गन्ना उत्‍पादन की सक्षि‍प्‍त जानकारी

गन्ना उत्‍पादन की सक्षि‍प्‍त जानकारी

Concise information of sugarcane production

गन्ना  एक प्रमुख नकदी फसल है, जिससे चीनी, गुड़ आदि का निर्माण होता हैं। एवं इसका रस पीने के लिए की जाती हैं एक नकदी फसल है हमारा कोई पर्व या उत्सव ऐसा नहीं होता जिस पर हम अपने बंधु-बांधवों और इष्ट-मित्रों का मुंह मीठा नहीं कराते।

मांगलिक अवसरों पर लड्डू, बताशे, गुड़ आदि बांटकर अपनी प्रसन्नता को मिल-बांट लेने की परम्परा तो हमारे देश में लम्बे समय से रही है। सच तो यह है कि मीठे की सबसे अधिक खपत हमारे देश में ही है।

गन्‍ना उत्‍पादन के लि‍ए भूमि एवं उसकी तैयारी:

दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल का निकास अच्छा हो, तथा पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है। ग्रीष्म में मिट्टी पलटने वाले हल से दो बार आड़ी व खड़ी जुताई करें। अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह जुताई कर मिट्टी भुरभुरी कर लें तथा पाटा चलाकर समतल कर लें।

रिजर की सहायता से 3 फुट की दूरी पर नालियां बना लें।परंतु बसंत ऋतु में लगाये जाने वाले (फरवरी-मार्च) गन्ने के लिए नालियों का अंतर 2 फुट रखें। अंतिम बखरनी के  समय भूमि को लिंडेन 2% पूर्ण 10 किलो प्रति एकड़ से उपचारित अवश्य करें।

गन्ने की प्रमुख किस्मों की विशेषताएँ :

किस्म शक्कर (प्रतिशत में) अवधि (माह) उपज (टन/हे.) प्रमुख विशेषताए
शीघ्र पकने वाली जातियां
को.सी.-671 20-22 10-12 90-120 शक्कर के लिए उपयुक्त, जड़ी के लिए उपयुक्त, पपड़ी कीट रोधी।
को.जे.एन. 86-141 22-24 10-12 90-110 जड़ी अच्छी, उत्तम गुड़, शक्कर अधिक, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
को.86-572 20-24 10-12 90-112 अधिक शक्कर, अधिक कल्ले, पाईरिल्ला व अग्र तना छेदक का कम प्रकोप, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
को. 94008 18-20 10-12 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
को.जे.एन.9823 20-20 10-12 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
मध्यम व देर से पकने वाली जातियां
को. 7318 18-20 12-14 120-130 अधिक शक्कर, रोगों का प्रकोप कम, पपड़ी कीटरोधी।
को.जे.एन.86-600 22-23 12-14 110-130 उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, पाईरिल्ला व अग्र तना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।
को.जे.एन.9505 20-22 10-14 100-110 अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
को. 86032 22-24 12-14 110-120 उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, कम गिरना, जडी गन्ने के लिए उपयुक्त, पाईरिल्ला व अग्र तना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।
के. 99004 20-22 12-14 120-140 लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।

गन्‍ना बोने का समय: 

गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है। बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए।

खेत की तैयारी

खेत की गी्रष्मकाल में अपे्रल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके पश्चात  2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटाचलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर लें एवं रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 से.मी. गहरी कूड़े बनाये।

उपयुक्त किस्म, बीज का चयन तैयारी

गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है। गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लायें। गन्ने ऊपरी भाग की अंकुरण 100 प्रतिशत, बीच में 40 प्रतिशत और निचले भाग में केवल 19 प्रतिशत ही होता है। दोआंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है।

गन्‍ना बीजोपचार                                                           

बीजजनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा/ लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मि.ली./ली हे. की दर से घोलबनाकर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनिट तक उपचार करें।

बीज की मात्रा एवं बोने की विधि

गन्ने के लिए 100-125 क्वि. बीज या लगभग 1 लाख 25 हजार आंखें/हेक्टर गन्ने के छोटे-छोटे टुकडे इस तरह कर लें कि प्रत्येक टुकड़े में दो या तीन आंखें हों। इन टुकड़ों को कार्बेंन्डाजिम- 2 ग्राम प्रति लीटर के घोल में 15 से 20 मिनट तक डुबाकर रखें। इसके बाद टुकड़ों को नालियों में रखकर मिट्टी से ढंक दें एवं सिंचाई कर दें या सिंचाई करके हलके से नालियों में टुकड़ों को दबा दें।

नराईगुड़ाई

बोनी के लगभग 4 माह तक खरपतवारों की रोकथाम आवश्यक होती है।इसके लिए 3-4 बार नराई करनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए अट्राजिन 160 ग्राम प्रतिएकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें।बाद में ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रतिएकड़ 325 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।

मिट्टी चढ़ाना गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की सहायता से मिट्टी चढ़ाना चाहिए। अक्टूबर – नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी – मार्च में तथा अंतिम मिट्टी मई माह में चढ़ाना चाहिए। कल्ले फूटने के पहले मिट्टी नहीं चढ़ाना चाहिए। वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें (120 व 150 दिन) ।

सिंचाई

शीतकाल में 15 दिन के अंतर पर एवं गर्मी में 8-10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। सिंचाई सर्पाकार विधि से करें। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिए गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की 4-6 मोटी बिछावन बिछायें। गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई करें।

खाद एवं उर्वरक:- 

फसल के पकने की अवधि लम्बी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है अतः खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ी गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए

इसके अतिरिक्त 300 किलो नत्रजन (650 कि.ग्रा. यूरिया ), 85 कि.ग्रा. स्फुर, ( 500 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 60 कि. पोटाश (100 कि.ग्रा. म्यूरेट आप पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें।

शरद कालीन गन्नाः      

शरद कालीन गन्ने में ऩत्रजन की कुल मात्रा को चार समान भागों में विभक्त कर बोनी के क्रमशः 30, 90, 120 एवं 150 दिन में प्रयोग करें।

बसन्त कालीन गन्नाः

बसन्त कालीन गन्ने में नत्रजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमशः 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें।
नत्रजन उर्वरक के साथ नीम खली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नत्रजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 50 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्मतत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें।

गन्‍ने की बंधाई

गन्ना न गिरे इसके लिए कतारों के गन्ने की झुंडी को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए। यह कार्य अगस्त के अंत में या सितम्बर माह में करना चाहिए।

गन्‍ने में पौध संरक्षण

गन्ने की फसल को रोग व कीटों से बचाने के लिए निम्नानुसार पौध संरक्षण उपाय करें

गन्‍ने की फसल के कीट

अग्र तना छेदक: 15 से 100 दिनों तक क्षति संभव, 1 लार्वी कई तनों को भूमिगत होकर क्षति पहुंचाती है। डेड हार्ट बनता एवं प्रकोपित पौधा नहीं बचाया जा सकता। बगल से कई कल्ले निकलते है

नियंत्रण उपाय : शीतकालीन बुवाई अक्टूबर-नवम्बर गन्ना बीज को बुवाई के पूर्व  0.1 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफास 25 ई.सी. घोल में 20 मिनिट तक उपचारित करे। प्रकोप बढ़ने पर फोरेट 10 जी 15-20 कि.ग्रा/ हे. या कार्बाफ्यूरान 3 जी 33 कि.ग्रा /हे.  का उपयोग करें|

शीर्ष तना छेदक : लार्वी पत्ती के मिडरिपमें में से होते हुये पत्ती के आधार से तने में प्रवेश करती है तथा 2-3 गांठो तक छेद करते हुये नुकसान पहुंचाती है। डेड हार्ट बनता है जिसे आसानी से खीचा जा सकता है बाद में प्रभावित गन्ने से वंचीटाप का निर्माण होता हैं। उपज में 53 प्रतिशत तक व शक्कर में 3.6 प्रतिशत तक नुकसान होता है।

नियंत्रण उपाय : शीतकालीन बुआई अक्टूबर-नवम्बर में करें आवश्यकतानुसार जल निकास करें। प्रकोप बढ़ने पर फोरेट 10 जी 15-20 कि.ग्रा /हे. या कार्बाफ्यूरान 3 जी 33 कि.ग्रा/हे. का उपयोग करें।

जड़ छेदककीट : इल्ली 30 मि.मी. रंग सफेद सिर पीला भूरा भूमिगत हिस्सों को खाती है।जमीन के पास तने में छेदकर नीचे की ओर सुरंग बनाती है। पौधा सूख जाता है।

नियंत्रण : फोरेट-10 जी 400 ग्राम या कार्बोफ्यूरॉन 3 जी-400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से जड़ों के पास ड़ालें।

पाईरिल्ला : निम्फ व प्रौढ़ पत्ती रस चूस कर शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ स्त्राव करते है। जिसमें काले रंग की परत विकसित हो जाती है। पत्ती पीली व बढ़वार रूकती है। उपज में 28 प्रतिशत व शक्कर में 2.5 प्रतिशत गिरावट|

नियंत्रण उपाय : एपीरीकीनिया जैविक कीट के कोकून / 5000/हे. उपयोग करें। कीटनाशकों का उपयोग व पत्ती जलाने से जहांतक हो सके बचे। आवश्यकता पड़ने पर क्विनालफास 25 ई.सी. 1.5 ली./हे. घोल का छिड़काव, मैलाथियान 50 ई.सी. 2.0 ली./ हे. की दर से 1000 ली/हे. पानी के साथ छिड़काव|

सफेद मक्खी : निम्फ व प्रौढ़ पत्ती की निचली सतह से रस चूसते है। पत्ती पीली पड़कर सूखती है और पत्तियों पर काले मटमैले रंग कीपर विकसित होती है उपज में 15 से 85 प्रतिशत तक नुकसान|

नियंत्रण उपाय : शीतकालीन बुवाई अक्टूबर-नवम्बर में करें संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग उचित जल निकास बनाये। एसिटामेप्रिड या एमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.ए.एल. 350  मि.ली., 600 ली./हे. पानी के साथ उपयोग करें।

पपड़ी कीट : गन्ने की पोरियो पर निम्फ/ प्रौढ़ पौधे का रस चूसते है जिससे गन्ने के अंकुरण क्षमता में 40 प्रतिशत व उपज में 15 प्रतिशत कमी।

नियंत्रण उपाय : कीटअवरोधी किस्म सी.ओ. सी.671, सी.ओ.जे.एन.86,141, सी.ओ.7318 का उपयोग करें। एम.एच.ए.टी 54 डिग्री से. गे्र 80 प्रतिशत आर्द्रता में  4 घंटे बीज उपचारित करके बुवाई करें गन्ना बीज को बुवाई के पूर्व 0.1 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफास 25 ई.सी. घोल में 20 मिनिट तक उपचारित करे।

गन्‍ने के प्रमुख रोग, लक्षण व नियंत्रण

कंडवा रोग : पौधा सामान्य से लम्बा व पतला होता है पौधे के सिरे से काले रंग की चाबुक जैसी संरचना बनती है जिससे बाद में काले रंग चूर्ण निकलकर अन्य फसलों को भी प्रकोपित करता है।

नियंत्रण उपाय : कंडवा रोग अवरोधी किस्में जैसे सी.ओ.जे.एन.86,141, सी.ओ.जे.एन.86,572, सी.ओ.जे.एन.86,600। बुवाई पूर्व कार्बडाजिम या कार्बाक्सिन पावर 2 ग्राम प्रति ली. दर से घोल बनाकर बीज उपचार। रोग ग्रसित पौधों को सावधानी से निकाल कर नष्ट करें।

लाल सड़न रोग: रोगी पौधों की ऊपरी दो-तीन पत्तियों के नीचे की पत्तियां किनारे से पीली पड़कर सूखने लगती हैं व झुक जाती है। पत्तियां का मध्यसिरा लाल कथई धब्बो का दिखना व बाद में राख के रंग का होना। तना फाड़कर देखने से ऊतक चमकीला लाल व सफेद रंग की आड़ी तिरछी पट्टी दिखती है। रोगी पौधे से शराब / सिरका जैसी गंध आती है।

नियंत्रण उपाय : लाल सड़न अवरोधी किस्म सी.ओ.जे.एन. 86141 लगायें। बुवाई के समय एम.एच.ए.टी. 54 डिग्री से.ग्री., 80 प्रतिशत नमी पर 4 घंटे तक बीज उपचार। उचित जल निकास रखें। बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्सपावर 2 ग्राम /ली. घोल में 20 मिनिट तक उपचार।

उकठा रोग : प्रभावित पौधे की बढ़वार कम। पत्तियों व पौधों में पीलापन व सूखना पौधों को चीर कर देखने पर गाठों के पास लालमटमैला दिखना। गन्ना अंदर से खोखला पड़ जाता है।

नियंत्रण उपाय : उकठा अवरोधी जातियों-सी.ओ.जे.एन.86141, सी.ओ.जे.एन. 86600। बुवाई पूर्व बीज उपचार कार्बन्डाजिम या वीटावेक्सपावर 2 ग्रा./ली. घोल में 20 मिनट। उचित जल निकास करें|

ग्रासी सूट : गन्ना का तना पतला व नीचे से एक साथ घास जैसे तल्लों का निकलना रोगी पौधा छोटा, पत्तियां हल्की पीली सफेद, गठानों की दूरी कम, खड़े गन्ने में आंखों से अंकुरण होना।

नियंत्रण उपाय : बुवाई के समय एच.एच.ए.टी. 54 डिग्री से.ग्री., 80 प्रतिशत नमी पर 4 घंटे तक बीज उपचार। पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग। गन्ना काटते समय औजार स्वच्छ हों।

मुख्य फसल की कटाई  : मुख्य फसल को फरवरी-मार्च में काटें फरवरी पूर्व कटाई करने से कम तापमान होने के कारण फुटाव कम होगा तथा पेड़ी फसल में कल्ले कम प्राप्त होगी।

कटाई करते समय गन्ने को जमीन की सतह के करीब से काटा जाना चाहिए। इससे स्वस्थ तथा अधिक कल्ले प्राप्त होंगे। ऊंचाई से काटने से ठूंठ पर कीट व्याधि की प्रारंभिक अवस्था में प्रकोप की संभावना बढ़ जाती हैं तथा जड़ें भी ऊपर से निकलती हैं, जो कि बाद मैं गन्ने के वजन को नहीं संभाल पाती।

उपज

गन्ने उत्पादन में उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर तक गन्ना प्राप्त किया जा सकता है।


Authors

डॉ. हादी हुसैन ख़ान1पुष्पेंद्र सिंह साहू2 डॉ. हुमा नाज़3

शोध सहयोगी

1कीट विज्ञान विभाग, क्षेत्रीय वनस्पति संगरोध केन्द्र,अमृतसर, पंजाब, भारत

2कीट विज्ञान विभाग, शुआट्स, इलाहाबाद. भारत 

3पादप संगरोध विभाग, वनस्पति  संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह, निदेशालय, फरीदाबाद, हरियाणा, भारत

3Email: humanaz83@gmail.com

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