12 Major pests and diseases of soybean and their management
सोयाबीन विश्व की एक प्रमुख फसल है, यह लगभग विश्व की 25 वानस्पतिक तेल की मांग को पूरा करता है, सोयाबीन अपने उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन (38.45) और वानस्पतिक तेल के लिए जाना जाता है। भारत में भी इसका उपयोग अधिकांशतः वानस्पतिक तेल के लिए ही होता है, मध्यप्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है।
देश में सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश अग्रणी है, परंतु हाल ही के कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में मध्यप्रदेश में भारी गिरावट आयी है, जिसके प्रमुख कारणो मे मौसम की विपरीत परिस्थितियां है, जैसे फसल अवधि में अधिक वर्षा होना या बहुत कम वर्षा होना, ये परिस्थितियां कीट एवं रोग को बहुत हद तक बढ़ाती है, नीचे इन्हीं प्रमुख कीट और रोगों के बारे में जानकारी दी जा रही है और उनका प्रबंधन बताया जा रहा है।
प्रमुख कीट
1. तना मक्खी (मिलेनोग्रोमाइजा सोजे) क्षति का प्रकार- यह कीट पत्तियो पर अण्डे देता है फिर मैगट के बाहर आने के बाद पत्तियों से रैंगता हुआ तने को भेदता है। सक्रंमित तने में लाल धारिया मैगट और प्यूपा के साथ दिखाई देती है। यह तने से जड़ क्षेत्र तक जाकर पौधा मार देता है। कीट प्रबंधन-
|
|
2. पत्ता मोड़क (लेप्रोसिमा इंडिकेटा) क्षति का प्रकार- लार्वा पत्तियों को खाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
3. तना छेदक (डेक्टीस टेक्संस) क्षति का प्रकार- लार्वा तने के बीच में सुरंग बनाकर तने को खा जाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
4. तम्बाखू की इल्ली (स्पोडोपटेरा ल्यूटेरा) क्षति का प्रकार- इल्लिया पत्तियों के क्लोरोफिल (हरे भाग) को खा जाती है फलस्वरूप पत्तिया सफेद पीली पड़ जाती है और एक प्रकार का जाल बन जाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
5. सफेद मक्खी (बेमीषिया टेबाकी) क्षति का प्रकार- यह बहुभोजी कीट पत्तियों का रस चूसते है जिससे पत्तिया मुड़ जाती है और पीली पड़ जाती है। यह कीट ही पीला मोजेक रोग फैलाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
6. चने की इल्ली (हैलीकोबर्पा आर्मीगेरा) क्षति का प्रकार- लार्वा पत्तियों को खाता है और यह सामान्यतः अगस्त माह में आता है यह पौधे को पत्ती विहीन कर देता है और फूल एवं फल्ली दोनो को क्षति पहुँचाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
7. चक्रभ्रंग/गर्डल बीटल (ओवेरिया व्रेबिस) क्षति का प्रकार- इल्ली और लार्वा दोनो अवस्थाओं में क्षति पहुँचाते है।व्यस्क मादा इल्ली तने पर रिंग बनाती है, रिंग में छेद बनाकर अण्डे देती है अण्डे से निकलने वाली इल्ली तने को अंदर से खाती है और तना सूख जाता है। कीट प्रबंधन-
|
|
8. सेमील्यूपर (क्राइसोडेक्सिस इन्क्लूडेंस) क्षति का प्रकार- यह शुरूआती अवस्था और फूल अवस्था में पौधे को नुकसान पहुँचाती है। कीट प्रबंधन-
|
|
प्रमुख रोग | |
9. एनथ्रेकनोज/ फली झुलसन लक्षण- यह एक बीज एवं मृदाजनित रोग है। रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों तने और फली पर गहरे भूरे रंग के अनियमित धब्बे बन जाते है और बाद में यह धब्बे काली संरचनाओं से भर जाते है।पत्तियों एवं षिराओं का पीला-भूरा होना, मुड़ना और झड़ना इस बीमारी के लक्षण है। रोग प्रबंधन-
|
|
10. पीला मोजेक लक्षण- पत्तियों पर असामान्य पीले धब्बे पड़ जाते है।सक्रंमित पौधे की बढ़वार रूक जाती है और फली भराव कम होता है व दाना छोटा होता है। रोग प्रबंधन-
|
|
11. चारकोल रोट लक्षण- यह रोग पानी की कमी, निमेटोड अटैक, मिट्टी के कड़क होने की दशा में होता है। इसमें नीचे की पत्तिया पीली पड़ जाती है और पौधा मुरझा जाता है। रोग प्रबंधन-
|
|
12. बैक्टीरियल ब्लाईट लक्षण- असामान्य पीले बिंदु पत्तियों पर पड़ जाते हैं और फिर मृत दिखाई पड़ते है और फिर बड़े काले धब्बे तना और पत्तियों पर दिखाई देते है। रोग प्रबंधन-
|
हमें यह बात हमेशा ध्यान रखनी है कि रासायनिक नियंत्रण की शुरुआत तभी करनी है जब की कीट व रोग आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले, साथ ही हमें समेकित कीट व रोग प्रबंधन पर ध्यान देना है, जिसकी शरूआत बुवाई से पहले हो जाती है जैसे ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करना, रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करना, अनुमोदित बीज दर से ज्यादा नही रखना और नत्रजन उर्वरकों का उपयोग नहीं करना और पोटाश की कमी रहने पर पोटाश खादों का उपयोग मिट्टी में सुनिश्चित करना आदि, तभी जाकर हम कीट और रोगों पर विजय प्राप्त कर सकते है।
Authors:
नीलेन्द्र सिंह वर्मा, दीपिका यादव
भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकीय संस्थान, नवी बाग बैरसिया रोड, भोपाल
Email: