Biological Control of Plant Parasitic nematode
फ़ाइलम नेमाटोडा की अधिकांश प्रजातियां मुक्त जीने वाली (फ्री लिविंग) हैं। हालांकि, कुछ सुत्रकृमी महत्वपूर्ण फसलों को आर्थिक रूप से नुकसान कर कृषि मे एक बडी चुनौती बन चुके है। इन सबमें जड़ गाँठ सुत्रकृमी (मेलायडॊगायनीं स्पेसीज) और पुटी सुत्रकृमि (हेटेरोडेरा एवं ग्लोबोडेरा स्पेसीज) कई महत्वपूर्ण फसलों में आर्थिक नुकसान के कारण सबसे अच्छी तरह से अध्ययन किए गए सुत्रकृमि हैं।
जड़ गाँठ और पुटी सुत्रकृमी अपना पुरा जीवन पौधे की जड़ क़े अंदर बिताते है। इनका जीवन चक्र दो से तीन सप्ताह से लेकर कई महीनों तक होता है, जो कि सुत्रकृमी की प्रजातियों, मेजबान की उपयुक्तता, मिट्टी और पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है।
अंडों से बाहर आने के बाद, दूसरे चरण के किशोर (जे२) पौधे का पता लगा कर उसमे छेद करके प्रवेश करते है और एक परिष्कृत खाने की जगह बनाते हैं जिसे “सिंसीशीअम” या “जायंट सेल” कहा जाता है। यह जगह चयापचय रूप से सक्रिय होती है और बढते हुए सूत्रकृमी के विकास और प्रजनन को बढ़ाने के लिए पोषक तत्वों की एक निरंतर आपूर्ति प्रदान करती हैं।
अलग अलग प्रजातियों के सुत्रक्रुमी अपने जीवन चक्र के अनुसार जड़ के अंदर किशोर अवस्था से कुछ समय बाद परिपक्व पुरुष और मादाओं मे परिवर्तित हो जाते है। इनमें से पुरुष सुत्रकृमी जड़ से निकलकर मादाओं को निषेचित कर मर जाते है, जबकि मादाए जडों पर स्तित रहकर अपने शरीर (पुटी सुत्रकृमि) के अंदर एवं शरीर के बाहर स्रावित जिलेटीनस मैट्रिक्स (जड़ गाँठ सुत्रकृमी) में सैकड़ों अंडों का उत्पादन करती है।
हेटेरोडेरा एवं ग्लोबोडेरा स्पेसीज के मादाओं की मृत्यु के बाद उनका शरीर सख्त होकर एक सुरक्षात्मक कवच मे परिवर्तित हो जाता है जिसे "पुटी" कहते है। पुटी और जिलेटिनस मैट्रिक्स प्रतिकूल पर्यावरणीय स्थितियोंमे सूत्रकृमी के अंडों की रक्षा करते हैं और कई महीनों / वर्षों तक सूत्रकृमी कें अंडों को जीवित रहने में मदद करते हैं।
सूत्रकृमी के कारण कृषि उत्पादकता में लगभग 12.3% की कमी आती हैं और आर्थिक दृष्टि से यह दुनिया भर में प्रति वर्ष $ 157 बिलियन नुकसान करते है। इस भारी नुकसान से बचने के लिए, सूत्रकृमी प्रबंधन प्रमुख महत्व रखता है और इस क्षति को सीमित करने के लिए विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं, जिसमें फसल चक्रण, अंतर फसल, गहरी जुताई, सूत्रकृमी प्रतिरोधी किस्मे और जैविक नियंत्रण शामिल है।
सुरक्षात्मक पुटी और जिलेटिनस मैट्रिक्स सूत्रकृमी को कई वर्षों तक मिट्टी में पौधे के बिना जीवित रहने के लिए मदत करते है, जिससे फसल चक्रण, अंतर फसल और गहरी जुताई इतने प्रभावी नहीं हैं।
सूत्रकृमी का प्रबंधन करने के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग एक अच्छा विकल्प माना जाता है, लेकिन सूत्रकृमी के विभिन्न पैथोटाइप्स का प्रचलन और एक ही भूमि पर प्रतिरोधी किस्मों के लगातार बुआई के कारण किस्मों का प्रतिरोध कम या नष्ट होता है।
सूत्रकृमी का नियंत्रण करने के लिए रासायनिक विधि एक प्रभावी विकल्प है, लेकिन उनकी अधिकतम लागत, पर्यावरण प्रदुषण और मानव स्वास्थ्य के खतरों के कारण उनका उपयोग करना हानिकारक है। इसलिए, हमें सबसे अधिक कुशल, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसका उद्देश्य सुरक्षित फसल संरक्षण और उत्पादकों द्वारा आसान स्वीकृति हो, जैविक नियंत्रण रणनीति इन सभी आवश्यकताओंको पूरी करती है।
जैविक नियंत्रण रणनीति कैसे कार्य करती है?
जैविक नियंत्रण रणनीति में कई प्रकार के जीवों का अर्थात जीवाणु, कवक, वायरस, सूत्रकृमी, प्रोटिस्ट और अन्य परजीवी का सूत्रकृमी प्रबंधन के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है।
जैविक नियंत्रण “जिओ जिवस्य जिवनम” इस आधार या तत्वों पर निर्भर है। अधिकांश जैविक घटकों में सूत्रकृमी को लक्षित करने और परजीवी बनाकर मारने की क्षमता होती है और उसके बाद मिट्टी में उनकि उत्पत्ति भारी संख्या में होती है। इस मिट्टी में परजीवी सूत्रकृमी खुद को स्थापित नहीं कर पाते है इसिलिए ऐसि मिट्टी को "सूत्रकृमी दमनकारी मिट्टी" कहा जाता हैं। लेकिन सिर्फ एक रणनीति किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है, इसलिए अधिकांश समय उच्चतम सफलता प्राप्त करने के लिए जैविक घटकों को एकीकृत सूत्रकृमी प्रबंधन में अन्य नियंत्रण रणनीतियों के साथ जोड़ा जाता है।
जैविक घटक, परजीवी सूत्रकृमी की आबादी को दबाने के लिए विभिन्न तंत्र क्रियाओं का प्रदर्शन करते हैं और उन्हें दो मूल समूहों अर्थात प्रत्यक्ष प्रतिपक्षी और अप्रत्यक्ष प्रभाव में मूलभूत रूप मे विभाजित किया जाता है।
प्रत्यक्ष प्रतिपक्षी में परजीवी सूत्रकृमी की शिकार, परजीवीवाद और विषाक्त पदार्थों, एंजाइमों और अन्य चयापचय उत्पादों का उत्पादन शामिल हैं, जबकि, अप्रत्यक्ष प्रभावों में विभिन्न क्रियाओं का प्रदर्शन होता है जैसे परजीवी सूत्रकृमी क़े व्यवहार का विनियमन जो मेजबान मे प्रवेश को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, सूत्रकृमी के खाने की जगह में असामान्यताएं, लिंग अनुपात में परिवर्तन, पोषक तत्वों और जगह के लिए प्रतिस्पर्धा, सिस्टेमिक प्रतिरोध का उपयोग, पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देना आदि।
जीवाणु (बैक्टीरिया)
जीवाणु मिट्टी में सबसे प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले जीव हैं, और संभावित जैव प्रबंधन क्षमता के कारण उनका उपयोग परजीवी सूत्रकृमी प्रबंधन में सफलतापूर्वक किया गया है। सूत्रकृमी मारने वाले विभिन्न प्रकार के जीवाणु घटकों को मिट्टी, सूत्रकृमी के विभिन्न चरणों, और मेजबान-पौधों के ऊतकों से पहचाना गया है, उनमें से पाश्चुरिया, प्सुडोमोनास और बैसिलस इन तिनोंकी संभावित सूत्रकृमी प्रबंधन क्षमता के कारण सबसे अधिक खोजे की गयी हैं।
सामान्य तौर पर, जीवाणु अलग-अलग तरीकों से सूत्रकृमी को प्रभावित करते हैं उनमें प्रत्यक्ष परजीवीकरण, विषाक्त पदार्थों का उत्पादन, जगह और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा, सिस्टेमिक प्रतिरोध का उपयोग, और पौधे की वृद्धि को बढ़ावा देना यह शामिल है। सूत्रकृमी दमन के तंत्र के आधार पर, सूत्रकृमी मारने वाले जीवाणुओंको विभिन्न समूहों में निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है।
बाध्य (ऑब्लिगेट) और अवसरवादी (ओपोर्चुनिस्टीक) परजीवी जीवाणु
पाश्चुरिया जीवणु ग्राम-सकारात्मक, बीजाणु बनाने वाला, मूल रूप से अकशेरूकीय की विस्तृत श्रृंखला के पानी के पिस्सू परजीवी, डैफ्निया स्पेसिज से पहचाना गया था। अब तक, पाश्चुरिया जीवणु के छह प्रजातियों की पहचान की गई है जो परजीवी सूत्रकृमी को संक्रमित करती है।
पाश्चुरिया बीजाणु के सूत्रकृमी छल्ली से लगाव (आकृती. १ और २), संक्रमण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवश्यक है फिर यह एक जर्म ट्यूब का निर्माण करके सूत्रकृमी छल्ली में प्रवेश करता है। पाश्चुरिया और संक्रमित सूत्रकृमी का जीवन चक्र एक ही साथ पूरा होता है और उसके बाद यह मरे हुये सूत्रकृमी के शरीर से लाखोंकी तादात मे बीजाणु के रूप मे बाहर निकल कर एक नये मेजबान सूत्रकृमी को धुंडकर संक्रमित करते है।
पाश्चुरिया के शत-प्रतिशत सूत्रकृमी प्रजनन को कम करने की क्षमता के कारण कई सूत्रकृमीयों की प्रजातियों के लिए यह सबसे होनहार जैविक घटक साबित हो चुका है। अवसरवादी जीवाणु, गैर-परजीवी जीवाणु हैं जो नेमाटोड छल्ली, शरीर, जननांग आदि से जुड़े होते हैं, जो सूत्रकृमी को लक्षित कर उन्हे संक्रमित करके मारने कि क्षमता रखते है उदाहरण ब्रेविबैसिलस लेटरोस्पोरस और बेसिलस आदि।
आकृति. 1. पाश्चुरिया बीजाणु का सूत्रकृमी छल्ली से लगाव |
आकृति. 2. पाश्चुरिया बीजाणु का सूत्रकृमी छल्ली से लगाव का स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से लिया हुआ चित्र |
प्रकंद जीवाणु (राइजोबैक्टीरिया)
प्रकंद मिट्टि मे जीवाणुओं की कई प्रजातिया पायी जाती हैं, जो मेजबान पौधे को कई मिट्टी जनित कीट, बीमारियों और सुत्रकृमी के खिलाफ लड़ने में मदद करती है, इन जीवाणुओं को प्रकंद जीवाणु (राइजोबैक्टीरिया) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
राइजोबैक्टीरिया सुत्रकृमी दमन के विभिन्न प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव तंत्रों को प्रदर्शित करती है जिसमें परजीवीकरण, सुत्रकृमी घातक विषाक्त पदार्थ, एंजाइम और अन्य चयापचय उत्पाद बना देना, सुत्रकृमी के व्यवहार को विनियमित करना, जड से निकलने वाले रसयनोंको बदलना, विकर्षक का उत्पादन करना जो मेजबान की पहचान को प्रभावित करे, लिंग अनुपात, आवश्यक पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा, मिट्टि में पोषक तत्वों की वृद्धि को बढ़ाकर पौधों के विकास को बढ़ावा देना, पौधे के होर्मोन का उत्पादन, नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फॉस्फेट और पोटेशियम घुलनशीलता बढाना, सस्टेमिक प्रतिरोध को प्रेरित करना आदि। इनमें से, बैसिलस और प्स्युडोमोनास जीवाणु प्रजातीयां परजीवी सुत्रकृमी की कई प्रजातियों के खिलाफ अछा नियंत्रण देती हैं।
पौधे के अंदर रेहनेवाले (एंडोफायटीक) और सहजीवी जीवाणु
एंडोफाइटिक बैक्टीरिया पौधे प्रणाली से जुड़े होते हैं और पौधे के अलग अलग भागों (जड़, शाखाए, पत्ते आदि) के अंदर पाए जाते हैं। यह जीवाणु पौधे को बिना किसी नुकसान कीये सुत्रकृमी सहित कई परजीवी जीवों के खिलाफ विरोधी गतिविधि का एक व्यापक स्पेक्ट्रम प्रदर्शित करते हैं।
यह कार्रवाई प्रत्यक्ष प्रतिपक्षी, विकर्षक और रक्षा संबंधित अभिव्यक्ति को प्रेरित करके की जाती है। फोटोर्ह्याब्डस स्पेसिज और जीनोर्ह्याब्डस स्पेसिज कीड़ों के खिलाफ काम करनेवाले सुत्रकृमी क्रमशः हेटरोर्ह्याब्डाइटिस और स्टेनरनेमा के सहजीवी जीवाणु हैं।
कई शोधकर्ताओं ने इन सहजीवी जीवाणुओं के संभावित परजीवी सुत्रकृमी विरोध को दिखाया है और भविष्य मे इनका उपयोग सुत्रकृमी प्रबंधन मे होने की आशा दर्शायी जाती है।
क्राय-प्रोटीन उत्पादन करने वाले जीवाणु
बैसिलस थुरिंजीएन्सिस (बीटी) एक क्रिस्टल समावेशन (क्राय एवं डेल्टा-एंडोटॉक्सिन) उत्पादन करने वाला जीवाणु है, जो सुत्रकृमी सहित अन्य कीट प्रजातियों के लिए जहरिला होता है। सुत्रकृमी में बीटी क्रिस्टल की विषाक्तता का तंत्र कीट विषाक्तता के समान ही है यानी एक छिद्र का निर्माण करके आंत को नुकसान पहुँचना।
अब तक छह क्राय प्रोटीन (क्राय 5, क्राय 6, क्राय 12, क्राय 13, क्राय 14 और क्राय 21) विभिन्न प्रजातियों के सुत्रकृमीओं के खिलाफ विषाक्त साबित हुए है।
कवक (फंगस)
कई कवकों का अध्ययन उनके संभावित सुत्रकृमी मारने की क्षमता की वजह से किया गया है। ये कवक अलग-अलग क्रियाओं का प्रदर्शन करते हैं जैसे की शिकार, परजीवी, प्रतिपक्षी, पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देना, प्रतिरोध को प्रेरित करना आदि। सुत्रकृमी नियंत्रण में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कवक समूह की चर्चा यहां की गई है।
अंतरपरजीवी (एंडोपारासायटिक) कवक
अंतरपरजीवी (एंडोपारासायटिक) कवक अपना पूरा जीवन मेजबान पौधे के अंदर बिताते हैं और कई सुत्रकृमी परजीवी भी होते हैं। संक्रमण प्रक्रिया बीजाणु के सुत्रकृमी छल्ली को चिपकने से शुरु होती है, और यह अंकुरित होकर मेजबान सुत्रकृमी के शरीर के भीतर अपना जीवन चक्र पूरा करता है।
अंतरपरजीवी कवक के उदाहरण हैं नेमाटोफ्थोरा गाइनोफिला, कैटेनारिया ऑक्जिलियारीस, हिर्सुटेला रोसिलिएन्सिस आदि।
हिंसक (प्रिडेशिअस) कवक
हिंसक (प्रिडेशिअस) कवक एक ऐसा कवक समूह है जो मिट्टी में सुत्रकृमी को पकड़कर/फसाकर बाद मे उनको मारता है। सुत्रकृमी को पकड़ने के लिए ये कवक विभिन्न प्रकार के जाल बनाते हैं, जैसे:
चिपकने वाली शाखाएँ जैसे डॅक्टिलेल्ला क्लोनोपागा, डॅक्टिलेल्ला लोबटा आदि, चिपकने वाली घुंडी (नोब) उदाहरण डॅक्टिलेरिया कंडिडा, डॅक्टिलेरिया हिप्टोटायला आदि, चिपकने वाला जाल उदाहरण् आर्थ्रोबोट्रिटीस ओलिगोस्पोरा, आर्थ्रोबोट्रिटीस मसिफोर्मिस आदि, गैर-जकड़ने वाली चक्राकार संरचना उदाहरण डॅ. लिसीपैगा और जकड़ने वाले चक्राकार संरचना उदाहरण् आर्थ्रोबोट्रिटीस डॅक्टिलोइडीस, डॅक्टिलेल्ला बेम्बिकोइडीस आदि।
एक और महत्वपूर्ण समूह अवसरवादी कवक है। मुख्य रूप से इस समुह के कवक सुत्रकृमी के प्रजनन अंगों का उपनिवेशण करके उनकी प्रजनन क्षमता को गंभीरता से प्रभावित करते हैं। मिट्टी में पाये जाने वाली सुत्रकृमीकी अलग अलग अवस्थाये जैसे की जड़ से बाहर आयी हुआ मादा, पुटी, अंडे, अंडों से निकले किशोर यह अवसरवादी कवक के मुख्य लक्ष्य होते हैं।
अवसरवादी कवक की विभिन्न प्रजातियों में सेपिसीलोमायसेस लिलैसिनस और पोचोनिया (वर्टिसिलियम) क्लैमाइडोस्पोरियम सबसे अधिक अध्ययनित सुत्रकृमी जैवप्रबंधन घटक हैं। भारत के विभिन्न रज्योंमे पिसीलोमायसेस और पोचोनिया के अलग अलग सूत्रीकरण उपलब्ध है और इनका इस्तमाल किसानों मे सुत्रकृमी जैवप्रबंधन के लिये प्रसिद्ध है।
आकृति.3. हिंसक (प्रिडेशिअस) कवक के जाल मे फंसा हुआ सूत्रकृमी |
पौधे के अंदर रहने वाले (एंडोफायटीक) कवक
पौधे के अंदर रहने वाले (एंडोफायटीक) कवक पौधे मे बीमारी के लक्षण पैदा किए बिना पौधों का उपनिवेश कर सकते है और सुत्रकृमी दमन के लिए एक बहुक्रियात्मक भूमिका निभाते है। इन कवकों का सुत्रकृमी के खिलाफ कार्रवाई का तंत्र हमला करके फंसाना, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करना, सुत्रकृमीको गतिहीन या मारनेवाले रसायनों का उत्पादन करना, पौधों के हार्मोन का उत्पादन करना जो पौधे के विकास और प्रतिरोध में सुधार करने में मदद करे आदि है। एंडोफायटीक कवकों मे बैलांसिया, ईपीक्लो, अल्टरनेरिया, एक्रेमोनियम, फुजारिअम, ट्राइकोडर्मा और कोलेटोट्रिकम शामिल हैं।
इसके अलावा, वास्कुलार अर्बुस्कुलार मायकोराइज़ा कवक पौधोंके जड मे अपने आपको स्तापित कर सुत्रकृमी सहित कई और जैविक तनावों के खिलाफ अपने मेजबान पौधे की रक्षा करने वाले सहजीवी हैं। वास्कुलार अर्बुस्कुलार मायकोराइज़ा परजीवी सुत्रकृमी के खिलाफ एक बहुआयामी भूमिका निभाते है जिसमें जडोंको परिवर्तित करके पोषक तत्वोंका शोषण बढ़ाना, जगह और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करना, पौधो की सहिष्णुता और सिस्टेमिक प्रतिरोध को बढाना और प्रकंद गतिविधियों में फेरबदल जैसे जड़ से निकलनेवाले रसायनोंको का फेरबदल जो मेजबान की खोज और प्रकंद के जीवोंको को प्रभावित करता है उदाहरण ग्लोमस स्पेसिज।
परभक्षी सुत्रकृमी
परभक्षी सुत्रकृमी परजीवी सुत्रकृमी सहित मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को खा सकते हैं। वे लगातार प्रकंद में परजीवी सुत्रकृमीको खाकर पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कर पौधों को सहिष्णुता प्रदान करते हैं। ज़्यादातर परभक्षी सुत्रकृमी मोनोंकिडा, डिप्लोगेस्टेरिडा, डॊरिलैमिडा, और एफिलेंकिडा ओर्डर के होते हैं।
मोनोंकिडा के परभक्षी सुत्रकृमी यदि शिकार आकार में छोटे है, तो वे अपने शिकार को पूरी तरह से निगल सकते हैं जबकि बड़े शिकारको वे छोटे टुकड़ों में काटकर फिर खाते हैं। उदाहरण मोनोंकस अक्वैटिकस, आयोंटोंकस मोनहिस्टेरा, मायलोंकुलस सिग्माटुरस आदि।
डिप्लोगैस्टरिड्स के पास दांतों से सज्जित एक छोटी मुह की गुहा होता है। प्रमुख रूप से वे सुत्रकृमी और अन्य मिट्टी के सूक्ष्मजीवों पर भोजन करते हैं। इनका जीवन चक्र छोटा मतलब सिर्फ 8-15 दिनों का होता है और आसानी से जीवाणु युक्त पोषक तत्व मीडिया पर इनका उत्पादन किया जा सकता है। वे सुत्रकृमी शिकारियों के अन्य समूहों की तुलना में अधिक शिकार-चयनात्मक होते हैं। इसीलिये, अपने छोटे जीवन चक्र, शिकार-विशिष्टताए, आसान उत्पादन, किमोटेक्सिस और कठोर प्रकृतिके कारण डिप्लोगैस्टेरीड्स सबसे उपयुक्त शिकारी सुत्रकृमी साबित हुये हैं। उदा. ओडोंटोफैरिंक्स लोंजिकौडाटा, मोनोंकोईड्स फोर्टिडेंस आदि।
डोरिलैमिड्स एक लंबे और खोखले स्टाइललेट/ओडोंटोस्टाइल से सज्जित हैं जिसका उपयोग शिकार मे छेद करने के लिए होता है। सुत्रकृमी पर आक्रमण के दौरान, ओडोन्टोस्टाइल सुत्रकृमी के आंतरिक अंगों को अव्यवस्थित कर तुरंत शिकार को गतिहीन करके मार देता हैं। बाद मे भोजन को ओडोन्टोस्टाइल के मौखिक छिद्र के माध्यम से चूसा जाता है। डोरिलेमिड्स शिकारी सर्वाहारी होते हैं। उदाहरण लाब्रोनेमा वल्वापापीलैटम, युडोरिलैमस ओब्टुसिकौडैटस आदि।
एफिलेंकिड्स प्रजाती के परभक्षी सुत्रकृमी, स्टाइलेट की तरह एक महीन सुई से सज्जित होते हैं जिसका उपयोग शिकार सुत्रकृमी के छल्ली मे छिद्र कर पाचन रसायनों को शिकार के शरीर में इंजेक्ट करने के लिए किया जाता है। यह रसायन शिकार को पंगु बनाकर शरीर के सामग्री का अंतर्ग्रहण करते है। एफिलेंकिड्स मे सिर्फ जीनस सीनुरा की प्रजातियां शिकारी होती हैं।
विभिन्न फसलों में परजीवी सुत्रकृमी का जैविक नियंत्रण
पादप परजीवी सुत्रकृमी के नियंत्रण के लिए अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (पादप परजीवी सुत्रकृमी) के तहत विभिन्न फसलों में परजीवी सुत्रकृमी के खिलाफ जैव प्रबंधन का सफलतापूर्वक मूल्यांकन और सिफारिश की गई है उनका विवरण निम्नानुसार हैं:
फसल |
सुत्रकृमी |
जैविक घटक |
मात्रा एवं उपयोग |
चावल |
चावल जड़ गाँठ और चावल जड़ सुत्रकृमी |
प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस |
20 ग्र/मी2 नर्सरी बेड उपचार |
दलहनी फसल |
पुटी सुत्रकृमी |
प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस और ट्रायकोडर्मा विरिडे |
5 ग्र/घटक/किलो बीज उपचार |
संतरा |
संतरा सुत्रकृमी |
प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस |
20 ग्र/मी2 फूलधारणा के समय जड़ प्रकंद उपचार |
अंगुर |
जड़ गाँठ सुत्रकृमी |
प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस/ और ट्रायकोडर्मा विरिडे |
20 ग्र/मी2 फूलधारणा के समय जड़ प्रकंद उपचार |
बैंगन |
जड़ गाँठ सुत्रकृमी |
बैसिलस मैसेरंस |
25 ग्र/मी2 नर्सरी बेड उपचार |
सब्जियां |
जड़ गाँठ सुत्रकृमी |
प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस |
10 ग्र/मी2 नर्सरी बेड उपचार |
काली मिर्च |
जड़ गाँठ और बरोविंग सुत्रकृमी |
बैसिलस मैसेरंस/ प्स्युडोमोनास फ्लुरेसंस |
25 ग्र/बेल मानसून से पहले तीन बार |
Authors:
प्रियांक हनुमान म्हात्रे१*, सतिश नामदेव चव्हाण२, दिव्या के. एल१, योगेश ए. थोरात३, वेंकटासलम ई. पी.१, आरती बैरवा४, सिरिशा ताडीगिरी५ और मणीमारण बी.६
१भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र, ऊटी, तमिल नाडु, भारत
२भाकृअनुप- भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, तेलंगाना, भारत
३भाकृअनुप-भागअसं, जैविक नियंत्रण केंद्र, प्रवरानगर, महाराष्ट्र, भारत
४भाकृअनुप-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, भारत
५भाकृअनुप-केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरुवनंतपुरम, केरल, भारत
६भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पुसा, नई दिल्ली, भारत
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