Nematode problem in protected cultivation and their management
भारत में व्यापक एवम विभन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों उपलब्ध है, लेकिन हमारे देश में सब्जियों की खेती की प्रक्रिया आम तौर पर पारंपरिक तकनीक और प्रथाओं के साथ क्षेत्रीय और मौसमी जरूरतों तक सीमित होती है, जिसके परिमाणस्वरूप बाजार आपूर्ति अनुरूप कम पैदावर और असंगत गुणवता और मात्रा का उत्पादन होता है ।
बढ़ती आबादी के कारण सब्जियों की जररूत व मांग में तेजी से बढ़ोतरी हुई है । यही कारण है कि हमारे देश में विविध प्रकार के फल व सब्जियों उगाई जाती है । प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां, सब्जियों, फलों और फूलों की उच्च उत्पादन क्षमता, कृषि इंपुटस की उपलब्धता, छोटी और खंडित भूमि जोत और गुणवता वाली सब्जियों की बढ़ती मांग जैसे कारकों को देख़ते हुए सरंक्षित खेती को अपनाने की आवश्यकता है ।
वर्ष भर में फल एवं सब्जियों उत्पादों कि उपलब्धता और विशेष रूप से ऑफ़ सीजन के दौरान फल व सब्जियों कि खेती उत्पादकों को संरक्षित खेती को अपनाने को मजबूर करती है ।संरक्षित खेती फल एवं सब्जियों उत्पादन कि एक ऐसी तकनीक है जिसमे पौधों के आसपास का सूक्ष्म जलवायु क्षेत्र फसल कि आवश्यकता के अनुसार नियंत्रित किया जाता है ।
पोलीहॉउस में उच्च तापमान, आर्द्रता, उर्वरको ओर पौधों कि वृद्धि प्रवर्तकों जैसे उच्च कृषि आदानों का प्रयोग कर अनुकूल सिथतियों में फसल उत्पादन किया जाता है । लेकिन कई बाधाएँ और समस्याएं है जो सब्जियों की सरंक्षित खेती के सुचारुपन को प्रतिबंधित करती है ।
उच्च कृषि इन्पुटस के प्रयोग व अनुकूल स्थितियों के नतीजन, संरक्षित खेती में सूत्रकृमि (निमेटोड) का प्रकोप गंभीर समस्या बन जाती है और कुछ मामलो में फसल को बर्बाद होते देखा जा सकता है । इस कारण कि पिछले कुछ वर्षो में फल एवं सब्जियों के उत्पादन में लगभग ठहराव सा दिखाई देता है ।
पॉलीहाउस में सूत्रकृमि से प्रभावित फसले
- शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन, टमाटर, खीरा, गुलाब, जरबेरा, लिलियम और स्ट्राबेरी फसले जो प्राय सूत्रकृमि से प्रभावित है ।
- सूत्रकृमि सक्रमण फसल के कवक रोगों कि गभीरता को बढ़ाकर फसल को पूरी तरह नष्ट कर सकते है । जड़ गांठ सूत्रकृमि सक्रमण, सूखा रोग (फ्यूजेरियम) हमले के प्रति पौधों को अत्यधिक संदेवनशील बनता है ।
पॉलीहाउस में सूत्रकृमि कि संख्या बढ़ने के मुख्य कारण
- मिटटी, फसल अवशेष और रोपण सामग्री के माध्यम से सूत्रकृमि का प्रकोप तेजी से फैलना ।
- बार-बार एक ही फसल लेना, फसल चक्र का ना अपनाना ।
- सूत्रकृमि कि समस्या वहा पाई जाती है जहा का वातावरण थोड़ा गर्म रहता है ।
फसल में सूत्रकृमि प्रकोप के लक्षण
अक्सर किसान सूत्रकृमि ग्रस्त लक्षणो कि अनदेखी करते है क्योंकि उन्हे ठीक से पहचाना नही जाता। सूत्रकृमि ग्रस्त पौधों में पोषक तत्वों की कमी जैसे लक्षण दिखाई देते है। मिटटी के निचे सूत्रकृमि की उपस्थिति के लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते जब तक पीड़ित पौधों कि पहचान के लिए उखाड़ कर ध्यान से नहीं देखा जाता ।
- जमीन में नमि के बावजूद भी पौधे दोपहर के साथ मुरझाये हुए दिखाई देते है।
- पौधे बौने कमजोर रह जाते है, पत्ते पीले पड़ जाते है ।
- पैदावार में कमी आ जाती है ।
पॉलीहाउस में सूत्रकृमि ग्रस्त पौधे
सूत्रकृमि प्रकोप का प्रबंधन
आमतौर पर सूत्रकृमि रोग प्रबंधन पर अन्य बीमारियों की तुलना में कम ध्यान दिया जाता है । लेकिन पॉलीहॉउस के तहत फल एवं सब्जियों से अधिक आय के लिए सूत्रकृमि जनित बीमारियों का नियमित रूप से निदान और प्रबंधन बहुत ही आवश्य्क है ।
- पोलीहाउस एवं ग्रीनहाउस बनाने से पहले उस स्थान कि मिटटी कि सूत्रकृमि समस्याओं के लिए जांच अवश्य करवाएं ।
- पॉलीहॉउस एवं ग्रीन हाउस को खरपतवार एवं पिछली फसल के अवशेषो से हमेशा मुक्त रखे ।
- अप्रैल से जुलाई तक पॉलीहॉउस एवं ग्रीन हाउस को खाली रखे ।
- मई - जून के महीनो में 10-15 दिन के अंतराल पर 2-3 गहरी जुताई करे ।
- जून -जुलाई में जमीन को हल्का पानी देकर प्लास्टिक शीट से ढके ।
- स्वस्थ पनीरी का ही प्रयोग करे ।
- नीम की खल (200 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) तथा ट्रिचोडेर्मा विरिडी (50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) फसल की रोपाई से एक सप्ताह पहले मिटटी के ऊपरी भाग में अच्छी तरह मिलाकर हल्का पानी दे ।
- रोपाई के एक महीने बाद दोबारा नीम की खल 50 ग्राम प्रति पौधे की दर से हर पौधे के चारो तरफ मिटटी में अच्छी तरह मिलाये ।
- फंफूद का प्रकोप होने पर मोटी नोज़ल से कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) दवा 2ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पोधो की जड़ो के पास डालें ।
समन्वित सूत्रकृमि प्रबंधन:
सूत्रकृमि समन्वित / एकीकृत प्रबंधन के लिए मिटटी की जाँच, मिटटी संसोधन, नर्सरी उपचार, खरपतवारो से मुक्त, पर्णीय छिड़काव आदि तरीको को अपनाया जाता है । कृषि क्रियाओ, जैविक और रासायनिक पद्धतियों के सामूहिक उपयोग से सूत्रकृमि प्रकोप को काफी कम किया जा सकता है । रसायनो का इस्तेमाल जब जरूरत होती है तभी किया जाना चाहिए ।
Authors
विनोद कुमार, बबीता कुमारी एवं के के वर्मा
सूत्रकृमि विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय, हिसार, 125004
लेखक ई मेलः