Importance of millets in the context of climate change

मोटे अनाज को अंग्रजी में मिलेट कहते है। मोटे अनाज मानव और जानवरों के लिए एक पौष्टिक आहार है। मिलेट को आप कहीं पर भी उगा सकते है। इसे सूखे क्षेत्र, वर्षा क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों या पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। दुनिया भर के लोगों को जलवायु के अनुकूल मोटे अनाज के उत्पादन और खपत के सामान्य फायदों पर घ्यान देना चाहिया क्योंकि इस फसल का उत्पादन बिना किसी परेशानी के होता है और इसके खाने से लोगों को सेहत के मामले में बहुत लाभ होता हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, रागी इत्यादि) का वर्ष घोषित किया है और सभी भागीदारों से कहा हैं कि पोषण और स्वास्थ्य के मामले में मोटे अनाज की खपत से होने वाले फायदों के साथ-साथ खराब और बदलती जलवायु संबंधी परिस्थितियों के तहत उनकी खेती की अनुकूलता के बारे में नीतिगत ध्यान आकर्षण के लिए समर्थन प्रदान करें।

मोटे अनाज को पैदा करने के कई फायदे है: ये न्यूनतम उर्वरक के इस्तेमाल के साथ पानी के लिए बारिश पर निर्भर फसल हैं; कीड़ों के हमले की कम आशंका की वजह से इनमें कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है; मोटे अनाज के बीज का भंडारण कइ्र्र वर्षो के लिए किया जा सकता है जिससे सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए ये लाभदायक है।

अंतराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान के मुताबिक अफ्रीका और एशिया में 9 करोड़ से ज्यादा लोग अपने आहार में मोटे अनाज पर निर्भर करते हैं। वैसे तो दुनिया भर में मोटे अनाज की खपत में 19 प्रतिशत की दर से गिरावट आई है, लेकिन 2022-27 के लिए मोटे अनाज के बाजार को लेकर पूर्वानुमान में आशाजनक रूझान दिख रहे है। मोटे अनाज के उत्पादन के मामले में 41 प्रतिशत के हिस्से के साथ भारत का वर्चस्व है जबकि खपत साल दर साल गिर रही है। दूसरी तरह 40 प्रतिशत खपत के साथ अफ्रीका सबसे बड़ा बाजार बन गया है।

मोटे अनाज बहुउदेशीय होते हैं। चावल के मुकाबले मोटे अनाज 70 प्रतिशत कम पानी की खपत करते है, गेहूं के मुकाबले आधे समय में तैयार होते है, और मोटे अनाज को तैयार करने में 40 प्रतिशत कम ऊर्जा की जरूरत होती है। सतत् खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए ज्यादा पोषण के गुण वाले मोटे अनाज से जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी और सूखे की स्थिति जैसी समस्याओं का समाधान होता ह।

मोटे अनाज में एंटीऑक्सिडेंट प्रयाप्त मात्रा में होती है और ये संभावित स्वास्थ फायदों के साथ प्रोबायोटिक्स की क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है। ये शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में एक भूमिका अदा करते है और बचपन के कुपोषण एवं आयरण की कमी से एनीमिया को रोकने का समाधान हैं। दूसरे अनाज के मुकाबले मोटे अनाज में पोषण के गुण ज्यादा मात्रा में मौजूद है।

सतत् आहार जैव विविधता और परिस्थिति की तंत्र की रक्षा करते हैं क्योंकि इनका पर्यावरण पर कम असर होता है जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा में मदद मिलती है। मोटे अनाज जैसे दानेदार अन्न को शामिल करके फसल उत्पादन में विविधता लाने से खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित हो सकती है। ग्रीन हाउस गैस (जी.एच.जी.) उत्सर्जन में कमी आती है और पोषण से समझौता किए बिना जलवायु अनुकूलता को बढ़ावा मिलता है। भारत में मानसून के दौरान अनाज उत्पादन में परिवर्तन को लेकर एक परिमाणात्मक मूल्यांकन में पता चला कि मोटे अनाज खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय अनुकूलता के लिए एक व्यावहारिक विकल्प है।  

मिलेट खाने के फायदे

आमतौर पर हम सभी के घरों में गेहूं के आटै की रोटियां बनाई जाती हैं। लेकिन कई ऐसे लोग हैं जो बाजरे की रोटी खाना पसंद करते हैं। बाजरे में बहुत सारे स्वास्थ लाभ होते हैं, इसलिए डॉक्टर भी हेल्दी डायट में बाजरे का उपयोग करने की सलाल देते हैं। गेहूं, चावल और बाकी अनाज की तरह ही खेतो में बाजरे को भी उगाया जाता है। कई किसान बाजरा की खेती करते हैं, ऐसे में यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है। बाजरे की खेती राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि कई राज्यों में होते हैं।

मोटे अनाज में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है। इसका सेवन मानव सेहत के लिए लाभकारी होता है। पोषण की द्रष्टि से इसके दाने में अपेक्षाकृत अधिक प्रोटीन (10.5 से 15.5 प्रतिशत) और वसा (4 से 8 प्रतिशत) मिलती है। वही कार्बोहाइड्रेट, खनिज तत्व, कैल्शियम, कैरोटिन राइवोफ्लेयिन (विटामिन बी-2) और नायसिन (विटामिन बी-6) प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। बाजरे में प्रोटीन, कैल्शियम,  फॉस्फोरस और खनिज लवण उपयुक्त मात्रा में एवं हाइड्रोरासायनिक अम्ल सुरक्षित मात्रा में पाया जाता है।   

  • मिलेट शरीर की अम्लता दूर करते है।
  • मिलेट नियासिन (विटामिन बी-3) का अच्छा स्रोत है।
  • मिलेट टाइप-1 और टाइप-2 डायविटीज दूर करतें है।
  • मिलेट फैट (मोटापा) कम करने में सहायता देता है।
  • मिलेट कैंसर रोग से मुक्ति में मदद करतें है।
  • मिलेट अस्थमा रोग दूर करते हैं।
  • मिलेट मेटाबोल्कि सिड्रोम दूर करने में सहायक हैं।
  • मिलेट पाचन तंत्र में सुधार करने में मदद करते है।
  • बालों संबंधित सम्स्याओ को दूर करते हैं।
  • मिलेट किडनी, लीवर और इम्यून सिस्टम को स्वस्थ रखने में मदद करते है।
  • मिलेट शरीर को डिटॉक्सीफाई करते हैं।

जलवायु परिवर्तन से लड़ने में कारगर

जब बात फसल को लेकर किसानों की पसंद की आती है तो आर्थिक कारण महतवपूर्ण है और ये संभवतः चावल और गेहूं की खेती की तरफ ऐतिहासिक बदलाव में भूमिका अदा करते है। लेकिन सरकार के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) तय करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) की वजह से गेहूं और धान के उत्पादन के पक्ष में बात चल जाती है। इन दोनों कारणों की वजह से किसानों को दूसरी फसल जैसे कि दालों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलता है।

गेहूं और धान पानी पर निर्भर फसल हैं। जिसकी वजह से भू-जल स्तर पर और ज्यादा बोझ पड़ता है। भारत और दूसरे देशों में ज्यादातर लोग चावल की खपत को इसलिए प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इसे बनाने में आसानी होती है और ये उनकी आदत में भी शुमार है। लेकिन इस बात पर ध्यान देना होगा कि मोटे अनाज को ज्यादा समय तक उपयोग के लिए नहीं रखा जा सकता है और ये नमी, तापमान और छोटे बाजार पर निर्भर करते है। इसे देखते हुए मोटे अनाज के पोषण गुणां को लेकर और भी ज्यादा जागरूकता अभियान चलाने और लंबे समय तक इसके इ्रस्तेमाल के लिए बेहतर भंडारण सुविधा का निर्मान करने की जरूरत है।

कर्नाटक और ओडिशा जैसे राज्यों ने मोटे अनाज को बढ़ावा देकर और कुपोषण का मुकाबला करने के लिए स्कूलों में दी जाने वाली मिड-डे मील में षामिल करने के साथ-साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस) और आंगनबाड़ी में वितरण के द्वारा एक मिसाल पेश की है। वैसे तो पहले के समय में परंपरागत रूप से मोटे अनाज की खपत होती रही है और इसकी वजह से जरूरी विटामिन और खनिज लोगों को मिले और महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता में कमी आई है लेकिन अब लागत, स्वाद, सोच और उपलब्धता जैसी बाधाओं के कारण मोटे अनाज की खपत में कमी आई है।

मोटे अनाज अपेक्षकृत ज्यादा तापमान में फल-फूल सकते हैं और सीमित पानी की आपूर्ति में भी इनकी उत्पादन होता है। एक समीक्षा से पर्यावरणीय संसाधनों पर, खास तौर पर जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में दबाव में कमी के जरिए मोटे अनाज की खेती के सकारात्मक असर का संकेत मिलता है।

पानी के हिसाब से देखें तो मोटे अनाज को वृद्धि के लिए धान के मुकाबले छह गुना कम पानी की जरूरत होती है। धान के लिए जहाँ औसत 120-140 सेमी बारिश की आवश्यकता हाती है वहीं मोटे अनाज के लिए सिर्फ 20 सेमी बारिश की आवश्यकता हाती है।

कुछ मोटे अनाज को तैयार होने में 45-70 दिन का समय लगता हैं जो कि चावल (120-140 दिन) के मुकाबले आधा हैं। अनाज के सी ग्रुप का होने की बजह से मोटे अनाज ज्यादा मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलते हैं और इस तरह ये जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में योगदान देते हैं। साथ ही मोटे अनाज बेहद गरम तापमान से लेकर सूखे और खारापन को भी बर्दाश्त कर सकते हैं। इस तरह ये जलवायु अनुकूल फसल की श्रेणी में आते है। 

ज्वार:

इसकी गहरी जड़ प्रणाली, मोम पत्तियों, तने में मोर्टार कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण सूखे की स्थिति को सहन कर सकता है। यह शुष्क भूमि की स्थिति में किसी भी अन्य अनाज की फसलों की तुलना में अधिक उपयुक्त है क्योंकि यह अपने विकास के किसी भी स्तर पर उच्च तापमान का सामना कर सकता है।

बाजरा:

खराब रेतीली मिट्टी पर उग सकता है और ज्वार या मक्का की तुलना में नमी का कुशलता से उपयोग करने की क्षमता के कारण शुष्क जलवायु के लिए उपयुक्त है। हालाकि, ज्वार के जैसा यह सूखे या पानी के तनाव की स्थिति का विरोध नहीं कर सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति में यह अपने जीवन चक्र का छोटा कर सकता है। और जल्दी फूलना शुरू कर सकता है। इसे सूखा पलायन तंत्र के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार बाजरा आमतौर पर 200-500 मिमि की सीमा में कम वार्षिक वर्षा वाले सीमांत मिट्टी वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।

रागी:

रागी को पहले मामूली अनाज माना जाता था, लेकिन वर्तमान में इसकी व्यापक अनुकूलन क्षमता इसे अन्य अनाजों के बीच अधिक लोकप्रिय बनाती है। इसमें अनाज के बीच लवणता को सहन करने की सबसे अच्छी क्षमता है।

फॉक्सटेल बाजरा (कंगनी):

इसमें तेजी से पकने की क्रियाविधि और उच्च प्रकाश संश्लेषण दक्षता होती है; इसलिए, यह पकड़ने वाली फसल के रूप में उपयोग करने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। यह केवल एक बुआई पूर्व वर्षा के साथ अच्छी उपज प्रदान कर सकता है।

प्रोसो मिलेट (चेना):

अपेक्षाकृत कम अवधि की आपातकालीन या कम नमी की आवश्यकता वाली जल्दी-सीजन वाली सिंचित फसल है। यह अपेक्षाकृत कम मांग वाली फसल है। प्रोसो बाजरा कई प्रकार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।

बार्नयार्ड मिलेट (सांवा/सनवा):

बार्नयार्ड मिलेट एक प्रकार का बाजरा है जिसे एक छोटा अनाज माना जाता है और इसे भारत, चीन, जापान, पाकिस्तान,अफ्रीका और नेपाल में व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह एक सूखा-सहिष्णु फसल है जिसे सीमांत भूमि में तेजी से परिपक्वता दर के साथ उगाया जा सकता है और इसमें उच्च पोषण गुण होते हैं।

कोदो मिलेट:

कोदो मिलेट को दुनिया का सबसे मोटा अनाज माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सभी छोटे बाजरा मं सबसे अधिक सूखा प्रतिरोध होता है और माना जाता है कि 80-135 दिनों तक चलने वाली बढ़ती अवधि के साथ अच्छी उपज देता है, उथले और गहरी मिट्टी दोनों में अच्छी तरह से बढ़ सकता है।

लिटिल मिलेट (सामा/कुटकी):

यह जल्दी पक जाता है और सूखे और जल भराव दोनों को झेलता है। अनाज चावल के समान होता है। इसकी उच्च फाइबर सामग्री के लिए इसे एक स्वस्थ प्रतिस्थापन बनाती है। बी-विटामिन, कैल्शियम, आयरन, जिंक और पोटेशियम जैसक खनिजों की अच्छाई से भरपूर है।

2021 में भारत में पोषण सुरक्षा के लिए मोटे अनाज को मुख्यधारा में लाने और पूरे वैल्यू चेन को मजबूत करने के लिए एक श्वेत पत्र (विस्तृत रूप रेखा) प्रदान किया गया है। इस श्वेत पत्र में दिक्कतों का समाधान किया गया है, और देश के अलग-अलग राज्यों में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए एक मापनीय मॉडल को दोहराने की बात इसमें कही गई है। अब वक्त है मोटे अनाज की संभावना को बढ़ावा देने का और इसके लिए इसके पोषण के गुणों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि लोगों की खाने-पीने की पसंद में बदलाव हो सके।


Author

सुशान्त सरकार

तकनीकी अधिकारी

ग्रामीण कृषि मौसम सेवा, सबौर

बिहार कृषि कॉलेज, भागलपुर

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