दलहनी फसलों में खरपतवार प्रबंधन

दलहनी फसलों में खरपतवार प्रबंधन

Weed management in pulse crops

दलहनी फसलों की पैदावार में कमी होने के प्रमुख कारकों में खरपतवारों की समस्या बहुत जटिल है। दलहनी फसलों की शुरूआती धीमी बढ़वार एवं कम ऊँचाई के कारण खरपतवार फसलों के ऊपर हावी हो जाते हैं तथा उपज को प्रभावित करते हैं।

दलहनी फसलों में खरपतवारों की समय पर रोकथाम से न केवल पैदावार बढ़ाई जा सकती है अपितु उसमें गुणवत्ता को भी बढ़ाया जा सकता है। दलहनी फसलों के प्रमुख खरपतवार निम्नलिखित है

तालिका-1 दलहनी फसलों के प्रमुख खरपतवार

खरपतवारों की श्रेणी खरपतवार
रबी खरीफ
सकरी पत्ती वाले      गेंहूँ का मामा, (फेलोरिस्प माइनर), जंगली जई (ऐवेना फेच्वा), दूब घास (साइनोडोंन डेक्टीलोन)    संवा (इकानोक्लोआ कालोना)  दूब घास (साइनोडान डेक्टीलान)कोदों (इल्यूसिन इण्डिका)बनरा (सिटैरिया ग्लाऊका)
चैड़ी पत्ती वाले कृष्णनील (एनागोलिस आरवेनसिस), बथुआ (चिनोपोडियम एल्बम), सेंजी (मेलीलोटस प्रजाति), प्याजी (एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस), हिरणखुरी (काॅनवोलवुलस आर्वेनसिस), पोहली (कार्थेमस आम्सीकैन्था), सत्यानाशी (आर्जीमोन मेक्सीकाना), अकरी (विसिया सटाइवा), जंगली मटर (लेथाइरस सटाइवा) पत्थरचट्टा (ट्रायन्ािमा पोस्टलाकैस्ट्रम), कनकवा (कामेलिना बेचालेनसिस), महकुआ (एजीरेटम कोना ज्वाडिस), तन मकोथ (फाइजेलिस मिनीमा), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेन्सिया) और हजार दाना (फाइलेन्थिस निरूरी) 
मोथाकुल परिवार के खरपतवार मोथा (साइप्रस रोटेन्डस्) मोथा (साइपेरसरोटन्डस)

दलहन में खरपतवारों से होने वाली हानियाँ

  1. खरपतवार दलहनी फसलों के लिए अत्यन्त हाँनिकारक है। ये पोषक तत्वों एवं अन्य महत्वपूर्ण अवयवों को ग्रहण कर लेते है। तथा उत्पादकता को प्रभावित करते है।
  2. खरीफ मौसम में उच्च तापमान एवं अधिक नमी के कारण खरपतवार की रबी मौसम की अपेक्षा अधिक खरपतवार उगते है।
  3. खरपतवार फसलों में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते है।
  4. खरपतवार के बीज फसल के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता एवं बाजार मूल्य को कम कर देते है।
  5. वैज्ञानिक शोधों के अनुसार खरपतवार प्रति हेक्टेयर 20-60 कि0ग्रा0 नत्रजन, 5-12 कि0ग्रा0 फाॅस्फोरस एवं 25-50 कि0ग्रा0 पोटाश की मात्रा मृदा से अवशोषित करता है। विभिन्न रबी दलहनी फसलों की पैदावार में खरपतवारों के प्रभाव के कारण अंकित कमी को सारणी-2 में दर्शाया गया है।

तालिका-2 खरपतवार प्रतिस्पर्धा के फलस्वरूप रबी दलहनी फसल की पैदावार में कमी

दलहनी फसलें खरपतवार प्रतिस्र्पधा का नाजुक समय खरपतवारों द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण उपज में कमी(%)
बुआई के बाद दिन नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश
चना 30-60 24-55 3-8 15-72 50-75
मसूर 30-60 39 5 21 50-70
मटर 30-60 61-72 7-14 21-105 30-50
राजमा 30-60 61-72 7-14 21-105 30-50
मूंग/उर्द 30-35 20-30 5-10 15-45 50-80
अरहर 60-70 50-85 5-15 20-65 40-65

खरपतवार नियंत्रण का उपयुक्त समय

दलहनी फसलों में खरपतवार की संख्या, किस्म एवं फसल के साथ प्रतिस्पर्धा, दलहनी फसलों की पैदावार में अत्यधिक कमी अंकित करते है। अतः यह अत्यन्त आवश्यक है कि दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण की प्रक्रिया को प्रारम्भिक अवस्था में अपनाया जाए जिससे, खरपतवारों की तीव्र वृद्धि को रोक कर फसल में हो रहे नुकसान को रोका जा सके।

खरपतवारों के प्रारम्भिक अवस्था में उन्मूलन के परिणामस्वरूप मुख्य फसल को सम्पूर्ण विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त होते है तथा अधिक फसल पैदावार से किसान को उचित आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।

खरपतवार रोकथाम की विधियां

खरीफ दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण निम्नलिखित विधियों को अपनाकर किया जा सकता है-

१. गहरी जुताई द्वारा

ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई द्वारा खरपतवारों के बीज व कंद मिट्टी के ऊपर आ जाते है जिसके कारण तेज धूप एवं गर्मी में अपनी अंकुरण क्षमता को खोकर निष्क्रिय हो जाते है। इससे कीटों व व्याधियां का प्रकोप भी कम होता है।

२. शुद्ध बीजों का प्रयोग

बुवाई के समय शुद्ध और साफ बीज जिसमें खरपतवार का बीज न हो का प्रयोग की रोकथाम के लिए बहुत ही लाभदायक है।

३. हाथ द्वारा निराई-गुड़ाई

सरल और प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ द्वारा निराई-गुड़ाई फसल की प्रारम्भिक अवस्था (15-45 दिन की बुवाई के पश्चात) की जाती है जो कि खरपतवारों से प्रतियोगिता की दृष्टि से उपयुक्त समय माना जाता है। अतः आरम्भिक अवस्था में ही फसलों से खरपतवारों का रोधन फसलोंत्पादन को बढ़ाता है।

४. उचित फसल चक्र अपनाकर

प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि एक ही फसल को बार-बार एक ही खेत में न उगाया जाए। इस क्रम में फसल चक्र को अपनाकर खरपतवारों के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है।

अंतः फसल प्रणाली जैसे अरहर के साथ ज्वार व मूंग की फसल को लगाकर भी खरपतवार के प्रकोप को कम कर सकते है।

तालिका-3 रबी दलहनी मिलवाँ फसलों में प्रयोग किए जाने वाले खरपतवार नाशी रसायन

मिलवाँ फसलें  खरपतवार नाशी

रसायन मात्रा  (ग्राम सक्रिय तत्व हे0)

प्रयोग समय प्रयोग विधि
अरहर + मूंगफली पेन्डीमिथिलीन (स्टाम्प)            1000-1250 बुआई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व खरपतवारनाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करे तथा ध्यान रखें कि छिड़काव के समय मृदा में पर्याप्त नमी हों। 
मक्का +उर्द /मूंग/लोबिया एलाक्लोर (लासो)            1500 तदैव
अरहर + सोयाबीन/तिल फ्लुक्लोरीन (बसालीन) 1000-1500 बुआई के पहले भूमि में अच्छी तरह मिला हैं 
पेन्डीमिथिलीन (स्टाम्प)            1000-1500 बुआई के बाद परन्तु अंकुरण से पहले
एलाक्लोर (लासो)            1000-1500 तदैव

५. रसायनों के प्रयोग द्वारा

दलहनी फसलों में खरपतवार नाशी रसायनों के प्रयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। खरपतवार नाशी रसायनों का प्रयोग मुख्य दलहनी फसल अथवा मिलवां फसलों में करके न केवल खरपतवारों को नष्ट करता है अपितु, समय की बचत भी करता है।

दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयुक्त होने वाले रसायन पेन्डीमिथलीन, एलाक्लोर, फ्लूक्लोरेलिन, आसोप्रोट्रूरान, क्यूजालोफोप – इथाईल, इमाजेथापर (सारणी) आदि है।

सारणी 4 विभिन्न दलहनी फसलों में प्रयोग किये जाने वाले खरपतवार नाशी रसायन

दलहनी फसलें   खरपतवारनाशी रसायन मात्रा ग्राम सक्रिय तत्व/हे.)      प्रयोग का समय      प्रयोग विधिे
अरहर, मून, उर्द एलाक्लोर (लासो) 1000 बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व खरपतवारनाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करें। 
फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन) 1500 बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में मिला दें।    
पेन्डीमिथलिन (स्टाम्प) 1500 बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व।
इमेजेथापायर (परस्यूट) 100 बोने के 20 दिन पश्चात
चना, मसूर, मटर फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन)    1000 बुवाई के पहले छिड़ककर भूमि में मिला दें।    
पेन्डीमिथलिन (स्टाम्प) 1000-1025 बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व।
     
  क्लोडिनोफाप  (टापिक) 60 बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व। जंगली जई एवं गेंहू  के मामा की रोकथाम हेतु विशेष रूप से कारगर 
क्यूजालोफाप (टरंगासुपर) 50 बुवाई के 25-30 दिन बाद  


खरपतवार नाशी 
का प्रयोग करते समय ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें

  1. खरपतवारनाशी का प्रयोग करते समय प्रत्येक खरपतवारनाशी रसायनों के डिब्बे पर लिखें नियमों अथवा निर्देशों का पूर्णतया पालन करना चाहिए तथा पर्चे को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए।
  2. खरपतवारनाशी रसायन को उचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।
  3. खरपतवारनाशी रसायनों का छिड़काव सुबह अथवा शाम को जब हवा बिल्कुल न चल रही हो तब करना चाहिए।
  4. खरपतवारनाशी रसायनों का छिड़काव करते समय विशेष पोशाक, दस्ताने, चश्में आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  5. छिड़काव के पश्चात साबुन से अच्छी तरह हाथ, मुँह अवश्य रूप से धोना चाहिए। तथा कपड़े बदल लेना चाहिए।
  6. छिड़काव के समय खेत में नमी का पूरा ध्यान देना चाहिए तथा छिड़काव हेतु नैपसेक स्प्रेयर एवं फ्लैटफैन नोजल का प्रयोग करना चाहिए।
  7. खरीफ मौसम में ये हमेशा ध्यान रखें कि खरपतवारनाशी रसायनों का छिड़काव वर्षा रहित अवस्था में करें।

दलहनी फसलों में जहाँ समय एवं श्रमिक कम तथा पारिश्रमिक ज्यादा हो वहाँ रासायनिक विधि को अपनाने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है। इस विधि से मुख्य फसलों को हाँनि भी नहीं पहुँचती है। इस विधि द्वारा श्रम शक्ति भी कम लगती है।


Authors:

आरती यादव1, नरेन्द्र कुमार2 और सतेन्द्र लाल यादव3

1सीनियर रिसर्च फेलो, 2वरिष्ठ वैज्ञानिक, 3सीनियर रिसर्च फेलो,

भारतीय दलहन अनुशंधान संस्थान

1Email: ambikarti@gmail.com

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