Quality Seed Production Technology of Wheat
भारत वर्ष की खाद्यान्न फ़सलों में गेहूँ एक महत्वपूर्ण रबी फ़सल है । यह विश्व मे ऊगाये जाने वाली फ़सलों मे मक्का के बाद दूसरा स्थान रखता है। भारत, चीन के बाद विश्व में गेहूँ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत मे गेहूँ की खेती पारम्परिक रुप से उत्तरीय भाग मे की जाती है।
पंजाब, उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा गेहूँ की खेती मे अग्रणीय है। सम्पूर्ण खाद्यान उत्पादन मे गेह्ँ की 35.5 % भागीदारी है, जब कि कुल खेती योग्य क्षेत्र का 21.3 % भाग गेहूँ कि खेती मेउपयोग होता है।
उन्नत एवं गुणी बीजों ने,प्राचीन काल से ही कृषि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । आधुनिक कृषि के क्षेत्र में भी उन्नत एवं गुणी बीज एक आवश्यक इनपुट है , जोकि किसी किस्म /प्रजाति की पूरी क्षमता का उपयोग करने में मदद करते हैं।
प्रायः भारत में किसान अगले साल की बुवाई के लिए वर्तमान फ़सल से ही अच्छे बीजों का चयन कर के उन्हे सन्चित करते है, जो आगे चलकर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती। इसीलिए किसानों की बीज आपूर्ति अच्छी गुणवत्ता वाले बीज से होना कृषि की दृष्टि से आवश्यक है ।
अच्छी गुणवत्ता के बीज का उत्पादन करने के लिए उचित पदॄति का पालन करना चाहिए। अतः किसानों को पहुचने वाला बीज न केवल उच्च आनुवंशिक शुद्धता का होना चाहिये बल्कि उच्च भौतिक, शारीरिक और स्वास्थ्य की गुणवत्ता मे भी खरा उतरना चाहिए।
जलवायु:
गेहूँ समुद्र के स्तर से लेकर 3500 मीटर कि ऊंचाई एवं उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मे 60˚ उत्तरीय अक्षांश से लेकर 60˚ दक्षिणीय अक्षांशों के बीच की एक विस्तृत श्रृंखला मे उगाया जाता है। वर्धीय अवधि (वेजीटेटिवस्टेज) के लिए शांत एवं नम मौसम तथा बीज बनने के दौरान गर्म और शुष्क मौसम की स्थिति आदर्श होती है।
अंकुरण के लिए अधिकतम तापमान २०-२२ डिग्री सेल्सियस के बीच और वर्धीय अवधि के लिये १६-२२ डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल है। बीज के विकास की अवधि के दौरान गेहूँ को कम से कम ४-५ सप्ताह के लिए अधिकतम २५ डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है।
भूमि चयन एवं उसकी तैयारी:
उचित भूमि का चयन बीज उत्पादन के लिए बहुत जरूरी है। गेहूँ के गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिये जो अच्छी तरह से सूख़ी, स्वच्छ, सपाट एवं उपजाऊ हो, और उस ने पिछ्ले फ़सल चक्र को पूरा किया हो।
स्वेच्छा जनित पौधे (वोलेन्टीयर प्लान्ट) हानिकारक खरपतवार और मिट्टी जनित रोगों के संक्रमण से बचने के लिए खेतकी पिछली फसल के इतिहास कि जानकारी अति- आवश्यक है। मृदा न तो ज्यादा अम्लीय हो ना ही ज्यादा क्षारीय हो। स्वाइल टर्निंग प्लाऊ कि सहायता से खेत की पहली जूताई गहरी होनी चाहिये।
दूसरी हल्की जूताई बुवाई के पहले की सिंचाई के वक्त करनी चाहिय। कीट की रोकथाम के लिए जूताई के समय बी०एच०सी० का उपयोग लाभप्रद होता है।
बीज स्त्रोत :
गुणीय बीज उत्पादन के लिये मातृ बीज (न्यूकलियस, आधार बीज सत्यापित बीज) सदैव सत्यापित एजेन्सी से ही लेना चाहिये।
किस्म/ प्रजातियों का चयन:
विशिष्ट जलवायु एवं पर्यावरण के लिये अनुकूल, आधुनिक तथा जिन किस्मो कि मांग बाज़ार मे ज्यादा है उनके बीज का उत्पादन कर ना किसानो के लिये लाभकारी है।
समय पर बुआई के लिये (12 नवम्बर से 15 दिसम्बर) |
विलम्ब से बुआई के लिये (15 दिसम्बर से 25 दिसम्बर ) |
अत्यधिक विलम्ब से बुआई के लिये (25 दिसम्बर से 10 जनवरी) |
प्रभेद या प्रजाति | प्रभेद या प्रजाति | प्रभेद या प्रजाति |
एच०डी० 2733 | एच०यू०डब्लू० 234 | एच०डी० 2285 |
एच०डी० 2824 | एच०पी० 1744 | एच०डी० 2307 |
एच०यू०डब्लू० 468 | एच०डी० 2824 | एच०डी० 2402 |
एच०पी० 1731 | एच०डी० 2643 | |
के० 307 | एच०डब्लू० 2045 |
गेहूँ बीज दर:
गेहूँ बीज उत्पादन के लिए इष्टतम बीज दर, स्थान, रोपण और रोपण की विधि के समय के साथ बदलता रहता है। परन्तु 100 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर बीज दर इष्टतम है।
बुवाई की तकनीक :
सीड ड्रिल से पन्क्ति मे बुवाई करना एक अच्छा विकलप है। हालांकि पंक्ति रोपण में कम बीज की आवश्यकता, यंत्रीकृत खरपतवार नियंत्रण, आसान निरीक्षण और अन्य प्रकार के पोधौ के उखाड़ने की सुविधा , सीधे बीज प्रसारण विधि से ज्यादा लाभप्रद है।
बीज रोपण के लिये 5से०मी० की गहराई होनी चाहिये। पन्क्तियो के बीच की दूरी 20 से 22.5 से०मी० होनी चाहिय जो रोगिंग के लिये पर्याप्त जगह प्रदान करती है। उपयोग करने से पूर्व सीड ड्रिल को अच्छी तरह से साफ़ कर लेना चाहिये।
बीज मिश्रण को बचाने के लिये बुवाई के वक्त एक बार मे एक ही किस्म के बीज का उपयोग करना चाहिये।
अवस्था | बीज दर (कि० ग्रा० / हे०) | कतारो की दूरी (से० मी०) |
समय पर बुआई के लिये | 100-125 | 22.5 |
विलम्ब से बुआई के लिये | 125-150 | 15-18 |
अत्यधिक विलम्ब से बुआई के लिये | 150 | 15 |
उर्वरक प्रबंधन:
बुवाई पूर्व खेत के मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर ही गेहूँ में उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा कुशल बीज उत्पादन के लिए आवश्यक है , क्योंकि इसका प्रभाव बीज विकास एवं बीज की गुणवत्ता पर पड़ताहै। औसतन 150 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा0 पोटेशियम एक हेक्टेयर के लिए उप्युक्त है।
मिट्टी में जिंक कि कमी होने पर बुवाई के समय 15-20 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर जिन्क सल्फ़ेट का उपयोग करना लाभप्रद है। पोटाश एवं फ़ॉस्फ़ोरस उर्वरक की कुल तथ नाइट्रोजन कि आधी मात्रा को बुवाई के समयया पहले मिट्टी मे मिलना चाहिये। बाकी बची हुई नाइट्रोजन कि मात्रा को सिंचाई के समय उपयोग करना चाहिये।
सिंचाई प्रबंधन:
गेहूँ की फसल को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 40 सेमी (400 मिमी) पानी की आवश्यकता होती है। गेहूं की फसल मे जब उपलब्ध मिट्टी की नमी, क्षेत्र क्षमता कि 50-60 फीसदी से नीचे गिर जाये तब सिंचाई करनी चाहिये।
सामान्य तौर पर किस्म , वर्षा, मिट्टी के प्रकार, जुताई प्रथाओं और पानी के उपयोग के आधार पर 4-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। गेहूँ मे सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता के आधार पर उसके क्रन्तिक चरणों पर सिंचाई करना महत्व पूर्ण है।
पहली सिंचाई | क्राउन रुट या ताजमूल अवस्था पर | बुवाई 20-25 के दिन बाद् |
दूसरी सिंचाई | कल्ले निकलते समय | बुवाई 40-45 के दिन बाद् |
तिसरी सिंचाई | दीर्घ सन्धि या गांठे बनते समय | बुवाई 60-65 के दिन बाद् |
चौथी सिंचाई | पुष्पावस्था | बुवाई 80-85 के दिन बाद् |
पाँचवी सिंचाई | दुग्धावस्था | बुवाई 100-105 के दिन बाद् |
छठीसिंचाई | दाना भरते समय | बुवाई 115-120 के दिन बाद् |
पृथक्कण या अलगाव की विधि:
गेहूँ के बीज क्षेत्र का संक्रमण (जेनेटिक, फिजीकल और रोग) के सभी स्रोतों से अलग किया जाना, बीज उत्पादन की बुनियादी बातों में से एक है। विभिन्न प्रकार के संक्रमण से न्यूनतम दूरी नीचे संक्षेप में तलिका द्वारा प्रदर्शित है।
संक्रमित स्त्रोत् | न्यूनतम दूरी (मी0) | |
आधार बीज | सत्यापित बीज | |
अन्य लगाई हुई किस्मों का क्षेत्र | 3 | 3 |
ऐसी यथायुक्त बीज़ किस्म का क्षेत्र जो कि बीज प्रमाणिकता के लिये शुदॄता का पालन न करता हो | 3 | 3 |
गेहूँ, त्रिटिकेल एवं राई का बीज क्षेत्र जो लूज स्मट बिमारी से संक्रमित हो | 150 | 150 |
गेहूँ बीज उत्पादन के लिये बीज क्षेत्र कि विशिष्ठ स्थिति:
कारक | अधिकतम अनुमति (%) | |
आधार बीज | सत्यापित बीज | |
अन्य किस्म | 0.05 | 0.02 |
अलग न किये जा सकने वाले अन्य फ़सलों के बीजों का मिश्रण | 0.01 | 0.05 |
पौधे , जो लूज स्मट बिमारी से संक्रमित हो | 0.10 | 0.50 |
फसल प्रबंधन:
फसल प्रबंधन इष्टतम और अनाज फसल के समान ही होना चाहिए। परन्तु कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिये वस्तुत्ः
- उत्पादन कारक को बढ़ाने के लिए कम बीज दर का प्रयोग करें
- फ़सल समस्या निवारणऔरनिरीक्षण की सुविधा के लिए पंक्ति मे उचित दूरी बनाये रखें
- प्रजातियों और किस्मों कि शुदॄता को बनाए रखें
- बीज प्रेषित रोगों को नियंत्रित करना।
क्षेत्र निरीक्षण:
प्रजातीय पहचान के लिये बालियो के निकलने के बाद का सबसे उप्युक्त है जब बीज बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी हो। साधरणतयः २ से ३ बार क्षेत्र का निरीक्षण किया जाता है जो कि गुणवत्त बीज पैदा करने के लिये पर्याप्त है।
निरीक्षण मे अलगाव क्षेत्र, संक्रमित पौधे, बीज जनित रोगों से ग्रसित पौधे, एक ही किस्म के आनुवंशिक वेरिएंट, गेहूँ की अन्य किस्मों के प्रकार और हानिकारक खरपतवार का गहनता से अध्यन किया जाता है।
पादप संरक्षण:
- बीज उपचार: बुवाई से पहले, बीज को क्राबोनिल 37 % + थीरम 37 % @ २.५ ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज, के साथ उपचारित करना चाहिए।
- करनाल बंट रोग: इसकी रोकथाम के लिए स्वस्थ बीज का ही इस्तेमाल करना चाहिए। बीज को थिरम @ 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज साथ उपचारित करना चाहिए।
- कीट्ट (रस्ट) रोग: जैसे ही पीला रस्ट खेत मे दिखे बीमारी को नियंत्रित करने के लिए तुरन्त प्रोपिकोनाज़ोल 25 ई०सी० @ 1 % याटेबुकोनाज़ोले 250 ई०सी० @ 0.1 % का एक छिड़काव करना चाहिये। किसानों को फसल मे छिड़काव दोपहर में तब करना चाहिये जब मौसम साफ हो (बारिश , कोई कोहरे आदि न हो) । इसके साथ प्रतिरोधी जीनोटाइप को लगाना लाभप्रद है।
- अल्टरनेरिया एवं हेल्मेन्थोस्पोरियम के रोकथाम के लिये खड़ी फ़सल मे ज़िनेब 75% डब्लू०पी० @ 5 किग्रा० या ज़िरम 80% डब्लू०पी०@ 2.0 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे।
- दीमक: दीमक फसल के प्रारंभिक चरण में हमला करते है। बीजोपचार, इस कीट को नियंत्रित करने के लिए अति आवश्यक है। खेत मे जुताई के समय बी०एच०सी० डस्ट का उपयोग करना लाभप्रद है। गेहूँ के १ क्विंटल बीज के लिए 500 मिली लीटर क्लोर पाइरीफॉस 20 ई०सी० ( 5 लीटर पानी में ) बीज उपचार के लिए उप्युक्त है।
- एफिड: एफिड एक अत्यन्त घातक कीट है, येना केवल प्रत्यक्ष रुप से फसल को हानि पहुचाते है, अपितु परोक्ष रुप ( विभिन्न रोगों के वाहक) से भीक्षति करते है।अतः जैसे ही एफिड खेत मे दिखे उसके नियंत्रण के लि एईमिडाक्लोप्रिड @ 4 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के साथ पंक्तियों मे छिड़काव करे।
खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरंत बाद और फसल उगने से पहले खरपतवार नाशी पेंडी मे थालीन जैसे की पेन्डालीन, स्टॉम्पका 1 किग्रा० प्रति 750 मिली लिटर पानी की दर से प्रति हेक्टेयर मे स्प्रे करे।
चौड़े पत्तेदार खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए के लिये 2, 4-डी @ 500 ग्राम प्रति 750 मिली लिटर पानी की दर, मेटसल्फ्यूरॉन @ 4.0 ग्राम याकार्फ़ेन्टराजोन @ 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मे स्प्रे करे।
घास के नियंत्रण के लिए सल्फ़ोसल्फ़ूरॉन (25ग्राम) , क्लोडिनाफ़ॉप (60ग्राम), पिनोजाडेन 40 ग्राम और फ़ेनाग्जोप्रोप 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना लाभप्रद है।
शस्य क्रिया एवं अवांछनीय पौधों का निवारण (रोगिंग):
अवांछनीय पौधों को हटाना बीज उत्पादन का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो रोगिंग कहलाता है। इन अवांछनीय पौधों मे संक्रमित पौधे, बीज जनित रोगों से ग्रसित पौधे, एक ही किस्म के आनुवंशिक वेरिएंट, गेहूँ की अन्य किस्मों के प्रकार और हानिकारक खरपतवार शामिल हैं।
यह अभ्यास बीज के विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक शुदॄता को बनाए रखने के लिए, तथा बीज को बीजजनित रोगों से मुक्त रखने के लिए किया जाता है। 2 से 3 रोगिंग बीज़ फ़सल के प्रमाणिकता के लिये अति आवश्यक है। पहला रोगिंग फ़ूल खिलने के समय तथा दूसरा फ़ूल खिलने के बाद करना चाहिए।
पहले दो रोगिंग बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि केवल कुछ अवांछित पौधे सम्पूर्ण बीज फ़सल को सन्क्रमित करने के लिये पर्याप्त है। तीसरी या अतिंम रोगिंग फ़सल के पकने के समय करनी चहिये।
कटाई एवं मड़ाई
यांत्रिक कटाई बीज उत्पादन क्षेत्रों के आम बात है। फ़सल कटाई के दौरान बीज मे नमी की मात्रा, यांत्रिक क्षति एवं कटाई के उपकरण की सफ़ाई विशेष ध्यान दिये जाने वाले पक्ष है जोकि अन्तिम चरण मे बीज़ की शुदॄता को बिगाड़ सकते है। बीज फ़सल कटने के बाद बीज को पुर्व निश्चित नमी तक सुखाया जाता है।
उपज या पैदावार :
उन्नत सस्य प्रौद्योगिकियां से गेहूँ की फसल से 30-40 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त कर सकते हैं यद्यपि बीज की उपज मौसम, प्रजाति, मृदा के प्रकार और सिंचाई सुविधाओं पर निर्भर करती है।
सफाई, प्रसंस्करण एवं भंडारण:
बीज़ प्रसंस्करण मे अदक्ष बीज़ विभिन्न प्रक्रिया की एक श्रृंखला द्वारा साफ किया जाता है यथा; पूर्व्-सफ़ाई , सुखाई, वायु स्क्रीन द्वारा सफाई, लंबाई द्वारा अलगाव, गुरुत्वाकर्षण द्वारा अलगाव, बीज उपचार एवं बैगिंग। बीज की सफाई के बाद इसे थोक भंडारण के लिए भेज दिया जाता है।
भन्डारण से पूर्व बीज को अच्छी तरह सुखा लेना चहिये। साधारणतः बीज को 12 % नमी से कम तथा 60 % आद्राता की स्तिथि मे संग्रहित करना चहिये।बीज के बैग को कीट एवं चुहो से बचाके रखना चाहिये।
बीज परीक्षण :
बीज के एक निश्चित भाग को नमी %, अन्कुरण %, प्रजातीय पह्चान, स्वास्थ्य की गुणवत्ता आदि के आधार पर आंकलित किया जाता है, जो उस कि गुणवत्ता का द्युतक है।
बीज़ प्रमाणीकरण :
बीज उत्पादन के दौरान बीज की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले समस्त कारको को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित करने की विधि को प्रमाणीकरण कहते है । प्रमाणीकरण संस्थाएँ हर स्तर पर विभिन्न दूषित कारको को बीज क्षेत्र से अलग करने के लिये किसानो को शिक्षित करते है जिससे बीज कि गुणवत्ता यथावत बनी रहे । गुणवत्ता के लिये न्यून्तम मानक
बीज कि प्रमाणिकता के लिये विशिष्ठ मानक (आइ०एम०एस०सी०एस०)
फैक्टर | अधिकतम अनुमति (%) | |
आधार बीज | सत्यापित बीज | |
शुदॄबीज़ (मिनिमम्) | 98 % | 98 % |
निस्क्रीय मैटर (मैक्सिमम) | 2 % | 2 % |
अन्य फ़सल के बीज़ (मैक्सिमम) | 10 /किग्रा | 20 /किग्रा |
खरपतवार के कुल बीज़ (मैक्सिमम) | 10 /किग्रा | 20 /किग्रा |
आपत्ति युक्त खरपतवार के बीज़ (हिरनखुरी एवं गुल्ली डन्डा) (मैक्सिमम) | 2/किग्रा | 5 /किग्रा |
टुन्डू एवं सूत्रककृमि- गाल से संक्रमित बीज़ (मैक्सिमम) | नगण्य | नगण्य |
करनाल बन्ट से संक्रमित बीज़ (मैक्सिमम) | 0.05% (संख्या मे) | 0.25(संख्या मे) |
अन्कुरण (मिनिमम्) | 85 % | 85 % |
नमी (मैक्सिमम) | 12 % | 12 % |
वाष्प रहित पात्र मे नमी | 8 % | 8 % |
किसानो कि गुणीय बीज़ कि आपूर्ति एक निशित समय के अन्दर करना अच्छी फ़सल के उत्पादन के लिय अतिआवश्यक है । अतः उचित तकनीत एवं दृढ़ नियंत्रण, गुणीय बीज़ उत्पादन योजना का पुर्णतयः अधार है ।
Authors:
अर्चना सान्याल,मोनिका ए० जोशी एवं अतुल कुमार
बीज विज्ञान एवं प्रद्धौगिकी विभाग
भा०कॄ०अनु०प० - भारतीय कॄषि अनुसंधान संस्थान
पूसा, नई दिल्ली-110012
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