गेहूँ एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है जिसका स्थान भारत मे चावल के बाद आता है। तथा 2021 के दौरान 31.61 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 109.52 मिलियन टन उत्पादन हुआ यह रबी मौसम की फसल है। गेहूँ की खेती भारत के विभिन्न राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, और कर्नाटक आदि में की जाती है।

गुणवत्ता युक्त बीज की उपलब्धता किसी भी फसल / किस्म की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। अच्छी फसल उत्पादन लेने के लिए अच्छे बीज का होना सबसे महत्वपूर्ण है। जो कि अन्य कृषि आदानों जैसे मृदा, उर्वरक, लेबर एवं सिंचाई की क्षमता अच्छे बीज की गुणवता पर निर्भर करता है। खेत मे समान रूप से वृद्धि एवं पैदावार लेने के लिए किसानों द्वारा उन्नत प्रजातियों के बीजों को उपयोग मे लाना अति आवश्यक है।

भारतवर्ष में बीज की कुल पाँच अलग अलग श्रेणीया हैं जिनमे  नाभकीय, प्रजनक, आधारीय, प्रमाणित और लेबल बीज (टीएल बीज)। भारत में गेहूँ के उत्पादकता की दृष्टी से पंजाब व हरियाणा का प्रथम तथा क्षेत्रफल की दृष्टी से उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान आता है। जब से किसानों उन्नतशील किस्मो का उपयोग करना शुरू किया है। तब से उत्पादन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है।

देश में गेहूँ के उत्पादन में वर्ष दर वर्ष वृद्धि दर्ज की गई है इस प्रगति का मुख्य कारण उन्नतशील प्रजातियाँ एवं बीज है। बीज का वर्णन मनुस्मृति में (“सुबीजम सुक्षेत्रे जायते सम्पदयते”) मिलता है जिसका अर्थ है कि उत्तम बीज को उर्वर भूमि में बोने से अधिक उपज की प्राप्ति होती है।

गुणवत्तायुक्त बीजों का गुण एवं महत्व:-

गुणवत्तायुक्त बीजोंत्पादन के लिए आवश्यक है कि बीज उन्नतशील प्रजाति का हो, भौतिक शुद्धता, आनुवंशिक शुद्धता, अंकुरण क्षमता किस्म के अनुसार निर्धारित व अनुरूप होना चाहिये। बीज स्वस्थ्य हो, बीज जनित रोगों से मुक्त हो, बीज का रंग, रूप एवं आकार में सामान हो तथा गुणवत्तायुक्त बीज के प्रयोग से उचित अंकुरण प्रतिशत, कीट एवं रोगों से मुक्त के साथ अन्य जैविक तथा अजैविक वातावरणीय करको के प्रति सहनशीलता में वृद्धि के साथ अधिक उत्पादकता की जा सकती है।     

गेहूँ के गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन के लिये निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दे

किस्म का चयन:-

कृषि जलवायु एवं भूमि की परिस्थिति व दशा के अनुरूप किसानों को निम्नलिखित उन्नतशील किस्मों का चयन करना चाहिए। किसान आवश्यकतानुसार नेशनल सीड कार्पोरेशन, स्टेट सीड कार्पोरेशन एवं कृषि विभाग जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान, राज्य कृषि विश्वविद्यालय आदि से गुणवतायुक्त बीजों को खरीद सकते है।

अनुशंसित क्षेत्र        

अगेती एवं समय से बुआई

पछेती बुआई

प्रतिबंधित सिंचाई

उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

डीबीडब्ल्यू-187(करण वंदना)

डीबीडब्ल्यू-327(करण शिवानी)

डीबीडब्ल्यू-332(करणआदित्य)

डीबीडब्ल्यू-303(करण वैष्णवी)

डीबीडब्ल्यू-222(करण नरेंद्र)

एचडी-3226, पीबीडब्ल्यू-723

एचडी-3117, जेडब्ल्यू-584

पीबीडब्ल्यू-761

डीबीडब्ल्यू-173

डब्ल्यूएच-1124

पीबीडब्ल्यू-771

पीबीडब्ल्यू-752

एचडी-3059

जेकेडब्ल्यू-261

पीबीडब्ल्यू-658

डीबीडब्ल्यू-296

एचयूडब्ल्यू-838

एचआई-1628

एचडी-3237

एचआई-1620

एनआईएडब्ल्यू-3170

 

उत्तरी पूर्वी मैदानी क्षेत्र

डीबीडब्ल्यू-187(करण वंदना)

डीबीडब्ल्यू-222(करण नरेंद्र)

डीबीडब्ल्यू-303(करण वैष्णवी)

एचडी-3086, एचडी-3249

एचडी-2967

डब्ल्यूबी-2(बिहार)

डीबीडब्ल्यू-316

एचडी-3118

डीबीडब्ल्यू-107

अतिपछेती-

एचआई-1621 एचडी-3271

डीबीडब्ल्यू-252(करणश्रेया)

एचआई-1612

एचडी-3293

मध्य क्षेत्र

डीबीडब्ल्यू-187(करण वंदना)

एमपी-3382, जीडब्ल्यू-451

एचडी-4728, एचआई-8759

सीजी-1015

राज-4238

एमपी-3336

डीबीडब्ल्यू-110

डीडीडब्ल्यू-47(कठिया)

यूऐएस-466

प्रायद्वीपीय क्षेत्र

डीबीडब्ल्यू-168

एचआई-1633

सीजी-1029

डीडीडब्ल्यू-48(कठिया)

ऐकेऐडब्ल्यू-4210-6

एचडी-3090

 

डीबीडब्ल्यू-93

एनआईऐडब्ल्यू-3170

यूऐएस- 375

एचडी-2987

भूमि का चयन:-

गेहूँ के अच्छे गुणवत्ता वाले बीज के उत्पादन के लिए मृदा उपजाऊ व समतल होनी चाहिए और खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था चाहिए। तथा खेतों में पिछले वर्ष के फसलों के अवांछनीय पौधे ना हो, यह बीज उत्पादन को किसी अन्य प्रजातियों के बीजों के मिश्रण से बचाता है।

खेत की तैयारी:-

जिस खेत में बीज उत्पादन करना हो खेत को 2 से 3 जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल व लेबल कर लेना चाहिए ताकि खेत मे सिंचाई का पानी समान रूप से पहुंच सके और खेत में जल निकासी का उचित व सरल प्रबंध होना चाहिए।

बीज उपचार:-

बीज उत्पादन में बीज उपचार आवश्यक है बीजजनित रोगों से बचाव के लिये कवकनाशीओं (कार्बोक्सिन @1.25 किलोग्राम/हेक्टेयर) द्वारा या टैबुकोनाजोल @1.0 ग्राम/किलोग्राम बीज द्वारा करें। 

बीज दर:-

गेहूँ के गुणवत्तायुक्त बीज उत्पादन के लिये हमेशा कतारों में बुवाई करनी चाहिये व कतारों मे बुआई के लिए 40 किलोग्राम/एकड मात्रा उपयुक्त होती है।    

बुआई का समय एवं विधियां:-

गेहूँ की बुआई करने का अच्छा समय 05-25 नवम्बर के बीच होता है बुआई से पहले व बाद में उपयोगी यंत्रो जैसे सीड ड्रिल की बीज कप व बीजनाली की अच्छी तरह सफाई करें तथा सीड ड्रिल द्वारा सीधी लाइनों में बुआई करना चाहिए।

पृथक्करण दूरी:-

गेहूँ एक स्वपरागित फसल है, किसी भी किस्म के मिश्रण से बचाने के लिए फसल का अन्तराल 3 मीटर तक होना चाहिए। अगर खेत अनावृत कण्ड बीमारी से संक्रमित है, तो पृथक्करण दूरी 150 मीटर रखनी चाहिए।

 बीज उत्पादन वाले खेत से अवांछित पौधो को निकालना (रोगिंग):-

बीज उत्पादन में रोगिंग एक महत्वपूर्ण क्रिया है। रोगिंग के द्वारा बीज की अनुवांशिक शुद्धता, भौतिकी शुद्धता और रोग रहित क्षमता को बनाये रखा जाता है। रोगिंग से दूसरे पौधे और अन्य किस्म के पौधों को चिन्हित किया जा सकता है।

हमें गेहूँ के बीज उत्पादन वाले खेत की रोगिंग के समय अन्य फसलों मे भी पौधे जैसे अन्य किस्म के गेहूँ-जई और खरपतवारों को रोगिंग करके खेत से निकाल देना चाहिए। फसल की विभिन्न अवस्थाओं पर 2-3 बार अंवाछनीय पौधे निकालना चाहिए। रोग जनित पौधे और अन्य पौधौं को सावधानीपूर्वक निकालकर जमीन दबा दें या फिर नष्ट कर देना चाहिए।

चित्र - अवांछित पौधो को निकालते हुये

पोषक तत्व की मात्रा एवं प्रबंधन:-

गेहूँ के गुणवत्तायुक्त व उन्नत बीज उत्पादन के लिए समय पर की गई बुवाई अच्छी मानी जाता है। समय से बुवाई के लिए निम्नलिखित उर्वरक की मात्रा उचित पोषण प्रबंधन के लिए आवश्यक है।

अवस्था

नाइट्रोजन

फास्फोरस

पोटाश

सिंचित, समय से बुआई

60 कि.ग्रा./एकड़

24 कि.ग्रा./एकड़

16 कि.ग्रा./एकड़

सिंचाई:-

गेहूँ मे सामान्यत: 5 से 6 सिंचाईयों की सिफारिश की जाती है। प्रथम सिंचाई बुवाई के  21-25 दिनों के बाद व हल्की करनी चाहिए। तथा आवश्यकता व खेत की नमी के आनुसार 15-20 दिनों के अंतराल पर करते रहें।

खरपतवार नियन्त्रण:- 

गेहूँ का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि खेत में अन्य फसलों एवं खरपतवार के पौधे न हों। पहली गुड़ाई, बुवाई के 20-25 दिन के पश्चात वीडर द्वारा कर लेनी चाहिए इसके बाद दूसरी व तीसरी गुड़ाई 10 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। वीडर न चलने की स्थिति में कुदाल या रैक से भी खरपतवार निकाले जा सकते हैं। निकाले गये खरपतवार को मिट्टी में दबा देना चाहिए।

फसल में खरपतवारनाशी रसायनों जैसे- संकरी पत्ती के लिए क्लोडिनाफाप 160 ग्राम/एकड़ या फिनोक्साडेन 400मि.ली./एक, व चौडी पत्ती के लिए मैटसल्फ्यूरान 8ग्राम/एकड़ व 2,4 डी 500मि.ली. /एकड़ तथा संकरीपत्ती व चौडी पत्ती के लिए  पेंडीमिथालिन 1250-1500 मि.ली/एकड़ (अंकुरण पूर्व-बुवाई के तीन दिन के अंदर) का प्रयोग करना चहिये।

रोग एवं कीट नियंत्रण:-

फसल मे यदि पीला एवं भूरा रतुआ, करनाल बंट या चूर्णील फफूंदी रोग के लक्षण दिखाई देते हैं तो इसके नियंत्रण हेतू प्रोपिकोनजोल नामक दवा की 0.1% (1.0 मिली/लीटर) मात्रा का 15 दिनों के अंतराल पर का दो बार छिडकावकरना चाहिए। माहू या चेपा नमक कीट के नियंत्रणके लिए इमिडाकलोपरिड 17.8एसएल की 40 मी॰ली॰/एकड़ मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।

बीज फसल निरिक्षण:-

बीज फसल में कम से कम दो निरिक्षण किया जाता हैं पहला निरिक्षण फसल में 5 प्रतिशत से अधिक फूल निकलने पर तथा दूसरा निरिक्षण फसल कटाई से पहले करना चाहिए।

कटाई एवं गहाई:-

सभी यंत्रो को अच्छी तरह से साफ करे ठीक समय पर बीज पूर्ण परिपक्व होने व उचित बीज नमी पर ही फसल कटाई करें जिससे बीजों को कम से कम हानि हो कम्बाईन हार्वेस्टर, ट्राली, थ्रेसर, थ्रेसिंग फर्श, आदि उपकरणों को अच्छी तरह से साफ कर लें। अवांछित नमी से मुक्त करने के लिए धूप व कृत्रिम सुखाई द्वारा बीज को सुरक्षित नमी के स्तर तक सुखाना चाहिए।

चित्र – बीज फसल की कटाई कम्बाईन हार्वेस्टर व हाथ द्वारा

बीज प्रसंस्करण –

बीज प्रसंस्करण में उपयोग होने वाली सभी उपकरणों को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए 10-12% तक प्रसंस्करण के उपरान्त बीज फसल से अशुद्धियां (छोटे व कटे दाने, कंकड़ पत्थर आदि) निकल जाती है।

चित्र – बीज प्रसंस्करण यंत्र

बीज भण्डारण –

सुरक्षित बीज भण्डारण के लिए उचित नमी 10 से 12 प्रतिशत से अधिक नही होनी चाहिए तथा धूमन के लिये एल्युमिनियम फास्फाइड @3ग्राम/टन बीज के हिसाब से प्रयोग करे। अलग-अलग किस्मों का भण्डारण अलग-अलग भंडार गृह में करना चाहिए।

चित्र – बीज भण्डारण कक्ष


Authors

धर्मेन्द्र यादव1, *उमेश कांम्बले1, चन्द्र नाथ मिश्र1, दिग्विजय सिंह2, चंद्रमणी वाघमारे3 एवं अमित कुमार शर्मा1

1भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवँ जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल-132001 (हरियाणा)

2आचार्य नरेंद्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,कुमारगंज, अयोध्या, 224229 (उत्तर प्रदेश)

3भाकृअनुप- भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली-11012

*पत्राचार लेखक:   This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.