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Animal feed management in rainy and autumn season Due to sudden giving of excess fodder to the animals during rainy season, they start complaining of diarrhea because sudden change in diet affects the activities of the microorganisms in the stomach of the animal due to which problem of diarrhea and indigestion is seen in some animals. During the rainy season, animals and insects grow very fast and the incidence of fungus remains at its peak. Therefore, green fodder should not be dirty, smelly or muddy as this is the main cause of stomach diseases in animals. Animal feed management in rainy and autumn season हमारे भारत में पशुपालन कृषि का एक अभिन्न हिस्सा...

अजोला की खेती- हरे चारे की कमी को कम करने के लिए वैकल्पिक समाधान About 50–75 percent of the overall cost of producing milk, meat, and other livestock products goes toward feed and fodder, making them the most significant inputs. Grazing cattle in India are typically not supplemented with anything to satisfy their requirement for protein and minerals. Grazing lands are continuously degrading as a result of exploitative strain and are contracting as a result of conflicting demands for food and forage brought on by the pressure of an expanding population, urbanization, and industrialization. Due to the rising need for food and commercial crops, it is difficult to expand the area used...

हरे चारे के लिए मोरिंगा (ड्रमस्टिक) एक स्थायी विकल्प  मोरिंगा एक ऐसा पेड़ है जो हरे चारे की कमी को पूरा करने में अहम योगदान दे सकता है। मोरिंगा को लोकप्रिय रूप से ‘ड्रमस्टिक’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसकी फलियां ड्रमर द्वारा उपयोग की जाती हैं। इसे हिन्दी में सेहजन/सहजना कहते हैं। इस तेजी से बढ़ने वाले वृक्ष को पूरे उष्णकटिबंधीय इलाके में आसानी से स्थापित होने एवं बहुउद्देश्यीय उपयोग जैसे सब्जी, पशुधन चारा, दवा मूल्य, डाई, जल शुद्धिकरण आदि के कारण उगाया जाता है। मोरिंगा की पत्तियों में बीटा केरोटीन, प्रोटीन, विटामिन सी, केल्शियम, मैग्नीशियम एवं लोहा प्रचूर मात्रा में उपस्थित होता है। चूंकि मोरिंगा प्रोटीन में समृद्ध...

नैपियर बाजरा एवं दलहनी चारा फसलों के अन्तः फसलीकरण से सालभर गुणात्मक हरे चारे का उत्पादन  प्राचीनकाल से ही भारत की ख्याति एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है तथा पशुपालन इसकी उन्नति एवं सफलता में एक अभिन्न घटक के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। दुग्ध उत्पादन के स्तर में आज हम 180 मिलियन टन के आंकड़े को पार कर चुके है।  प्रति पशु दूध उत्पादकता के स्तर में आज भी हमारे देश की गणना बहुत निचे के स्तर पर दर्ज की जाती रही है जो हमारे लिए एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है तथा हमें इसमें सुधार करने की आवश्यकता है। इस कम उत्पादकता के लिए...

आधुनिक पशु आहार में अजोला का योगदान  राजस्थान की अर्थव्यस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है तथा पशुपालन कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन किसानो को विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर प्रदान करता है  जिससे किसानो की आय में वर्द्धि होती है एवं उनकी अर्थवयवस्था में भी  सुधार होता है। अजोला पशुओ के लिये जैविक चारे का काम करता है जिससे उनके दूध में बढ़ोतरी होती है और दूध की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती है अजोला एक जलीय फर्न है, जो पानी में तेजी से  बढ़ती है एवं पानी की सतह पर तैरती रहती है धान की फसल में अजोला को भी नील हरित शैवाल की तरह हरी...

हाईब्रिड नेपियर घास से वर्षभर हरा चारा उत्पादन  नेपियर घास  का जन्म स्थान अफ्रीका का जिम्बाबे देश बताया जाता है | यह  बहुत ही तेज बढ़ने वाली पौष्टिक चारा घास है इसलिए इसे हाथी घास भी कहा जाता है | इसका  नेपियर नाम, कर्नल नेपियर (रोडेसियन कृषि विभाग, रोडेसिया) के नाम पर पड़ा | सबसे पहली नेपियर हाईब्रिड घास अफ्रीका में बनाई  गयी |  इसे चारे के  रूप में बहुत तेजी से अपनाया जा रहा है|  भारत में यह घास 1912 में आई | भारत में प्रथम बाजरा-नेपियर हाईब्रिड  घास कोइम्बतुर, तमिलनाडू (1953) में और फिर नयी दिल्ली में 1962 में बनाई गयी| कोइम्बतुर के हाईब्रिड  का नाम कोम्बू नेपियर और नयी...

अज़ोला: पशुधन के लिए एक वैकल्पिक और स्थायी चारा एजोला पानी की सतह पर एक नि: शुल्क चल, तेजी से बढ़ती जलीय फ़र्न है। अज़ोला की खेती किसान को पशुधन आहार पूरक की लागत को कम करने में मदद करती है और यह पशुधन, मुर्गी पालन और मछली के लिए पूरक आहार खिलाने के लिए उपयोगी है। यह एक छोटे, सपाट, सघन हरे द्रव्यमान की तरह तैरता है। आदर्श परिस्थितियों में, एजोला संयंत्र तेजी से बढ़ता है, हर तीन दिन में इसका बायोमास दोगुना हो जाता है। भारत में एजोला की सामान्य प्रजाति अज़ोला पिन्नता है। यह ल्यूसर्न और संकर नैपियर की तुलना में उत्कृष्ट गुणवत्ता के प्रोटीन का 4 से 5...

साइलेज: वर्ष भर हरे चारे का विकल्प  हरे चारे की कुट्टी करके वायु रहित (एनारोबिक) परिस्थितियों में 45 से 50 दिन तक रखने पर किण्वन प्रक्रिया द्वारा हरे चारे को संरक्षित करना ही “साइलेज” बनाना कहलाता है । आम भाषा में इसे “चारे का अचार” भी कहा जाता है क्योंकि इससे हरे चारे को साल भर संरक्षित करके रखा जा सकता है । साइलेज की पौष्टिकता भी चारे की तरह बरकरार रहती हैं क्योंकि किण्वन प्रक्रिया से चारे में उपस्थित चीनी या स्टार्च लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है, जो चारे को कई वर्षो तक ख़राब होने से बचाए रखता है। दुधारू पशुओं को वर्ष भर हरे चारे की आवश्यकता होती है परन्तु...

Green fodder production with guinea grass  बहुवर्षीय हरे चारे के लिए गिनी घास का महत्वपूर्ण योगदान है| गिनी घास (Panicum maximum Jacq.) का जन्म स्थान गिनी, अफ्रीका को  बताया जाता है| ये बहुत ही तेजी से बढने वाली और पशुओ के लिए  एक स्वादिस्ट घास है|   इससे वर्ष मैं 6-8 कटाई तक कर सकते है| भारत में यह घास 1793 में आई| इसमें 10-12 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, रेशा 28-36 प्रतिशत, NDF 74-75 प्रतिशत , पत्तो की पाचन क्षमता  55-58 %, लिगनिन  3.2-3.6 प्रतिशत होती है| गिनी घास के लि‍ए जलवायु गिनी घास  गर्म मौसम की फसल है घास के लिए उपयुक्त तापमान, 31 डिग्री सेंटीग्रेड  चाहिए और 15 डिग्री सेंटीग्रेड के नीचे इसकी...

Multi harvesting sorghum fodder crop cultivation techniques  भारत में  मात्र 4 प्रतिशत भूमि पर चारे की खेती की जाती है तथा एक गणना के अनुसार भारत में 36 प्रतिशत हरे चारे एवं 40 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है | अत: बढती हुई आबादी एवं घटते हुए कृषि क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए हमें उन चारा फसलों की खेती करनी होगी जो लम्बे समय तक पशुओं को पोष्टिक चारा उपलब्ध कराने के साथ साथ हमारी जलवायु में आसानी से लगाई जा सके | शरद ऋतू में बरसीम, जई, रिजका, कुसुम आदि की उपलब्धता मार्च के पहले पखवाड़े तक बनी रहती है किन्तु बहु कट चारा ज्वार से पशुओं को लम्बे समय...