Safe Measures of Destructive Organism Management in Organic Farming

Safe Measures of Destructive Organism Management in Organic Farming

जैविक खेती में नाशीजीव प्रबंधन के सुरक्षित उपाय 

कृषि के व्यापारिकरण का हमारे वातावरण पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । कृषि मे नाशीजीवों के प्रबन्धन हेतु उपयोग किए जाने वाले रसायन हमारे वातावरण, मिट्टी, पानी, हवा, जानवरों, यहाँ तक की हमारे शरीर में भी एकत्रित होते जा रहे है ।

रासायनिक उर्वरकों का कृषि उत्पादकता पर क्षणिक प्रभाव पड़ता है जबकि हमारे पर्यावरण पर अधिक समय तक नकारात्मक प्रभाव बना रहता है जहाँ वे रीसाव एवं बहाव के द्वारा भूमिगत जल तथा अन्य जल संरचनों को प्रदूषित करते हैं ।

ये सभी प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के साथ ही साथ पर्यावरणीय सन्तुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है । उपरोक्त समस्याओं की रोकथाम के लिए विशेषकर सब्जी उत्पादन में जैविक नाशीजीव प्रबन्धन पर विवरण प्रस्तुत है ।

 सब्जी उत्पादन में जैविक नाशीजीव प्रबन्धन

सामान्य सिद्धान्त

जैविक कृषि प्रणाली में नशीजीवों जैसे: कीट व्याधि एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति को कम से कम रखना सुनिश्चित किया जाना चाहिए । जिसके लिए संतुलित पोशाक तत्व प्रबन्धन, वातावरण के अनुरूप फसलों की उन्नतशील प्रजाति, उच्च जैविक सक्रियता युक्त उर्वर मृदा, अंगीकृत फसल चक्र, सह:फसल, हरी खाद इत्यादि विंदुओं पर विशेष ध्यान आकर्षित करने की आवस्यकता है । साथ ही साथ फसल की वृद्धि एवं विकास प्राकृत के अनुरूप होनी चाहिए ।

नशीजीवों की रोकथाम

संस्तुतियाँ

  1. नशीजीवों की रोकथाम के लिए ऐसी पारम्परिक तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए जो इनके वृद्धि एवं विकास को संकुचित करे जैसे : उपयुक्त फसल चक्र, हरी खाद, संतुलित पोशाक तत्व प्रबन्धन, बीज शैया की अग्रीम – सह – समुचित तैयारी, पलवार, यान्त्रिक प्रबन्धन, भौतिक प्रबन्धन, स्थानीय नशीजीव प्रतिरोधक फसल प्रजाति एवं नशीजीवों के विकास चक्र की वाधाएँ इत्यादि ।
  2. नाशीजीवों के प्रकृतिक शत्रुओं की सुरक्षा की जानी चाहिए साथ ही साथ उनके वृद्धि एवं विकास के लिए समुचित वातावरण प्रबन्धन भी आवस्यक रूप से किया जाना चाहिए ।
  3. नाशीजीवों के पर्यावरणीय आवस्यकता की समझ एवं इसमे बाधा उत्पन्न करते हुये, नाशीजीव प्रबन्धन की क्रियाविधि को संचालित किया जाना चाहिए ।
  4. पर्यावरणीय नाशीजीव – परभक्षी चक्र को संतुलित रखते हुये पर्यावरणीय सन्तुलन बनाए रखना चाहिए ।

मानक

  1. प्रक्षेत्र के स्थानीय पौधों, जन्तुओं एवं सूक्ष्मजीवों के उत्पादों का उपयोग ही नाशीजीव प्रबन्धन में किया जाना चाहिए ।
  2. ब्रांडेड उत्पादों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिये ।
  3. नाशीजीव प्रबन्धन की भौतिक एवं यान्त्रिक विधियों का उपयोग किया जाना चिहिए ।
  4. नाशीजीवों के तापीय निजर्मीकरण को रोका जाना चाहिए ।
  5. पारम्परिक कृषि प्रणाली में उपयोग किए जाने वाले सभी यन्त्रों की, जैविक कृषि क्षेत्र में उपयोग करने से पहले अच्छी प्रकार साफ सफाई कर लेनी चाहिए ।
  6. रसायनों कीटनाशी, कवकनाशी, शाकनाशी इत्यादि, वृद्धि नियन्त्रक, आनुवांष्कीय अभियांत्रिक जोवों (जी.एम.ओ.) का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए ।

भारत सरकार द्वारा पंजीकृत पौध रक्षा रसायन
Light TrapPheromone trapYellow Sticky trap

एन्टागोनेस्टिक जैव फार्मूलेशन

जीवाणु

  1. बैसिलस जीवाणु आधारित बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी इजराएलेन्सिस स्ट्रेन – 164 (सेरोटाइप एच 14 डब्लू पी)
  2. बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी कुर्सटाकी स्ट्रेन 97 (सेरोटाइप एच – 3 ए 35 डब्लू पी)
  3. बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी इजराएलेन्सिस स्ट्रेन वीसीआरसी ई – 17 (सेरोटाइप एच 14 स्लो रिलीज ग्रेन्युल्स)
  4. बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी इजराएलेन्सिस स्ट्रेन वीसीआरसी बी – 17 डब्लू एस (सेरोटाइप एच 14 डब्लू पी)
  5. बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी इजराएलेन्सिस डब्लू एस
  6. बैसिलस थुरिनजियेन्सिस वैराइटी इजराएलेन्सिस (सेरोटाइप एच 14, 12 ए एस)
  7. स्यूडोमोनास जीवाणु आधारित स्यूडोमोनास फ्ल्यूरेसेन्स 1.25 प्रतिशत डब्लू पी

फफूँद जनित फफूँदनाशी

  1. ट्राइकोडर्मा फफूँद आधारित ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0 प्रतिशत डब्लू पी
  2. ट्राइकोडर्मा विरिडी 0.5 प्रतिशत डब्लू एस
  3. ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 0.5 प्रतिशत डब्लू एस
  4. ट्राइकोडर्मा 1.15 प्रतिशत डब्लू पी

फफूँद जनित कीटनाशी

  1. व्यूवेरिया बैसियाना घुलनशील चूर्ण
  2. मेटारीजियम ऐनिसोप्ली 1.15 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण
  3. वर्टिसिलियम लेकैनी 1.15 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण

विषाणु जनित कीटनाशी

  1. हेलीकोवर्पा आर्मिजेरा का न्यूक्लीयर पालीहेड्रासिस विषाणु 0.43 प्रतिशत ए एस
  2. स्पोडोप्टेरा लिटुरा का न्यूक्लीयर पालीहेड्रासिस विषाणु 0.50 प्रतिशत ए एस

वानस्पतिक जैवनाशी

  • एजाडिरैक्टिन 0.03 प्रतिशत ई सी
  • एजाडिरैक्टिन 0.15 प्रतिशत ई सी
  • एजाडिरैक्टिन 0.5 प्रतिशत ई सी
  • एजाडिरैक्टिन 1.0 प्रतिशत ई सी
  • एजाडिरैक्टिन 5.0 प्रतिशत ई सी
  • एजाडिरैक्टिन 25 प्रतिशत ई सी
  • सिम्बोपोगन 20 प्रतिशत ई सी
  • पाइरेथ्रम 0.05 प्रतिशत एच एच
  • पाइरेथ्रम 2.0 प्रतिशत एच एच
  • पाइरेथ्रम 0.2 प्रतिशत एच एच
  • पाइरेथ्रम 10 प्रतिशत एच एच     

 

 


Authors

डॉ. चंचल सिंह

कृषि विज्ञान केन्द्र, कुरारा, हमीरपुर – 210505 (उत्तर प्र्स्देश), भारत

प्रसार निदेशालय

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बांदा

Email: chanchalsingh9@gmail.com

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