगुजा, राजगढ, सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, मुरेना, छतरपुर, विदिसा, रतलाम, बैतूल एवं टीकमगढ हैं (तालिका-1)।

म0प्र0 का इंदौर जिला अकेले ही आलू के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है। आलू के लिये कृषि जलवायवीय क्षेत्र पश्चिमी मध्य मैदानी क्षेत्रों से उत्तरी-पूर्वी मैदानों तक भारत के आलू क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। मध्य प्रदेश में आलू शीत ऋतु के दौरान कम तापक्रम एवं लघु दिवस अवधि में अक्टूबर से फरवरी/ मार्च तक लगाया जा सकता है।

इस क्षेत्र में आलू फसल की वृद्धि हेतु अनुकूल परिस्थितियां शीत ऋतु के दौरान मिलती हैं जैसे कि प्रचुर सूर्य प्रकाश, अनुकूल तापक्रम एवं पाला व पछेती झुलसा की आशंका में कमी। म0प्र0 में सर्दी मंद होती है जबकि आलू के पूर्व व उपरांत मौसम उत्तर-पश्चिमी मैदानों के समान होता है।

म.प्र. के कुछ क्षेत्रों में फसल वृद्धि के अंतिम 30 दिनों के दौरान रात का न्‍यूनतम तापमान 10°C से अधिक होता है जिसके कारण उत्‍पादित कंद उच्‍च शुष्‍क पदार्थ(>20%) एवं निम्‍न अपचयित शर्करा वाले होते हैं जो कि प्रसंस्‍करण के लिए उपयुक्‍त होते है ।

तालिका: 1 म.प्र. के प्रमुख आलू उत्पादक जिलों का क्षेत्रफल एवं उत्पादन

जिले 2015-16 2016-17 2017-18

  इकाई क्षेत्रफल

(हजार हेक्टर)

उत्पादन

(हजार टन)

इकाई क्षेत्रफल

(हजार हेक्टर)

उत्पादन

(हजार टन)

  इकाई क्षेत्रफल 

(हजार हेक्टर)

उत्पादन

(हजार टन)

इन्दौर 39.00 858.00 45.40 1021.50 47.50 1211
शाजापुर 12.10 266.20 15.10 320.88 6.06 133.34
उज्जैन 12.12 233.31 15.80 304.15 12.39 247.84
छिन्दवाड़ा 7.31 182.80 8.00 200.00 7.90 197.60
दैवास 7.88 154.38 6.00 187.50 9.84 194.14
सागर 5.18 129.53 8.10 159.61 5.25 157.59
मुरैना 3.93 96.34 3.94 96.88 3.98 98.10
ग्वालियर 2.86 71.50 3.30 82.58 3.40 85.12

स्त्रोत: कृषि एवं सहकारिता विभाग (उद्यानिकी विभाग)

तापक्रम बढ़ने के कारण भविष्‍य में म.प्र. में आलू के लिए उपयुक्‍त कृषि अवधि प्रभावित होगी और कार्वन डाई आक्‍साड में वृद्धि के कारण उत्‍पादकता में संभवत: गिरावट आयेगी । आलू की उत्‍पादकता वर्ष 2020 में 6.42 से 7.6 प्रतिशत एवं वर्ष 2055 में 10.9 से 14.3 प्रतिशत तक गिर सकती है

उपयुक्‍त किस्‍मों का चयन एवं बुवाई तिथि में परिवर्तन से एक उच्‍च परास तक उत्‍पादकता में गिरावट को रोका जा सकता है। अत: आलू की ऐसी किस्‍मों को विकसित करने की आवश्‍यकता है जो कि उच्‍च तापक्रम के लिए अनुकूल होने के साथ-साथ उच्‍च कंद उत्‍पादन दर वाले हों ।(दुआ एवं अन्‍य 2018)

उत्पादन हेतु किस्म का चयनः-

केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान संस्‍थान, शिमला कृषकों की आवश्‍यकतानुरूप जैसे फसल तंत्र में उपयुक्‍त लघु एवं मध्‍यम अवधि किस्‍में एवं बाजार मांग के अनुसार आलू चिप्‍स, फ्रेंच फ्राई एवं अन्‍य शुष्‍कीकृत व डिब्‍बाबंद उत्‍पादों के निर्माण हेतु प्रसंस्‍करण आलू एवं एंटीऑक्‍सीडेंट (एंथोसाइनिन एवं कैरोटिनोइड) में वृद्धि कर पोषकों से भरपूर आलू, तथा लोहा एवं जस्‍ता अवयवों का जैव सुदृढ़ीकरण द्वारा समावेश वाली किस्‍मों को विकसित करता है।

जलवायु परिवर्तन आलू उत्‍पादन में एक प्रमुख मुद्दा है इसलिए संस्‍थान ताप एवं सूखा सहिष्‍णु किस्‍मों के विकास पर केन्द्रित है जिससे जलवायु परिवर्तन की अनियमितता का सामना किया जा सके।

केन्द्रीय आलू अनुसन्धान संस्थान, शिमला ने अपने प्रारम्भ से लगभग 66 उच्च उपज वालीं किस्मों का विकास विभिन्न सस्य जलवायु क्षेत्रों के लिये किया है। जो भारत में आलू के अन्तर्गत 90 प्रतिशत क्षेत्रफल में उगाई जाती है

उत्पादन हेतु आलू किस्म का चयन मृदा एवम् जलवायु परिस्थितियों, बाजार मांग तथा रोगों जैसे पछेती झुलसा के प्रति सुग्राहिता जो कि आलू फसल को अधिकतम हानि पहुंचाती हैं आदि को ध्यान में रखकर किया जा सकता है।

आलू किस्म जो कि चिप्स बनाने हेतु उगायी जा रही हैं उसके कन्द एक समान गोल/अण्डाकार, उथली आंखें होना चाहिये जबकि आयताकार एवम् उथली आंखों वाले कन्द की किस्में फ्रैंच फ्राई के लिये उपयुक्त मानी जाती हैं।

आलू उत्पादन की प्रमुख समस्याओं में स्वस्थ बीज की कमी, पिछेता झुलसा का प्रकोप, सिंचाई जल का अभाव, प्रसंस्कृति उत्पादों की बढ़ती मांग, उत्पादन की बढ़ती लागतें आदि हैं । आलू की अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्नत किस्म के शुद्ध बीज का प्रयोग करना चाहिए ।

ऐसा करने पर पौधों का विकास तथा परिपक्वता समान रुप से होती है एवं कन्दों का आकार आदि समान होगें । अंकुरित कन्दों  की बुआई करने से बृद्धि एकसार होने के साथ - साथ फसल जल्दी तैयार होती है ।

केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान संस्‍थान, शिमला ने विगत 4-5 वर्षों में कृषकों, उद्योगों एवं उपभोक्‍ताओं की वर्तमान आवश्‍यकता के अनुसार कुछ नई किस्‍मों का विकास किया है जिनका विवरण यहां दिया गया है।

अल्प अवधि वाली किस्में

कुफरी ख्याति-

यह एक शीघ्र परिपक्वता वाली (70-80 दिन) किस्म है। यह किस्म पछेती झुलसा के प्रति अल्प प्रतिरोधी है। यह किस्म अन्य अगेती किस्मों की तुलना में बुवाई के 60 एवम् 75 दिन के पश्चात् अधिक उत्पादन देती है।

इस किस्म के कन्द उत्तम भण्डारण गुणवत्ता वाले होते हैं जिनमें शुष्क पदार्थ की मात्रा (15%) होती है। इस किस्म के कन्द मध्यम-बडे, गोल अण्डाकार एवम् हल्के पीले गूदे वाले होते हैं जो कि भोज्य उपयोग हेतु उपयुक्त होते हैं। इस किस्म की उपज 40 टन प्रति हैक्टेयर होती है।

कुफरी लीमाः-

इस किस्‍म का विकास केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान संस्‍थान, शिमला ने अंर्तराष्‍ट्रीय आलू केंद्र के सहयोग से किया है। यह शीघ्र परिपक्वता वाली (75-90 दिन) ताप सहनशील किस्म हैं और इसे गर्म क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह अगेती मौसम वाली उत्तर भारतीय मैदानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त किस्म हैं।

इस किस्म के कंद आर्कषक, सफेद से हल्के पीले, अंडाकार, उथली आंखों वाले एवं सफेद हल्के पीले गूदे वाले होते हैं। 19-20% शुष्‍क पदार्थ एवं पी वी एक्‍स, पी वी वाई विषाणु के प्रति प्रतिरोधी भी हैं। यह किस्म हॉपर एवं माईट के प्रति सहिष्णु है एवं इस किस्म में उत्तम भंडारण क्षमता पायी जाती है। 

इस किस्म की उपज ताप तनाव के अन्तर्गत 15-20 दिवस अगेती बुवाई किये जाने पर 30-35 टन/है0 आती है।

मध्यम अवधि किस्में-

कुफरी नीलकंठ:-

यह एक भोज्‍य उपयोग हेतु मध्‍यम परिपक्‍वता अवधि वाली नवीन किस्‍म है। यह किस्म एंटीऑक्सीडेंट (एंथोसाईनिन 100 माइक्रोग्राम एवं केरोटीनॉ‍इड्स 200 माइक्रोग्राम/100 ग्राम ताजे भार के अनुसार) से भरपूर एवं औसत उपज 35-38 टन/है0 है।

इस किस्म के कंद गहरे बैंगनी, अंडाकार, गहरी आंखों वाले, हल्का पीला गूदा, उत्तम भंडारण क्षमता, मध्यम शुष्क पदार्थ (18%) मध्यम सुसुप्तावस्था एवं उत्तम सुगन्ध वाले होते हैं। इसके कंद शीघ्र पकनेवाले एवं पकने के उपरांत रंग मलिनिकरण से मुक्‍त, हल्‍के गठन वाले होते हैं। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, उ0प्र0, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ एवं इनके समान कृषि पारिस्थितिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।

आलू के बारे में हमेशा भ्रांति रहती है कि यह कार्वोहाइड्रेट युक्‍त जंक खाद्य पदार्थ है इसलिए इस संदर्भ में आलू में एंटीआक्‍सीडेंट का जैव सुदृढ़ीकरण द्वारा पोषक वर्धन इसकी पोषण महत्‍ता स्‍थापित करता है व उपभोक्‍ताओं के मध्‍य लोकप्रियता भी बढ़ाता है।

 कुफरी मोहनः-

यह एक मध्यम परिपक्वता, उच्च उपजशील भोज्य उपयोग हेतु उपयुक्त आलू की किस्म हैं जो कि सिंधु गंगा के मैदानी क्षेत्रों (उत्तरी एवं पूर्वी) में उत्पादन हेतु अनुकूल है। पिछेती झुलसा के प्रति मंद प्रतिरोधी इस किस्म के कंद अंडाकार, उथली आंखों वाले एवं सफेद गूदे वाले होते हैं।

इस किस्म की भंडारण क्षमता उत्तम होती है एवं कंद मध्यम शुष्क पदार्थ (16-18%) वाले होते हैं। इस किस्म की उपज 35-40 टन प्रति हैक्टेयर होती है एवं उपयुक्त सस्य क्रियाओं को अपनाये जाने पर 90 प्रतिशत से अधिक बाजार में विपणन योग्य कंद प्राप्त होते हैं।

कुफरी हिमालिनीः-

यह मध्यम परिपक्वता वाली किस्म भारतीय पहाडी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त हैं। यह किस्म उत्तर मध्य मैदानी क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती हैं। यह किस्म पछेती झुलसा के प्रति पत्तियों में उच्च स्तरीय प्रतिरोधकता एवं कंदों में मध्यम प्रतिरोधकता वाली है। इस किस्म के कंद मध्यम आकार वाले, अंडाकार, सफेद, हल्के पीले गूदे वाले तथा उत्तम गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म अनुकूलतम सस्य क्रियाओं के साथ 30-35 टन/है0 उपज देने में सक्षम हैं।

कुफरी गंगाः-

यह मध्यम परिपक्वता वाली मुख्य मौसम की फसल के रूप में ली जाने वाली भोज्य आलू की किस्म हैं। यह किस्म उच्च कंद उत्पादन, पछेती झुलसा के प्रति प्रतिरोधकता, उत्तम भंडारण क्षमता एवं उत्तर मैदानी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।

इस किस्म के कंद सफेद हल्के पीले, अंडाकार एवं एक समान आकार एवं उथली आंखों वाले व सफेद हल्के पीले गूदे वाले होते हैं। यह किस्म अनुकूलतम सस्य क्रियाओं के साथ 30-35 टन/है0 उपज देने में सक्षम हैं।

कुफरी करण:-

यह एक मध्‍यम परिपक्‍वता वाली पिछेती झुलसा प्रतिरोधी कि‍स्‍म है यह किस्‍म विभिन्‍न रोगों जैसे पिछेती झुलसा, शीर्ष पर्ण कुंचन विषाणु, आलू विषाणु बाई, एस, ए, एम, एवं आलू पर्ण मोड़क विषाणु के प्रतिरोधी होने के साथ-साथ आलू सूत्रकृमि के लिए मंद प्रतिरोधी है।

इसमें शुष्‍क पदार्थ 18% होता है। यह किस्‍म लगभग 30 टन/हेक्‍ट. उत्‍पादन देती है व भारतीय पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्रों के लिए उपयुक्‍त है और मध्‍यप्रदेश में भी उगायी जा सकती है।

कुफरी फ्रायोम

यह एक मध्‍यम परिपक्वता वाली प्रमुख उच्‍च उत्‍पादकता युक्‍त प्रसंस्‍करण आलू की किस्‍म है जो कि उत्‍तर पश्चिमी एवं मध्‍य मैदानी क्षेत्रों एवं समरूप सस्‍य पारिस्थितिक क्षेत्रों के लिए उपयुक्‍त है। इस किस्‍म का पौधा लंबा, ओजपूर्ण एवं अर्द्ध-सघन आच्‍धादन एवं पिछेती झुलसा के लिए प्रतिरोधी है इसके कंद सफेद, हल्‍के पीले, लंबाकार होते हैं। जिसका गूदा सफेद एवं आंखे उथली होती है

इस किस्‍म की भण्‍डारण क्षमता अतिउत्‍तम है तथा कंदो की सुसुप्‍तावस्‍था भी 10 सप्‍ताह से अधिक होती है एवं कंद शुष्‍क पदार्थ  (20%) एवं अपचयित शर्करा निम्‍न (<150 मि.ग्रा./100) होती है। इस ‍किस्‍म की उपज 30-35 टन/हेक्‍टेयर एवं प्रसंस्‍करण हेतु उपयुक्‍त कंदों का प्रतिशत अधिक (>80%) होता है इस किस्‍म के कंदो से उत्‍तम गुणवत्‍ता की फ्रेंच फ्राई बनाई जा सकती है।

कुफरी संगम  

यह एक मध्‍यम परिपक्वता वाली प्रमुख उच्‍च उत्‍पादकता युक्‍त बहू उद्देशीय (सब्जी एवं प्रसंस्‍करण) आलू की किस्‍म है जो कि उत्‍तर पश्चिमी एवं मध्‍य मैदानी क्षेत्रों एवं समरूप सस्‍य पारिस्थितिक क्षेत्रों के लिए उपयुक्‍त है। इस किस्‍म का पौधा मध्यम लंबा, ओजपूर्ण एवं पूर्ण-सघन आच्‍छादन एवं पिछेती झुलसा के लिए प्रतिरोधी है

इसके कंद सफेद, हल्‍के पीले, अंडाकार होते हैं। जिसका गूदा सफेद क्रीम  एवं आंखे उथली होती है इस किस्‍म की भण्‍डारण क्षमता अति उत्‍तम है। कंदो की सुसुप्‍तावस्‍था 10 सप्‍ताह से अधिक होती है एवं कंद शुष्‍क पदार्थ सामान्‍य (18-20%) एवं अपचयित शर्करा निम्‍न (<150 मि.ग्रा./100) होती है।

इस ‍किस्‍म की उपज 35-40 टन/हेक्‍टेयर एवं प्रसंस्‍करण हेतु उपयुक्‍त कंदों का प्रतिशत अधिक (>80%) होता है इस किस्‍म के कंदो से उत्‍तम गुणवत्‍ता की फ्रेंच फ्राई बनाई जा सकती है।

मध्यप्रदेश के कृषक अपनी पसन्द जैसे मालवा क्षेत्र के लिये प्रसंस्करण किस्म, लघु एवम् मध्यम अवधि किस्में आदि के आधार पर किस्मों का चुनाव कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कृषक मध्य प्रदेश के चम्बल, परिक्षेत्र एवम् इसके समीपस्थ क्षेत्रों में बीज उत्पादन के लिये इन किस्मों का चुनाव कर सकते हैं क्योंकि यह क्षेत्र अक्टूबर मध्य से जनवरी मध्य तक निम्न माहू संख्या एवम् कन्द व मृदाजनित बीमारियां कम होने (पारिस्थितिकी वश) के कारण बीज उत्पादन हेतु देश में सर्वोत्तम है।

उपरोक्‍त किस्‍में केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान संस्‍थान शिमला के विभिन्‍न केन्‍द्रों पर नाभिकीय एवं प्रजनक बीज उत्‍पादन की श्रृंखला के विभिन्‍न चरणों में है जो कि आगामी 2-3 वर्षों में राज्‍य सरकारों एवं कृषकों को आगे के उत्‍पादन हेतु उपलब्‍ध हो जाऐगी।

 

कुफरी फ्रायोम

कुफरी ख्‍याति

कुफरी लीमा

 

कुफरी नीलकंठ कुफरी मोहन कुफरी हिमालिनी

 

 कुफरी गंगा  कुफरी करण  कुफ़री संगम


संदर्भ

  1. वी.के. दुआ, राधिका पठानिया, तनवी कपूर, जगदेव शर्मा एवं आंचल राणा (2018) मध्‍यप्रदेश में जलवायु परिवर्तन और आलू की उत्‍पादकता-प्रभाव और अनुकूलन। जर्नल ऑफ एग्रो मेट्रोलॉजी 20(2):97-104
  2. सतीश कुमार लूथरा, विजय किशोर गुप्ता, विनोद कुमार, जागेश कुमार तिवारी, दलामू, विनय भारद्वाज, राज कुमार, शंभू कुमार(2020). आलू की नई विकसित किस्में. आलू विशेषांक, वैश्विक आलू कोंकलेव 2020,  फल फूल, जनवरी –फरवरी  2020,10-13 पेज
  3. वीके गुप्ता, एसके लूथरा और विनय भारद्वाज (2019) भारत में आलू प्रसंस्करण किस्में। ग्लोबल पोटैटो कॉन्क्लेव, 2020 इंडियन हॉर्टिकल्चर के विशेष अंक में, नवंबर-दिसंबर 2019, 12-14 पेज ।
  4. वी के गुप्ता, एस के लूथरा और विनय भारद्वाज (2020) प्रसंस्करण के लिए आलू प्रजनन: उपोष्णकटिबंधीय के लिए आलू विज्ञान और प्रौद्योगिकी। (एके सिंह एट अल।, एड।), पेज 75-96। न्यू इंडिया प्रकाशन एजेंसी, पीतमपुरा, नई दिल्ली-110034, भारत।
  5. ईजेकील, आर, वर्मा, एस.सी., सुकुमारन, एन.पी. और शेखावत, जी.एस. (1999)। भारत में आलू प्रोसेसर के लिए एक गाइड। तकनीकी बुलेटिन 49. केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला

Authors:

डॉ. मुरलीधर सदावर्ती, डॉ. विजय किशोर गुप्‍ता, डॉ. एस.पी.सिंह, डॉ. सुभाष कटारे, डॉ. संजय कुमार शर्मा, श्री राजेन्‍द्र कुमार समाधिया, डॉ. योगेन्‍द्र पाल सिंह,

श्री श्‍याम कुमार गुप्‍ता, श्री सुरेन्‍द्र सिंह

भा.कृ.अनु.प.-केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान क्षेत्रीय केन्‍द्र, ग्‍वालियर  मध्य प्रदेश

भा.कृ.अनु.प.-केन्‍द्रीय आलू अनुसंधान क्षेत्रीय केन्‍द्र, मोदीपुरम उ.प्र.

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