How to grow vegetable seedlings in poly tunnel
भारत की जलवायु की विविधता, घरेलू एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में सब्जियों की बढ़ती मांग, वर्ष भर सब्जी उत्पादन के लिये ठोस आधार प्रदान करती है। इस समय भारत में सब्जियों की खेती 9.20 मिलियन क्षेत्रफल में की जाती है। जिसमें कुल 162.18 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त होता है।
देश में सब्जी की औसत उत्पादकता 17.61 मी.टन प्रति हैक्टेयर है। जिसमें वृध्दि की अपार सम्भावनायें है। यदि किसान उन्नशील प्रजाति अथवा हाइब्रिड का चयन करें समय पर बुआई/रोपाई करें तो सब्जी की वर्तमान औसत उत्पादकता को दो गुना तक बढ़ाया जा सकता है।
देश में व्यावसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है । जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते है । एक अनुमान के अनुसार पौधशाला में सब्जी पौधों की औसतन क्षति 20-25 प्रतिशत होती है लेकिन कई बार यह क्षति 70-80 प्रतिशत तक हो जाती है ।
राजस्थान के विभिन्न सब्जी उत्पादक क्षेत्रों के सर्वेक्षणों से ज्ञात होता है कि अभी भी 60-70 प्रतिषत किसान सब्जियों की पौध खुले वातावरण में उगाते है ।
सब्जियों की पौध खुले वातावरण में उगाने से कई प्रकार की समस्यायें आती है इन समस्याओं में बीज का जमाव कम होना, जमाव उपरान्त पौधों की समुचित विकास में कमी, पौध तैयार होने में अधिक समय का लगना इत्यादि प्रमुख है ।
पॉलीटनल तकनीक क्या हैं
पॉलीटनल तकनीक सब्जी पौध उगाने की सबसे सस्ती, कारगर एवं व्यावहारिक तकनीक है । इस तकनीक से पौध उगाने पर बीज का जमाव समुचित ढंग से होता है । जमाव के उपरान्त पौधों का विकास बेहतर होता है तथा पौधों के कठोरीकरण (हार्डनिंग) में सहायता मिलती है ।
पॉलीटनल तकनीक से पौध उगाकर खेत में रोपाई करने से पौधों की मृत्युदर नहीं के बराबर होती है ।
इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि विपरीत मौसम में (अधिक गर्मी, व ठंड के समय) भी सही पौध सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है , जबकि खुले वातावरण में अधिक ठंड के समय पौध लगाना असम्भव होता है क्योंकि लगातार ठंड एवं गर्मी कारण बीज का जमाव बहुत कम होता है ।
पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन
ये आधा इंच मोटाई के जंगरोधी पाइपों को अर्ध्द गोलाकार आकार में मोड़कर तथा इन्हें सरिया के टुकड़ों के सहारे खेत में खड़ा करके उनके ऊपर प्लास्टिक ढक कर बनाई गई अस्थाई संरक्षित संरचनायें है । इनकी मध्य में उंचाई लगभग 6 या 6.5 फुट तथा जमीन पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक चौड़ाई 4.0 मीटर तक होती है ।
इस प्रकार संरक्षित की संरचनाओं को सर्दी के मौसम में बेमौसम सब्जी जैसे बैंगन, लौकी, खरबूजा, तरबूज, खीरा, चप्पन कद्दू व अन्य कद्दू वर्गीय सब्जियां उगाने के लिए उपयोग में लिया जाता है ।
इस प्रकार की संरक्षित संरचना के दिन के समय जब सूर्य की रोशनी प्लास्टिक पर पड़ती है तो टनल के अन्दर का तापमान काफी (लगभग 10-12 डिग्री से0 तक) बढ़ जाता है जिससे सब्जियों को कम तापमान के दिनों में भी बढ़वार करने में काफी सफलता मिलती है ।
सस्य क्रियायें
नर्सरी के लिए प्राय:90-100 सेमी चौड़ी, 10-15 सेमी ऊँची आवश्यकतानुसार लम्बाई वाली क्यारिया बनाते है । इसमें कंकड़, घास, पुराने पौधे के अवषेषों इत्यादि को निकाल देना चाहिए ।
भूमि की तैयारी के समय 3-4 किग्रा की दर से गोबर की सड़ी खाद या 500 ग्राम केंचुए की खाद तथा 100 ग्राम एनपीके का मिश्रण प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से क्यारियों में मिला देना चाहिए ।
समान व अच्छे अंकुरण के लिए सामान्यत: दो भाग मिट्टी के साथ एक भाग महीन बालू तथा एक भाग गोबर की सड़ी खाद मिलाकर भूमि तैयार करनी चाहिए । प्रत्येक क्यारियों के बीच में 30 सेमी चौड़ी तथा 15-20 सेमी गहरी नालियां भी बनाते है जिससे सिंचाई एवं जल निकास किया जा सके ।
पौधशाला भूमि का उपचार
रासायनिक विधि से भूमि का उपचार करने के लिए कैप्टान नामक फफूंदनाशक सबसे अच्छा होता है इसका 2.5 ग्राम /लीटर पानी में घोल बनाकर भूमि शोधन किया जाता है । प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में 5-6 लीटर पानी में 2.5 ग्राम दवा घोलकर भूमि को अच्छी तरह तर कर देते है और दूसरे-तीसरे दिन बाद बीज की बुआई कर देते है ।
कीटों एवं रोगों की रोकथाम
पौधगलन बीमारी, पीथियम, राइजोक्टोनिया या फ्यूजेरियम से फैलती है । इसके बचाव के लिए कैप्टान दवा का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करते है।
नर्सरी में पत्ती खाने वाले कीड़े लगते हैं इसके लिए क्लोरोपाइरीफास / क्यूनॉलफास 2 मिली / लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करते है यदि पत्ती के रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप हो तो मेटालिस टॉक्स एक मिली /लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए ।
पॉलीटनल तकनीक से लाभ
- पॉलीटनल तकनीक से वर्ष के किसी भी मौसम में चाहे अधिक गर्मी एवं ठंड हो उस समय भी सब्जियों की पौध सफलतापूर्वक तैयार की जा सकती है ।
- इस विधि से पौधे तैयार करने पर बीज का जमाव लगभग शत्-प्रतिषत होता है ं जमाव के बाद पौधों का विकास समुचित ढंग से होता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पॉलीटनल के अन्दर का तापमान बीज के जमाव एवं पौधों के बढवार के लिए आदर्श होता है ।
- पॉलीटनल में पौध उगाने से बीज जमाव के बाद दिन में धूप के समय पॉलीथीन को हटा देते हैं, जिससे पौधों का धूप के सम्पर्क में आने से उनका कठोरीकरण (हार्डनिंग) होता है ऐसे पौधों को खेत में रोपाई करने से उनकी मृत्यु दर नहीं के बराबर होती है ।
- बीज का जमाव शीघ्र होने और पौधों का समुचित बढवार से पौध तेयार करने में समय कम लगता है ।
- पॉलीटनल तकनीक से पौध उगाने पर कीटों व बीमारियों का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होता है ।
Authors:
पी.पी. सिंह एवं दीपक कुमार सरोलिया
केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान
श्री गंगानगर राजमार्ग, बीछवाल, बीकानेर-334006
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