अफ्लाटॉक्सिन जहर से मुर्गियों के विकास पर प्रभाव तथा बचाव

अफ्लाटॉक्सिन जहर से मुर्गियों के विकास पर प्रभाव तथा बचाव

Effect and prevention of aflatoxin poisoning in poultry development

भारत में कृषि का सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र आज कुक्कुट पालन है। देश में कुक्कुट पालन का उत्पादन 851.81 मिलियन है, जो पिछली जनगणना 2012 की तुलना में 16.8% बढ़ा है। भारत में मुर्गी पालन जहा बड़े किसान का व्यापार है, वही छोटे किसानो जिनके पास जमीन का अभाव है उनकी इस पर रोजी रोटी इस पर निर्भर है।

मुर्गी पालन भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे रहा है, लेकिन लगातार बढ़ रही मुर्गी पालन में बीमारिया से इस पर गहरा आघात दिया है।

अफ्लाटॉक्सिन क्‍या है?

मुर्गियों में हो रही मृत्यु का बहुत बड़ा कारण अफ्लाटॉक्सिन का जहर भी है। यह अफ्लाटॉक्सिन्स दो प्रकार की फफूदी से होता है एक एस्पर्जिलस फ्लेवस और दूसरा एस्पर्जिलस पैरसिटीकस।अफ्लाटॉक्सिन चार प्रकार का होता है- अफ्लाटॉक्सिन (AF) बी1, बी2, जी1, जी2।  

खाद्य एवं कृषि संगठन ने अनुमान लगाया कि लगभग 25% मानव खाद्य पदार्थ और पशु आहार मयकोटॉक्सिन्स से भरे हुए हैं। प्रकृति में पहचाने गए ३५० मयकोटॉक्सिन्स में से सबसे अधिक, अफ्लाटॉक्सिन (AF) बी1, बी2, जी1, जी2, सिट्रिनिन्स (सीआईटी), फूमोनिंसिन (एफ), ऑक्रैटॉक्सिंस (ओटी) सबसे आम और महत्वपूर्ण पोल्ट्री राशन में पाए जाते है। इसकी जांच हम वैज्ञानिक विधि से भी कर सकते है।

हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने मायकोटॉक्सिन की निष्क्रियता के लिए प्राकृतिक उत्पादों की पहचान और अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया है। एसेंशियल आयल रोगाणुरोधी गुणों के साथ  संभवतः संभावित विषैले कवक की रोकथाम के लिए सबसे आशान जनक तरीका है।

सक्रिय एजेंट जैसे कि, सक्रिय कार्बोन (लकड़ी का कोयला), बेंटोनाइट, मिट्टी, हाइड्रेटेड सोडियम कैल्शियमल्यूमिनो सॉस और जिओलाइट का उपयोग वर्तमान में पोल्ट्री और इसके मुर्गी में माइकोटॉक्सिकोसिस का मुकाबला करने के लिए किया जाता है जिसका प्रभाव  मांस और अंडे में देखने को मिलता है।

अफ्लाटॉक्सिन्स वि‍ष कैसे उत्पन्न होता है?

यह अफ्लाटॉक्सिन्स तब उत्पन्न होता है जब राशन सीलन युक्त जगह पर रखा होता है तब इसमें फंगस उत्पन्न होता है और जहर का रूप ले लेता है यह फंगस मक्का, सोयाबीन, गेहू, आदि जो मुर्गियों के प्रमुख राशन है उसमे जल्दी लगता है।

इसकी जांच हम वैज्ञानिक विधि से भी कर सकते है। राशन में अफ्लाटॉक्सिन (बी1,बी2, जी1,जी2) की मात्रा हम एच पी एल सी मशीन से निकाल सकते है। लेकिन किसान राशन में  इसे समझ नहीं पाते है जिससे काफी नुक्सान होता है ।

अफ्लाटॉक्सिन्स वि‍ष का प्रभाव

अलफाटॉक्सिन्स युक्त राशन खिलाने पर अंडे देने वाली  मुर्गियों में अंडे देने की संख्या दिन प्रतदिन कम होने लगती है तथा अंडे से चूजे निकलने की क्षमता और दर कम हो जाती है चूजों का भार एव संख्या कम होने लगती है जिससे मुर्गियों का प्रतिरक्षा तत्र कमजोर हो जाता है जिसके कारण अन्य बीमारिया भी मुर्गियों में आने लगती है

मांश वाली मुर्गे में भार में गिरावट, राशन कम खाता है जिससे जल्दी मृत्यु हो जाती है अफ्लाटॉक्सिन युक्त राशन  खाने पर राशन का रूपांतरण अच्छे से नहीं हो पाता है तथा अधपचा राशन मल के साथ निकलता है

कभी कभी मल के साथ खून भी निकलता है शव परीक्षण करने पर यकृत, वृक्क, अग्नाशय, तिल्ली का आकार बड़ा हुआ दिखाई देता है रक्त निकलने से आन्तिरिक अंगो में छोटे छोटे निशान पड़ जाते है रक्त निकल जाने से मांशपेशिया पीले रंग की पड़ जाती है।

रोकथाम

भण्डारण गृह का तापमान एव आद्रता दाना रखने से पहले जांच ले, दाने में प्रयुक्त होने वाले अवयवों को अच्छी तरह सूखा ले। दाने एव पानी वाले बर्तनो को अच्छी तरह सूखा ले तथा मुर्गियों को खिलाने से पहले परीक्षण अवस्य करे।

मुर्गियों के दाने को विभिन्न रासायनिक पदार्थ से उपचारित करने पर उसमे लगा फंगस नस्ट हो जाता है और नई फफूदी भी उतपन्न नहीं होती है। कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे प्रोपियोनिक अम्ल, प्रोपियोनेट बेन्जोइक अम्ल इत्यादि अमोनिआ के जलीय व गैसीय मिश्रण से मुर्गियों के दाने को उपचारित करने से दाने में उगी फफूदी नष्ट हो जाती है।

कुछ विकिरण जैसे गामा, अल्ट्रावाइलेट इत्यादि से मुर्गियों के दाने को उपचारित करने से दाने में फफूदी लगने की संभावना कम हो जाती है। कुछ विटामिन्स जैसे विटामिन्स-ए, विटामिन्स-सी और विटामिन्स-ई को दाने में मिलाने से मुर्गियों में प्रतिउपचायक के द्धारा होने वाले दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।

जिससे मुर्गियों में प्रतिरक्षा तंत्र बढ़ जाता है, और मुर्गियों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती जाती है। कुछ एंटीफंगल रोगाणुरहित फलो के पाउडर को राशन में मिलाने से अफ्लाटॉक्सिन्स के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

जामुन के विभिन्न अर्क में जीवाणुरोधी, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटी-जीनोटॉक्सिक, एंटी-अल्सरेटिव, कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटी-एलर्जी, एंटीकैंसर, कीमोप्रेंटिव, रेडियोप्रोटेक्टिव जैसे गुण पाए जाते है। जामुन के पाउडर को फीड में मिलाने से अफ्लाटॉक्सिन्स के प्रभाव को कम किया जा सकता है।


Authors:

Aman Rathaur

Department of Dairy Science & Food Technology

Banaras Hindu University, Varanasi-221005

amancsa2014@gmail.com

 

 

 

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