दुधारू पशुओं में टीकाकरण का महत्व
भारतीय किसान सह-व्यवसाय के तौर पर मुख्यतः पशुपालन पर निर्भर रहता है। पशुधन से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन हेतु उसे विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाना आवश्यक है। संक्रामक रोगों की चपेट मे आने से पशुओं के दुग्ध उत्पादन मे कमी होना, गर्भपात, फुराव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अगर समय रहते इलाज ना किया जाये तो पीड़ित पशु की मृत्यु भी हो सकती है।
संक्रामक रोगों से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण एकमात्र प्रभावी उपाय है जो कि पशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उनकी संक्रामक रोगों से रक्षा करता है। मुँहपका खुरपका रोग - यह एक विषाणुजनित रोग है, जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी एवं सूकर प्रजाति को प्रभावित करता है।
आमतौर पर संक्रमित पशु में तीव्र ज्वर से ग्रसित होना, मुँह मे छाले, लार का गिरना, दुग्ध उत्पादन कम होना, गर्भपात होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इस रोग से बचाव के लिए वर्ष मे दो बार मई तथा नवंबर मे टीकाकरण करवाना चाहिए।
गलघोटू रोग -
यह भैंस, गाय, बकरी एवं सूकरों में होने वाला प्राणघातक जीवाणुजनित रोग है। जो मानसून के दौरान या आर्द्र वातावरण में पशुओं को संक्रमित करता है। यह जीवाणु भैंसों को गायों के मुकाबले अधिक संक्रमित करता है।
गलघोटू रोग में पशु को अचानक तेज बुखार आता है, मुँह से लार बहती है, आँखों एवं गले में सूजन आ जाती है जिससे सांस लेने में तकलीफ महसूस होती है। इलाज के अभाव में पशु की मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है। मृत्यु दर अधिक होने से इस रोग के कारण पशुपालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
सामान्यतः इस रोग से बचाव के लिए जून एवं दिसंबर (वर्ष मे दो बार ) पशु का टीकाकरण किया जाता है।
मुंहखुर एवं गलघोटू का संयुक्त टीका भी उपलब्ध है जो साल में दो बार लगाया जाता है। यह पशु को बार-बार टीकाकरण से होने वाले तनाव से बचाता है।
लंगड़ा बुखार -
यह एक जीवाणुजनित रोग है। आमतौर पर भारी मांसपेशियों (पुटठे) की मांसपेशियों को अधिक प्रभावित करता है। मांसपेशियों मे गर्म एवं दर्दनाक सूजन आ जाती है, जिसे दबाने पर चड़ चड़ की आवाज़ आती है। इस रोग में पशु को तेज बुखार के साथ लंगड़ापन आ जाता है।
संक्रमित पशु का शुरूआती लक्षणों मे इलाज संभव है। अधिकांश मामलों में इलाज प्रभावी नहीं होता है। यह रोग मुख्यतः मिटटी मे पहले से पाए जाने वाले बीजाणु , संक्रमित सुई, संक्रमित चरागाहों से फैलता है। एंडेमिक (स्थानिक) क्षेत्रों में, इसका टीकाकरण वर्षा ऋतू से पहले, वर्ष मे एक बार करवाने की सलाह दी जाती है।
संक्रामक गर्भपात (ब्रूसीलोसिस) –
इस जीवाणु जनित रोग से प्रभावित मादा पशु का अंतिम तिमाही में गर्भपात हो जाता है तत्पश्चात मादा पशु रोग वाहक का कार्य करती है। नर पशु रोग के वाहक के रूप में प्राकृतिक गर्भाधान द्वारा इस रोग को मादाओं में फैलाता है। संक्रमित पशुओं को प्रजनन चक्र से बाहर कर देना चाहिए। इससे बचाव के लिए पांच से आठ माह की केवल मादा पशु को ब्रुसेल्ला स्ट्रेन S -19 टीका (जीवन में सिर्फ एक बार) लगाया जाना चाहिए।
हड़कवा रोग (रेबीज) –
यह एक ज़ूनोटिक रोग है। रेबीज संक्रमित श्वान द्वारा पशु को काट लेने पर छः टीके 0, 3, 7, 14, 28, 90 दिन पर लगवा इस विषाणुजनित रोग से बचा जा सकता है।
थीलेरिओसिस -
यह प्रोटोजोआ जनित रोग है, जो मुख्य रूप से लाल रक्त कोशिका को संक्रमित करता है। गायों में इसके संक्रमण की संभावना सर्वाधिक होती है। सामान्य भाषा में इसे चींचड़ी बुखार भी कहते हैं, क्योंकि यह चींचड़ी (टीक्स) द्वारा एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। इसका टीका तीन माह या ऊपर की आयु के पशु में लगाया जाता है, जो पशु को तीन माह के लिए रोग से प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है।
एंथ्रेक्स -
यह जीवाणुजनित ज़ूनोटिक रोग है। जिसे सामान्य भाषा में गिल्टी रोग, जहरी बुखार के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से गाय, भैंस, बकरी और घोड़ों में होता है। एंडेमिक (स्थानिक) क्षेत्रों में, इस रोग से बचाव के लिए एंथ्रेक्स बीजाणु टीका प्रत्येक वर्ष एक बार पशुओं को खुले चारागाहों में छोड़ने से पहले लगाया जाना चाहिए।
पशुओं में टीकाकरण से पूर्व बरतने वाली सावधानियां -
- टीकाकरण से दो हफ्ते पूर्व पशु को पशुचिकित्सकीय सलाह से कृमिनाशक दवा अवश्य देनी चाहिए।
- बीमार पशु का टीकाकरण ना करवाएं।
- ध्यान रहे टीकाकरण से पूर्व पशु स्वस्थ एवं तनाव रहित होना चाहिए। अतः उसे संतुलित आहार एवं आरामदायक आवास में रखना चाहिए।
- अगर टीका पशुपालक अपने स्तर पर लाता है, तो टीके का संरक्षण उचित तापमान पर अवश्य करना चाहिए ताकि टीका खराब न हो।
- टीकाकरण करवाते समय पशु को अच्छी तरह से काबू कर लेना चाहिए ताकि टीका सही जगह, उचित मात्रा में, उचित मार्ग से पशु को बिना क्षति पहुंचाये लगाया जा सके।
पशुओं में टीकाकरण पश्चात् की सावधनियां -
- टीकाकरण के बाद पशु से ज्यादा काम ना लेवें उसे एक या दो दिन विश्राम देना चाहिए।
- टीकाकरण के बाद पशु को आरामदायक आवास में रखें, अधिक धुप एवं अधिक ठण्ड से बचाव करें।
- टीकाकरण के बाद पशु को संतुलित आहार देना चाहिए तथा आवश्यक मात्रा में खनिज मिश्रण अवश्य देवें।
- टीकाकरण के बाद कई पशुओं को बुखार आ जाता है ऐसी स्थिति में ज्वरनाशक दवा उचित मात्रा में देनी चाहिए।
- टीके के स्थान पर सूजन आने पर वहां बर्फ लगाने से पशु को आराम मिलता है।
अंततः टीकाकरण पशुओं के लिए बहुत ही लाभदायक है, क्योंकि यह पशुओं को स्वस्थ रखते हुए उन्हें विभिन रोगों से लड़ने की ताकत देता है एवं अनमोल पशुधन को असमय मृत्यु से बचाता है। नियमित टीकाकरण पशु के उपचार के खर्च को कम करने के साथ साथ स्वच्छ दूध उत्पादन एवं ज़ूनोटिक बिमारियों की रोकथाम में सहायक है। अतः पशु पालक को बिना संकोच के अपने सभी पशुओं का टीकाकरण करवाकर उनकी स्वस्थता को सुनिश्चित करना चाहिए।
Authors:
डॉ. स्वाति रूहिल1 एवंं डॉ. विकास खीचड़2
1वैज्ञानिक, पशु विज्ञानं केंद्र, लुवास (उचानी), करनाल, हरियाणा
2वेटरनरी सर्जन, राजकीय पशु अस्पताल, कलसौरा, करनाल, हरियाणा
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