Importance of Hosted Plant Resistance (HPR) in Integrated Pest Management (IPM) of Wheat
मेजबान पौध प्रतिरोध (Host Plant Resistance, HPR) को रेगिनाल्ड एच. पेईंटर (1951) ने परिभाषित किया है l परिभाषा के अनुसार यह “पौधों के ऐसें गुण हैं, जो उनको कीटों से बचने, या सहन करने की या कीट क्षति के उपरांत आरोग्य होने शक्ति देते हैं, जिन परिस्थितियों में उसी जाति के पौधों को अधिक से अधिक नकुसान हो सकता है” l
कीड़ों के प्रति पौध प्रतिरोध एक आनुवंशिक (heritable) गुण है जो पौधों में कीटों द्वारा होने वाली क्षति की परम सीमा को निरधारित करता है l प्रकृति में पोधे तीन प्रकार से अपना प्रतिरोध कीड़ों के प्रति प्रकट करते हैं l यह हैं, गैरवरीयता (Antixenosis / Non-preference), प्रतिजीविता (antibiosis) एवं सहिष्णुता (tolerance).
(क) गैर वरीयता (Antixenosis/Non-preference):
पौधों में गैरवरीयता का आधार रूपात्मक (morphological) या रासायनिक (chemical; e.gallelochemicals)कारण से होता है जिसके फलस्वरूप कीट पौधों पर अपना गुणन एवं स्थापना करने में असमर्थ हो जाते हैं । रूपात्मक आधार में पौधों पर कांटों, मोम एवं बालों का होना शामिल है l इसी के प्रभाव से कीट पौधों पर आश्रय लेने में या अंडे देने या नकुसान आदि करने में विफल हो जाते हैं l
(ख) प्रतिजीविता (antibiosis):
प्रतिजीविता का सीधा प्रभाव कीट के जीवन चक्र पड़ता है जिसके कारण से उसका विकास और प्रजनन रुक जाता है और उसकी आने वाली पीढ़ी का जनन नहीं हो पाता है l पौधे में जैव-रासायनिक (bio-chemical) एवं जैव-भौतिक (bio-physical) कारकों को इसका मुख्य आधार माना जाता है l जैसे कि पौधों में जहरीले पदार्थ की उपस्थिति, आवश्यक पदार्थों की अनुपस्थिति, एंजाइमों की उपस्थिति जो कीड़ों की पाचन क्रिया को प्रभावित करते हैं l
उदाहरण के लिए मकई के पत्तों में DIMBOA की उपस्थिति यूरोपीय मक्का छिद्रक, Ostrinianubilalis को प्रभावित करती है l इसी तरह कपास में Gossypol की उपस्थितितंबाकू की इल्ली (स्पोडोप्टेरा लिटुरा) एवं चने के फली छेदक (हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा) को प्रभावित करती है l
(ग) सहिष्णुता (Tolerance):
सहिष्णुता में पौधों में पाया जाने वाला ऐसा गुण है जो कीटों के हमले के बावजूद भी पौधों को विकसित एवं उपज देने की क्षमता देता है। ऐसे होने का श्रय जाता है पौधों की ताक़त को जो क्षति ग्रस्त होने के बाद भी नई पतियों एवं शाखाओं का विकास करने पौधों को सहज बनाता है l
उदाहरण के लिए कई मक्का जीनोटाइप में ऐसी क्षमता होती है जो उनकी जड़ओं को पश्चिमी मकई जड़ कीड़ा, Diabroticavirgifera के नकुसान के बाद नई जड़ें बनाने में मदद सहायता करता है l सहिष्णुता के कारण पौधें कीट की आबादी उपने ऊपर स्थापना करने देते हैं और उससे अन्य फसलों में कीट की समस्या हो सकती है।
मेजबान पौध प्रतिरोध के समेकित नाशीजीव प्रबन्धन में लाभ और हानि
कीट एवं पौधों के बीच पीढ़ियों से सह-विकसित संघर्ष रहा है l यह वास्तव में एक सतत चक्र है जहाँ पौधेे शाकाहारी कीट के विरुद्ध अपनी रक्षा रणनीति विकसित करता है और उसके कीड़े उसके लिए अपनी आक्रामक रणनीति विकसित कर लेते है ।
इस सह-विकास के प्रमुख प्रेरक शक्ति, चयन दबाव (selection pressure) है जो अंत में स्वस्थतम / योग्यतम (fittest) की उत्तर जीविता (survival) के रूप में प्रकट होता है ।
लाभ:
- पौध प्रतिरोध का प्रभाव केवल नकुसान करने वाले लक्ष्यकीटपर ही होता है एवं इससे प्राकृतिक शत्रु परअप्रभावित रहेते हैं l
- प्रतिरोधी किस्मों को बड़े पैमाने परउगाने से क्षति पहुँचाने वाले कीटों की सख्या कम हो जाती जिससे कीटनाशकों की आवश्यकता कम पड़ती है l
- प्रतिरोध का प्रभाव लगातार कई पीढ़ियों तक रहता है l
- पौध प्रतिरोध एक पर्यावरण-अनुकूलतम प्रणाली है जो किसानों द्वारा आसानी से स्वीकार एवं अपनाई जा सकती है l
- पौध प्रतिरोध प्रणाली को काफी सरलता से समेकित नाशीजीव प्रबन्धन के अन्य सभी प्रणालीयों के साथ प्रयोग में लाया जा सकता है l
- प्रतिरोधी किस्मों को उगाने से कीटनाशकों का आवश्यकता कम पड़ती है l
- यहाँ पे अन्य समेकित नाशीजीव प्रबन्धन प्रणालीयों प्रभाव नहीं देखा पाती, वहाँ पे मेजबान-पौधप्रतिरोध काफी प्रभावी रहती है जैसे की; विषाणु रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्मों काफी उपयोगी होती हैं
हानि
- प्रतिरोधी किस्मों को विकास एवं प्रसार के लिए न्यूनतम 5 - 6 वर्ष की अवधि चाहिए l
- प्रतिरोधी किस्मों को बनाते हुए समयुग्मीयों(biotype) केबनने का आशंका हमेशा रहती है l
- उपलब्ध जनन द्रव्य (germplasm) में प्रतिरोध जनन-कोशिका (resistant genes) की अनुपस्थिति l
गेहूँ की कीटों के लिए प्रतिरोधी या सहिष्णु किस्में
गेहूँ फसल के विभिन्न चरणों के दौरान बीमारियों, सूत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों से व्यापक मात्रा में कीटों का नकुसान होता है तथा 5-10 प्रतिशत उपज की हानि होती है l गेहूँ में मुख्यतः पत्ती का माहूँ, जड़ का माहूँ, गेहूँ का भूरा घुन तथा तना की मक्खीक्षति से हानि होती है l
इसके अतिरिक्त दीमक और गुलाबी ताना बेधक से भी क्षति पहुँचती है लेकिन इन कीटों के लिए प्रतिरोधी या सहिष्णु किस्में बनाना कठिन है क्योंकि यह की कीट गेहूँ के इलावा ओर फसलों भी को नकुसान करतें हैं l इन्हें पालीफागस (polyphagous) कीटों की श्रेणी में रखा गया है l
गेहूँ की नई प्रजातियों जो प्रतिरोधी या सहिष्णु हो, को जारी करने से पहले प्रतिरोधिता के लिए दो साल से तीन साल तक जाँचा जाता है तथा परिछन करने के बाद ही इनमें से केवल उच्च प्रतिरोधिता वाली प्रजातियों को ही संस्तुती दी जाती है।
लेकिन एक ही प्रजाति में सभी प्रकार के हानिकारक कीटों, रोगों, तथा सूत्रकृमियों के लिए प्रतिरोधिता होना एक कठिन कार्य है। साथ में समयुग्मीयों(biotype) एवं रोगजनकों समय से समय से विकास होता रहता है और प्रकृति में इनकी नवीनतम प्रजातियाँ विकसित होती रहती हैं। जिसके लिए नई प्रजातियों का विकास होना आवश्यक है ।
तथापि प्रतिरोध की एक उच्च स्तर की कमी एवं कीटों के लिए उत्तम स्क्रीनिंग तकनीक की कमी गेहूँ में कीट के प्रतिरोध के लिए प्रजनन की धीमी प्रगति के मुख्य कारण हैं । लेकिन जंगली प्रजातियां प्रतिरोधकता के लिए एक अच्छा स्रोत है इसलिए इनका उपयोग प्रजनन कार्यक्रम में करना चाहिए । गैर-परंपरागत तकनीकियों जैसे कि ‘मार्कर’ की सहायता से प्रतिरोधी या सहिष्णु प्रजातियों का विकास करना चाहिए।
गेहूँ की प्रजातियों जो कीट प्रकोप के लिए प्रतिरोधी या सहिष्णु है उनके नाम निम्नलिखित हैl
क्रमांक |
कीट |
प्रतिरोधी या सहिष्णु किस्में |
1 |
पत्ती का माहूँ या फोलीयर एफिड |
जी.डब्ल्यू. 276,एच.डी. 2967, एच.आई. 1436, एच.आई.1761,एच. डब्ल्यू. 3083,एच.पी. डब्ल्यू. 184,एच.पी. डब्ल्यू. 296,एच.स. 364, एच. डब्ल्यू.3094, एच. डब्ल्यू. 5028, पी.बी. डब्ल्यू.486,पी.बी. डब्ल्यू. 554, राज 3896,वी.एल. 818, वी.एल. 864, डब्ल्यू. एच.601, पी.डी. डब्ल्यू.267 |
2 |
जड़ का माहूँ या रूट एफिड |
एच.पी. 1911, एच.स. 459, एच.स. 460,एच.स. 493’ एच. डब्ल्यू. 5028,एच. डब्ल्यू. 5103,एच. 5104,२ क.आर.ल. 213,माक्स 2956,माक्स 6198,ऍम.पी.1194, इन. डब्ल्यू. 3073,पी.बी. डब्ल्यू. 491,पी.बी. डब्ल्यू.500, पी.बी. डब्ल्यू. 530,पी.बी. डब्ल्यू, 550, पी.बी. डब्ल्यू, 559,पी.बी. डब्ल्यू. 573, पी.बी. डब्ल्यू 599, राज 4028, राज 4119, यु.पी. 2594, वी.एल. 829,VL वी.एल. 898, वी.एल. 870, वी.एल. 868, वी.एल. 912,
|
3 |
गेहूँ का भूरा घुन या ब्राउन बीट माइट |
डी.बी.डब्ल्यू.50, एच.डी. 2834, एच.डी. 2865, एच.डी.2956, एच.डी. 2957, एच.आई. 1436, एच.स. HS 443, एच. डब्ल्यू. 3094 |
4 |
तना की मक्खी या शूट फ्लाई |
डी.बी.डब्ल्यू. 32,एच.डी. 2830,एच.पी 1731, एच.स्.521,एच. डब्ल्यू. 5028, ऍम.पी. 4080, डी.बी.डब्ल्यू.525,डी.बी.डब्ल्यू. 580, यु.ए.स् 295,वी.एल. 900,वी.एल. 916,राज 6566, डब्ल्यू. एच.147, ऍम.पी. ओ. 1220,नी.डी. डब्ल्यू.295. |
Authors:
पूनम जसरोटिया, प्रेम लाल कश्यप और सुधीर कुमार
भा. कृ. अनु. प., भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान
करनाल-132001(हरियाणा) भारत
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