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Why should farmers adopt drip irrigation? ड्रिप सिंचाई व्यवस्था सिंचाई की एक उन्नत तकनीक है जो पानी की बचत करता है । इस विधि में पानी बूंद-बूंद करके पौधे या पेड़ की जड़ में सीधा पहुँचाया जाता है जिससे पौधे की जड़े पानी को धीरे-धीरे सोखते रहते है। इस विधि में पानी के साथ उर्वरको को भी सीधा पौध जड़ क्षेत्र में पहुँचाया जाता है जिसे फ्रटीगेसन कहते है । फ्रटीगेसन विधि से उर्वरक लगाने में कोई अतिरिक्त मानव श्रम का उपयोग नही होता है। अत% यह एक तकनीक है जिसकी मदद से कृषक पानी व श्रम की बचत तथा उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार कर सकता है।   ड्रिप सिंचाई कम पानी की...

Why farmers should adopt drip irrigation  ड्रिप सिंचाई क्या है ? यह सिंचाई का एक तरीका है जो पानी की बचत करता है और यह पौधे या पेड़ की जड़ में पानी के धीरे-धीरे सोखने में (चाहे वो पौधे के ऊपर वाली मिट्टी हो या फिर जड़ हो) मदद कर खाद और उर्वरक के अधिकतम उपयोगी इस्तेमाल में मदद करता है। ड्रिप सिंचाई वॉल्व्स, पाइप, ट्यूब्स और एमीटर्स से जुड़े एक नेटवर्क की मदद से कार्य करता है। यह काम संकरे ट्यूब से जोड़कर किया जाता है जो पौधे या पेड़ की जड़ तक पानी को सीधे पहुंचाता है। ड्रिप सिंचाई व्यवस्था में माइक्रो-स्प्रे हेड्स तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता...

Water conservation and management techniques in fruits cultivation  खेती में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता धीरे - धीरे कम होती जा रही है, इसलिए यह अत्यावश्यक हो गया है की सिंचाई के लिए जल का उपयोग बहुत ही सोच समझकर एवं बुधिमतापुर्वक किया जाए । अभी भी किसान सिंचाई की पुरानी विधियां ही उपयोग में ला रहे है जिनकी सिंचाई जल प्रयोग की दक्षता बहुत कम होती है । इसलिए हमें सिंचाई की नयी तकनीको को अपनाना चाहिए जिसमें जल प्रयोग की दक्षता ज्यादा हो तथा हम जल संरक्षण की तारफ कदम बढा  सकें। जल संरक्षण के साथ साथ हमें उसके प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि जल प्रकाश- संश्लेशन...

Optimal planting geometry and fertilizer application method for drip irrigated vegetable crops फसलों की सिंचाई की विधियों में टपक सिंचाई पध्दति सर्वाधिक कुशल विधि है जिसमें जल का 80-90 प्रतिशत कुशल उपयोग होता है। इस पध्दति से सभी प्रकार की भूमि में कम समय एवं कम जल में सिंचाई की जा सकती  है। टपक सिंचाई पध्दति द्वारा सिंचाई में पौधों के सीमित नम क्षेत्र के कारण रोग की सम्भावना कम होती है तथा फसलों की पंक्तियों में खर-पतवार नहीं उग पाते हैं। सिंचाई की इस विधि का उपयोग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। सीमित जल संसाधनों और दिनों-दिन बढ़ती हुई जलावश्यकता के कारण टपक सिंचाई तकनीक सर्वाधिक उपयुक्तहै। टपक तंत्र एक...

Adopt Shower (Sprinkler) irrigation techniques - get bumper crop बौछारी  या स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई में पानी को छिड़काव के रूप में दिया जाता है। जिससे पानी पौधों पर वर्षा की बूंदों जैसी  पड़ती हैं। पानी की बचत और उत्पादन की अधिक पैदावार के लिहाज से बौछारी सिंचाई प्रणाली अति उपयोगी और वैज्ञानिक तरीका मानी गई है। किसानों में सूक्ष्म सिंचाई के प्रति  काफी उत्साह देखी गई है। इस सिंचाई  तकनीक से कई फायदे हैं। हमारे यहां बौछारी  या स्प्रिंकलर और बूंद.बूंद या ड्रि‍प सिंचाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता हैए बल्कि  कृषि की उन्नत तकनीक भी विकसित की जा सकती है। असमतल भूमि  और ऊंचाई...

शीत शुष्क कृषि के लिए एक संभावित माइक्रो सिंचाई प्रणाली - ड्रिप सिंचाई Agriculture sector is considered as the back bone of Indian economy contributing directly and indirectly to the growth and development of our country. Since independence our country has attained significant achievements standing self sufficient in food grain production. The achievement is because of the scientific technological interventions and the utilization of the available natural resources which were in abundance. Hence Irrigation water availability predominantly being the major contributing factor in this regard.With the advancement in the agriculture sector, it now becomes imperative to utilize the available natural wealth of resources in a manageable way for sustaining agricultural production...

Solar Power Drip Irrigation System - Best way to save energy & water भारत एक कृषि प्रधान देश है हमारे देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि गतिविधियों से जुडी हुई है। कृषि उत्पादन में निवेश के रूप में ऊर्जा की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सामान्यतया: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों में पंप सेट को चलाने के लिए डिजल का उपयोग किया जाता है जो कि आज कल प्रतिदिन महंगा हो रहा है तथा उसके धुंए और ध्वनि से जैविक पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । दूसरी ओर हम देंखे तो पायेंगे कि किसान अभी भी सिंचाई कि परम्परागत (बाढ़ सिचाई) विधियों का उपयोग कर रहे है जिससे पानी की  क्षति अधिक व सिंचाई ...