Improved Cultivation of Moong in Rajasthan

Improved Cultivation of Moong in Rajasthan

राजस्थान में मूँग की उन्नत खेती 

मूँग एक फलीदार फसल है जिसे मुख्य रूप से दाल के लिए प्रयोग किया जाता है। दाने के साथ-साथ फसल की पत्तियों और तने से पर्याप्त मात्रा में भूसा प्राप्त होता है, जो जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत में लगभग 308 मिलियन हेक्टेयर में मूंग की खेती की जाती है तथा इसका उत्पादन 1.31 मिलियन टन प्रति वर्ष है। मूंग की औसत उत्पादकता 4.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

मूंग को हरी खाद के लिए भी प्रयोग किया जाता है। मूंग की जड़ों में सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को एकत्रित करते हैं जो अगली फसल के द्वारा प्रयोग की जाती है। इसे मृदा अपरदन अवरोधी तथा कैच क्रॉप के रूप में प्रयोग करते हैं।

राजस्थान में मूंग खरीफ एवं ग्रीष्म दोनों मौसमों में कम समय में पकने वाली मुख्य दलहनी फसल है। मूंग में 24- 26% प्रोटीन, 55-60% कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3% वसा पाया जाता है।

मूंग की खेती राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में प्रायः की जाती है। उत्तरी भारत में मूंग की खेती ज्यादातर खरीफ ऋतु में की जाती है। वैसे तो मूंग की खेती को तीन वर्गो में बांटा गया है 

1. बसंतकालीन मूंग ( spring season moong ) – इस सीजन की अवधि फरवरी-मार्च से मई-जून तक है।

2. ग्रीष्मकालीन मूंग ( summer season moong ) – इसकी अवधि अप्रैल से जून तक होती है।

3. खरीफ ऋतु की मूंग ( kharif season moong ) – इस सीजन की अवधि जुलाई से सितंबर-अक्टूबर तक होती है।

उपयुक्त जलवायु ( climate )

मूंग के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। 60 से 75 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र मूंग की खेती के लिए उपयुक्त रहते हैं। पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए 25-35°C तापमान उपयुक्त रहता है।
मूंग की खेती में फलियों के पकते समय शुष्क मौसम तथा उच्च तापमान की जरूरत होती है।

फलियां पकते समय बर्षा होने के कारण फलियों के दाने सड़ सकते हैं। मूंग की खेती के लिए कम तापक्रम एवं पाला अत्यंत हानिकारक होता है।

उन्नतशील किस्में (Improved Varieties)

राजस्थान के लिए मूंग की उपयुक्त किस्में – आर एम जी 268, पूसा विशाल, पंत मूंग 1, वर्षा, सुनैना, अमृत, कृष्णा 11 आदि।

खेत की तैयारी कैसे करें ( field preparation )

ग्रीष्मकालीन बुवाई के लिए रबी की फसल काटने के तुरंत बाद पलेवा कर देना चाहिए‌। खेत में ओठ आने पर एक बार जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से तथा दूसरी जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देना चाहिए।

खरीफ ऋतु की मूंग के लिए बर्षा के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा एक-दो जुताईयां देशी हल से करते हैं। उसके बाद पाटा या पटेला चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर देते हैं।

बुवाई का समय एवं ढंग ( time of sowing and method )

ग्रीष्मकालीन मूंग को मार्च के प्रथम सप्ताह से लेकर अप्रैल के मध्य तक अवश्य को देना चाहिए। 15 अप्रैल के बाद बोने से उपज में कमी आती है। खरीफ की फसल को 15 जून से 15 जुलाई तक बोया जा सकता है। बसंतकालीन फसल को फरवरी-मार्च में बोते हैं।

बीज को देशी हल अथवा सीड्रिल से 8-10 सेंटीमीटर गहरी कतारों में बोते हैं। ग्रीष्म ऋतु की फसल में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 7-10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खरीफ की फसल में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 7-10 सेंटीमीटर रखते हैं। बोने के तुरंत बाद पाटा लगा देते हैं।

बीज दर ( seed rate )

ग्रीष्मकालीन व बसन्तकालीन फसल के लिए 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर तथा खरीफ की फसल के लिए 12- 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

बुवाई से पहले बाविस्टीन या थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करने से बीजजन्य तथा भूमिजन्य बीमारियों से बचाव होता है। इसके पश्चात बुवाई के ठीक पहले राइजोबियम कल्चर से उपचार करना चाहिए। एक पैकेट कल्चर एक हेक्टेयर में बोने के लिए बीज की मात्रा के लिए काफी होता है।

खाद एवं उर्वरक ( Manure and Fertilizers )

दलहनी फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन फिर भी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए ग्रीष्मकालीन व बसन्तकालीन फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर तथा खरीफ की फसल में 15 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बोते समय कूँड में डालना चाहिए।

जड़ों में ग्रंथि होने के कारण नाइट्रोजन की कम आवश्यकता पड़ती है। मृदा में उर्वरक मृदा परीक्षण कराने के बाद ही डालना चाहिए। यदि किसानों के पास जैविक खाद हो तो और ही अच्छा रहेगा। जैविक खाद डालने से उपज में वृद्धि होती है।मूंग की खेती के लिए खेतों में दो-तीन वर्षों में कम से कम 5 से 10 टन गोबर या कंपोस्ट खाद देनी चाहिए।

मूंग में सिंचाई  ( Irrigation )

ग्रीष्मकालीन व बसंतकालीन मूंग में पहली सिंचाई बुवाई के 30-32 दिन बाद तथा फिर 10-12 दिन के अंतर पर तीन से चार सिंचाई करनी चाहिए। खरीफ की फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन फिर भी यदि बरसात न हो तो फलियां आते समय एक दो सिंचाई कर देनी चाहिए।

खरपतवार प्रबन्धन करना ( Weed Management )

मूंग के पौधे की अच्छी बढ़वार के लिए पहली निराई गुड़ाई सिंचाई के बाद तथा खरीफ की फसल में 20-25 दिन बाद निराई करनी चाहिए। इसके बाद यदि खेत में खरपतवार अधिक हो तो दूसरी निराई गुड़ाई 40 दिन के अंतर पर करनी चाहिए या फ्लूक्लोरैलिन 45 E.C. नामक रसायन की 1.5 लीटर मात्रा को आवश्यक पानी में मिलाकर बुवाई के दो-तीन दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क देना चाहिए।

फसल चक्र ( Crop rotation )

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए। जो निम्न है –

1. मूंग – आलू

2. बाजरा – गेहूं – मूंग

3. ज्वार – आलू – मूंग

4. धान – गेहूं – मूंग

5. बाजरा – लाही  -गेहूं – मूंग

उपज ( Yield )

ग्रीष्म व  बसंतकालीन मूंग से 15-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा खरीफ की फसल से 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।


Authors

राजू लाल धाकड और दया शंकर मीणा

पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृषि महाविद्यालय देवली टोंक (राजस्थान )

Email: raju00sonadhakar@gmail.com

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