उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिये गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उत्पादन तकनीकियाँ

विश्व स्तर पर भारत गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है एवं कुल खाद्य पदार्थों के उत्पादन में 34 प्रतिशत योगदान करता है। वर्ष 1964-65 के दौरान देश में गेहूँ का उत्पादन महज 12.3 मिलियन टन था जो कि 2020-21 के दौरान 108.75 मिलियन टन (तृतीय आग्रिम अनुमान) तक पहुँच गया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें मजबूत शोध कार्यों और संगठित प्रसार कार्यक्रमों के द्रारा ही संभव हुई है।

कृषि जलवायु स्थिति के व्यापक विविधता के आधार पर भारत को 5 विभिन्न क्षेत्रों मे बाँटा गया है जोकि उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों (12.62 मिलियन हैक्टर), उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (8.56 मिलियन हैक्टर), मध्य क्षेत्रों (7.25 मिलियन हैक्टर), उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों (0.97 मिलियन हैक्टर) और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों (1.31 मिलियन हैक्टर) हैं।

इस प्रकार गेहूँ के अन्तर्गत कुल 30.71 मिलियन हैक्टर क्षेत्रों आता है जिसके अन्तर्गत उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान (कोटा एवं उदयपुर संभाग को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, (झांसी संभाग को छोड़कर), जम्मू एवं कंठआ जम्मू कश्मीर के जिले, पोटा वेली एवं हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला एवं उत्तराखण्ड का तराई क्षेत्र आते है।

सारणी 1 पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिए अनुषंषित गेहूँ की प्रजातियाँ

उत्पादन स्थिति

प्रजाति

उपज क्षमता (कु/हैं.)

औसत उपज (कु/हैं.)

विशेष गुण

सिंचित, अधिक उपजाऊ क्षेत्रों लिए, अगेती बुआई

डीबीडब्ल्यू 303

(करण वैष्णवी)

97.4

81.2

पीला रतुआ प्रतिरोधी

डब्ल्यूएच 1270 

91.50

75.85

पीला रतुआ प्रतिरोधी

डीबीडब्ल्यू 187

96.6

75.5

रतुआ प्रतिरोधी, अच्छी चपाती बनाने की गुणवत्ता

सिंचित समय से बुआई

डीबीडब्ल्यू 222

82.1

61.3

भूरा रतुआ प्रतिरोधी, अच्छी चपाती गुणवत्ता

एचडी 3226

(पूसा यसष्वी)

79.6

57.5

पीला, भूरा रतुआ एवं करनाल बंट प्रतिरोधी प्रोटीन की मात्रा (12.8%)

डब्ल्यूबी 2

58.9

51.6

सुक्ष्म पोषक तत्वों की अधिकता जिंक 42 पीपीएम, लौहा 40 पीपीएम

पीबीडब्ल्यू 723 (उन्नत पीबीडब्ल्यू 343)

63.2

49.2

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

एचपीबीडब्ल्यू

(पीबीडब्ल्यू जिंक)

64.8

51.7

अधिक जिंक की मात्रा (40.6 पीपीएम)

डीबीडब्ल्यू 88

69.9

54.2

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

 

एचडी 3086

(पूसा गौतमी)

71.1

54.6

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

डब्ल्यूएच1105

71.6

52.5

पीला एवं भूरा रतुआ, पूर्ण झुलसा एवं चूर्णिला आसिता प्रतिरोधी

एचडी 2967

66.0

50.4

रतुआ प्रतिरोधी, व्यापक अनुकूलनशीलता

डीपीडब्ल्यू 621-50 (पीबीडब्ल्यू 621 एवं डीबीडब्ल्यू 50)

69.8

51.7

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

सिंचित देरी से बुआई

पीबीडब्ल्यू 752

65.4

49.7

रतुआ प्रतिरोधी अधिक प्रोटीन (12.4%)

डीबीडब्ल्यू 173

57.0

47.2

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी, अंतस्थताप सहिष्णुता

डीबीडब्ल्यू 90

66.6

42.7

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

डब्ल्यूएच 1124

56.1

42.7

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

डीबीडब्ल्यू 71

68.9

42.7

पीला रतुआ प्रतिरोधी, अच्छी चपाती गुणवत्ता

एचडी 3059

59.4

42.5

पीला रतुआ प्रतिरोधी

सीमित सिंचाई समय से बुआई

एचडी 3237

(पूसा गेहूँ 3237)               

63.1

48.4

अच्छी चपाती गुणवत्ता, सुखा तनाव सहिष्णुता

एचआई 1620

(पूसा गेहूँ 1620)

61.8

49.1

भूरा एवं पीला रतुआ प्रतिरोधी

डब्ल्यूएच 1142

62.5

48.1

सुखा एवं लोजिंग सहिष्णुता

एचडी 3043

50.2

42.8

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी

वर्षा आधारित समय से बुआई

पीबीडब्ल्यू 660

49.3

35.3

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी, अच्छी चपाती गुणवत्ता

पीबीडब्ल्यू 644

44.8

31.4

पीला रतुआ प्रतिरोधी

डब्ल्यूएच 1080

44.4

30.8

दानों में प्रोटीन की अधिकता

सिंचित अत्याधिक देरी से बुआई

एचडी 3298

47.4

39.0

पीला रतुआ प्रतिरोधी, लौह तत्व (43.1 पीपीएम)

एचआई 1621

46.1

37.0

पीला, भूरा रतुआ, पूर्ण झुलसा, करनाल बंट एवं हैड स्कैब उच्च स्तर प्रतिरोधी

पीबीडब्ल्यू 757

44.9

36.7

पीला एवं भूरा रतुआ प्रतिरोधी, उत्कृष्ट चपाती गुणवत्ता

 

सारणी 2 बुआई का समय, बीज दर और उर्वरकों का उपयोग

कृषि दशाएं

बुवाई का समय

बीज दर (किग्रा./है.)

उर्वरक (किग्रा./है.)

सिंचित एवं  समय पर बुआई

नवम्बर का 1-2 सप्ताह

100

150:60:40 किग्रा./हैं. (1/3 नाइट्रोजन एवं पूरा फास्फोरस एवं पोटाशियम बुआई के समय और शेष नाइट्रोजन पहली एवं दूसरी सिंचाई के साथ समान मात्रा में)

सिंचित एवं देरी से बुआई

दिसम्बर का 3-4 सप्ताह

120

120:60:40 किग्रा./हैं. (1/3 नाइट्रोजन एव पूरा फास्फोरस एव पौटाशियम बुवाई के समय और शेष नाइट्रोजन पहली सिंचाई के साथ)

प्रतिबंधित सिंचित, समय से बुआई

अक्तूबर का चैथा सप्ताह से नवम्बर का चैथा सप्ताह

100

60:30:20 किग्रा, नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाशियम/हैक्टर बुआई के समय (उर्वरको की पूरी मात्रा बुआई के समय)

सिंचित, बहुत देरी से

जनवरी का पखवाड़ा

125

100:50:25 किग्रा, नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाशियम/हैक्टर (1-3 नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पौटाशियम की पूरी मात्रा बुआई के समय व शेष नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागों में पहली एवं दूसरी सिंचाई के समय)

वर्षा आधारित समय से बुआई

अक्तूबर के चैथे सप्ताह से नवम्बर का प्रथम सप्ताह

100

60:30:20 नाइट्रोजन एवं पूरा फास्फोरस एवं पोटाशियम किग्रा/उर्वरकों की पूरी मात्रा बिजाई के समय

सिंचित, अगेती बुआई

अक्तूबर सप्ताह नवम्बर

100

150% सिफारिस की गयी उर्वरक की मात्रा + 15 टन/हैक्टर गोबर की खाद़ + वृ़िद्ध नियंत्रक, दो स्प्रे टैक मे मिलाकऱ + क्लोरमिक्वाट कलोराइड (लिहोसिन) 0.2 प्रतिशत टेबुकानाजोल (फोलीकर 430 एससी) 0.1 प्रतिशत व्यवसायिक उत्पाद खुराक को प्रथम गाँठ एवं फ्लेगलीफ (टेंक मे मिलाकर उपयोग करना) 400 लीटर पानी मे मिलाकर उपयोग करना चाहिए।

खरपतवार प्रबन्धन

प्रथम सिंचाई के बाद कुदाल या फावड़ा या अन्य औजार से निराई करना फायदेमंद होता है। खरपतवारों का अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक खरपतवार नियंत्रण को अपनाना चाहिए। नए एवं अनुशंषित खरपतवारनाशी का ही प्रयोग अनुशंषित मात्रा एवं समय पर करना चाहिए ताकि खरपतवारों में उसके प्रति प्रतिरोधिता उत्पन उत्पन्न न हो। खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार मुक्त बीज, शीघ्र बुवाई और लाइनों के बीच की दूरी को कम रखे।

विभिन्न खरपतवारों और उसके नियंत्रण हेतू रासायनिक नियंत्रण के उपाय नीचे दिये गये है। पैंडीमैथलीन 1000 ग्राम सक्रिय तत्व को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 3 दिन बाद इस्तेमाल करें। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को खत्म करने के लिये मैटसल्फ्यूरान 4 ग्राम/हैक्टर की दर से व 2, 4-डी 500 ग्राम/हैक्टर व कारफेंनट्रांजोन 20 ग्राम/हैक्टर की दर से 250-300 लीटर पानी मे घोलकर बुआई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे करें।

संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये क्लोडीनाफांप 60 ग्राम/हैक्टर या फिनोक्साप्रोप 100 ग्राम/हैक्टर या सल्फोसल्फ्यूरान 25 ग्राम/हैक्टर सक्रिय तत्व 250-300 लीटर पानी मे घोलकर 30-35 दिनों मे बुवाई के 3 दिन के बाद स्प्रे करें।

चैड़ी व संकरी पत्ती वाले खरपतवारांे के लिये 2, 4-डी 500 ग्रा/हैक्टर और आईसोप्रोट्यूरान 750 ग्राम/हैक्टर की दर से 250-300 लीटर पानी घोलकर बुआई के 30-35 दिन के पहले स्प्रे करे या सल्फोसल्फ्यूरान 23 ग्राम और मैटसल्फ्यूरान 2 ग्राम मिश्रण करके 250-300 लीटर पानी में बुवाई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे करें। पैंडीमैथालीन 1000-1500 ग्राम को 500 लीटर पानी मे घोलकर बुवाई के करें। सल्फोसल्फ्यूरान के साथ 2, 4-डी या मैटसल्फ्यूरान को घोलकर बुवाई के 30-35 दिन के बाद स्प्रे कर सकते हैं।

सावधानियाँ

  • क्लोडीनाफॉप और फिनोक्साप्राँप के साथ 2, 4-डी और मैटसल्फ्यूरान को ना मिलाएं। इन खरपतवारनाशीयों के उपयोग के बीच एक सप्ताह का अन्तर जरुर रखें।
  • खरपतवारनाशी के एक समान स्प्रे के लिए हमेशा बूम स्प्रे और फ्लैट फैन नोजल का उपयोग करें।
  • यदि ज्यादा खरपतवार हो तो जीरो टिलेज बुवाई से 1-2 दिन पहले ग्लाईफोसेट 5 प्रतिशत का घोल बनाकर स्प्रे करें।
  • हिरनखुरी, मालवा और मकोय के निंयंत्रण के लिये कारफेंन्ट्रांजोन 20 ग्राम/हैक्टर की दर से इस्तेमाल करें। खरपतवारनाशी हमेशा विश्वसनीय श्रोत्र से ही खरीदें।
  • स्प्रे करते वक्त मास्क लगाकर मुहं अवश्य ढ़क लेना चाहिए, हाथों मंे ग्लव्स (दस्ताने) पहनने चाहिए। कार्य खत्म होने के पश्चात् साबुन से हाथ अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। अगर शरीर के किसी भाग में घाव हो तो उसे बेंडेंज या कपडे़ से बाध लेना चाहिए।

रोग एवं कीट नियंत्रण

खुली कंगियारी

किसानों के बीच बीज सामग्री के वितरण और बीज ले जाने के उपयोग के मदेनजर फसल सुरक्षा तकनीकी पर नियंत्रण के उपाय किये जाने चाहिए।

इस बीज उपचार मे कार्बोक्सिन 75 डब्ल्यूपी / 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से एवं कार्बेडाजिम 50 डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या कम मात्रा मे कार्बोक्सिन 75 डब्ल्यूपी 1.25 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या टैबुकोनाजोल 2 डी.एस. 1.25 प्रति किलोग्राम बीज दर से और बायो एजेंट कवक ट्रांईकोडर्मा विरिडी को 4 ग्राम / किग्रा. बीज की दर से मिश्रित कर प्रयोग करे।

रतुआ

बीमारी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए पुरानी और रतुआ के लिए अति संवेदनशील प्रजातियों को नहीं बोना चाहिये (सारणी 1)। अपने क्षेत्र मंे सिर्फ वे ही प्रजातियां बोए जो रतुआ (पीला और भूरा) के लिये प्रतिरोधी किस्में है। फसल पर पीला रतुआ का प्रकोप होने पर प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी को 0.1 प्रतिशत की दर से 200 मिली/लीटर दवा को 200 लीटर पानी मे घोलकर 1 एकड़ क्षेत्रों मे प्रयोग करें। यदि संक्रमण एक स्पे से नियत्रित नहीं होता है तो 15 दिन बाद फिर स्प्रे करें।

करनाल बंट

करनाल बंट के प्रबन्धन के लिये, प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी को 0.1 प्रतिशत की दर से (सिर्फ बीज फसल मे) बाली के निकलते समय स्पे करें। दो स्प्रे ट्रांईकोडर्मा विरिडी का जेडोक अवस्था मे 31-39 और 41-49 वृदि अवस्था चरण में (जैविक नियत्रिण) रोगों के लिये एक गैर रासायनिक प्रबधन हंै

ट्रांईकोडर्मा विरिडी का एक स्प्रे कल्ले निकलने वाली अवस्थाओ मे करे इसके बाद प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी को 0.1 प्रतिशत की दर से एक स्प्रे से पूर्ण नियंत्रण होता है।

चूर्णिल आसिता

चूर्णिल आसिता नियंत्रण के लिये एक स्प्रे ट्राईडीमेफोन 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी ईसी को 0.1 प्रतिशत की दर से बाली निकालने के समय या बीमारी देखते ही उपयोग करें।

दीमक

दीमकों के अधिकता वाले क्षेत्रों में बीज उपचार के लिये क्लोरोपाइरोफाँस 20 प्रतिशत ईसी को 4 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके इसका उचित प्रबंधन कर सकते हैं। फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस को 6 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर का उपचार भी बहुत प्रभावी हैं।

खड़ी फसल मे बोने के 15 दिन बाद खेत में कीटनाशक दवा का छिड़काव करें इसके लिये 3 लीटर क्लोरोपाइरीफांस 20 ईसी को 20 किलोग्राम मिट्टी मे मिलाकर एक हैक्टर खेत में इसका छिड़काव करें।

एफिड

गेहूँ की फसल में पिछले कुछ वर्षों से एफिड का प्रकोप बढ़ा है। जब खेत में संक्रमण शुरू हो गया तब 100 मिलीलीटर एमिङाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 100 लीटर पानी मे घोलकर खेत के किनारों पर 3-5 मीटर की पट्टी मे छिड़काव करंे। ऐसा करने से खेत में मौजूद सिरपिड मक्खी, काक्सीनिलिड बीटल, क्रायोसोपा आदि से शुरुआती चरण में इन लाभकारी कीटों से नियत्रित किया जा सकता है।

गेहूँ की कटाई, मढाई और भंडारण

दाने में 20 प्रतिशत नमी होने पर गेहूँ की कटाई के लिये उपयुक्त समय होता हैं। सामान्यतः गेहूँ की कटाई होने पर बंडलों को बनाकर 3-4 दिनों तक धूप मे सुखाकर फिर थे्रशर मशीन द्वारा मढाई करें। भंडारण से पहले अनाज को तेज धुप मे तारपिन की प्लास्टिक चादर पर फैलाकर सुखाया जाना चाहिए ताकि भंडारण के लिये नमी 12 प्रतिशत कम हो जाए।

भंडारण के लिये एल्युमिनियम के बिन, पूसा बिन, भूमिगत कक्ष आदि का प्रयोग करें। किसान अपने गेहूँ के सुरक्षित भंडारण के लिये परम्परागत विधि भी अपनाते हैं। भंडारण के दौरान कीड़ो से होने वाले नुकसान से बचने के लिये एडीबी एम्पुल 5 ग्राम/टन धुआ कमरे मे 24 घंटे के लिये दे।

किसान भाई एल्युमिनियम फास्फाइड को 3 ग्राम प्रति टन के हिसाब से इस्तेमाल करके भी सुरक्षित भंडारण कर सकते हैं।


Authors

चरण सिंह, अनुज कुमार, अरुण गुप्ता, विकास गुप्ता, संतोष कुमार बिश्नोई, प्रेमलाल कश्यप, संजय कुमार सिंह,  गोपलरेड्डी के,  राजपाल मीना एवं पूनम जसरोटिया

भाकृअनुप- भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल

Email: n_charansingh@hotmail.com