बागवानी फसलों में फल मक्खी का समेकित प्रबन्धन

बागवानी फसलों में फल मक्खी का समेकित प्रबन्धन

Integrated Management of Fruit Flies in Horticultural Crops

फल-सब्जियॉ हमारे भोजन का अभिन्न अंग है। इनसे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक विटामिनों एवं खनिज लवणों की आपूर्ति होती है।  बागवानी फसलेंं कृषि‍ आमदनी का प्रमुख स्त्रोत है परन्तु इन पर लगने वाले कीटों का समय पर प्रबन्धन न किया जायें तो उत्पादन घटने के साथ-साथ गुणवत्ता में भारी कमी आ जाती है। फल मक्खी बागवानी फसलों का एक हानिकारक कीट है, जो समस्त भारत में पायी जाती है।

फल मक्खी लगभग सभी प्रकार के फल व सब्जियों को नष्ट करती है, जिससे किसान को काफी आर्थिक हानि उठानी पडती है।

फल मक्‍खी का जीवन चक्र :-

वयस्क फलमक्खी लगभग 7 मि. मी. लम्बी होती है, जिसका सिर एवं उदर पीले-भूरे रंग का तथा वक्ष काला या पीला होता है। वक्ष एवं उदर वाले भाग पर गहरी धारियॉ होती है। इनके पंखो पर भी गहरी धारियॉ होती है।

अण्डे देने से पूर्व मादा मक्खी फल का भली प्रकार निरीक्षण करती है। मक्खी अपने जननांग को फल के अन्दर प्रवेश कराकर, एक छोटा सा गड्डा बनाकर उसमें 5-12 अण्डे देती है। लगभग 24 घण्टे बाद अण्डे से पिल्लू (मैगट) निकलते  है, जो फल के गूदे को खाकर पूरी तरह नष्ट कर देते है। प्रभावित फल सड़कर जमीन पर गिर जाते है।

इसके पश्चात् पिल्लू जमीन के अन्दर प्रवेश कर प्यूपा में परिवर्तित हो जाते है।

आम की मक्खी :

ये मक्खियॉ आम के अलावा अमरूद, सन्तरा, पपीता, नाशपाती, चीकू, केला, सेब, शरीफा, मिर्च, बैंगन तथा अन्य फलों को आक्रान्त करती है। मादा मक्खी फल भित्ति के नीचे अण्डे देती है। जिस स्थान पर मक्खी अण्डे देती है, वहॉ एक छेद बन जाता है।

इन छिद्रों से एक लसलसा तरल पदार्थ निकलता है, जो सूखकर जम जाता है। अण्डे से पिल्लू निकलकर फल के गूदे को खाते है, अन्त में फल सड़कर गिर जाते है। उन स्थानों पर जहॉ तापमान समान रहता है, मक्खियॉ पूर्ण रूप से क्रियाशील रहती हैं। अन्य स्थानो पर ये नवम्बर से फरवरी माह तक निष्क्रिय रहती है।

बेर की मक्खी :-

ये मक्खियॉ फरवरी एवं मार्च माह में अधिक कियाशील  रहती है तथा बेर की विभिन्न किस्मों को नष्ट करती है। मादा मक्खी फल में जिस स्थान पर अण्डे देती है, वहॉ फल की वृध्दि रूक जाती है तथा आक्रान्त फल का आकार खराब हो जाता है। अण्डो से पिल्लू निकलते है, जो फल के गूदे को खाते है।

एक पिल्लू एक फल को खराब करने के लिए काफी है। गर्मियों में इनके प्यूपा भूमि में निष्क्रिय पडे़ रहते है।

अमरूद की मक्खी :-

यह मक्खी जनवरी एवं फरवरी माह को छोड़कर सामान्यतः वर्ष भर कियाशील  रहती है तथा विभिन्न प्रकार के फलों को आक्रान्त करती है। फलों के अतिरिक्त ये तोरई, ककड़ी, खीरा, टमाटर आदि को भी नष्ट करती है।

पपीता की मक्खी :-

यह पपीता के फलों को हानि पहॅुचाने वाला प्रमुख कीट है। मादा मक्खी पके हुए फलों के अन्दर अण्डे देती है। अण्डो से तीन से चार दिनों में मैगट निकलकर गूदा भाग को खाते रहते है। प्रभावित फल अन्दर ही अन्दर सड़ने लगता है तथा ऐसे फल खाने योग्य नहीं रहते।

कूष्माण्ड मक्खी :-

यह मक्खियॉ  कद्दूवर्गीय फलों एवं सब्जियों जैसे करेला, लौकी, तरबूज, खरबूजा, परवल, खीरा, ककड़ी आदि का प्रमुख कीट है। ये मक्खियॉ वर्षभर कियाशील रहती है।

मादा मक्खी फलों एवं सब्जियों के पूर्ण रूप से तैयार होने से पहले ही उनमें अण्डे दे देती है। कभी-कभी ये फूलों में भी अण्डे देती है। एक फल में कई मक्खियॉ  एक साथ अण्डे देती है, जिनसे एक साथ बहुत से पिल्लू निकलकर गलियॉ बनाकर गूदे को खाते रहते है तथा प्रभावित फल सड़ जाता है।

फल मक्खियों का नियंत्रण :

फल मक्खियों के सफलतापूर्वक नियंत्रण हेतु इनके जीवन चक्र की सभी अवस्थाओं को नष्ट करना आवश्यक है। इनके अण्डे तथा मैगट (पिल्लू) फल-सब्जियों के अन्दर एवं प्यूपा भूमिं में पायें जाते है। वयस्क मक्खियॉ अत्यधिक कियाशील होती है तथा रसायनों का प्रयोग करने पर उड़ जाती है।

समन्वित कीट नियंत्रण की प्रक्रिया द्वारा इन पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • प्रभावित फलों एवं सब्जियों में मक्खियों के अण्डे तथा पिल्लू पाये जाते है। अतः इनको तोड़कर अलग कर देना चाहिए तथा एकत्रित कर जमीन में 2 फीट गहराई पर दबाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • बागों एवं खेतों में फसल के अलावा अनावश्यक पौधो एवं खरपतवारों को नष्ट कर सफाई रखनी चाहिए, क्योंकि ये पौधे वयस्क मक्खियों का आश्रय स्थल होते है।
  • कभी-कभी फलवृक्षों पर कुछ फल रह जाते है, ये मक्खियों की संख्या वृद्धि में अत्यधिक सहायक होते है। अतः कोई भी फल पेड़ पर नही रहना चाहिए।
  • फल एवं सब्जियों को कपडे़ या कागज के थैले द्वारा ढक कर रखना चाहिए।
  • इनके प्यूपा मिट्टी में निष्क्रिय अवस्था में पड़े रहते है। गर्मियों में (अप्रैल-मई) खेत की गहरी जुताई कर खुला छोड़ देने से ये नष्ट हो जाते है तथा कुछ प्यूपा बाहर आ जाते है, जो पक्षियों द्वारा खा लिए जाते है।
  • शीत ऋतु में प्रातः काल तापमान कम हो जाने के कारण ये मक्खियॉ झाड़ियों में या पेड़ो पर पत्तियों की निचली सतह पर काफी संख्या में एकत्र हो जाती है। यहॉ  इनको आसानी ये नष्ट किया जा सकता है।
  • कुछ फल जैसे – आम, पपीता, केला आदि को पकने से पूर्व तोड़कर इनको मक्खियों के आक्रमण से बचाया जा सकता है।
  • फल मक्खी के रासायनिक नियंत्रण हेतु लगभग 500 ग्राम गुड़ का 50 लीटर पानी में घोल बना लें। अब इसमें 100 मि.ली. मैलाथियान (50 ई.सी.) डालकर अच्छी तरह मिला दें। इस घोल का सात दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।
  • प्रलोभक द्वारा भी फल मक्खियों को आकर्षित कर नष्ट किया जा सकता है। मिथाइल यूजीनोल (1 मि.ली.) के साथ मैलाथियान (50 ई.सी.) की 1 मि.ली. मात्रा मिला लें। इस मिश्रण को रूई में भिगोकर चैडे़ मॅुह के बर्तन या बोतल में रखकर पेड़ के नीचे छाव में लटका देने से मक्खियॉ प्रलोभक द्वारा आकर्षित होकर आ जाती है तथा कीटनाशक के सम्पर्क में आकर मर जाती है।
  • कूष्माण्ड मक्खी के नियंत्रण हेतु मिथाइल यूजीनोल के स्थान पर क्यू ल्यूर का प्रयोग करना चाहिए। नर फल मक्खी को फेरोमोन ट्रेप के द्वारा पकड़ कर नष्ट कर दिया जाता है। इसके लिए 20 – 25 फेरोमोन ट्रेप प्रति हैक्टर लगायें जाते है।
  • फलों व सब्जियों की कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई की जानी चाहिए जैसे कद्दू की अर्का सूर्यमुखी, टिण्डे की अर्का टिण्डा, बेर की दूधिया, उमरान, इलायची आदि।

Authors:

 विरेन्द्र कुमार1, राजबाला चौधरी2 और प्रिया नेगी3

1कृषि अधिकारी, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स

2,,3विद्या वाचस्पति, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर (राजस्थान)

1E mail : virendrakumar0199@gmail.com

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