Direct sowing of paddy in the changing scenario

Direct sowing of paddy in the changing scenario

बदलते परिदृश्य मे धान की सीधी बुवाई

खाद्यान्न फसलों में धान अनाज वाली फसलों में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है। देश की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए देश में धान का उत्पादन लक्ष्य बढ़ाना अति आवश्यक है। भारत विश्व का सबसे अधिक क्षेत्रफल में धान उगाने वाला देश है। जिसका कुल उत्पादन 117 मिलियन टन है देश में लगभग 43.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है।

धान की फसल भारत में मुख्य रूप से वर्षा आधारित होती है। धान की खेती मुख्य रूप से पौध तैयार कर रोपण विधि से की जाती है। रोपित धान में निश्चित रूप से पौधों की संख्या स्थापित करने, खरपतवार प्रकोप में कमी होने तथा जल रिसाव से होने वाली हानि को कम कर के उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि देखी गई है जिसके कारण किसानों के बीच पद्धति अत्यंत प्रचलित है।

आजकल की समस्याएं प्रदूषित वायुमंडल, बढ़ता तापमान, कार्बन डाइऑक्साइड मे वृद्धि, भू-क्षरण के साथ-साथ पानी स्रोत तथा रोग व खरपतवार से देश में धान की फसल बुरी तरह प्रभावित हो रही है जिससे हमारे देश की खाद्य सुरक्षा की समस्या भी जटिल होने की संभावना बनी रहती है। धान की सीधी बुवाई विधि में किसान को खेत को तैयार करने एवं धान की नर्सरी डालने की जरूरत नहीं पड़ती है। 

धान की सीधी बुवाई संरक्षित खेती की एक तकनीक हैं। संरक्षित खेती में फसल अवशेषों का अधिकांश भाग मृदा सतह पर छोड़ दिया जाता है जिससे न केवल फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है बल्कि पर्यावरण में सुधार एवं भूमि की उर्वरा शक्ति में भी सुधार होता है। इससे अच्छी नमी में बुवाई की गई फसलों का उचित जमाव होता है साथ-साथ सिंचाई में कम पानी की आवश्यकता होती है।

इस तकनीक के लिए सही समय से बुवाई करना आवश्यक है। धान की खेत में हल्की सी नमी रहने पर जीरो टिलेज (बिना जुताई) विधि से धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं। 

जीरो टिल ड्रिल मशीन से धान की बुवाई-

जीरो ट्रिल कम फर्ट्रिड्रिल मशीन से धान की बुवाई बिना जुताई की की जाती है जीरो टिल ड्रिल की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं इसके प्रयोग से 75 से 85% ईंधन एवं समय की बचत होती है और खरपतवार का कम जमाव होता है।

इस मशीन द्वारा एक हेक्टेयर प्रति घंटा बुवाई की जा सकती है इससे खेत तैयार करने की लागत में 2500 से 3000 प्रति हेक्टेयर की दर से होती है परंपरागत विधि की तुलना में जुताई विधि से करीब 5000 से 6000 तक शुद्ध लाभ प्राप्त होता है।

जीरो ट्रिल कम फर्ट्रिड्रिल तथा ड्रम सीडर
जीरो ट्रिल कम फर्ट्रिड्रिल तथा ड्रम सीडर

ड्रम सीडर मशीन से धान की बुवाई-

ड्रम सीडर का प्रयोग सीधे गीले मैदान में अंकुरित धान की बुवाई के लिए किया जाता है इसमें प्रत्यारोपण की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यह श्रमिको द्वारा खींचा जाने वाला उपकरण है इसमें 18 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति अंतर की 12 पंक्तियां शामिल होती है। यह प्लास्टिक सामग्री से बना होता है। यह कुशल पेशेवरों की देखरेख में बेहतरीन गुणवत्ता वाले तकनीकों का उपयोग करके निर्मित किया गया है।

ड्रम सीडर मशीन द्वारा धान की बुवाई करने के लिए सबसे पहले खेत में पानी भर कर दो से तीन बार पलेवा करके खेत को अच्छी तरह पटा लगा कर समतल कर लेते हैं इसके उपरांत पलेवा किए हुए खेत को 8 घंटे के लिए छोड़ देते हैं धान की बुवाई करने से कम से कम 6 घंटे पहले खेत से पानी को निकाल देते हैं।

बुवाई के समय खेत में केवल 1 सेंटीमीटर पानी की पतली परत रहनी चाहिए। जिससे खेत में पानी ज्यादा होने पर बीज पानी के साथ बहने ना पाए। बुवाई करने से पूर्व बीज को 10-12 घंटे भिगोकर पानी से निकाल ले उसके बाद जूट के बोरे में भरकर रख दें या जमीन पर रखकर कपड़े से ढक दें। जिससे बीज 10 से 12 घंटे में अंकुरित हो जाए।

बीज को ड्रम सीडर के बॉक्स में एक तिहाई भरकर बॉक्स को बंद कर दें इसके पश्चात ड्रम सीडर को सामान्य गति से मैनुअल रूप से खींचे इस मशीन द्वारा बुवाई आसानी से की जा सकती है इसके द्वारा ईंधन लागत आदि की बचत होती है।

टर्बो हैप्पी सीडर मशीन से धान की बुवाई-

टर्बो हैप्पी सीडर मशीन, ट्रैक्टर के पीटीओ शाफ्ट द्वारा चालित मशीन है। रोटरी ब्लड की सहायता से खरपतवार को हटाकर बीच में फरो-ओपेनर द्वारा इससे अच्छी तरह से बुवाई की जाती है।

फरो-ओपनर द्वारा फसल अवशेष हटाकर कुंड में बीज एवं समान रूप से खाद का वितरण तथा उचित गहराई में पडने से बीज का जमाव अच्छा होता है। इस प्रकार फसल की पैदावार भी अच्छी होती है।

इस मशीन के उपयोग के लिए 35 से 40 अश्वशक्ति के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। इस मशीन द्वारा बिना जुते (शुन्य कर्षण) खेत में बुवाई की जाती है। मशीन में दो इकाइयां होती है। आगे की तरफ फसल अवशेष प्रबंधन और पीछे की ओर बुवाई उपयोगी भाग जिसके माध्यम से खाद और बीज को उचित गहराई पर मिट्टी में डाला जाता है।

जिसमें बुवाई करने से खरपतवारो में 15 से 20 प्रतिशत की कमी पाई जाती है। जिसके प्रयोग करने से उपयोगी प्राकृतिक संसाधनों में 50 से 60 प्रतिशत तक की बचत होती है। इसका प्रयोग करने पर 12 लीटर डीजल की खपत कम होती है।

खरपतवार प्रबंधन-

धान की बुवाई से पूर्व खरपतवारो का प्रबंधन अति आवश्यक है, इन्हें नष्ट करने के लिए पैराक्वाट 500 ग्राम या ग्लाइफोसेट 1 किग्रा सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए तथा उसके पश्चात 2 से 3 दिनों के बाद मशीन से बुवाई कर देनी चाहिए

धान की बुवाई के बाद भी खरपतवार काफी ज्यादा होते हैं इनकी रोकथाम के लिए धान की बुवाई के बाद पेंडीमेथीलीन 1 किग्रा सक्रिय तत्व की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव करते समय भुमि में पर्याप्त मात्रा में नमी रहनी चाहिए तथा समान रूप से छिड़काव होना चाहिए।

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे मोथा घास के नियंत्रण के लिए ऑलमिक्स 4 ग्राम सक्रिय तत्व को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से काफी लाभ मिलता है।

सीधी बुवाई से लाभ

धान की सीधी बुवाई तकनीक के अनेक लाभ निम्नलिखित हैं-

इस विधि में धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी भरने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे 20 से 26% पानी की बचत होती है ।

सीधी बुवाई से किसान मशीन में खाद व बीज दोनों डालकर आसानी से बुवाई कर सकता है।

रोपाई विधि की तुलना में सीधी बुवाई विधि से धान की खेती करने में बीज की मात्रा भी कम लगती है।

इस विधि से धान की बुवाई सीधे खेत में की जाती है तथा इसमें रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है जिससे धान की नर्सरी उगाने और रोपाई का खर्च बच जाता है और इससे समय, श्रम, संसाधन एवं लागत की बचत होती है।

सीधी बुवाई द्वारा की गई फसल सामान्यतः एक सप्ताह पूर्व पककर तैयार हो जाती है क्योंकि सीधी बुवाई की फसल पौधरोपण के उपरांत होने वाली जड़ पकड़ने की प्रक्रिया से निजात मिल जाती है।

धान की सीधी बुवाई विभिन्न तकनीकी मशीनों का प्रयोग कर किया जा सकता है जिसमें ड्रम सीडर मशीन, जीरो-टिल-ड्रिल मशीन, हैप्पी टर्बोसीडर मशीन द्वारा इसे पूर्ण किया जाता है।


Authors:

सर्वेश बरनवाल, विश्वेंदु द्विवेदी, आर. पी. चौधरी, जी. के. चौधरी

कृषि विज्ञान केंद्र, भदोही

(आईसीएआर-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी)

Email: sarveshbaranwal@gmail.com

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