Post Harvest Management  Value Addition and Uses of Medicinal Plants

1. ऑंवला

ऑंवला युफोरबिएसी परिवार का पौधा हैं । यह भारतीय मूल का एक महत्पूर्ण फल है । महर्षि चरक ने इस फल को जीवन दात्री अथवा अमृतफल के समान लाभकारी माना है।  प्रति इकाई उच्च उत्पादकता 15-20 टन/हे

Amla ka podhaविभिन्न प्रकार की भूमि ऊसर, बीहड़, शुष्क, अर्धशुष्क हेतु उपयुक्ता, एवं पोषक तत्वों जैसे विटामिन, खनिज, फिनॉल, टेनिन गुणों से भरपूर तथा विभिन्न रूपों में उपयोग के कारण ऑंवलो 21 वी सदी का प्रमुख फल है।

 बनारसी कम फलत देने वाली, फ्रांसिस एवं नरेन्द्र ऑंवलो-6 औसत फलत देने वाली, कंचन एवं नरेन्द्र ऑंवलो-7 अत्यधिक फलत देने वाली किस्में हैं।

औषधीय उपयोग -  

  • एक चम्मच ऑंवले के रस को यदि शहद के साथ मिला कर सेवन किया जाय तो इससे कई प्रकार के विकार जैसे क्षय रोग, दमा, खून का बहना, स्कर्वी, मधुमेह, खून की कमी, स्मरण शक्ति की दुर्बलता, कैंसर, मस्तिष्क विकार, एन्फ्जलुएन्जा, ठंडक, समय से पेहले बुढ़ापा, बालों का झड़ना एवं सफेद होने से बचा जा सकता है ।
  • एक चम्मच ताजे ऑंवले का रस, एक कप करेले के रस में मिश्रित करके दो महीने तक प्रात:काल सेवन किया जाय तो इन्सुलिन का श्राव बढ़ जाता है। इस प्रकार यह मधुमेह रोग को नियंत्रित करके शरीर को स्वस्थ्य करता है। साथ ही रक्त की कमी, सामान्य दुर्बलता से मुक्ति दिलाता है ।
  • त्रिफला, च्यवनप्राश, अमृतकलश ख्याति प्राप्त स्वदेशी आयुर्वेदिक औषधियॉ है, जो मुख्यत: ऑंवले के फलों से बनायी जाती है।

परिपक्वता व तुडाई

ऑवले में परिपक्वता निर्धारण का सबसे अच्छा तरीका फलों के रंग में परिवर्तन (पीला हरा) को देखकर किया जा सकता है।  फलों को प्रात: काल में तोड़ना चाहिए एवं प्लास्टिक के के्रेट्स में रखना चाहिए । तोड़ते समय जमीन में फलों को नहीं गिरने देना चाहिए अन्यथा चोटिल फल पैकिंग एवं भंडारण के समय सड़ कर अन्य फलों को भी नुकसान पहुँचाते है।

पैकिंग व भंण्डारण- 

जूट बोरियो एवं अरहर पौधों के तने की टोकरियाँ प्राय: ऑंवले की पेटीबंदी में प्रयुक्त की जाती है। लगभग 40-50 किलोंग्राम क्षमता की अरहर के तने द्वारा बनी टोकरियॉ ऑवले की पैकिंग में प्रयोग की जाती है।

जिनमें अखबार की परत एवं ऑंवलो की पत्तियों को कुशन के रूप में प्रयोग किया जाता है। ऑंवलो को दूरस्थ स्थानों पर भेजने के लिए कारूगेटेड़ फाइबर बोर्ड डिब्बों में पैकिंग करके भेजा जाता है।

ऑंवले के भंडारण का मुख्य उद्देश्य प्रसंस्करण हेतु उसकी उपलबब्धता को बढ़ाना है । ऑंवले के फलों को शीत तापक्रम 5-7 0C पर दो माह तक रखा जा सकता है। फलों को 15 प्रतिशत नमक के घोल में रखकर 75 दिनों तक सामान्य तापक्रम पर भंडारित किया जा सकता है।

प्रसंस्करण-

ऑंवले के फल अम्लीय एवं कसैले होने के कारण तुरन्त उपभोग हेतु उपयुक्त नहीं होते है । अत: फलों को प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने में उपयोग किया जा सकता है। प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने से इसमें विद्यमान विटामिन 'सी' के बड़े भाग का ह्ास होता है।

ऑंवले के मूल्य संवर्धित उत्पाद-

  • ऑंवला गूदा
  • ऑंवला जूस
  • ऑंवला स्कवैश
  • ऑंवला टार.टी.एस. पेय
  • ऑंवला मुरब्बा
  • ऑंवला कैंडी
  • ऑंवला चूर्ण

Sharpgandha ka podha2. सर्पगंधा

सर्पगंधा एपोसाइनेंसी कुल का पौधा है। सर्पगंधा के जड़ औषधि के रूप में प्रयोग में लाये जाते है। इस पौधे के नर्म जड़ से स्प्रेंन्टिंन नामक दवा निकाली जाती है। इसके अलावा जड़ में रेसरपीन, सरपेजिन, रौलवेनीन, टेटराफीलीन इत्यादि अल्कालाइड़ भी पाये जाते है।

औषधीय उपयोग -   

  • गांव में औरतें इसका उपयोग बच्चों को सुलाने में करती है, क्योंकि इसमें सुस्ती का गुण होता है। प्रसव काल में भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • मानसिक रोगी को रिलेक्स करने के लिए इसे दिया जाता है, इससे रोगी शांत हो जाता है।
  • यह रक्तचाप को कम करता है।
  • जडें क़े रस को पेचिस तथा हैजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • पेट दर्द तथा पेट के कीड़ें मारने के लिए गोलमिर्च के साथ जड़ का काढ़ा बनाकर दिया जाता है।

तुड़ाई, पैकिंग एवं भंण्डारण-

सर्पगंधा डेढ़ से दो वर्ष का फसल है । जाडें के दिनों में जब पत्तियॉ झड़ जाती है। तब जड़ को सावधानीपूर्वक उखाड़ना चाहिए । तीन साल के पौधे से अधिकतम उपज प्राप्त होता है। उखाड़ते समय जड़ से छिलका नहीं हटना चाहिए । जड़ को 12-15 सेन्टीमीटर टुकडे में काटकर सुखा लिया जाता है । सूखने पर 50-60 प्रतिशत वजन की कमी हो जाती है। औसत उपज 1000 किलो/हे. तक होती है।

Ashwagandha ka podha3. अश्वगंधा

अश्वगंधा कम लागत से होने वाला एक बहुमूल्य औषधीय पौधा है । मुख्यरूप से यह शक्तिवर्धक औषधि है, शक्तिवर्धक होने के कारण इसका नाम 'अश्व' से हैं । अश्वगंधा की जडों में 13 प्रकार के एल्कोलाईड़ पाए जाते है। जिसमें विथेफेरीन-ए, विथेनोलिड़ विथानीन, टोरोन, आइसोवलिन, विदाखमिन तथा सोमेनिन प्रमुख है।

औषधीय उपयोग-

  • सर्दी के दिनों में इसकी जड़ो का चूर्ण बनाकर दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता को दूर किया जा सकता है।
  • इसके सेवन से हीमोग्लोबिन एवं लाल रक्तकण की मात्रा बढ़ती है।
  • इसकी जड़ों को कामोदीपक के रूप में सेवन करने की सलाह वैद्य देते है।
  • यह खांसी में भी काम आता है। इसके लिए पत्तियों को पानी में उबालकर सेवन किया जाता है।
  • यह गठिया एवं जोडों का दर्द तथा शरीर के सृजन में बहुत उपयोगी है।
  • कैंसर में भी यह औषधि कारगर सिध्द हो रहा हैं ।
  • अश्वगंधा के पत्तियों का लेप जोडों के सुजन के उपचार के लिए किया जाता है।
  • कमर एवं कूल्हों के दर्द में इसके जडों का उपयोग किया जाता है।
  • इसमें एन्टीबैक्टीरियल गूण के कारण शरीर में प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है।

कटाई उपरांत प्रबंधन -

जुलाई में बोई गई फसल नवम्बर में फूलने लगती है । जडें 150-180 दिन में तैयार हो जाती है।  जब पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाए एवं फल लाल हो जाए तब फसल परिपक्व माना जाता है। जडों की खुदाई जनवरी माह में की जाती है। तना को काटकर अलग कर देते है।

जड़ो को अच्छी तरह से साफ कर 8-10 सेंन्टीमीटर के टुकडों में काटकर सुखा लिया जाता है। ज्यादा मोटाई वाली जड़े अच्छी एवं कम मोटाई वाली जड़ें निम्न कोटि की मानी जाती है। इस प्रकार उन्नत खेती से लगभग 800-1000 किलों जड़ें एवं 40-60 किलो बीज प्रति हेक्टर प्राप्त किया जा सकता है।

Safed Musali ka podha4. सफेद मूसली

सफेद मूसली एक कन्दीय फसल है, शारीरिक शिथिलता दूर करने मे, बलवर्धक दवाओं, टानिक, मधुमेह, गठिया, प्रसवपरांत होने वाली बिमारियों में एवं प्रसवोपरांत माताओं का दूध बढ़ाने में सफेद मूसली का उपयोग है।

कटाई उपरांत प्रबंधन -

जब तक सफेद मूसली का छिलका कठोर न हो जाये तथा इसका सफेद रंग बदलकर भूरा न हो जाये तबतक जमीन से नहीं निकालना चाहिए । मूसली को उखाड़ने का समय फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च का पहला सप्ताह होता है। खोदने के उपरांत इसे दो कार्यो हेतु प्रयुक्त किया जाता है।

बीज हेतु रखना या बेचना इसे छिलकर एवं सुखाकर बेचना । अच्छा यह होगा कि जो लम्बी और बडी टयूबर्स है उन्हैं छिलकर सुखा लिया जाये और पतली और छोटी टयूबर्स को बीज के रूप मे ंकाम में लाया जाये ।

एक हेक्टेयर में 60 क्विंटल गीली सफेद मूसली में से 1 क्विंटल टयूबर्स को बीज के लिये रख कर शेष 59 क्विंटल टयूबर्स को सुखा दें जिससे 80 प्रतिशत सुखने के बाद 10 क्विंटल सुखी सफेद मूसली प्राप्त होती है।

Stevia ka podha5. स्टीविया

सामान्य अवस्था में 25-30 गुना मीठा तथा पाउड़र (स्टीवियोसाइड्स) के रूप में शक्कर से 300 गुना मीठा होता है। कैलोरी रहित पूर्णतया सुरक्षित चीनी का विकल्प, मधुमेह में उपयोग, रक्तचाप को बढ़ाने, एंटी बैक्टीरियल गुणों के कारण इसका विशेष महत्व हैं।

कटाई उपरंत प्रवर्धन -

फसल लगाने के 4 माह बाद प्रथम कटाई पत्तों की तुडाई या पौधे के 2-3 इंच ऊपर से काट लिए जाते है। पत्तों की तुड़ाई करके ड्रायर में सुखा लेते है। दूसरी या तीसरी कटाई 3 महीने के उपरांत की जाती है।

विपणन- बाजार में पत्ते के रूप, पाउड़र के रूप में तथा एक्स्ट्रैक्स के रूप में भी उपलब्ध है।

Alovera plant6. घृतकुमारी (एलोवेरा)

घृतकुमारी जिसे ग्वारपाठा या अंग्रेजी भाषा में एलोवेरा कहते है, यह एक औषधीय पौधा हैं । यह साल भर हरा-भरा रहने वाला पौधा है। घृतकुमारी की उत्पत्ति दक्षिणी यूरोप एशिया या अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में मानी जाती हैं । भारत में घृतकुमारी का इस्तेमाल औषधीय निर्माण, सौन्दर्य प्रसाधन, सब्जी और अचार के लिए किया जाता है।

औषधीय उपयोग-

चर्मरोगों, उदरशूल, महिलाओं के रोगों के उपचार, सिरदर्द, फोड़े एवं घाव, सूजन तथा गॉठो पर मोच आ जाने या अंदरूनी चोट, नेत्र रोग, रक्त परिभ्रमण, प्लीहा वृद्वि, बवासीर, बच्चों की खांसी एवं कफ में, गठिया व जोडों के दर्द में, शरीर के जले घावों व दर्द के उपचार, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री तथा मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाने में एलोवेरा का उपयोग प्रमुखता से किया जा रहा है ।

कटाई उपरांत प्रवर्धन एवं मूल्य संवर्धन-

घृतकुमारी की पत्ती जब पूरी तरह से विकसित हो जाए, तब उसकी तुडाई करनी चाहिए ।  औसतन प्रति हेक्टेयर 15-20 टन ताजी पत्ती का उत्पादन होता है। अच्छी देखभाल वाली फसल से 25-35 टन प्रति हेक्टर तक ताजी पत्ती प्राप्त की जा सकती है।

ऐलोवेरा की पत्तियों को अच्छी तरह से साफ करके उसको किनारो से काटकर काटे वाला भाग अलग कर देते है, उसके बाद उसका जेल निकालकर प्रसंस्कृत उत्पाद बना सकते है। ऐलोवेरा के प्रसंस्कृत उत्पाद -

ऐलोवेरा के प्रसंस्कृत उत्पाद -

  • एलोवेरा कैंडी
  • एलोवेरा जेली
  • एलोवेरा जूस
  • एलोवेरा आरटीएस
  • एलोवेरा स्कवैश

Tulsi ka podha7. तुलसी

 तुलसी (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री, शाकीय तथा औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट उंचा होता है।

तुलसी का औषधीय महत्व -

  • तुलसी हिचकी, खांसी, जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृध्दि और दूषित वायु को खत्म करने की क्षमता होती है।
  • तुलसी दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली और मूत्र से संबधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबधित बीमारियों को भी ठीक करती है।
  • श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है इसमें कफनाशक गुण होते है यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।

उपयोगी भाग - तुलसी का संपूर्ण भाग उपयोगी है ।

कटाई उपरांत प्रवर्धन और मूल्य संवर्धन -

सुखाना - इसे पतली परत बनाकर छायादार स्थान पर में 8-10 दिनों के लिए सुखाया जाता है।

आसवन - तुलसी तेल को आंशिक रूप से सूखे पत्तों एवं जडों से भाप आसवन द्वारा प्राप्त किया जाता है।

पैकिंग - वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के लिए पालीथीन या नायलॉन थैलों में पैक किया जाना चाहिए ।

भण्डारण - पत्तियों को शुष्क स्थानो में संग्रहित करना चाहिए ।

तुलसी के मूल्य संवर्धित उत्पाद -

  • तुलसी अदरक
  • तुलसी चूर्ण
  • तुलसी चाय
  • तुलसी कैप्सूल
  • पंच तुलसी तेल
  • हर्बल आर.टी.एस. , नेक्टर, स्कवैश

Beal ka ped8. बेल

प्राचीनकाल से बेल को 'श्रीफल' के नाम से जाना जाता हैं । बेल विभिन्न प्रकार की बंजर भूमि (ऊसर, बीहड़, खादर, शुष्क, एवं अर्धशुष्क) में उगाया जा सकने वाला एक पोषक तत्वों (विटामिन-ए, बी., सी., खनिज तत्व एवं कार्बोहाइड्रेट्स) और औषधीय गुणों से भरपूर फल है। इससे अनेक परिरक्षित पदार्थ (शरबत, मुरब्बा) बनाया जा सकता है।

औषधीय उपयोग-

बेल एक लाभकारी फल है अत: इसके अधिकाधिक उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए । कच्चे फलों को मुरब्बा एवं कैंडी या भुनकर खाने से पेचिश, भूख न लगना एवं अन्य पेट के विकारों से छुटकारा मिल जाता है।  गर्मी के मौसम में नियमित सेवन या शरबत बना कर सेवन पेट के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

तुडाई उपरांत प्रबंधन-

फल अप्रैल-मई माह में तोड़ने योग्य हो जाते हैं । जब फलों का रंग गहरे हरे रंग से बदलकर पीला हरा होने लगे तो फलों की तुडाई 2 से.मी. डंठल के साथ करनी चाहिए । तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फल जमीन पर न गिरने पायें । इससे फलों की त्वचा चिटक जाती हैं, जिससे फल भीतर से सड़ जाते है।

9. इसबगोल

इसबगोल एक छोटा पौधा है, जिसका स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा ही महत्व हैं ।

औषधीय उपयोग-

  • मूत्र जनित रोगों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है।
  • बीज और भूसी का उपयोग ऑंतों की सूजन और जलन के उपचार में किया जाता है।
  • पुरानी कब्ज, पेचिश, बवासीर, गुर्दा और दमा रोगों के इलाज में भी इसका उपयोग किया जाता हैं
  • इसका उपयोग रंगाई, रंग-बिरंगी छपाई और आइसक्रीम उद्योग में एक स्थिरक की तरह किया जाता है।
  • बिना भूसी के बीजों का उपयोग पशुओं के आहार के लिए किया जाता है।

उपयोगी भाग - बीज एवं भूसी

कटाई और मूल्य संवर्धन -

सफाई -  बीजों को तब तक छाना जाता है जब तक वे साफ ना हो जायें । भूसी को अलग करने के लिए साफ बीजों को 6-7 बार पीसा जाता है।

श्रेणीकरण - छटाई -    बीज और भूसी को उष्कृष्टता के अनुसार सफाई कर वर्गीकृत किया जाता हैं । उच्चतम गुणवत्ता की भूसी सफेद होती है, जिसमें लाल कर्नल के कण मौजूद नहीं होते है।

पैकिंग- वायु रोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के लिए इसबगोल के बीजों ओर भूसी को पालीथीन या नायलॉन के थैलों में पैंक किया जाना चाहिए ।

भण्डारण- बीज और भूसी को अलग अलग संग्रहित किया जाना चाहिए । बीजों को सीधे बेचा जा सकता है और भूसी अलग से बेची जा सकती है।

मूल्य संवर्धित उत्पाद- इसबगोल चूर्ण ।

10. सतावर

satavar ka podhaसतावर एक कॉटेदार महीन सूई के आकार कीे पत्तियॉ वाला मध्यम लता है । सतावर के जड़ों को औषधि के रूप में प्रयोग में लाते है। यह डेढ़ साल में तैयार होता है। यह पुष्टिवर्धक, माताओं में दूधवर्द्वक, पित्तशोधक औषधि है।

औषधीय उपयोग-

  • सतावर एक बहुत ही उपयोगी पारिवारिक औषधी है। इसका 2-3 ग्राम चूर्ण को दूध के साथ उबालकर खाते है।
  • यह माताओं एवं पशु के स्तन में दूध बढ़ाने में उपयोगी है।
  • यह स्त्रियों के लिए टॉनिक का काम करता है।
  • यह पाचन सुधारने एवं भुख बढ़ाने में भी टॉनिक का काम करता है।

11. सदाबहार

कैथेरेंथस रोजियस, पेरीविंकल या विंका रोजियस 'एपोसाइनेसी' कुल का पौधा है। इसे हिंदी में सदाबहार या सदाफूल कहते है।

औषधीय उपयोग -

यह पेशाब बढ़ाने वाला, दस्त रोकने वाला और घावों को भरने वाली औषध है। 

12. नीम

नीम (अजाडिरेकटा इंडिका) मेलियेसी कुल का  तेजी से बढ़ने वाला सदाबहार वृक्ष है ।

औषधीय उपयोग -

नीम के वृक्ष को यदि नीमहाकिम कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि अकेले नीम सैकडों रोगों की दवा है। नीम का अंगप्रत्यंग जैसे पत्तियॉ, छाल, लकडी, फूल, फल सभी उपयोगी और औषधीय गुणों से युक्त है

इसका उपयोग दैनिक जीवन में ज्वर, जुकाम, पेट के कीडें, दस्त अधिक आने पर, पेचिस, बवासीर, रक्तस्रत्राव एवं प्रदर, मलेरिया, चेचक, खुजली, स्वेत कुष्ट, सफेद दाग, घाव, कान बहने, दंत मंजन, केश झड़ने और सफेद होने पर, बिच्छू का विष पर बर्र ओर मधुमक्खी के विष पर जूए मारने हेतु किया जाता है।


Authors:

डॉ. ओमसिंह*, ऋचा सिंह**, प्रतिक्षा सिंह***

सहायक प्राध्यापक,* उद्यानिकी महाविद्यालय, मंदसौर (म.प्र)

**प्रोग्राम असिस्टेण्ट, के0वी0के0, सीतापुर

***विषय वस्तु विशेषज्ञ, के0 वी0 के0, गोरखपुर

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